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Saturday, 15 June, 2024
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एनआरसी मामले में क्या करेगा फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, खुद बना हुआ है सरकार की कठपुतली

फॉरेनर एक्ट, 1946 की धारा 3 में स्पष्ट प्रावधान है कि केंद्र सरकार आदेश द्वारा विदेशियों के भारत में प्रवेश को निषिद्ध या विनियमित या प्रतिबंधित कर सकती है.

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माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश में 4 वर्षों (2015-2019)की कड़ी प्रक्रिया से गुज़रने के बाद अंतिम रूप से 31 अगस्त 2019 को नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन (एनआरसी) को ऑनलाइन जारी कर दिया गया है. एनआरसी को जारी किए जाने के बाद से ही लगातार उस में गड़बड़ी की खबरें प्रकाश में आ रही है. एनआरसी से बाहर किये गए 19,06, 657 लोगो को अब फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में 120 दिनों के भीतर अपील का वैधानिक प्रावधान किया गया है. एनआरसी के कारण ही फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल आजकल बहुत चर्चा में है. जिन लोगों को एनआरसी से बाहर किया गया है उनमें बड़ी संख्या में मजदूर और गरीब महिलाएं है, जिनको अब फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता को सिद्ध करने की लड़ाई लड़नी है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का गठन एक प्रशासनिक आदेश द्वारा

फॉरेनर एक्ट, 1946 की धारा 3 में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार आदेश (आर्डर) द्वारा विदेशियों के भारत में प्रवेश को निषिद्ध या विनियमित या प्रतिबंधित कर सकती है. इसी धारा 3 में दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए ही भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 23 सितंबर 1964 को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ऑर्डर 1964 जारी किया था. नागरिकता संबंधी ट्रिब्यूनल बनाने का प्रावधान भले ही संविधान में नहीं दिया गया है, परंतु फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का गठन यदि अन्य ट्रिब्यूनलों की भांति संसद द्वारा कानून बनाकर ही किया जाता तो ज़्यादा अच्छा रहा होता. गृह मंत्रालय के केवल प्रशासनिक आदेश द्वारा गठित होने के कारण ही आज बार-बार फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की वैधानिकता पर भी विधि के विद्वानों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा प्रश्नचिन्ह खड़ा किया जाता रहा है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, जो एक अर्ध न्यायिक संस्था है की स्थापना का मुख्य उद्देश्य किसी को बाहरी और विदेशी घोषित करने के फैसले से जुड़ा है, इसका संबंध केवल एनआरसी से नहीं है. इस प्रकार फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल एक ऐसी संस्था है जो किसी के उन दावों की जांच परख करती है जो उसके विदेशी होने या न होने से जुड़ी होती हैं.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में व्यापक अनियमितताएं

अभी हाल ही में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने अनियमितता की एक शिकायत के बाद फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 232 आदेशों की जांच करायी थी जिनमें से 57 ऑर्डर्स में अनियमितता पाई गई थी. गुवाहाटी हाई कोर्ट ने अपने 19 सितंबर 2019 के आदेश में लिखा है की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने कई मामलों में बिना तर्क के ही आदेश (without reasoned order) पारित कर किया है तथा कई मामलों में उसके द्वारा दिये गए आदेश की कॉपी ही कार्यालय में नही है. जांच में कई मामलों में यह भी पाया गया की पूर्व के किसी आदेश के लागू होने के बावजूद बिना उसको निरस्त किए ही फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने नया आदेश जारी कर दिया है. उच्च न्यायालय द्वारा जितने भी मामलों में अनियमितताएं पाई गई हैं, उन में फिर से सुनवाई का आदेश जारी कर दिया है, तथा पूर्व में दिए गए इस प्रकार के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में संविदा के आधार पर नियुक्ति

आसाम में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की वर्तमान आवश्यकता को देखते हुए 10 जून 2019 गुवाहाटी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने संविदा के आधार पर 221 रिक्त स्थानों को भरने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसके बाद केवल इंटरव्यू के आधार पर सभी स्थानों पर केवल 1 वर्ष के लिए नियुक्ति की गई साथ ही यह शर्त भी रखी गई है की आवश्यकतानुसार 1 वर्ष की अवधि को आगे भी बढ़ाया जा सकता है.

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फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में नागरिकता को सिद्ध करने का भार बॉर्डर पुलिस द्वारा अवैध अप्रवासी घोषित किए गए व्यक्ति पर ही होता है. इसलिए शक की स्थिति में किसी को अपनी नागरिकता साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है. एनआरसी में नाम होना भी नागरिकता का कोई अंतिम प्रमाण नहीं है . एनआरसी में नाम होने के बाद भी बॉर्डर पुलिस किसी को भी शक और संदेहास्पद नागरिकता के आधार पर अभी भी कार्यवाही कर सकती है. संदेहास्पद व्यक्ति यदि उचित समय सीमा के अंदर बॉर्डर पुलिस को नागरिकता संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं करता है तो इस प्रकार के प्रकरण को वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल को संदर्भित कर देती है.

ट्रिब्यूनल अपनी प्रक्रिया स्वयं ही निर्धारित करता है

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेजे गए प्रकरणों का निस्तारण ट्रिब्यूनल अपने स्वयं के द्वारा बनाई गई प्रक्रिया से ही विनियमित करता है . कई बार ऐसा भी होता है कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में जो भी गवाह होते हैं उनको बुलाने के लिए उचित तरीके से नोटिस भी नहीं भेजता है. कई बार ऐसा भी प्रकाश में आया है की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अपने निर्णय की सत्यापित प्रमाणित प्रति और दस्तावेजों को भी अभियुक्तों को प्रदान करने में आनाकानी करता है, जिससे वे इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में भी नहीं जा पाते है.

सरकार चाहती है कि ट्रिब्यूनल ज़्यादा लोगो को विदेशी घोषित करे

2017 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के 19 सदस्यों को खराब प्रदर्शन के आधार पर असम सरकार ने हटाने का निर्णय लिया था. जब मामला गुवाहाटी हाई कोर्ट पहुंचा तो असम सरकार के प्रमुख सचिव ने न्यायालय में प्रस्तुत अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट में यह कहा कि जिन 19 सदस्यों को बर्खास्त किया गया है इन्होंने न्यूनतम संख्या में नागरिकों को विदेशी घोषित किया है. इसका अर्थ यह है की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सदस्यों की नियुक्ति प्राधिकारी असम सरकार यह चाहती है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग विदेशी घोषित किए जाने चाहिए.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल और भारतीय साक्ष्य अधिनियम

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रयोग चयनात्मक तरीके से करता है. ग्राम प्रधान द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र, स्कूल के प्रमाण पत्र, निकाहनामा और गांव पंचायत द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र को प्राइवेट दस्तावेज माने जाने के कारण इन सभी को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 61 से 65 के अंतर्गत ग्राह्य ( ऐडमिसिबल) नहीं माना जाता है. धारा 61 से लेकर के 65 के कठोर निर्वचन के कारण ही बहुत सारी महिलाएं और बच्चों ने जिनके पास विभिन्न प्रकार के दस्तावेज़ हैं परंतु उन्हें भी विदेशी घोषित कर दिया गया है . ट्रिब्यूनल के सदस्यों द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 जो ट्रिब्यूनल के सदस्य/ पीठासीन अधिकारी को असीमित अधिकार प्रदान करता है का प्रयोग भी बखूबी किया जाता रहा है. वही फारेनर्स ट्रिब्यूनल भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 50 पर ध्यान नहीं देता है जो की नातेदारी (रिलेशनशिप) के बारे में राय (ओपिनियन) कब सुसंगत होती है के बारे में बताता है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में एकतरफा( एक्स पार्टी )मामलों का निस्तारण

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में सरकारी वकीलों की नियुक्ति सामान्यतया नहीं की गई है जिसके कारण ट्रिब्यूनल के सदस्य ही जज और अभियोजन पक्ष के वकील दोनों की भूमिका का निर्वहन करते हुए नज़र आते हैं. आसाम के संसदीय कार्य और परिवहन मंत्री चंद्रमोहन पटवारी ने एक प्रश्न के उत्तर में आसाम विधानसभा में यह बताया था की 1985 से लेकर के अगस्त 2018 के बीच कुल 6,26,793 लोगों के मामलों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेजा गया है.


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2 जुलाई 2019 को गृह राज्य मंत्री जी कृष्णा रेड्डी ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में यह बताया था 63,959 लोगों को 1985 से 2019 के बीच में एक तरफा न्यायिक प्रक्रिया( एक्स पार्टी प्रोसीडिंग)के द्वारा आसाम में विदेशी घोषित किया जा चुका है. इतनी बड़ी संख्या में एक्स पार्टी आर्डर होने का अर्थ यह भी है कि कहीं ना कहीं ट्रिब्यूनल द्वारा अभियुक्त पक्ष को जो नोटिस भेजा जाता है वह प्रक्रिया ही दोषपूर्ण है. गृह राज्य मंत्री ने संसद में ही एक अन्य प्रश्न के जवाब में यह भी बता चुके हैं की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा 31 मार्च 2019 तक 1,17,164 लोगो को विदेशी घोषित किया जा चुका है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में जो भी लोग न्याय मांगने के लिए एक विशेष परिस्थिति में आते हैं उनमें से ज़्यादातर लोग गरीब, मज़दूर, बेसहारा महिलाएं और बच्चे भी है. फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की नागरिकता निर्धारण में क्या सीमा रेखा होनी चाहिए? तथा उसके आदेश का न्यायिक पुनरावलोकन किस सीमा तक हो सकता है? ये एक विचारणीय प्रश्न है. मेरा मानना है कि इन प्रश्नों का निस्तारण आने वाले समय में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ही होगा. फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का यदि ठीक से आकलन किया जाए तो यह न्याय देने के नाम पर लोगों के साथ एक प्रकार का धोखा ही कर रहा है.

(लेखक संवैधानिक मामलों के जानकार हैं तथा बरेली कॉलेज बरेली के विधि विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं, ये लेख उनके निजी विचार है.)

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