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Thursday, 10 October, 2024
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शिक्षा क्षेत्र को बजट 2021 में क्या मिला, राज्य और केंद्र को स्कूलों में निवेश बढ़ाना चाहिए

बजट 2021 में शिक्षा क्षेत्र में हुए आवंटन की बात करें तो इस वर्ष शिक्षा क्षेत्र को 93,224.31 करोड़ रूपये आवंटित हुए है जो कि पिछले साल से 6087 करोड़ रूपये कम है.

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पिछले 1 फरवरी के बजट घोषणा के बाद शेयर बाजारों की हुंकार और उद्योगपतियों के अनुमोदन ने एक बात स्पष्ट कर दी कि यह बजट आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रखकर बनाया गया है. पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार लगतार आर्थिक मोर्चे पर आलोचना से जूझ रही थी जिसका एक बड़ा कारण कोरोना से आई वैश्विक आर्थिक मंदी भी थी.

पिछले कुछ समय से सरकारों ने लोगों के फीडबैक और कार्यक्रमों के क्रियान्वन को ध्यान में रखते हुए अनेक बड़े आर्थिक निर्णय वर्ष भर में लिए हैं और इसके लिए बजट की औपचारिकता का इंतजार नहीं किया है, चाहे वह आयकर आयोग में सुधार का विषय हो या कोई अन्य विषय.

सरकार ने बजट का इंतजार करने के बजाय लोगों की सुविधाओं और उनके फीडबैक को ज्यादा महत्व दिया है जो कि आम जन की बजट प्रक्रिया में भागीदारी को ही परिलक्षित करता है. सरकार ने इस बजट के सहारे बुनियादी उद्योगों को प्रोत्साहन और स्वास्थ्य व्यवस्था में निवेश के व्यापक लक्ष्य को भी सामने रखा है मगर शिक्षा से जुड़े लोगों की दिलचस्पी यह जानने में भी रही है कि शिक्षा के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं.


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शैक्षणिक अवसरों की असमानता

कोरोना के इस दौर में शैक्षणिक अवसरों की असमानता की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने आई है, जो यह बताती है कि शैक्षणिक अवसरों की समानता के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है. यह असमानता तकनीक के प्रयोग और उनकी उपलब्धता के रूप में सामने आई. उम्मीद थी कि सरकार इस दिशा में शैक्षणिक संस्थानों को और उसमें पढ़ने वाले छात्रों पर कुछ बात करेगी मगर वह बजट घोषणा में दिखा नहीं.

अगर बजट में शिक्षा के क्षेत्र में हुए आवंटन की बात करें तो इस वर्ष शिक्षा क्षेत्र को 93,224.31 करोड़ रूपये आवंटित हुए है जो कि पिछले साल से 6087 करोड़ रूपये कम है. शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि ऐसा बजट के पुनर्निर्धारण के कारण हुआ क्योंकि तमाम शैक्षणिक गतिविधियां साल भर ठप रही हैं और आगे भी उम्मीद है कि वो अपने मूल स्वरूप में आने में थोड़ा समय लगाएंगी इसलिए बजट में हुई यह कमी मंत्रालय की गतिविधियों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगी.

वर्तमान केंद्र सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि 6 वर्ष में तैयार हुई शिक्षा नीति रही है. सरकार 2014 से लगातार शिक्षा नीति को तैयार करने में लगी रही जो जुलाई 2020 में कैबिनेट से पारित हुई. शिक्षाविदों और शिक्षा से सरोकार रखने वाले लोगों की रूचि यह जानने में ज्यादा थी कि सरकार शिक्षा नीति को लागू करने के लिए किस प्रकार के प्रावधान करेगी?

अगर बजट भाषण की बात करें तो वित्त मंत्री ने शिक्षा का विषय 15 हजार मॉडल स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप विकसित करने से शुरू किया. भारत में लगभग 718 जिले हैं, इस प्रकार हर जिले में औसतन 20 मॉडल स्कूल होंगे. अब समस्या यह है कि ये स्कूल केंद्र सरकार विकसित करेगी या वह राज्य सरकार को विकसित करने के लिए कहेगी चूंकि शिक्षा समवर्ती सूचि का विषय है तो जाहिर है कि राज्य की भूमिका ही इन्हें विकसित करने में होगी मगर पहले के अनुभव यह बताते हैं कि राज्यों के सहयोग से स्कूलों को विकसित करने की योजनायें ज्यादा सफल नहीं हुई है.

नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों के बजट में हुई बढ़ोतरी उनकी राष्ट्रीय शिक्षा को लेकर तैयारी को परिलक्षित करता है मगर स्कूली शिक्षा का ढांचा ज्यादातर राज्यों के अधीन है जब तक वो अपने स्कूलों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए तैयार नहीं करेंगे, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूर्ण रूप से लागू करना मुश्किल होगा.

शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जिसको केवल केंद्र सरकार के बजट आवंटन से नहीं समझा जा सकता है. वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद केंद्र सरकार ने केंद्रीय योजनाओं के बजट आवंटन की प्रक्रिया में भी व्यापक परिवर्तन किया है. इस वजह से बहुत से कार्यक्रम लागू करने की जिम्मेदारी अब राज सरकारों पर आ गई है. इसलिए अगर शिक्षा व्यवस्था में क्या हुआ है और क्या होगा इसको समझने के लिए राज्यवार बजटों का इंतजार करना होगा.

पिछले लगभग सभी बजटों पर प्रधानमंत्री के चिंतन और उनकी परिकल्पनाओं का प्रभाव रहा है, यह बजट भी प्रधानमंत्री की परिकल्पना आत्मनिर्भर भारत के इर्द-गिर्द ही रहा है. वित्त मंत्री ने बजट को 6 बुनियादी बातों पर आधारित बताया जिसमे स्वास्थ्य, वित्तीय पूंजी और विनिर्माण, समावेशी विकास, मानव पूंजी का विकास, नवाचार और शोध तथा सरकार की कम भूमिका में अत्यधिक प्रशासन.

भारत को इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने के लिए कौशलयुक्त मानव बल की आवश्यकता है जो उसे नहीं मिल पा रही है. भारत सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद कौशल केन्द्रों के द्वारा, कौशल क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय प्रगति अभी तक नहीं हुई है जो यह संकेत करती है कि भारत सरकार को स्कूलों में ही कौशल विकसित करने के लिए प्रयास करने होंगे जिसकी बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी करती है और इस मद में सरकार द्वारा 3000 करोड़ रूपये से राष्ट्रीय अपरेंटिसशीप मिशन शुरू करना, रोजगार की दिशा में एक उत्साहवर्धक कदम है. वैसे तो सरकार ने यूएई और जापान के साथ युवाओं के प्रशिक्षण हेतु समझौतों का जिक्र भी किया है मगर पूर्व के अनुभव यह बताते हैं कि ऐसे समझौते जब तक धरातल पर न उतर जाए उनकी चर्चा करना बेमानी होगा.

तमाम छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशी संस्थानों की तरफ रुख कर रहे हैं जिसका कारण पर्याप्त गुणवत्ता उच्च शिक्षण संस्थानों का अभाव प्रमुख कारण है. इसलिए यह स्वागत योग्य कदम है कि सरकार विदेशी संस्थानों को भारत में परिसर खोलने को आमंत्रित कर रही है जिससे विदेशों विश्वविद्यालयों में शिक्षा के कारण होने वाले राजस्व की बचत होगी. मगर शिक्षा में गुणवत्ता केवल विदेशी संस्थानों के आने से नहीं विकसित हो जायेगी उसके लिए सरकार को विनियमन संस्थाओं की कार्यप्रणाली में सुधार लाना होगा. टुकड़ों में बंटे विनियमन संस्थान अभी तक अपने लक्ष्यों में उतने कामयाब नहीं हुए है जितनी उनसे अपेक्षा थी.


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स्कूलों में निवेश बढ़ाने की जरूरत

750 नए एकलव्य विद्यालय और लेह में नया केंद्रीय विश्वविद्यालय अवश्य ही स्वागत योग्य कदम है जो उन क्षेत्रों में शिक्षा की सुलभता को सुनिश्चित करेगा जहां वह पहले आसानी से उपलब्ध नहीं थी. शिक्षा में सुलभता और गुणवत्ता अभी भी बड़े प्रश्न बने हुए हैं जिनका समाधान लगातार प्रयासों से ही संभव है.

शोध की बात करें तो 50,000 करोड़ का आवंटन राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान के लिए किया गया है मगर रोचक बात यह है कि यह राशि उसे 5 सालों में मिलेगी इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि इस वर्ष कितना धन आवंटित हुआ है.

राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, समुद्र अध्यन योजना, शहरी अध्यन आदि कुछ नई योजनाओं की शुरुआत हुई है जो प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में होगी. जो वर्तमान भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप भी है. इन संस्थानों की सीधे प्रधनामंत्री की निगरानी दो बातों की और इशारा करती है, पहली की एक वह शोध के विषय को लेकर स्वयं प्रयासरत है जो की उत्साहवर्धक कदम है और दूसरा वह परंपरागत प्रक्रिया और संस्थानों से बहुत ज्यादा आशान्वित नहीं है.

कोरोना के इस दौर में जब अर्थव्यवस्था वित्तीय तनाव का सामना कर रही हो तो स्वाभाविक ही है कि वह सभी क्षेत्रों को प्रसन्न नहीं कर सकती है चूंकि शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जिसमें हुआ निवेश लोगों को तुरंत नहीं दिखता इसलिए कई बार सरकारें उसको लेकर उतनी तत्परता नहीं दिखाती जितनी आवश्यकता होती है.

यह बजट भी कोई अपवाद नहीं है जिन क्षेत्रों से सरकार को तुरंत सरोकार है उनपर ज्यादा ध्यान दिया गया और जिनकी आवश्यकता कुछ समय बाद है उनको थोड़ा टालने का प्रयास भी हुआ है. शिक्षा का सबसे बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों के अधीन है, ज्यादातर राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले भी खराब थी, कोरोना ने उसे और भी खराब किया है. इसलिए राज्य सरकारों से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी होगा.

जो बच्चे अभी स्कूल में हैं वही कल को कॉलेज में होंगे और परसों नौकरी के बाजार में. इसलिए आवश्यक है आज ही स्कूल और उसमें पढ़ने वाले बच्चो की चिंता की जाये क्योंकि कौशलहीन युवा राज्य सरकार के खजाने में इजाफा नहीं करता अपितु भार ही डालता है इसलिए आवश्यक है कि राज्य और केंद्र सरकार स्कूलों में अपना निवेश बढ़ाएं.

(लेखक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड गवर्नेंस के निदेशक हैं. उन्होंने एमएचआरडी के साथ मिलकर नई शिक्षा नीति पर काम किया है. व्यक्त विचार निजी हैं)


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