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Saturday, 2 November, 2024
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क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ में अमेरिका-भारत की पहल क्या है?

iCET वास्तव में क्या है, यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है. दिग्गज रक्षा विशेषज्ञ और इंडस्ट्री के प्रतिनिधि iCET को कुछ हद तक अमेरिका-भारत रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल के उन्नत संस्करण के तौर पर देखते हैं जो 2012 में लॉन्च हुआ था.

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जनवरी 2023 के अंत में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और अमेरिका के NSA जेक सुलिवन ने क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ (iCET) पर अमेरिका-भारत की पहल को आधिकारिक तौर पर शुरू किया. दोनों सलाहकारों ने 30 जनवरी 2023 को आयोजित हुई एक अनौपचारिक चर्चा में हिस्सा लिया, जिसमें अमेरिका की वाणिज्य मंत्री जीना रायमोंडो के साथ कई भारतीय और अमेरिकी अधिकारी शामिल थे.

कमरा दिग्गज उद्योगपतियों, विचारकों, भारत के प्रभावशाली स्टार्टअप सिस्टम के प्रतिनिधियों और दूसरे लोगों से भरा हुआ था जिनका द्विपक्षीय साझेदारी में लंबा योगदान रहा है. उद्देश्य स्पष्ट था- दोनों देशों के बीच संबंधों में अविश्वसनीय विकास की जानकारी देना और क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ के मामलों में इन संबंधों को और मज़बूत करने की क्षमता को उजागर करना. कमरे की ऊर्जा सम्मोहित करने वाली थी लेकिन सच्ची थी. एक दिग्गज भारतीय सीईओ ने इसे “सीरियस बिज़नेस” बताया. इन दोनों विश्वसनीय भौगोलिक क्षेत्रों के बीच बिज़नेस को बढ़ाने की संभावना साफ़ दिख रही थी. यह स्पष्ट था कि iCET के ढांचे ने एक तड़ित चालक की तरह काम किया था. साफ था कि भारत और अमेरिका में सरकारें, निजी क्षेत्र, अनुसंधान प्रयोगशालाएं और शैक्षणिक समुदाय साझेदारी के लिए एक विशेष अध्याय में प्रवेश कर रहे थे.

कमरे में मौजूद लोगों ने दोनों देशों के बीच क्वांटम कम्युनिकेशंस को मज़बूत करने, भारत में सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने, रक्षा सहयोग में तेज़ी लाने, अंतरिक्ष से जुड़े कामकाज के व्यावसायिक अवसरों को तलाशने और अनुसंधान में नए अवसर और साझेदारी तैयार करने और वर्तमान अवसरों में तेज़ी लाने की संभावनाओं को उजागर किया. प्रौद्योगिकी के भविष्य से जुड़े भारतीय और अमेरिकी उद्योग जगत के लगभग हर हिस्से के प्रतिनिधियों से भरे कमरे में दिए गए सुझावों को सरकारी अधिकारियों ने बड़े धैर्य के साथ सुना. अधिकारियों ने सहभागिता बढ़ाने में आने वाली रेगुलेटरी अड़चनों पर विशेष ध्यान दिया.

एक दिन बाद, दोनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने सरकारी प्रतिनिधियों के एक ताक़तवर समूह के साथ जी2जी बैठकों में हिस्सा लिया. 31 जनवरी की शाम को, व्हाइट हाउस ने iCET पर एक फैक्ट शीट प्रकाशित की. फैक्ट शीट ने साफ़ किया कि iCET एक प्रक्रिया थी जो मई 2022 में टोक्यो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच हुई एक बैठक के बाद शुरू हुई थी. दोनों नेता जापान में क्वॉड (QUAD) शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे. फैक्ट शीट में iCET के दायरे में आने वाले कई क्षेत्रों का ब्यौरा है—क्वांटम समन्वय तंत्र तैयार करने से लेकर, रक्षा उद्योग सहयोग का रोडमैप बनाने के लिए उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटरों पर सहयोग करने और एक पूरक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम के लिए “निकट भविष्य के अवसरों को पहचानने और लंबी अवधि के रणनीतिक विकास में मदद के लिए एक टास्क फोर्स बनाने तक.” फैक्ट शीट बहुत सावधानी से तैयार की गई है और यह क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ के मामलों में संबंधों को मज़बूत करने की महत्वाकांक्षा के साथ कार्यात्मक तरीकों को आगे बढ़ाया गया है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने 1 फरवरी को iCET पर एक प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित की.


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iCET क्या है?

iCET वास्तव में क्या है, यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है. दिग्गज रक्षा विशेषज्ञ और इंडस्ट्री के प्रतिनिधि iCET को कुछ हद तक अमेरिका-भारत रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (DTTI) के उन्नत संस्करण के तौर पर देखते हैं जो 2012 में लॉन्च हुआ था. DTTI द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की अड़चनों को दूर करने और कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. DTTI की ग्यारहवीं बैठक नवंबर 2021 में वर्चुअली हुई. iCET को लेकर, भारत और अमेरिका दोनों जगह बहुत से पत्रकारों के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि, “समझौता क्या है?” अगर कोई समझौता नहीं है तो दलील यह दी जाती है, और जैसा कि कई पत्रकार कह भी चुके हैं कि, “इस iCET” की ज़रूरत ही क्या है? “क्या यह संबंधों में गतिशीलता बनाए रखने के लिए एक और मुहावरा भर है?” लंबे समय से इस क्षेत्र पर नज़र रखने वालों के बीच यह आम नज़रिया है.

जो लोग दोनों देशों में आधिकारिक पदों पर रह चुके हैं वे 2008 के अमेरिका-भारत परमाणु समझौते पर बातचीत के समय का हवाला देते हैं. परमाणु समझौता करने में जिस तरह के भारी प्रयास करने पड़े थे उसकी तुलना में iCET “कम महत्वपूर्ण” लगता है. “क्या यह एक हकीकत है?” ऐसे ही एक इनसाइडर ने मुझसे कहा. ऐसा लगता है कि अख़बार इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि “समझौता” हो चुका है. एक हेडलाइन ने दावा किया, “iCET के तहत अमेरिका भारत को क्रिटिकल टेक्नोलॉजीज़ देता है.” यह बात ऐसे किसी भी इंसान को हैरान कर देगी जो इस तरह की तकनीक हासिल करने के लिए बातचीत के लंबे और मुश्किल दौर से गुज़र चुका है.

कुछ हद तक इस उलझन को समझा जा सकता है. iCET को लेकर सार्वजनिक तौर पर आधिकारिक जानकारी बहुत कम है. अब तक, मेरी जानकारी के अनुसार, iCET पर सिर्फ चार मूल आधिकारिक सार्वजनिक संदर्भ हैं—मई 2022 में मोदी-बाइडेन की बैठक के बाद जारी एक आधिकारिक बयान, iCET का नेतृत्व कर रहे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ सार्वजनिक रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत, व्हाइट हाउस द्वारा प्रकाशित फैक्ट शीट, और MEA द्वारा प्रकाशित एक प्रेस विज्ञप्ति. इसके अलावा, यह जानकारी है कि इस पहल का नेतृत्व दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और उनके संबंधित अफसर करते हैं: अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) और भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS).

विश्लेषणात्मक स्पष्टता के लिए, यह समझना अच्छा है कि iCET क्या है और क्या नहीं. इस तरह से, शायद, iCET पर और उसके आस-पास के अनुमानों और विश्लेषणों को उन सिद्धांतों के सामने बेहतर तरीके से रखा जा सकता है जो इसे चलाते हैं. नीचे का अस्थायी मूल्यांकन एक “बाहरी व्यक्ति” की सहूलियत के दृष्टिकोण से हैं जो पिछले आठ महीनों से इस पहल के क्रमिक विकास को समझने की कोशिश में लगा हुआ है.

ICET ‘एक’ समझौता नहीं है

iCET को कोई इकलौता समझौता करने के हिसाब से डिज़ाइन नहीं किया गया है. iCET के तहत सहयोग की कम से कम आठ से दस अलग धाराएं हैं, जो अमेरिका और भारत के बीच क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ पर सहयोग के लिए एक फ्रेमवर्क की तरह काम करती हैं. इस तरह से इन प्रौद्योगिकियों में कई तरह के सौदे किए जाने हैं. उदाहरण के लिए, अंतरिक्ष के व्यावसायिक मामलों में, इसके ज़रिए भारतीय स्पेस स्टार्टअप्स को समय से लाइसेंस देने का व्यावहारिक तरीका तलाशना है. लाइसेंस नहीं मिल पाने की स्थिति में, उन तरीकों को खोजना है जिनके माध्यम से अमेरिका के इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशन (ITAR) से कुछ विशिष्ट छूट दी जा सके.

जहां तक सेमीकंडक्टर्स का संबंध है, तो समझौता ऐसा किया जाना है कि उन तरीकों की तलाश की जाए जिनके ज़रिए अमेरिकी कंपनियां एक इकोसिस्टम बनाने के लिए भारत में निवेश कर सकें. क्वांटम कंप्यूटिंग और कम्युनिकेशंस के मुद्दों पर, जिस समझौते का इंतज़ार है, वो दोनों देशों के उन विश्वविद्यालयों के बीच होगा जिन्होंने क्वांटम टेक्नोलॉजी में निवेश किया है. इसके बाद विद्वानों, छात्रों और विशेषज्ञों के बनाए और साझा किए गए ज्ञान का सर्वोत्तम उपयोग करने की उद्योग की क्षमता की बारी आती है. मूल रूप से उद्देश्य है क्वांटम के इस्तेमाल की संभावनाओं को तलाशना.

मुख्य बिंदु यह है कि iCET “एक” समझौता नहीं है— और 2008 के परमाणु समझौते जैसा तो यह बिल्कुल नहीं है. यह एक ऐसा ढांचा है जो उभरती प्रौद्योगिकियों के बढ़ते दायरे में सहयोग को बढ़ाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों की क्षमता में तेज़ी लाता है। इसमें, नाकामी की उतनी ही गुंजाइश है, जितनी कामयाबी की संभावना.

DTTI का मॉडर्न अवतार नहीं है ICET

अमेरिका और भारत के कुछ गलियारों में, एक आम धारणा तेजी से बढ़ रही है कि DTTI का ही नया अवतार है iCET जैसा कि एक पत्रकार का कहना है, “iCET तकनीकी रूप से [DTTI का] उन्नत अवतार लगता है.” रक्षा विशेषज्ञ का फोकस है “लड़ाकू क्षमता” देने और वाणिज्य के लिए दोहरे-इस्तेमाल वाली तकनीकों से पैसे कमाने के लिए iCET की क्षमता पर. बहुत से लोगों के अनुसार, इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि गहन रक्षा तकनीकी सहयोग के लिए iCET क्या कर सकता है. चाहे यह वॉशिंगटन डीसी या नई दिल्ली में गुप्त रूप से तैयार कोई इंतजाम हो या नहीं, DTTI को समझने में अपना समय लगा चुके बहुत से जानकारों के इसके भविष्य को लेकर दृढ़ राय हैं. निश्चित रूप से इससे उम्मीद जगती है. वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी से विद्वान बने, ऐसे ही एक विशेषज्ञ के अनुसार, “DTTI की सफलता,” से सीखने पर ध्यान देना ज़रूरी है, ना कि सिर्फ इसकी असफलता से. रक्षा जगत में, iCET के लिए मुख्य धुरी रक्षा तकनीकों और उनके आसपास है.

फिर भी, iCET DTTI नहीं है. यह सिर्फ रक्षा सहयोग मज़बूत करने की एक पहल नहीं है. दरअसल यह प्रौद्योगिकियों के बीच सहयोग का एक समग्र ढांचा है जो आपस में जुड़ी हुई भी हैं और एक-दूसरे से अलग भी. रक्षा सहयोग iCET के फोकस का सिर्फ एक हिस्सा है, इस पहल का और इसके लिए केंद्र बिंदु नहीं. ये सब होते हुए भी, कुछ विशेष क्षेत्रों में DTTI को आधार बनाकर आगे बढ़ने के काफी मौके हैं.

भारत और अमेरिका में रक्षा केंद्रित स्टार्टअप्स और छोटी-मझोली कंपनियों के बीच काफी कुछ किया जाना है. iCET बे एरिया (अमेरिका की प्रौद्योगिकी कंपनियों का मुख्य अड्डा) और भारत के कई संस्थानों, विशेषकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) के बीच रक्षा के क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा दे सकता है—इस बात का जिक्र व्हाइट हाउस की फैक्ट शीट में भी है. अमेरिका और भारत के बीच नए स्टार्टअप्स खड़े करने और इंजीनियरिंग छात्रों को आपस में जोड़ने के लिए डिजाइन किए गए प्रोग्राम iCET के लिए दीर्घकालिक उद्देश्य के तौर पर काम कर सकते हैं.

संक्षेप में, DTTI की तुलना में iCET के ढांचे में ज़्यादा लचीलापन है. निश्चित रूप से भारत में प्रौद्योगिकियों तक पहुंच एक प्रमुख मांग बनी हुई है, लेकिन इस मूलभूत आवश्यकता के परे भी काफी कुछ है जो iCET के माध्यम से किया जा सकता है.


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निष्कर्ष

iCET को क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ पर सहयोग के लिए आपस में जुड़े ढांचे के तौर पर सबसे अच्छी तरह से परिभाषित किया जा सकता है. iCET की संरचना काफ़ी हद तक किसी चार्टर या एक ढांचे जैसी है जो क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ पर कई समझौते करने के लिए सहयोग के मौजूदा रास्तों को प्रेरित करता है, नए अवसर पैदा करता है, और मौजूदा भू-राजनीतिक बदलावों को ध्यान में रखता है.

तब भी, समझौते अपने आप में iCET को परिभाषित नहीं कर सकते.

NSC और NSCS की अगुवाई में बने इस ढांचे से पैदा हुई रफ्तार में निष्क्रिय पड़े अवसरों को उत्तेजित करने, इमर्जिंग और क्रिटिकल टेक्नोलॉजीज़ में नई संभावनाएं तैयार करना, और दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग की रणनीति को और मज़बूत करने की अपार संभावनाएं हैं. हालांकि, इस ढांचे का संचालन NSC और NSCS करते हैं, जिन्होंने इस पहल को और अधिक समावेशी और भागीदारीपूर्ण बनाने के लिए अविश्वसनीय प्रयास किए हैं, वे iCET के मालिक नहीं हैं। बल्कि, दोनों संस्थान इस अनूठे और चुस्त ढांचे के लिए प्रशासनिक मार्गदर्शक के तौर पर काम करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में हैं. उनके पास नतीजों को आकार देने में मदद करने की क्षमता है.

इन नतीजों को व्यावहारिक बनाए रखने के लिए iCET को निजी क्षेत्र, इंडस्ट्री में नॉलेज पार्टनर और दोनों देशों में शिक्षाविदों की मदद लेने की ज़रूरत होगी. इसके अलावा, भारत और अमेरिका में डीरेगुलेट और शायद को-रेगुलेट करने के लिए और निजी क्षेत्र को रणनीतिक और कामकाज चलाने का ज़रूरी भरोसा देने के लिए इसे दोनों देशों में संबंधित सेक्टरों के मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों की ज़रूरत होगी.

अमेरिका और भारत के बीच दशकों के घनिष्ठ संबंधों के बावजूद दोनों पक्षों में आशंकाएं बनी हुई हैं. यह तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब समय की ज़रूरत है कि एक-दूसरे की क्षमताओं का फायदा उठाने के लिए बड़ा दांव लगाया जाए और क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ की ग्रोथ के लिए आपस में जुड़ा एक इकोसिस्टम बनाया जाए. iCET से एक ऊर्जा उत्पन्न हुई है जिसे महसूस किया जा सकता है. स्पेस और डिफेंस स्टार्टअप्स से लेकर छोटी-मझोली कंपनियों और बड़े उद्योगों तक, iCET को एक विशिष्ट ढांचे के रूप में देखा जा रहा है जिसे लाने के लिए, प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति में, इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था. इसे आकार दिया है “विश्वसनीय तकनीकी साझेदारों” के बीच मौजूदा बाज़ार का दायरा बढ़ाने और नए बाज़ार खोजने की ज़रूरत ने.

अंत में, यह पूरे समाज पर असर डालने वाला नज़रिया है. व्यावहारिक और असीमित नतीजों के लिए दोनों देशों में सरकार के विभिन्न हिस्सों को निजी क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों, शिक्षा जगत और सरकार के विशिष्ट सलाहकारों के साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है. iCET को किसी एक खास नतीजे तक पहुंचने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है. अपने स्वरूप में यह एक बहुक्षेत्रीय प्रयास है जो कई तरह के प्रौद्योगिकी-संचालित नतीजे देने की संभावना रखता है.

(लेखक के विचार निजी हैं. यह लेख कार्नेगी इंडिया में पहले पब्लिश हो चुका है.)


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