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Saturday, 12 April, 2025
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भारत में किस हिंदू धर्म का पालन किया जाता है? CR पार्क के मछली विवाद ने उठाए बड़े सवाल

सीआर पार्क का वीडियो उस टेंशन को दिखाता है : व्यक्तिगत और आहार संबंधित आदतें दिन के प्रमुख धार्मिक मूड से किस हद तक प्रभावित होनी चाहिए?

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सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो ने एक बार फिर भारत में रोज़मर्रा के सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया है. भगवा वस्त्र पहने कुछ लोगों को चित्तरंजन पार्क के मार्केट नंबर 1 में एक मछली बेचने वाले दुकानदार को धमकाते हुए देखा जा सकता है. कथित तौर पर वह मांग कर रहे हैं कि मंदिर के नज़दीक होने के कारण दुकान बंद कर दी जाए. उनका लहज़ा बातचीत का नहीं, बल्कि चेतावनी जैसा है. यह घटना भले ही स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी रही हो, लेकिन जब तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस क्लिप को शेयर किया, तो इसने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया. साथ ही उन्होंने तीखी टिप्पणी की: “क्या हम ढोकला खाएं और दिन में तीन बार जय श्री राम का नारा लगाएं?”

जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिंदू ने इस घटना की रिपोर्ट की, भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष के दावों को तुरंत खारिज कर दिया, वीडियो को “झूठा और मनगढ़ंत” बताया और इस बात से इनकार किया कि चित्तरंजन पार्क में मछली बेचने वाले दुकानदारों को धमकाने में उनके किसी भी समर्थक का हाथ था. चित्तरंजन पार्क एक ऐसा इलाका है जो अपनी मज़बूत बंगाली पहचान और मछली खाने की संस्कृति के लिए जाना जाता है, लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह नहीं है कि वीडियो असली है या भ्रामक. असल चिंता कुछ और है — यह धीरे-धीरे पनपता विचार कि धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल व्यक्तिगत फैसलों पर नियंत्रण रखने के लिए किया जा सकता है.

खान-पान की आदतों पर नियंत्रण

यह विचार कि हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने से बचने के लिए नवरात्रि के दौरान मांस की दुकानें बंद रहनी चाहिए, बिल्कुल नया नहीं है. पिछले कुछ साल में, विभिन्न राज्यों के कई भाजपा विधायकों ने इसी तरह के प्रतिबंधों की मांग की है और इसे जबरदस्ती के बजाय “संस्कृति और परंपरा का सम्मान” करने का तरीका बताया है. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने चैत्र राम नवमी (6 अप्रैल) पर सभी मांस की दुकानों को बंद करने और नौ दिनों के त्योहार के दौरान धार्मिक स्थलों के 500 मीटर के दायरे में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया. यह वह पैटर्न है — जहां प्रशासनिक फैसले धार्मिक अपेक्षाओं को दिखाते हैं — जो चित्तरंजन पार्क विवाद के लिए आधार तैयार करता है. चाहे विचाराधीन वीडियो प्रामाणिक साबित हो या नहीं, यह बढ़ते तनाव को दर्शाता है: व्यक्तिगत और आहार संबंधित आदतें दिन के प्रमुख धार्मिक मूड से किस हद तक प्रभावित होनी चाहिए?

इस सबमें दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और मौलवी चौधरी इफ्राहीम हुसैन जैसे मुस्लिम लोग भी नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानें बंद रखने के विचार के समर्थन में सामने आए हैं. इसे हिंदू भावनाओं का सम्मान करने के रूप में पेश किया जाता है. यह कम से कम शब्दों में धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखने की व्यापक इच्छा के बारे में कुछ बताता है, लेकिन जब सीआर पार्क विवाद जैसी कोई बात सामने आती है, तो यह एक और सच्चाई को भी सामने लाता है — कि हिंदू धार्मिक प्रथा हर जगह एक जैसी नहीं होती.

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में नवरात्रि के दौरान व्रत और मांसाहार से परहेज़ किया जाता है, लेकिन पूरे देश में ऐसा नहीं होता. पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, झारखंड, त्रिपुरा और बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों में लोग नवरात्रि के दौरान मांसाहारी भोजन खाते हैं. मांस, मछली आदि पर कोई बैन नहीं है और न ही परहेज़ जैसा कुछ है. बंगाल में, दशमी के दिन देवी को चढ़ाए जाने वाले भोग में मछली शामिल होती है. इसलिए यह विचार कि कुछ भोजन पदार्थ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं, उतना आसान नहीं है जितना अक्सर इसे बनाया जाता है. हम किसकी भावना की बात कर रहे हैं? और हिंदू धर्म के किस संस्करण का सम्मान किया जाना चाहिए?

जबकि लोगों के व्यक्तिगत आहार विकल्पों का सम्मान किया जाना चाहिए, मुझे कभी समझ में नहीं आया कि दूसरों को उनके नियमों का पालन करने की ज़रूरत क्यों है. यह तर्क मुझे हमेशा हैरान करता रहा है — चाहे वह हिंदू त्योहारों के दौरान मांस पर प्रतिबंध हो या, कुछ इस्लामी देशों में व्रत करने वालों को नाराज़ करने से बचने के लिए रमज़ान के दौरान सार्वजनिक रूप से खाने पर प्रतिबंध. मेरे लिए, यह आसान है: अगर आप अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत कर रहे हैं, तो भक्ति की परीक्षा आपकी है. अगर किसी और को खाते हुए देखकर आपका संकल्प डगमगाता है, तो शायद समस्या उनमें नहीं है — बल्कि आपको आपकी आस्था को और मजबूत करना होगा. सम्मान का मतलब अनुपालन नहीं है. आप अपनी ज़िंदगी में किसी भी तरह का बदलाव किए बिना भी किसी की आस्था का सम्मान कर सकते हैं.


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हिंदू धर्म में टोलरेंस

अगर सीआर पार्क वीडियो सच है, तो यह मुद्दा सिर्फ बाज़ार या पुरुषों के ग्रुप के बारे में नहीं है — यह किसी और बात की ओर इशारा करता है: हिंदू धर्म के किस संस्करण का पालन किया जाना चाहिए और कौन तय करेगा? हिंदू धर्म के बारे में मैंने हमेशा जो प्रशंसा की है, वह है वह स्थान जो यह देता है — यह फर्क के लिए शांत, अव्यक्त अनुमति है. इसका खुलापन, इसका लचीलापन, इसकी सहने की क्षमता. हिंदू होने का कोई एक तरीका नहीं है. अलग-अलग राज्यों में रीति-रिवाज़ अलग-अलग हैं — और फिर भी, एक शांत समझ है कि यह सब अभी भी एक जैसा है.

एक साथ कई सत्यों को धारण करने की यह क्षमता, या बिना कठोर हुए आस्था की विभिन्न अभिव्यक्तियों का सम्मान करना, कुछ ऐसा है जिस पर मैं अक्सर चाहती हूं कि मेरा अपना समुदाय अधिक गंभीरता से विचार करे. गेटकीपिंग करने, एक-दूसरे के विश्वास पर नज़र रखने, इस बात पर बहस करने की प्रवृत्ति कि कौन “सच्चा मुसलमान” है या नहीं — यह हमें कमज़ोर कर देती है. शायद ताकत समानता को लागू करने में नहीं है, बल्कि विश्वास को सांस लेने की जगह देने में है, भले ही यह हर जगह एक जैसा न दिखे.

यह ऐसी चीज़ है जिसे बचाया जाना चाहिए, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए. हिंदू धर्म में विविधता के प्रति सहिष्णुता सिर्फ सांस्कृतिक विशेषता नहीं है — यह एक सुरक्षात्मक छतरी है. जो जानबूझकर या अनजाने में, इसके नीचे रहने वाले हर व्यक्ति पर फैली हुई है. यह वह खुलापन है जो सभी अल्पसंख्यकों को सांस लेने की जगह देता है और अगर हम इसे खो देते हैं, तो हम सिर्फ एक परंपरा नहीं खोते — हम उस समझ को खो देते हैं जिसने हमें सह-अस्तित्व की अनुमति दी, तब भी जब हमारे आस-पास की हर चीज़ हमें अलग करने की धमकी दे रही थी.

(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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