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Sunday, 3 November, 2024
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AIADMK से अलग होने से तमिलनाडु में BJP के लिए क्यों खुले हैं दरवाजे

जयललिता-करुणानिधि युग के बाद, पीएम मोदी एक अधिक लोकप्रिय नेता दिखते हैं, जो भारी भीड़ को आकर्षित करने और द्रविड़ वोट बैंक में सेंध लगाने में सक्षम हैं.

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तमिलनाडु में BJP-AIADMK के अलग होने से राज्य की सभी पार्टियों और राष्ट्रीय पार्टियों पर कई प्रभाव देखने मिलेंगे. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) की राज्य इकाई ने BJP के नेतृत्व वाली NDA के साथ अपना गठबंधन खत्म करने के फैसले की घोषणा की है. पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की पार्टी की राज्य इकाई हाल के महीनों में तमिलनाडु में BJP के बढ़ते कदम से असहज महसूस कर रही है.

हालांकि, यह कुछ हद तक सच है कि बेहद संवेदनशील दक्षिणी राज्यों में से एक, तमिलनाडु में, BJP के विस्तार करने के प्रयासों में अभी भी दो बड़ी बाधाएं हैं. पार्टी के पास अभी भी एक मजबूत राज्य तंत्र, एक टीम, जमीनी कार्यकर्ता और सिने-उद्योग और व्यापार जुड़ी हस्तियां का बहुत अधिक समर्थन नहीं है. दूसरा और अधिक ध्यान देने योग्य पहलू यह कि जिसका द्रविड़ पार्टियों के साथ गहरा सामाजिक-राजनीतिक संबंध था ऐसे द्रविड़ विचारधारा के प्रति-आख्यान के लिए बौद्धिक समर्थन और स्वीकृति की कमी थी. हालांकि, अन्नामलाई का एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरना पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और यह इन तमाम बाधाओं को कम करता है.

तमिलनाडु में प्रवाह

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ई वी रामासामी नायकर की उस द्रविड़ कड़गम (DK) की शाखा है, जिन्होंने हिंदू विरोधी, हिंदी विरोधी एजेंडे के बीज बोए, जो बाद में एक बड़े अलगाववादी आंदोलन में बदल गया. DK के शीर्ष नेताओं में से एक सी.एन. अन्नादुरई, जिन्हें लोकप्रिय रूप से अन्ना कहा जाता है (वह नाम जो अन्नाद्रमुक का हिस्सा है), EVR के कई सुझावों से असहमत थे, जैसे कि स्वतंत्रता दिवस का बहिष्कार, “ब्लैक शर्ट ब्रिगेड” का गठन और इस बात पर जोर देना कि DK में हर कोई काली शर्ट पहने, आदि. वृद्ध EVR द्वारा अपने से आधी उम्र की महिला से शादी करने और उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रचारित करने के भी अन्नादुरई विरोधी थे.

इसलिए चौहत्तर साल पहले, 17 सितंबर 1949 को, उन्होंने DK छोड़ दिया और अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की, लेकिन पार्टी के वैचारिक टेम्पलेट के रूप में द्रविड़ एजेंडे को बरकरार रखा. तेईस साल बाद 1972 में, पार्टी फिर से विभाजित हो गई जब अनुभवी अभिनेता और पार्टी के कोषाध्यक्ष एम.जी. रामचन्द्रन ने द्रमुक छोड़कर ADMK बनाई जो बाद में अन्नाद्रमुक बन गई.

ऐसा लगता है कि गुटों में बंटी अन्नाद्रमुक को जयललिता के बाद हुए चुनावों में करारी हार, गुटबाजी, शशिकला के निष्कासन और कट्टर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक की शानदार चुनावी जीत के बाद अपना आधार मिल गया है. पार्टी की स्वर्ण जयंती की पृष्ठभूमि में आयोजित मदुरै सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया क्योंकि इसने ई.के. पलानीस्वामी को एकमात्र शीर्ष नेता के रूप में उभारा. तथ्य यह है कि जन्मदिन का जश्न पार्टी से अलग हुए दिग्गज नेता ओ. पन्नीरसेल्वम के गढ़ थेवर-प्रभुत्व वाले मदुरै में हुआ, जिससे इस आयोजन का महत्व बढ़ गया.

बैठक स्थल का विशाल धनुषाकार प्रवेश द्वार, जुलाई 2022 में पार्टी के महासचिव चुने जाने के बाद पहली बड़ी राजनीतिक रैली में से एक है, जिसमें एक किले (राज्य में सत्ता की सीट) को दर्शाया गया है, जो कि AIADMK के दिग्गजों के साथ पलानीस्वामी की छवि से सुसज्जित है. इस सम्मेलन में एडप्पाडी के.पलानीस्वामी को “पुरैची तमिज़ार” (क्रांतिकारी तमिल) की उपाधि से सम्मानित किया गया जो सिनेमा जगत से जुड़े दो पूर्व मुख्यमंत्रियों MGR और जयललिता (पुरैची तलाइवर और पुरैची तलाइवी) के उपाघियों के साथ मिलता जुलता है.


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पार्टी कार्यकर्ताओं से सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने के लिए कड़ी मेहनत करने की उनकी अपील इस बात का स्पष्ट संकेत थी कि उनकी पार्टी BJP को पछाड़कर अकेले चुनाव लड़ने की योजना बना रही है. पलानीस्वामी ने पार्टी अध्यक्ष अन्नामलाई की रैली को हरी झंडी दिखाने के BJP के कार्यक्रम को भी अधिक महत्व नहीं दिया, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे. उन्होंने BJP को चेतावनी दी कि अगर अन्नाद्रमुक के निष्कासित नेता T.T.V. दिनाकरन और ओ पन्नीरसेल्वम को NDA गठबंधन का हिस्सा बनाया गया तो उसके विपरीत परिणाम होंगे.

तमिलनाडु में BJP दोराहे पर है. उसे अपनी कार्यशैली तय करनी होगी जो उसके भविष्य को बनाएगी या बिगाड़ेगी. बदलाव के लिए, राजनीतिक स्थिति BJP के पक्ष में दिख रही है क्योंकि अन्नाद्रमुक के फैसले को छिपे हुए आशीर्वाद के रूप में देखा जा रहा है.

पूर्व IPS अधिकारी और लोकप्रिय नेता अन्नामलाई की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. CM स्टालिन के बेटे द्वारा सनातन धर्म को नष्ट करने की शपथ लेने के हालिया बयान से मतदाताओं पर गहरा ध्रुवीकरण प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे BJP को काफी फायदा होगा. फिर, BJP विरोधी वोट दो द्रविड़ पार्टियों के बीच विभाजित हो सकते हैं, जिससे त्रिकोणीय मुकाबले में वोटों का अंतर कम हो जाएगा. दोनों द्रविड़ पार्टियां BJP को अपनी अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति में बाधा मानती हैं. फिर, तमिलनाडु में जयललिता-करुणानिधि युग के बाद की राजनीति में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक अधिक लोकप्रिय नेता दिखते हैं जो भारी भीड़ खींचने और द्रविड़ वोट बैंक में सेंध लगाने में सक्षम हैं.

BJP के लिए आगे बढ़कर काम करें

BJP के लिए सबसे बड़ी चुनौती द्रमुक-अन्नाद्रमुक विरोधी भावना को वोटों में तब्दील करना होगा. जातिगत और वैचारिक समीकरणों को देखते हुए, BJP के लिए तमिलनाडु में पर्याप्त सीटें जीतना आसान नहीं है, लेकिन असंभव काम भी नहीं है. तमिलनाडु की राजनीति उतार-चढ़ाव की स्थिति में है और युवा मतदाता BJP को आजमाने के इच्छुक हैं. हिंदू-विरोधी भावना कम हो गई है, जिससे हिंदू-समर्थक भावना में वृद्धि हुई है. भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ-साथ द्रविड़ पार्टियों का खराब आर्थिक रिकॉर्ड पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं को अन्नामलाई की ओर आकर्षित कर सकता है, जो एक आशाजनक और स्वागत योग्य बदलाव प्रतीत होता है जिसका राज्य इंतजार कर रहा था. दो से तीन फीसदी वोट स्विंग से BJP को लोकसभा में संभवत: दो दर्जन सीटें मिल सकती हैं.

यदि BJP अन्नाद्रमुक से अलग हो चुके नेताओं और T.T.V. दिनाकरन को अपने साथ लाने में सफल रहती है तो द्रविड़ पार्टियों से टक्कर ले सकती है. दिनाकरन के NDA के पाले में आने से द्रविड़ पार्टियों को कड़ी चुनौती मिल सकती है. संयोग से, T.T.V. दिनाकरन की पार्टी अम्मा मक्कल मुनेत्र कज़गम (AMMK) द्रविड़ियन वैचारिक बोझ से रिक्त लेकिन जयललिता की लोकप्रियता के साथ आती है (इसके नाम पर भी द्रविड का उल्लेख नहीं है).

कुल मिलाकर, यह राज्य उस सिल्वर स्क्रीन की तरह सस्पेंस से भरा होने का वादा करता है जिसने द्रविड़ पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाया था.

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका एक्स हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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