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Monday, 11 August, 2025
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कोई नहीं जानता, ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रमों के 48,000 करोड़ कहां चले गए

हुनर विकास की योजनाओं पर हज़ारों करोड़ खर्च करने के बाद भी सभी उपक्रमों में हुनरमंद कर्मचारियों की भारी कमी बनी हुई है, जबकि बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है.

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सरकार ‘स्किल’ (हुनर) को भारत की आर्थिक वृद्धि की रीढ़ बताते हुए इन्हें बढ़ावा देने के लिए हर साल हज़ारों करोड़ रुपये आवंटित करती है, लेकिन विरोधाभास बने हुए हैं. शिक्षा से लेकर स्वास्थ्यसेवा और मैन्युफैक्चरिंग तक सभी उपक्रमों में हुनरमंद कर्मचारियों की भारी कमी बनी हुई है, जबकि बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है. तमाम तरह की नीतियों, कार्यक्रमों, पाठ्यक्रमों और सर्टिफिकेटों के बावजूद ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है, कि अवसर गंवाए जा रहे हैं और व्यवस्था नाकाम साबित हो रही है.

यह विरोधाभास हमें कुछ कड़वे सवाल पूछने को मजबूर कर रहा है, कि आखिर सारा पैसा कहां जा रहा है? पाठ्यक्रम कौन तैयार कर रहा है? क्या ये प्रशिक्षण संस्थान भरोसेमंद हैं? या ये केवल फंड के घोटालों और राजनीतिक संरक्षण के चक्के की एक और कील भर हैं?

जो स्किल सिखाई जा रही हैं वे इनके नाम पर दिए जा रहे फंड के साथ न्याय नहीं कर रहीं. इसलिए हमें इस जाल की गहराई से जांच करके टॉप स्किल विकास प्रयासों और रोज़गार योजनाओं का विश्लेषण करना पड़ेगा. इन दोनों के लिए कुल मिलाकर 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जा रहे हैं.

स्किल प्रशिक्षण या ‘PMKVY’ के तहत छलावा?

स्किल की अग्रणी योजना, ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ (PMKVY) का उदघाटन 15 जुलाई 2015 को किया गया और इसे कुल 10,570.18 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया. इसमें से 9,803.23 करोड़ रुपये खर्च किए गए, बाकी 766.95 करोड़ खर्च नहीं हुए और उनका घोटाला हो गया. इस योजना के तहत वैमानिकी, कृषि, और सौंदर्य प्रसाधन जैसे 36 सेक्टरों की स्किल काउंसिलों के जरिए हुनर सिखाए जाते हैं. लेकिन जिस तरह के हुनर सिखाए जाते हैं वे अस्पष्ट किस्म के हैं और अक्सर पूरा संतोष देने वाले रोजगार नहीं दिलाते.

मीडिया रिपोर्ट बताती है कि पीएमकेवीवाई के तहत प्रशिक्षित उम्मीदवारों को सर्टिफिकेट पाने के बाद भी बेहद मामूली वेतन या अकुशल रोजगार की पेशकश की गई. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक व्यक्ति आशीष राठी ने लिखा कि ‘मेरे भाई को पीएमकेवीवाई कोर्स के साथ गुरुग्राम में जॉब प्लेसमेंट का वादा किया गया था. उसे 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद सर्टिफिकेट दिया गया लेकिन इसके बाद चुप्पी साध ली गई. यह कोई स्किलिंग नहीं बल्कि धोखा है.’

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि फेज़ 2 में 1.1 करोड़ उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी गई, लेकिन फेज 3 में इनकी संख्या में 93 फीसदी की कमी आ गई और केवल 7.37 लाख उम्मीदवारों ने ट्रेनिंग ली. फेज 4 में तो यह संख्या और कम होकर 5.43 लाख पर पहुंच गई. सवाल यह उठता है कि फेज 1 में उम्मीदवारों की जितनी संख्या थी उससे फेज 2 में 533 फीसदी का जो इजाफा दिखाया गया था वह क्या सरकार ने बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया था?

चिंता की एक बात यह भी है कि सर्टिफिकेट तो बड़ी संख्या में जारी किए गए जबकि प्लेसमेंट उस अनुपात में नहीं किए गए. 2016 में प्लेसमेंट दर 2.53 लाख (12.7 फीसदी) से घटकर पीएमकेवीवाई-4 में महज 2.042 (0.37 फीसदी) हो गई. शारदा प्रसाद कमिटी (2016) ने कहा था कि पीएमकेवीवाई के तहत दी जाने वाली अधिकांश ट्रेनिंग छोटी अवधि वाली थी, कोई-कोई 10 दिनों से भी कम की, जिसमें उम्मीदवार की पिछली शिक्षा-दीक्षा का कोई ख्याल नहीं किया जाता था. इतने कम समय में कोई व्यक्ति कोई हुनर कैसे सीख सकता है?

लापता रिकॉर्ड और नतीजे

दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डीडीयू-जीकेवाई) का उदघाटन सितंबर 2014 में किया गया ताकि सौंदर्य प्रसाधन, एक्सपोर्ट असिस्टेंट, मेसन टाइलिंग और बेकिंग टेकनीशियन जैसे 250 हुनरों की उच्च स्तरीय ट्रेनिंग दी जा सके.

लेकिन पाठ्यक्रम के ढांचे या ट्रेनरों की योग्यता आदि में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई. दिल्ली में प्रतिज्ञा स्किल डेवलपमेंट सेंटर ने 250 से ज्यादा उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी, लेकिन वह आधिकारिक तौर पर केवल 27 फीसदी की प्लेसमेंट दिखा पाया क्योंकि रोज़गार देने वाले वेतन नकद में देते है और वह ऐसे सबूत नहीं दे सकता जिसकी पुष्टि की जा सके.

संशोधित अनुमानों (आरई) के मुताबिक 2022 तक 9,111 करोड़ रु. खर्च किए जा चुके थे. अब तक यानी 11 वर्षों में 16,90,046 लोगों को ट्रेनिंग दी गई जिनमें से 10,97,265 उम्मीदवारों (65 फीसदी) को रोज़गार दिलवाया जा सका. इससे ज़ाहिर है कि सरकार ग्रामीण लोगों को इसके बारे में पर्याप्त जागरूक बनाने में विफल रही. यह सरकार की दिखावे की प्रवृत्ति ही उजागर करता है.

आकाश डावर बताते हैं कि “मेरे भाई ने यूपी में खुदरा कारोबार का कोर्स करने के लिए डीडीयू-जीकेवाई में नाम लिखाया. उसे दूसरे शहर में नौकरी मिली, वह घर छोड़कर वहां गया तो पाया कि वहां कोई काम ही नहीं है, केवल बिना भुगतान के ट्रेनिंग हुई. वह निराश और बेरोज़गार होकर लौटा आया.”

नेशनल रूरल लाइवलिहुड्स मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) 2011 में शुरू हुई, नेशनल अर्बन लाइवलिहुड्स मिशन (डीएवाई-एनयूएलएम) 2013 में शुरू हुई. इन दोनों को मिलाकर दीनदयाल अंत्योदय योजना को कुल 4.351 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. इसका लक्ष्य गरीब परिवारों को सकिल ट्रेनिंग और उधार की सुविधा देकर सशक्त बनाना था, लेकिन इसमें ग्रामीण महिलाओं या खोमचे वालों को किस तरह का हुनर सिखाया गया इसकी कोई जानकारी नहीं है. क्या इसने वास्तव में अपना लक्ष्य पूरा किया?

सुना जाता है कि कुछ लोगों ने भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से एसएचजी क्रेडिट का दुरुपयोग किया. एक वर्कर, आशा ने कहा कि “हमारे एसएचजी ने एनआरएलएम के तहत कर्ज लिया और उन्हें टेलरिंग की ट्रेनिंग देने का वादा किया गया था. ट्रेनर एक महीने में दो बार आया, उसके बाद लापता हो गया. हम अभी भी ईएमआई भर रहे हैं.”

विश्वासघात

युवकों को एपरेंटिसशिप के जरिए सशक्त बनाने के लिए नेशनल एपरेंटिसशिप प्रोमोशन स्कीम (एनएपीएस) का उदघाटन 2016 में किया गया. यह भी नाकाम रहा.

सरकार ने इन सबका लाभ पाने वालों की राज्यवार सूचनाएं नहीं दी और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उम्मीदवारों को उपयुक्त हुनर या उचित वेतन हासिल हुआ या नहीं. जून 2018 में दर्ज किए गए एक आरटीआई से ज़ाहिर हुआ कि ‘एनएपीएस’ के लिए जो 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे उनमें से 2020 के मध्य तक केवल 108 करोड़ रु. लाभभोगियों में वितरित किए गए थे. यह स्वीकृत बजट के करीब 1 फीसदी के बराबर का ही उपयोग हुआ. सरकार ने ‘एनएपीएस’-1.0 के परिणामों का कोई खुलासा किए बिना ‘एनएपीएस’-2.0 (2022-26) को 1,942 करोड़ रु. आवंटित कर दिया है.

आंकड़े निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं. भारत के युवाओं, उनसे किए गए वादों और उनके भविष्य को दरकिनार कर दिया गया है. क्या ‘विश्वगुरु’ बनने का यही रास्ता है?

यह केवल नौकरशाही या व्यवस्था का निकम्मापन नहीं है, बल्कि यह विश्वासघात है. सरकार स्किलिंग के दायरे में या तो पारदर्शिता, जवाबदेही लाए और नतीजे दिखाए; या इन 48,000 करोड़ रु. को जन स्वास्थ्य, शिक्षा और सफाई के लिए आवंटित करने की नैतिकता दिखाए.

केवल पैसे ही दांव पर नहीं लगे हैं, देश के लाखों युवाओं का भविष्य और भारत के विकास के आख्यान की विश्वसनीयता दांव पर लगी है.

(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका सोशल मीडिया हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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