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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतदुनिया की तुलना में दिल्ली मेट्रो में इतनी कम सवारी क्यों चढ़ती हैं

दुनिया की तुलना में दिल्ली मेट्रो में इतनी कम सवारी क्यों चढ़ती हैं

मेट्रो के अधिक उपयोग से दिल्ली की हवा में सुधार आ सकता है, निजी वाहनों पर प्रतिबंध से नहीं.

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दिल्ली का वायु प्रदूषण नहीं ख़त्म होगा.आम दिनों में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक ख़राब रीडिंग दिखाता है. प्राधिकरण निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं. यदि वे आगे बढ़ते हैं, तो परिणामस्वरूप गड़बड़ी का अनुमान लगाया जा सकता है. वाहन से होने वाला प्रदूषण निश्चित रूप से इस समस्या का एक हिस्सा है. लेकिन इस मुद्दे पर इतने वर्षों तक संघर्ष करने के बावजूद दिल्ली सरकार ने गाड़ियों की संख्या में वृद्धि नहीं की है. आज ये 40 साल पहले से भी कम है,  जब शहर की आबादी आज  एक तिहाई भी नहीं थी.  दिल्ली मेट्रो के रूप में अतिरिक्त सार्वजनिक परिवहन क्षमता बनाई गई लेकिन इसने कुछ अनोखे आंकड़े दिए हैं.
अन्य देशों के शहरों से तुलना दर्शाती है कि आकार के अनुरूप दिल्ली मेट्रो किसी अन्य शहर की मेट्रो प्रणाली की तुलना में बहुत कम सवारियों को ढोती है. दिल्ली मेट्रो की कुल लम्बाई 314 किलोमीटर है. दिल्ली मेट्रो की रोज़ाना भा सवारियों का औसत 2.8 मिलियन है.  चीन के शेनझेन  की लम्बाई भारत से थोड़ी कम 286 किमी है. लेकिन इसमें भारत की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक लोग सफर करते है. जिनका औसत 4.5 मिलियन है. मेक्सिको सिटी की मेट्रो प्रणाली छोटी है लगभग 226 किमी लम्बी है. लेकिन रोजाना 4.4 मिलियन सावरिया सफर करती है. सिंगापुर मेट्रो की लंबाई  दिल्ली के ट्रैक की लंबाई से दो तिहाई से कम है. इसकी लम्बाई 199 किमी है.दिल्ली की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक लोग इसमें सफर करते है. जिनका औसत 3.1 मिलियन है.

 

दुनिया में  सभी प्रमुख मेट्रो सिस्टमों में संख्या में कोई समानता नहीं है. टोक्यो में हर किलोमीटर के ट्रैक पर प्रतिदिन 34,000 सवारियां, 27,000  हांगकांग में और 20,000 पेरिस में जबकि अन्य शहर जहा पर संख्या और भी कम है जैसे मास्को में 18,000, बीजिंग और शंघाई में  सवारियों को संख्या 16,000 है. लेकिन सवारियों की संख्या में कोई समानता नहीं है. मामला यह है कि दुनिया के सभी प्रमुख मेट्रो की तुलना में दिल्ली मेट्रो का यात्री-ट्रैक अनुपात सबसे कम है- 10,000 से भी कम है. सिस्टम कम से कम इस संख्या को 15,000 से बढ़ाकर 20,000 करने का लक्ष्य करना चाहिए  या उसी ट्रैक पर सवारियां दोगुनी होनी चाहिए.

दिल्ली में सवारियों की कम संख्या के लिए कई कारण हो सकते हैं. जिसमें से एक प्रमुख कारण प्रति मेट्रो ट्रेन पर कोचों की संख्या है. दिल्ली की अधिकांश मेट्रो ट्रेनों में छह कोच हैं. जबकि कुछ में आठ और कुछ में चार हैं. अधिकांश महानगरों में छह से आठ कोचों की संख्या  सामान्य सी बात है.  लेकिन न्यूयॉर्क में आमतौर पर प्रति ट्रेन आठ से 11 कोच के साथ काम करते है. दिल्ली मेट्रो 1,600 कोचों की मौजूदा क्षमता में  लगभग 600 कोचों को जोड़ने की कुछ समय की कोशिश कर रही है. लेकिन यह किसी कारण से आधार में लटक जाती है. प्रति ट्रेन आठ कोचों की एक समान प्रणाली में जाने से सफर करने वालों की संख्या में धीरे -धीरे इजाफ़ा हो जायेगा.  कम कोचों  के साथ आम तौर पर भीड़ वाले दिल्ली मेट्रो ने महंगे बुनियादी ढांचे पर पैसा खर्च किया है और फिर इसकी संभावित क्षमता का पूरा उपयोग नहीं किया है.
दूसरी समस्या ट्रेनों की फ्रीक्वेंसी से होती है. दिल्ली में दो ट्रेनों के बीच का अंतर ज़्यादातर बार तीन मिनट से अधिक और शहर के बाहरी क्षेत्रों में छह मिनट लगते हैं. व्यस्ततम यातायात के समय ट्रेनें दो मिनट से भी अधिक का समय लेती है.सिस्टम अन्य महानगरों की तरह समय को 90 सेकंड तक कम करने में असमर्थ लगता है. निश्चित रूप से इस समस्या का तकनिकी निदान होना चाहिए.

अंत में पटरियों के नेटवर्क के डिज़ाइन का मुद्दा है. कई शहरों में शहर के बीचोंबीच की लाइनों और स्टेशनों को बहुत घने नेटवर्क के रूप में विशेष सुविधा मिलती है. पेरिस में 87 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में शहर के मध्य में 245 स्टेशन है.  इसकी तुलना में दिल्ली में मात्र 229 स्टेशन हैं और अधिकांश ट्रैक उपनगरों में दूर- दूर तक फैली हुई है. मॉस्को में 50 किमी की लाइन है जो शहर के ऐतिहासिक केंद्र में है, जोकि अधिकतर ट्रैफिक लोड को संभाल लेती है. लंदन में भी सर्किल लाइन है जो शहर के केंद्रों में प्रमुख ट्रैफिक पॉइंट को छूती है. क्या दिल्ली मेट्रो की भविष्य की परियोजनाओं को शहर के केंद्र में केंद्रित किया जाना चाहिए या दूर के बहादुरगढ़ या फरीदाबाद जैसे स्थानों पर ताकि  मेट्रो की सवारी बढ़ें,सड़क का ट्रैफिक कम हो और शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार आए?

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