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Sunday, 15 September, 2024
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ऋषि सुनक के उत्तराधिकारी के लिए टोरी नेता की सलाह से राहुल गांधी क्या सीख सकते हैं

गठबंधन सरकार के अस्तित्व में आने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की लोकप्रियता रेटिंग के बीच अंतर कम होने के साथ, कांग्रेस को जल्दबाज़ी में नीतिगत घोषणाएं न करने के बारे में विलियम हेग की बात सुननी चाहिए.

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ब्रिटिश कंजर्वेटिव पार्टी के नेता शायद आखिरी व्यक्ति हैं जिन्हें राहुल गांधी जैसे भारतीय विपक्षी नेता सुनना चाहेंगे. आखिरकार, टोरीज़ ने प्रधानमंत्री पद को म्यूज़िकल चैयर्स का गेम बना कर रखा जब तक कि जुलाई में उन्हें सत्ता से बेदखल नहीं कर दिया गया.

जब वे अब ऋषि सुनक की जगह एक नए पार्टी नेता का चुनाव करने जा रहे हैं, तो उन्हें विपक्ष के पूर्व नेता विलियम हेग से एक सलाह मिली है, उन्होंने 1997 से 2001 तक पार्टी का नेतृत्व किया था. उनकी कुछ सलाह जो उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी के लिए दी हैं भारत के में प्रमुख विपक्षी नेता राहुल गांधी के लिए प्रासंगिक लगते हैं.

हेग ने 1997 के आम चुनाव में करारी हार के बाद कंजर्वेटिव पार्टी की बागडोर संभाली थी, लेकिन चार साल बाद अगले चुनाव में वे इसे एक और पराजय की ओर ले गए. विपक्षी पार्टी को क्या नहीं करना चाहिए, इस पर कोई भी उन पर भरोसा कर सकता है. तीन सितंबर को द टाइम्स में छपे “Tories will find great dangers in opposition” शीर्षक वाले एक लेख में, हेग ने कहा कि अगले टोरी नेता को कई तरह के प्रलोभनों से बचना चाहिए.

अनपेक्षित परिणामों की परवाह नहीं

सबसे पहले, उन्होंने लिखा, नीतिगत प्रतिबद्धताओं को लेकर निर्णायक होने का प्रलोभन नहीं करना चाहिए क्योंकि जब ऐसा करना लापरवाही या जल्दबाज़ी होगी. उन्होंने तर्क दिया, “अगला चुनाव 4-5 साल दूर है. तब तक अर्थव्यवस्था, यूरोप और वास्तव में दुनिया बदल चुकी होगी.” मूल रूप से, उन्होंने सुझाव दिया, हालांकि INHI शब्दों में नहीं, कि एक विपक्षी दल जो भविष्य में सत्ता में आने की उम्मीद करता है, उसे वादें करने से पहले सावधान रहना चाहिए. यह कुछ ऐसा है जिस पर राहुल गांधी को विचार करना चाहिए. अगर कांग्रेस 2024 में सत्ता में आती अपने घोषणापत्र को लागू करती, तो बिजनेस टुडे की रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों द्वारा अनुमानित कुल लागत 22 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष होती — जो 2024-2025 में 25.83 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित शुद्ध कर प्राप्तियों का लगभग 85 प्रतिशत है.

यह राजकोषीय गड़बड़ी के लिए एक नुस्खा होता. कोई भी पार्टी जो अगली सरकार बनाने की उम्मीद करती है, वो ऐसा घोषणापत्र नहीं जारी करेगी — यानी, अगर उसे सत्ता में एक से अधिक कार्यकाल मिलने की उम्मीद है. कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में हार की भावना साफ झलक रही थी. ऐसे समय में जब गठबंधन की सरकार है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की लोकप्रियता रेटिंग के बीच अंतर कम हो रहा है, कांग्रेस को जल्दबाजी में नीतिगत घोषणाएं न करने के बारे में हेग की बात सुननी चाहिए. उदाहरण के लिए कांग्रेस जो शुरू में माल और सेवा कर (जीएसटी) के दोषपूर्ण रोलआउट की आलोचना कर रही थी, अब जीएसटी पर संदेह करने लगी है और जीएसटी 2.0 तथा एक के बाद एक छूट का वादा कर रही है.

कांग्रेस और उसके सहयोगी जाति जनगणना को लेकर बहुत उत्साहित हैं. इसने निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को बैकफुट पर ला दिया है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को इसका समर्थन करने आगे आना पड़ा है, लेकिन विपक्ष को जाति जनगणना को सभी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के लिए रामबाण की तरह पेश करने से बचना चाहिए. अब तक, जैसा कि हम कांग्रेस की योजना के बारे में जानते हैं, इसमें जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण, 50 प्रतिशत की सीमा को पार करना, सत्ता के उच्चतम स्तरों पर वंचित समुदायों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना शामिल है — जैसे कि भारत सरकार के सचिवों के रूप में. हमें इसके बारे में और कुछ नहीं पता.

क्या यह काफी होगा, यह देखते हुए कि कांग्रेस जाति जनगणना के माध्यम से अन्य पिछड़े वर्गों को चांद देने का वादा कर रही है? क्या कांग्रेस सत्ता में आने पर हरेक जाति और उपजाति के लिए संसाधन आवंटित करेगी? क्या वह निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करेगी? और क्या? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी राजनीति का मुकाबला करने की अपनी जल्दबाजी या हताशा में, विपक्ष मंडल-II को लागू करने के अनपेक्षित परिणामों से बेखबर दिखता है. यह तो बस चंद उदाहरण हैं. एक पार्टी जो सत्ता में लौटने और लंबे समय तक देश पर शासन करने की आकांक्षा रखती है, उसे लोगों के सामने शासन का वैकल्पिक एजेंडा पेश करते हुए ऐसे परिणामों से निपटने की योजना बनानी होगी.


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कवर करने के लिए काफी कुछ बाकी

विलियम हेग ने कहा कि अगर लेबर की पोल रेटिंग कम होती है, तो फिलहाल रिफॉर्म यूके, दक्षिणपंथी, लोकलुभावन पार्टी, फलेगी-फूलेगी. इसलिए, वह कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व को दूसरे प्रलोभन के खिलाफ सावधान कर रहे हैं — इसकी नीतियों की नकल करने, इसके दावों को अपनाने और लोकलुभावनवाद में लिप्त होने की तेज़ इच्छा. हेग ने लिखा, “लेकिन इससे नई पीढ़ी के मतदाताओं के लिए व्यापक अपील वाली सरकार की एक सक्षम पार्टी का पुनर्निर्माण नहीं होगा.”

भारत में तीसरे विकल्प के संदर्भ में कोई आम आदमी पार्टी (आप) के बारे में सोच सकता है. हालांकि, यह ज़रूरी नहीं है कि यह दक्षिणपंथी श्रेणी में फिट हो — कम से कम इसकी घोषित नीतियों के संदर्भ में. हालांकि, हेग की सलाह कांग्रेस के लिए थोड़ी देर से आई है. पार्टी ने पहले ही ‘फ्रीबीज़’ वाली राजनीति को पूरी तरह से अपना लिया है. इतना कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी उस चीज़ को बड़े चाव से अपनाया है जिसे वह ‘रेवड़ी’ कहकर निंदा करते थे. राहुल गांधी को यहां हेग की बात पर ध्यान देना चाहिए: यह सरकार की एक सक्षम पार्टी के पुनर्निर्माण का तरीका नहीं है.

पूर्व कंजर्वेटिव पार्टी के नेता ने कुछ अन्य प्रलोभनों का उल्लेख किया, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि ऋषि सुनक के उत्तराधिकारी को इसकी उपेक्षा करनी चाहिए, लेकिन वह राहुल गांधी के लिए बहुत प्रासंगिक नहीं हैं. मैं अन्य प्रलोभनों की एक सूची बनाना चाहूंगा, जिससे कांग्रेस नेता को बचना चाहिए.

सबसे पहले, गांधी को लोकसभा के नतीजों को अपनी राजनीति के लिए एक ज़बरदस्त समर्थन नहीं मानना चाहिए. कांग्रेस ने कुछ राज्यों में कुछ ज़मीन हासिल की है, लेकिन इसके लिए उसे भाजपा की राजनीति और शासन को भी धन्यवाद देना चाहिए. द इंडियन एक्सप्रेस के विश्लेषण के अनुसार, कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के मार्गों पर 41 सीटें हासिल कीं. उनकी कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा ने 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 71 लोकसभा सीटों को कवर किया. कांग्रेस ने 2024 के चुनावों में इस मार्ग पर लड़ी गई 56 सीटों में से 23 सीटें जीतीं — जबकि 2019 में उसने 65 में से 15 सीटें जीती थीं.

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में 82 लोकसभा सीटें शामिल थीं. कांग्रेस ने इसके मार्ग पर लड़ी गई 49 सीटों में से 17 सीटें जीतीं — जबकि 2019 में उसने 71 में से छह सीटें जीती थीं. ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में कवर हुई और 2024 में लड़ी गई 33 सीटों में से 18 सीटों पर जीत मिली.

ज़ाहिर है, राहुल गांधी की दोनों यात्राओं ने चुनावी लाभ दिया और इसलिए उनकी सफलता से उनके पास खुश होने के कारण भी हैं, लेकिन अभी भी उन्हें बहुत कुछ करना है. इंडियन एक्सप्रेस के विश्लेषण पर करीब से नज़र डालने पर सच्चाई सामने आती है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस यात्रा का कोई असर नहीं हुआ बल्कि आंध्र प्रदेश में यात्रा के दौरान कवर हुई दो सीटें कांग्रेस हार गई. तेलंगाना में इस यात्रा के तहत सात सीटें कवर की गईं, जिनमें से 2019 में कांग्रेस ने एक जीती थी और 2024 में भी यही नतीजा रहा. इसी तरह, 2019 की तुलना में सीटों में बढ़त के मामले में दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में इन दोनों यात्राओं का कोई चुनावी प्रभाव नहीं पड़ा.

जिन राज्यों से यात्राएं गुज़रीं और जहां कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया, उनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार शामिल हैं, लेकिन ये राज्य ऐसे भी थे जहां कई अन्य कारक भी काम कर रहे थे, जिसमें विपक्ष के मजबूत गठबंधन से लेकर सत्तारूढ़ पार्टी की गठबंधन संबंधी परेशानियां, भाजपा में अंदरूनी कलह और ‘दलबदलू उम्मीदवारों’ के लिए ज़मीन पर आरएसएस से समर्थन की कमी शामिल थी.

चौथा प्रलोभन जिससे गांधी को बचने की ज़रूरत है, वह है परिणामों को अपनी सोशल इंजीनियरिंग राजनीति की सफलता के रूप में देखना, विशेष रूप से जाति जनगणना के लिए जोर देना. यहां तक कि जाति जनगणना के एक बड़े समर्थक योगेंद्र यादव ने भी माना है कि 2024 के चुनाव में “राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख सामाजिक समूहों की मतदान प्राथमिकताओं में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया”. यादव ने दिप्रिंट के लिए लिखे एक लेख में कहा, दूसरी ओर, भाजपा ने उच्च जाति और मध्यम वर्ग के हिंदुओं और अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के बीच अपने मूल वोट को बनाए रखा और आदिवासियों के बीच अपनी बढ़त को और बढ़ाया.

यह इस तथ्य से भी मान्य है कि पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर लगभग स्थिर रहा है. 2024 के आम चुनाव में इसने 21.19 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 2019 की तुलना में 1.7 प्रतिशत अंक की वृद्धि है. हालांकि, विपक्षी खेमे में जश्न मनाना और पीठ थपथपाना इस वृद्धि के अनुपात से कहीं ज़्यादा है.

पांचवां प्रलोभन जिसमें गांधी को नहीं फंसना चाहिए, वह है इंडिया ब्लॉक भागीदारों को स्थायी मित्र मानना. तथ्य यह है कि उनमें से अधिकांश कांग्रेस की कीमत पर उभरे और विकसित हुए हैं. एक साझा दुश्मन, भाजपा के कारण वह सब एकजुट हुए हैं, लेकिन वो राहुल गांधी के दोस्त तभी तक हैं जब तक भाजपा एक बड़ा खतरा बनी हुई है. उनमें से अधिकांश के लिए कांग्रेस अभी भी दुश्मन नंबर 2 बनी हुई है. अगर कांग्रेस अपने पुराने गौरव को दोबारा हासिल करने की इच्छा रखती है, तो वह इन इंडिया ब्लॉक भागीदारों की कीमत पर होगा.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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