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Friday, 26 April, 2024
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RSS को क्लीन चिट नहीं- अपनी पीठ खुद ठोक रहे भाजपा नेताओं को भागवत का भाषण फिर से सुनना चाहिए

हालात की सकारात्मक तस्वीर पेश करने वाली अपनी ही कहानी पर यकीन कर रहे भाजपा नेताओं के विपरीत, अपने कई कार्यकर्ताओं को कोविड महामारी में गंवा चुका आरएसएस जो जमीनी हकीकत सामने ला रहा है वह कहीं ज्यादा सकते में डालने वाली है.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह के अंत में जो भाषण दिया, उससे ऐसा लगता है कि भाजपा के कई लोगों में काफी जोश भर गया है.

भाजपा के संगठन महासचिव बी.एल. संतोष ने सपा नेता अखिलेश यादव पर ज़ोरदार हमला बोलते हुए उन्हें ‘राजनीतिक गिद्ध’ तक कह डाला, क्योंकि सपा प्रमुख ने राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान चलाने की मांग की थी.

संतोष ने ट्वीट करके उनसे सवाल किया, ‘आपको क्या हो गया जी? कल तो आप इसी मोदी वैक्सीन को खारिज कर रहे थे… आज वैक्सीन लगाने का अभियान चलाने की मांग कर रहे हैं. इतिहास आप जैसे गिद्धों को कभी माफ नहीं करेगा.’

संतोष से प्रेरणा लेते हुए भाजपा के आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दिल्ली में कोविड से हुई मौतों के ‘आंकड़े कम करके बताने’ के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार को निशाना बनाया.

विपक्षी नेताओं पर ये हमले भगवत के उस भाषण के अगले दिन से ही शुरू हो गए जिसमें उन्होंने देश में महामारी के संकट के समय राष्ट्रीय एकता की अपील करते हुए एक-दूसरे पर दोषारोपण बंद करने की अपील की थी. भागवत के भाषण में ऐसा क्या था कि भाजपा के सोशल मीडिया योद्धागण आलोचकों पर बुरी तरह पिल पड़े?

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जमीन से जुड़ा संघ

ऊपर से तो ऐसा लगा कि भागवत ने कोविड महामारी से निबटने में कमजोरी के लिए आलोचना झेल रही नरेंद्र मोदी सरकार को सीधे क्लीन चिट भले न दी हो मगर संदेह का लाभ जरूर दिया. उन्होंने कहा, ‘क्या जनता, क्या शासन, क्या प्रशासन, सभी गफलत में आ गए.‘ यानी उन्होंने जनता से लेकर सरकार और प्रशासन सबको लापरवाही बरतने के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार ठहरा दिया. जाहिर है, जब महामारी की दूसरी लहर का अनुमान लगाने में हर कोई विफल रहा तो गलतियों के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

ज़िम्मेदारी और जवाबदेही का विकेंद्रीकरण और उसे ऐसे समय हल्का बनाया गया जब संघ में इस बात को लेकर असंतोष पनप रहा था कि जमीन पर सरकार और राजनीतिक नेतृत्व लगभग लापता था. कोविड के कारण संघ के कई स्वयंसेवकों की मौत हो चुकी है. ऐसा लगता है कि कई भाजपा नेता तो हर तरफ मचे हाहाकार से बेखबर, हालात के बारे में अपनी सकारात्मक कहानी में ही यकीन कर बैठे हैं. इसके विपरीत संघ को जिस जमीनी हकीकत की जानकारी मिली वह कहीं ज्यादा परेशान करने वाली है. लेकिन भागवत ने अपनी समझ के आधार पर जो अनुमोदन किया उसने अपने दावों को लेकर भाजपा नेताओं के मन में जो थोड़ा-बहुत संदेह या संकोच रहा होगा उसे भी दूर कर दिया.

आखिर आरएसएस के सरसंघचालक अपने स्वयंसेवकों और पूर्व प्रचारकों को दोषी कैसे ठहरा सकते थे, जो आज देश को संभाल रहे हैं और जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर से लेकर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) को रद्द करने तक हर एजेंडा को लागू किया है.

लेकिन भाजपा के सोशल मीडिया योद्धाओं ने भागवत के सकारात्मक भाषण में शायद बहुत कुछ पढ़ लिया. भागवत ने सामूहिक निम्मेदारी और जवाबदेही की बात भले की हो, लेकिन सरकार पर उन्होंने जो टिप्पणी की कि वह गफलत में पड़ी रही, उसने केंद्र सरकार के उस दावे की ही पुष्टि की जिसे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने यह कहकर स्पष्ट किया था कि यह कहना ‘भ्रम’ और ‘सत्य से परे’ है कि कोविड की पहली लहर के बाद केंद्र निश्चिंत हो गई थी.

संघ के अंदरूनी सूत्र कहते हैं कि सही तस्वीर शनिवार को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छापे राम माधव के लेख से मिलती है. माधव ने इस लेख में अपना परिचय ‘इंडिया फाउंडेशन’ के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के एक सदस्य के तौर पर दिया है. कभी भाजपा के ताकतवर महासचिव रहे माधव को पिछले मार्च में आरएसएस में वापस लाया गया और इसकी केंद्रीय कार्यकारी परिषद में नियुक्त किया गया था. उनकी साफ़गोई से भाजपा के कुछ नेताओं को परेशानी होती होगी, मगर माना जाता है कि संघ का नेतृत्व उनकी बातों पर गौर करता है और उनके सोच को समझता है.

माधव ने लिखा कि शुरू में ऐसा भले लगा हो कि मोदी सरकार की हालत अचानक हेडलाइट के सामने आ गए हिरण जैसी हो, लेकिन बाद में वह चुनौती का पूरे ज़ोर से सामना करने में जुट गई. कोविड से निबटने उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों की भरपूर तारीफ की. लेकिन माधव ने संघ के सोच के बारे में भी एक संकेत दे दिया— ‘राजनीतिक नेतृत्व थोड़ी अधिक पारदर्शिता बरते, जनता को थोड़ा अधिक भरोसे में ले और रचनात्मक आलोचना तथा विशेषज्ञों के प्रबुद्ध मतों के प्रति थोड़ा अधिक खुलापन दिखाए तो सरकार के प्रयासों को ज्यादा ताकत मिलेगी.” इसने भगवत के भाषण में जो अनकहा या अस्पष्ट छोड़ दिया गया था उसकी भरपाई कर दी.

कहा जा सकता है कि माधव ने थोड़ी शिष्टता दिखाई. उन्हें ‘थोड़ी अधिक’ की जगह ‘कहीं ज्यादा’ मुहावरे का इस्तेमाल करना चाहिए था. जो भी हो, संदेश साफ है. भाजपा ने जिस तरह अपनी पीठ खुद ठोकी और आक्रामक रुख दिखाया वह आरएसएस को पसंद नहीं आया.


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भाजपा की आक्रामकता से बात नहीं बनेगी

अमित मालवीय गलत नहीं कह रहे. केजरीवाल सरकार को कोविड संबंधी आंकड़ों में घालमेल और कोविड की पहली तथा दूसरी लहर से निबटने में अपनी अक्षमता के लिए जवाब देना ही पड़ेगा. लेकिन भाजपा के आइटी विभाग के मुखिया मालवीय को केवल एक सरकार को निशाना बनाने में सावधानी बरतनी चाहिए थी. गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, और असम की भाजपा सरकारों पर भी यही आरोप लग रहे हैं. भाजपा शासित गोवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज तथा अस्पताल में पिछले सप्ताह लगातार चार दिनों में कुल 83 मरीजों की मौत हो गई. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने ऑक्सीजन आपूर्ति की समस्या को कारण बताया और मामले की हाइकोर्ट द्वारा जांच की मांग की, और राज्य सरकार ने मौतों के कारणों पर लीपापोती की.

पारदर्शिता की बात करें तो केंद्र ने कोवीशील्ड वैक्सीन की दो खुराकों के बीच अंतर को 6-8 सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह कर दिया और बताया कि यह ब्रिटेन से ‘ वास्तविक अनुभव’ के आधार पर किया गया है. इसने भारत सरकार के इस फैसले के असली कारण को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. दूसरी खुराक का इंतजार कर रहे लाखों लोगों को साफ वजह बताई जानी चाहिए, मगर ऐसा नहीं हो रहा है.

कोविड से निबटने में पारदर्शिता की कमी, जनता जब राजनेताओं की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस कर रही हो तब उनके मुंह फेर लेने, और सत्ता दल की घटिया आक्रामकता के ढेरों उदाहरण हैं. भाजपा नेता जमीन से कट कर, वोट दिलाने का जिम्मा प्रधानमंत्री मोदी पर भले डाल चुके हों, लेकिन आरएसएस को मालूम है कि राजनैतिक नेतृत्व जो संदेश दे रहा है, कि जिसका इलाज नहीं है उसे बर्दाश्त करना पड़ेगा, उससे लोग संतुष्ट नहीं हैं.

भाजपा नेताओं को माधव का लेख फिर से पढ़ने के बाद भागवत के भाषण को भी फिर से सुनना चाहिए. उन्हें बेदाग नहीं बताया गया है.

(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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