नया पाकिस्तान में कोई महिला नेता तभी इज्ज़त की हकदार है जब वह सत्ता पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से जुड़ी हो. यहां विपक्षी दलों की महिला नेताओं की कोई कदर नहीं है. यह संकेत कोई और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री इमरान खान दे रहे हैं. इस बार उनके निशाने पर हैं पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की नेता मरयम नवाज़. उन पर हमलावर हैं पीटीआई के मंत्री.
प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि मरयम मुल्क की ताकतवर फौज की आलोचना करके इसलिए बच गईं क्योंकि ‘पाकिस्तान में, हम महिलाओं की इज्ज़त करते हैं.’ इस टिप्पणी और पीटीआई के ट्विटर पर नियमित नज़र रखने वाले एक समर्थक की इस टिप्पणी में शायद ही अंतर है कि ‘औरत कार्ड का इस्तेमाल मत करो.’ इस बात को तो भूल ही जाइए कि पिछले महीने इमरान ने मरयम को ‘नानी‘ कहकर उनकी उम्र का मखौल उड़ाया था. आखिर, इज्ज़त हवा में मौजूद है.
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महिलाओं की इज्ज़त का इतिहास
पाकिस्तान को दिखाना भी था कि मरयम नवाज़ को कितनी इज्ज़त दी जाती है. कश्मीर और गिलगिट-बाल्तीस्तान मामलों के मंत्री अली अमीन गंडापुर ने मरयम की ‘खूबसूरती‘ को करदाताओं के पैसे पर प्लास्टिक सर्जरी करवाने का कमाल बताया. गिलगिट-बाल्तीस्तान में एक जनसभा में उन्होंने कहा, ‘यह आपका माल है.’ पीटीआई के किसी आला नेता को यह बयान अशोभनीय नहीं लगा, माफी मांगना तो दूर ही रहा. दरअसल, फेडरल और पंजाब के सूचना मंत्रियों ने तो गंडापुर का बचाव ही किया. पीटीआई औरतों को जो तोहफे देती रहती है उनमें उन्हें ‘माल’ कहना भी एक तोहफा ही है.
यही नहीं, गंडापुर को यह भी लगता है कि अगर कोई उस कथित पैसे का एक चौथाई भी खर्च करे तो वह टॉम क्रूज और ब्रैड पिट जैसा दिख सकता है. अब समझ में आता है कि वे खुद ‘कोयला’ फिल्म में खलनायक बने अमरीश पुरी जैसे क्यों दिखते हैं. गंडापुर को कश्मीर मामलों का मंत्री बनाया जाना ही बता देता है कि सरकार कश्मीर मसले को लेकर कितनी गंभीर है. उन्हें प्रायः इमरान खान के घर के बाहर ब्लैक लेबल व्हिस्की की बोतलें ले जाते देखा गया है और पूछे जाने पर वे यह कहते रहे हैं कि वे शहद ले जा रहे हैं, शराब नहीं. गंडापुर दूसरे देशों को धमकी दे चुके हैं कि अगर उन्होंने कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया तो उन पर मिसाइल से हमले किए जाएंगे. वे यह भी घोषणा कर चुके हैं कि पाकिस्तान के नये नक्शे के मुताबिक अब वे भारत के कश्मीर में आज़ादी से घूम-फिर सकते हैं. हैरत की बात है कि अभी तक उन्होंने यह किया क्यों नहीं.
कोई इमरान खान से यह नहीं पूछना चाहता कि वे मरयम नवाज़ से क्यों डरे हुए हैं? आखिर वे वजीरे आज़म हैं और मरयम तो अभी असेंबली की निर्वाचित सदस्य भी नहीं हैं. लेकिन हां, वे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की वारिस जरूर हैं. इसलिए सियासत के जानकारों को अगर मरयम का राजनीतिक भविष्य बुलंद नज़र आता है तो इमरान खान को यह रास नहीं आ सकता क्योंकि वे खुद को ही पाकिस्तान की सियासत का आगाज और अंजाम, सब कुछ मानते हैं.
मरयम नवाज़ को ‘मरयम सफदर’ कहकर अब बदनाम नहीं किया जा सकता, न ही उन पर भ्रष्टाचार के फर्जी मामले दायर करने से काम चलता है. मरयम के ये आरोप भी इमरान खान की सरकार की अच्छी छवि नहीं पेश करते कि जब वे हिरासत में रखी गई थीं तब उनके कमरे और बाथरूम में कैमरे लगाए गए थे. अब पीटीआई को लगता है कि उनके हावभाव, मेकअप, बैगों और जूतियों को बड़ा मुद्दा बनाना जनता में खूब प्रचारित होगा. लेकिन यह नहीं हो रहा. इमरान खान लोगों को ‘मैं इनको नहीं छोडूंगा‘ फिल्म कई बार दिखा चुके हैं. और इसे चाहे वे जितनी बार चलाएं, पाकिस्तान महंगाई से जूझ रहा है और कुछ लोगों के लिए दो जून का खाना जुटा पाना एक चुनौती बन गई है. काश प्रधानमंत्री इमरान खान इस पर ज्यादा ध्यान देते लेकिन उन्होंने तो यह घोषणा कर दी कि महंगाई का मसला तो उनकी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों का प्रोपेगैंडा है और यह कि पाकिस्तान का आम आदमी पहली बार सुकून महसूस कर रहा है.
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यहां कोई तब्दीली नहीं
‘सेक्सिस्ट’ जुमले कोई पीटीआई ने शुरू नहीं किए. 1990 के दशक में उथल-पुथल की सियासत वाले दौर में पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो को इस तरह के जुमले खूब झेलने पड़े थे. एक बार जब बेनज़ीर पीले कपड़ों में नेशनल असेंबली में आई थीं तब शेख रशीद ने उन्हें ‘पीली टैक्सी’ कहा था. आज रशीद पीटीआई के साथ हैं और बिलावल भुट्टो ज़रदारी पर अक्सर तंज़ कसते रहते हैं. पंजाब के सूचना मंत्री फिरदौस आशिक आवान ने असेंबली के एक सदस्य के बारे में कहा था कि वे वेश्यालय से सियासत में आए हैं. हाल के दिनों में नवाज़ की पार्टी के ख्वाजा आसिफ, आबिद शेर आली और तलत चौधरी जैसे नेता भी महिला विरोधियों पर ‘सेक्सिस्ट’ जुमले दागते रहे हैं.
‘तब्दीली’ लाने वाली पार्टी को तो पाकिस्तान को चलाने का तौर-तरीका बदलना था या शायद हम ऐसा सोचते हैं. ऐसा लगता है कि इमरान खान महिलाओं को इज्ज़त देने की जो बात करते हैं वह केवल उनकी पार्टी से जुड़ी महिलाओं के लिए ही है, किसी आयशा गुललाई या किसी रहम खान के लिए नहीं. और, लोग यह सोचते है कि वे गंडापुर के बयानों के लिए माफी मांगेंगे.
मुझे याद आता है 1970 के दशक का नाहीद अख्तर का लिखा गाना ‘हम माएं, हम बहनें, हम बेटियां, कौम की इज्ज़त हमसे है ’ हर महिला दिवस पर पाकिस्तान टीवी और रेडियो पाकिस्तान पर खूब बजता था. यह गाना राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करता है. और यह भी कि राष्ट्र की इज्ज़त इस बात से किस कदर जुड़ी हुई है कि हम महिलाओं से किस तरह का सलूक करते हैं. हम बेशक यह बहस कर सकते हैं कि महिलाएं केवल माएं, बहनें या बेटियां ही नहीं हैं. इस बहस को किसी और दिन के लिए टाला जा सकता है. 2020 में आकर भी यही लगता है कि इज्ज़त से जुड़े वे मिथक महज उत्सवगान के लिए ही हैं.
(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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