नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की एक लीक हुई रिपोर्ट में 2017-18 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर 45 वर्षों के उच्चतम स्तर पर होने की बात ने विपक्षी दलों को गत पांच वर्षों में रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं पैदा करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले का मौका दे दिया. भाजपा ने इसका जवाब ये कहकर दिया है कि भारत के युवाओं के लिए अब रोजगार के नए रास्ते उपलब्ध हैं, जो कि देश के तेज़ी से बढ़ते स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, बुनियादी सेवाओं के क्षेत्र में हो रहे व्यापक विकास और निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि में परिलक्षित होते हैं.
रोजगार परिदृश्य में आ रही जटिलता के मद्देनज़र, बेरोजगारी के विभिन्न आंकड़ों में विरोधाभास को समझा जा सकता है. जहां कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के ताजा आंकड़ों में संगठन के नए बने सदस्यों की संख्या 17 महीने के सर्वोच्च स्तर पर होने का जिक्र है, वहीं एनएसएसओ के आंकड़े इसके विपरीत संकेत देते हैं. रोजगार के परंपरागत सेक्टरों में नई नौकरियों के अवसर नहीं के बराबर होना एक जाना-माना तथ्य है. पर जिस बात पर ध्यान नहीं दिया गया है, वो है नवोन्मेष और नई तकनीक से जुड़ी नौकरियों में वृद्धि.
अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट ‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स इन इंडिया: ए 2022 पर्सपेक्टिव’ के अनुसार, ‘परंपरागत क्षेत्रों में नौकरियों पर केंद्रित मौजूदा सर्वेक्षणों से रोजगार सृजन की सही तस्वीर सामने नहीं आती है.’ रिपोर्ट के अनुसार भारत का रोजगार परिदृश्य संक्रमण काल में है, जहां मुख्य क्षेत्रों में लगभग परिपूर्णता की स्थिति है और उनके समानांतर रोजगार सृजन के नए इंजनों का उदय हो रहा है. रिपोर्ट में इस संबंध में जिन रुझानों की पहचान की गई है उनमें दो विशेष रूप से प्रासंगिक हैं: कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त श्रम का स्वरोजगार/सूक्ष्म उद्यमिता के क्षेत्र में खपना, तथा इंटरनेट और प्रौद्योगिकी पर आधारित नए अवसरों की उपलब्धता.
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भाजपा सरकार ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए उद्यमियों की सहायता के लिए स्टैंडअप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा ऋण योजना तथा अनुसूचित जातियों के लिए वेंचर कैपिटल फंड जैसी योजनाएं शुरू की हैं. इन पहलकदमियों के कारण ही भारत दुनिया के दूसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है.
दूसरी तरफ, कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा-पत्र में गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे 20 प्रतिशत लोगों को प्रतिमाह 6,000 रुपये की सहायता तथा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत 150 दिनों के काम का वादा किया है. अगली बड़ी छलांग के लिए तैयार देश के लिए इन्हें वांछित पहल नहीं कहा जा सकता. इस 25 करोड़ लोगों के समूह को सालाना 72,000 रुपये देने के लिए धन कहां से आएगा? किसी गांव में 150 दिनों के लिए कौन सा काम किया जा सकता है? इन सवालों को कल्पना पर छोड़ दिया गया है. बजट का एक बड़ा हिस्सा इन योजनाओं पर खर्च करने के लिए अन्य क्षेत्रों में खर्च कम करने की जरूरत होगी, जिसका मध्य और नवमध्य वर्गों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा.
रोजगार के आंकड़ों के रूप में एक नया चुनावी मुद्दा भारत के विपक्षी दलों के हाथ लगने से बहुत पहले ही दुनिया भर में नौकरियों के बदलते स्वरूप पर चर्चा शुरू हो चुकी थी. भारत भी इस बदलते रोजगार परिदृश्य के मध्य में है, हालांकि ऊंचे दांव वाले 2019 के लोकसभा चुनाव के कारण इससे जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को चर्चा से दूर कर दिया गया है.
रोजगार परिदृश्य में बदलाव बहुत तेज पर सूक्ष्मता के स्तर पर हुआ है. अब हम 9-से-5 की नौकरियों के समाजवादी मॉडल की आशा नहीं करते, और ये एक महत्वपूर्ण अंतर है.
इसका मतलब ये नहीं है कि लोग अपनी रोजी-रोटी नहीं कमा रहे, बल्कि ये है कि वे रोजगार के पुराने मानकों के तहत नौकरी नहीं कर रहे. ऐसा प्रौद्योगिकी के व्यापक इस्तेमाल तथा ज्ञान आधारित अर्थव्यस्था और सूचना प्रधान समाज के निर्माण के कारण हुआ है. अतीत में सरकारी कार्यालय और निजी प्रतिष्ठान ही मुख्य रूप से रोजगार उपलब्ध कराते थे. ये स्थिति अब बदल चुकी है. दूरी, सूचना और नेटवर्किंग के बदले समीकरण के चलते लोग अब अपनी प्रतिभा और कौशल का इस्तेमाल कर जीविका चला सकते हैं. हम निर्णायक और अपरिवर्तनीय रूप से ‘गिग इकोनॉमी’ (अस्थाई नौकरियों की बहुलता वाली स्थिति) में प्रवेश कर चुके हैं, जहां उद्यमशीलता का विशेष महत्व है.
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‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2019: द चेंजिंग नेचर ऑफ वर्क’ की भूमिका में विश्व बैंक के तत्कालीन प्रमुख जिम योंग किम ने लिखा है कि ‘इस समय प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रहे बहुत से बच्चे बड़े होने पर ऐसी नौकरियां करेंगे जिनका कि अभी अस्तित्व तक नहीं है.’ इस रिपोर्ट से हमें ये समझने में मदद मिलती है कि कैसे नौकरियों की बदली प्रकृति के कारण रोजगार के पुराने पैमाने निरर्थक हो गए हैं. रिपोर्ट में भारत को उन देशों में शामिल किया गया है जहां कि फ्रीलांसिंग की संस्कृति फलफूल रही है. भारत में फ्रीलांसरों की संख्या डेढ़ करोड़ बताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है नवोन्मेष और प्रौद्योगिकी के संयोग से नए प्रकार की नौकरियों के अवसर पैदा हो रहे हैं. दो दशक पहले तक अस्तित्व में भी नहीं रही इन ‘नई’ नौकरियों में ऐप डेवलपर का काम शामिल है. विश्व बैंक की इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय भारत में 40 लाख के करीब ऐप डेवलपर हैं. रिपोर्ट में भारत को व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों (मूक) का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता भी बताया गया है.
एक और महत्वपूर्ण बदलाव टेक्नोलॉजी प्लेटफार्म आधारित व्यवसायों के रूप में देखा जा सकता है जिन्होंने परंपरागत इनपुट-आउटपुट मॉडलों को बदल कर रख डाला है. हमारे सामने आज फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन जैसे प्लेटफॉर्म मौजूद हैं जहां खरीदारों, उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है. इन बदलावों ने नौकरियों और कराधान के परंपरागत मानदंडों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए है. साथ ही, ऐसी व्यवस्थाएं तेज़ी से प्रचलन से बाहर हो रही हैं जहां कि एक व्यक्ति दशकों तक एक ही नौकरी में रहता था.
आईटी क्षेत्र की संस्था नैसकॉम की रिपोर्ट ‘इंडिया टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम: एप्रोचिंग एस्केप वेलोसिटी’ में बताया गया है कि कैसे भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र छोटे शहरों तक पहुंच गया है. साथ ही, ये भी बताया गया है कि 2018 में भारत के आठ स्टार्टअप उद्यम यूनिकॉर्न या एक अरब डॉलर के बाज़ार मूल्य को छू चुके थे – इस लिहाज से अमेरिका और चीन के बाद भारत का तीसरा नंबर है. इस बदलाव से कदम मिलाते हुए भाजपा ने बुनियादी ढांचे के विकास पर 100 लाख करोड़ रुपये निवेश करने का वादा किया है. इसमें सारे गांवों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ना, उद्यमिता को बढ़ावा देना, महानगरों से गांवों तक सड़कों का जाल बिछाना और टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल करने वाले स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों की स्थापना जैसी योजनाएं शामिल हैं. इनसे रोजगार और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा.
इस तरह, ये स्पष्ट है कि आगे बढ़ने के लिए मानव संसाधन में निवेश और बेहतरी की दरकार है. इसके मद्देनज़र भाजपा का स्टार्टअप तंत्र विकसित करने और वित्तीय सहायता देने का वादा कांग्रेस के ‘न्याय’, जहां धन के स्रोत की पहचान नहीं की गई है, के मुकाबले कहीं ज़्यादा व्यावहारिक और प्रासंगिक नज़र आता है. भाजपा के वादे और उपाय हमें आईटी-सक्षम नौकरियों और उद्यमशीलता की ओर ले जाते हैं, और ऊपर उल्लिखित रिपोर्टों में भी इसी रास्ते का ज़िक्र है. हमें नौकरियों के बारे में अपने परंपरागत दृष्टिकोण को छोड़ना होगा और नए रास्तों की तलाश करनी होगी. ये कौशल विकास, उद्यमशीलता और प्रौद्योगिकी के बिना संभव नहीं है, क्योंकि रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के वर्तमान दौर में नौकरियों की प्रकृति तेज़ी से बदल रही है.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं. लेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी विचार हैं.)
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