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Monday, 25 November, 2024
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लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले वीवीआईपी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करके क्यों नहीं पेश की जा रही नज़ीर

केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें अगर वास्तव में इस महामारी पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने के लिये गभीर हैं तो उन्हें उन लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी जो सत्ता या फिर अपने समुदाय, संप्रदाय या जाति विशेष वर्ग में अपना दबदबा दिखाने के लिये दूसरे लोगों की जान जोखिम में डाल रहे हैं.

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किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह माना जाता है कि देश में कानून का शासन है और कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कानून उसके ऊपर है. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे देश में यह सिद्धांत आम नागरिकों के लिये है और यह ‘पहुंच वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है और उन्हें कोरोनावायरस महामारी से निपटने के लिये लागू लॉकडाउन के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाने की छूट मिली हुयी है.

इस महामारी से उत्पन्न संकट को देखते हुये देश में लॉकडाउन किये जाने के निर्देशों का उच्चतम न्यायलय से लेकर निचले स्तर तक न्यायपालिका पालन कर रही है. न्यायपालिका इसकी आवश्यकता को भी इंगित कर रही है और अदालत परिसरों में सिर्फ मुकदमे से संबंधित वकीलों और पक्षकारों को ही प्रवेश की अनुमति दे रही है लेकिन इसके विपरीत, एक वर्ग और है जो अपने प्रभाव की हनक में इन नियमों को ठेंगा दिखा रहा है.

इसका ताजा उदाहरण कोरोनावायरस महामारी से निपटने के लिये देश में लागू लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाली जनता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा के पौत्र का विवाह, बिहार के शिक्षा मंत्री के निजी सहायक द्वारा जहानाबाद में आयोजित मछली पार्टी और कर्नाटक में भाजपा विधायक द्वारा तुमकुर जिले के एक सरकारी स्कूल भवन में बड़े पैमाने पर जन्मदिन समारोह का आयोजन और पंजाब में गेहूं की खरीद शुरू होने के नाम पर दो-दो मंत्रियों द्वारा लॉकडाउन के सख्त दिशानिर्देशों के उल्लंघन के मामले में प्रशासन की चुप्पी सबकुछ बयां करती है.

अगर यह मान लिया जाये कि पंजाब सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु और वन मंत्री साधु सिंह धर्मसोट अनाज मंडियों में गेहूं की खरीद की व्यवस्था देखने गये थे तो भी पुलिस और प्रशासन ने उनके साथ पांच से ज्यादा लोगों को मंडियों में आने की इजाजत क्यों दी? इन लोगों ने सामाजिक दूरी के नियम का पालन क्यों नहीं किया? यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि प्रशासन ने दोनों मंत्रियों के साथ पहुंचे लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की?

कोरोनावायरस महामारी के दौरान लागू दिशानिर्देशों के तहत सरकार ने शादी विवाह और यहां तक की अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिये व्यक्तियों की एक संख्या निर्धारित कर रखी है. इसमें भी समुचित दूरी के नियम का पालन अनिवार्य है ताकि यह संक्रमण दूसरों तक नहीं पहुंच सके.


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लेकिन, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी के पुत्र के विवाह समारोह के आयोजन में इन नियमों का सार्वजनिक रूप से उल्लंघन किया गया. इसमें संदेह नहीं कि पुत्र के विवाह समारोह के लिये अनुमति ली गयी होगी तो निश्चित ही इसमें शामिल होने वाले सदस्यों की संख्या भी निर्धारित की गयी होगी. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हुआ? क्या इस आयोजन में समुचित दूरी बनाये रखने के निर्देश का का पालन हुआ? विवाह समारोह की तस्वीरों से लगता है कि लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं किया गया.

जहां तक कर्नाटक के कलबुर्गी में सिद्धिलिंगेश्वर मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव के आयोजन का मामला है तो पुलिस ने लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने पर पांच आयोजकों को गिरफ्तार किया है. यही नहीं, इस मामले में पुलिस के एक सब इंसपेक्टर और प्रशासन के एक अधिकारी को निलंबित भी किया गया है.

इसी तरह, पुलिस ने लॉकडाउन होने के बावजूद अपने गांव जाने के लिये बांद्रा और सूरत में बड़ी संख्या में कामगारों का जमावड़ा होने पर भी सख्त कार्रवाई की. कई कामगारो के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी.

इस महामारी से देशवासियों को बचाने के लिये पुलिस और सुरक्षाकर्मी लगातार सड़कों पर चौकसी कर रहे हैं. वे लाउडस्पीकर पर लोगों से ‘लक्ष्मण रेखा’ नहीं लांघने तथा घरों में ही रहने का अनुरोध भी कर रहे हैं. यही नहीं, लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों को शर्मसार करने के लिये पुलिसकर्मी नित नये तरीके भी अपना रहे हैं.

इसके बावजूद लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन हो रहा है. लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पुलिस भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत प्राथमिकी भी दज कर रही है. एक अनुमान के अनुसार दूसरे दौर के लॉकडाउन के दौरान नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दर्ज हो रही प्राथमिकी और शिकायतों का आंकड़ा अगर एक लाख पार कर जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

आश्चर्य उस वक्त होगा जब सरकार और पुलिस प्रशासन लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन के आरोप में ‘वीवीआईपी और पहुंच वालों’ के खिलाफ मामले दर्ज करेगी.

फिलहाल तो ऐसा लगता नहीं है कि नियमों की धज्जियां उड़ाने के बावजूद ऐसा करने वालों की सूची में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या वीवीआईपी का नाम हो.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोनावायरस को महामारी घोषित किये जाने के बाद से ही देश में 123 साल पुराना महामारी बीमारी कानून, 1897 लागू है. इस कानून की धारा तीन में प्रावधान है कि इसके तहत बनाये गये किसी भी नियम या आदेश की अवहेलना दंडनीय है और यह माना जायेगा कि व्यक्ति ने भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत दंडनीय अपराध किया है.

इसी तरह, आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की कम से कम नौ धाराओं में दंड और जुर्माने का प्रावधान है जिसमें दो साल तक की अधिकतम सजा और जुर्माना हो सकता है.

लॉकडाउन के दौरान राज्य सरकारें महामारी बीमारी कानून, 1897 और आपदा मोचन कानून 2005 के प्रावधानों के तहत शिकायत या प्राथमिकी दर्ज कर रही हैं. अधिकांश शिकायतें या प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत शिकायत या प्राथमिकी दर्ज हुयी हैं.

लेकिन अब लॉकडाउन के दौरान नियमों का उल्लंघन करने के आरोपों में दर्ज इन प्राथिमकी को निरस्त कराने और छोटे मोटे अपराध के आरोप में फिलहाल मामले दर्ज नहीं करने के अनुरोध के साथ उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश मे लॉकडाउन का उल्लंघन करने की घटनाओं के सिलसिले में भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत 60,258 व्यक्तियों के खिलाफ 19,448 प्राथमिकी दर्ज करने के साथ ही उल्लंघन करने वालों से करीब करोड़ रूपए जुर्माने के रूप में वसूले गये हैं.


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इसी तरह, दिल्ली में करीब नौ सौ, मुंबई में 3,634, उत्तराखंड में करीब 1500, केरल में 7,091, ओडीशा में 1605 और तमिलनाडु में तीन हजार से ज्यादा प्राथिमकी दर्ज की जा चुकी हैं. इन आंकड़ों के आधार पर दूसरे राज्यों में दर्ज प्राथमिकी की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.

कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर देश में आर्थिक आपात लागू कराने के लिये न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले गैर सरकारी संगठन ‘सेन्टर फॉर अकाउन्टेबिलिटी एंड सिस्मेटिक चेंज’ के अध्यक्ष और उप्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने याचिका दायर की है.

याचिका में दलील दी गयी है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत प्राथमिकी दर्ज करना गैरकानूनी और कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 का हनन होता है.

केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें अगर वास्तव में इस महामारी पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने के लिये गभीर हैं तो उन्हें उन लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी जो सत्ता या फिर अपने समुदाय, संप्रदाय या जाति विशेष वर्ग में अपना दबदबा दिखाने के लिये दूसरे लोगों की जान जोखिम में डाल रहे हैं.

कल्पना कीजिये, देवगौड़ा के पौत्र या नेताओं के जन्म दिन या विवाह की वर्षगांठ अथवा रथ यात्रा में शामिल व्यक्तियों में कोरोनावायरस का संक्रमण पाया गया तो ऐसे आयोजनों में शामिल लोगों का पता लगाना उतना ही कठिन होगा जितना दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज में शामिल तबलीगियों को खोजने में हो रहा है.

महामारी के दौरान ऐसे आयोजनों में नियमों के उल्लंघन का समाधान ‘खेद है’ या ‘भविष्य में ऐसा नहीं होगा’ या पुलिस और प्रशासन की चेतावनी पर्याप्त नहीं है. अगर हम कोरोनावायरस से निपटने के प्रति गंभीर हैं तो हमें नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई करनी होगी. ऐसा नहीं करने पर पुलिस, प्रशासन और सत्तारूढ़ दलों के हुक्मरानों पर आम और खास के बीच संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करने और पक्षपात के आरोप लगते रहेंगे और इनका जवाब देना आसान नहीं होगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)

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