scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतगिरफ्तारी की कानूनी प्रक्रिया से क्यों डर रहे हैं चिदंबरम

गिरफ्तारी की कानूनी प्रक्रिया से क्यों डर रहे हैं चिदंबरम

अच्छा तो यह होता कि पी. चिदंबरम सीबीआई और ईडी अफसरों के साथ चुपचाप चले गये होते. जांच में आगे भी वैसे ही सहयोग करते जैसे किसी भी आरोपित व्यक्ति को करना चाहिए.

Text Size:

आईएनएक्स मीडिया केस में गिरफ्तार वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम की पिछले दिनों नाटकीय ढंग से हुई गिरफ्तारी ने सबको चौंका दिया. यह सवाल सबके मन में एक बार जरूर कौंधा कि आखिर पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के सामने ऐसी क्या स्थिति आ गई कि वह जांच एजेंसियों को सहयोग करने की बजाए सत्ताइस घंटे भागते-छिपते रहे. खैर उनकी गिरफ्तारी के बाद कोर्ट ने उन्हें 5 दिनों की सीबीआई की रिमांड पर भेजा और आज जब रिमांड के बाद आगे की सुनवाई शुरू हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें एक झटका और दे दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदम्बरम की दिल्ली हाई कोर्ट की अग्रिम जमानत के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी होने के बाद अब इसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता है. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई से जुड़ी याचिका पर इस चरण में सुनवाई नहीं होगी. अब सीबीआई कोर्ट ने भी चिदंबरम की 5 दिन की रिमांड खत्म होने पर रिमांड की अवधि और तिथि बढाकर अब कोर्ट में पुनः पेशी 30 अगस्त निर्धारित किया है.


यह भी पढ़ें: क्या अब भी किसी को शक है कि गांव की अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी?


जिस तरह से सीबीआई ने पी चिदंबरम को गिरफ्तार किया है, उसे सरकार की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. अबतक भारत में किसी पूर्व गृह मंत्री की गिरफ्तारी नहीं हुई थी I सीबीआई की इस कार्रवाई को सिर्फ चिदंबरम तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए. दरअसल इस कार्रवाई के बाद सरकार ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि अब किसी भी दल से जुड़े किसी भी रसूखदार बड़े नेता के खिलाफ कार्रवाई से वह गुरेज नहीं करेगी. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पी चिदंबरम के बाद जांच एजेंसियां नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार के सदस्यों, जमीन विवाद में वाड्रा सहित तमाम बड़े नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए सक्रियता बढ़ाएंगी और उन्हें गिरफ्तार करेंगी. बहरहाल देखने वाली बात यह है कि क्या पी चिदंबरम की गिरफ्तार के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आती है या फिर पूरी ताकत के साथ अपने नेताओं के साथ खड़ी नजर आती है.

हालांकि अभी तो कांग्रेस ने इसे राजनीतिक षड्यंत्र और व्यक्तिगत बदले से प्रेरित ही बताया है. कांग्रेस के अनुसार, गिरती अर्थव्यवस्था, नौकरियों का खत्म होना और रुपये के लगातार अवमूल्यन से देश का ध्यान हटाने के लिए मोदी सरकार ने यह खेल रचा. यह एक घिसी-पिटी और खोखली दलील है. क्या किसी भी जाँच एजेंसी के अफसर यह हिम्मत करेंगे कि बिना ठोस सबूतों के पूर्व गृह मंत्री को गिरफ्तार कर लें ?

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में जब अपना चुनावी अभियान शुरू किया था तो उस वक्त “दामाद श्री” नाम की सीडी पार्टी की ओर से जारी की गई थी, जिसमे पार्टी की ओर से रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ चल रहे आरोपों को लेकर कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा गया था. वाड्रा के बाद भाजपा ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी चिदंबरम, कार्ति चिदंबरम, सहित कई कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कही. लेकिन पांच साल के कार्यकाल के बाद जब रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ भी किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हुई तब कांग्रेस पार्टी ने निश्चिंत होकर भाजपा सरकार पर हमलावर रुख अख्तियार किया.

दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान में कांग्रेस लगातार इसी तर्क से अपने नेताओं का बचाव करती रही कि अगर उसके नेताओं ने कुछ गलत किया है तो आखिर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई और उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई ? कांग्रेस पार्टी ने सख्त लहजा अख्तियार करते हुए भाजपा को चिढाने के लिए ही कार्ति चिदंबरम को लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिया, इसी तरह रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ चल रही जांच के बावजूद उनकी पत्नी प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया गया,

पी. चिदंबरम का केस इन सबसे बिलकुल अलग हैं. आरोप जो भी हों, जितने भी गंभीर हों. चिदंबरम के खिलाफ केस में अदालत की जो भी टिप्पणी हो. यह तो मानना ही पड़ेगा कि पी. चिदंबरम कोई आम आरोपी नहीं हैं-बल्कि, केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए उनके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है. क्या सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील रहे चिदंबरम को देश की न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है? बेशक, किसी को इस बात से भी इंकार नहीं हो सकता कि चिदंबरम की ओर से जो भी कानूनी मदद लेने की कोशिश की जा रही है, वह तो एक स्वतंत्र नागरिक के नाते उनका क़ानूनी हक है – लेकिन क्या सार्वजनिक जीवन में एक लंबा अरसा बिताने के बाद चिदंबरम की ओर से ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा की जानी चाहिये?

यहां यह सवाल भी जरूर ही उठेगा कि आखिर सार्वजनिक जीवन जीने वाला एक व्यक्ति जब सत्ता में आता है तो क्या उसे यह अधिकार मिल जाता है कि वह खुल कर भ्रष्टाचार करे या फिर उसका खुलकर साथ दे. आज अकेले चिदंबरम ही नहीं उनका पूरा परिवार आज किसी न किसी मामले में जांच एजेंसियों के घेरे में है. फिर चाहे बात उनके बेटे की हो या फिर उनकी पत्नी की. चिदंबरम की वर्तमान गिरफ्तारी आईएनएक्स मीडिया मामले में हुई है. इसके अलावा भी पी चिदंबरम और उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम के खिलाफ एयरसेल-मैक्सिस मामले में भी मुकदमा चल रहा है. इसमें उन पर मनी लॉन्डरिंग का आरोप है.

सीबीआई इस मामले में बीते साल जुलाई में ही आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है और इसमें पिता-पुत्र दोनों का नाम है. एयरसेल-मैक्सिस मामला एयरसेल कंपनी में निवेश के लिए ग्लोबल कम्युनिकेशन होल्डिंग सर्विसेज फर्म को एफआईपीबी मंजूरी दिलाने से जुड़ा है. चिदंबरम पर आरोप है कि 2006 में वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने एयरसेल में 3,650 करोड़ रुपए के विदेशी निवेश को अवैध मंजूरी दिलाई. इसके बदले उन्हें और अन्य आरोपितों को कुल 1.16 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ मिला.

चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई सारदा चिटफंड घोटाले में आरोप पत्र दाखिल कर ही चुकी है. इस मामले में उन पर 1.4 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है. इसी साल फरवरी में कलकत्ता हाई कोर्ट ने उन्हें मामले में गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी. इसके अलावा मद्रास हाई कोर्ट ने पी चिदंबरम, नलिनी, कार्ति और कार्ति की पत्नी श्रीनिधि पर काला धन (अज्ञात विदेशी आय एवं परिसंपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 के तहत मुकदमा चलाने के लिए पिछले साल नवंबर में आयकर विभाग द्वारा जारी आदेश रद्द कर दिया था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. फिलहाल यह मामला लंबित है. इसके अलावे भी कई अन्य मामले भी है. अभी तो अनेकों गड़े मुर्दे निकलने बाकी हैं.

अच्छा तो यह होता कि पी. चिदंबरम सीबीआई और ईडी अफसरों के साथ चुपचाप चले गये होते. जांच में आगे भी वैसे ही सहयोग करते जैसे किसी भी आरोपित व्यक्ति को करना चाहिए. जो कुछ भी होता सरेआम होता. सबकी जानकारी में होता. आखिर तमाम कोशिशों के बाद भी वे बेटे कार्ती चिदंबरम को भी गिरफ्तार होने से तो बचा नहीं पाये थे. फिर डर किस बात का? अगर चिदंबरम को यकीन ही है कि वो बेकसूर ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर भी उनके खिलाफ केस में दम नहीं है, फिर तो कोई बात ही नहीं. जैसे ए. राजा को मालूम था कि उनके खिलाफ केस कितने दिन टिकेगा – फिर उसी के हिसाब से उन्होंने तैयारी की.

इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायण जानते थे कि वो बेकसूर हैं और वो 25 साल बाद बरी हुए कि नहीं हुए. ये सारी बातें पी. चिदंबरम तो एक वरिष्ठ अधिवक्ता के नाते किसी भी आम शख्स से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जानते होंगे. सारी बातों के बावजूद यह नहीं समझ आ रहा कि आखिर पी. चिदंबरम को डर किस बात का लग रहा है?

(लेखक भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं. यह लेख उनके निज़ी विचार हैं)

share & View comments