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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतलॉकडाउन और नोटबंदी के बीच जो समानता है वो मोदी सरकार की तैयारियों में कमी है

लॉकडाउन और नोटबंदी के बीच जो समानता है वो मोदी सरकार की तैयारियों में कमी है

वित्तीय स्थिति के लिहाज से हम तीस साल पीछे चले गए हैं. अब यही उम्मीद की जा सकती है कि एक-दो तिमाही तक अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रहेगी और उसके बाद धीरे-धीरे ही सुधरेगी.

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कोविड-19 वायरस के संक्रमण की वृद्धि के चक्र को देखें तो इसके तीन चरण सामने आएंगे. पहला चरण वह है जब इसके नये मामलों की संख्या दिन-पर-दिन लगातार तेज दर से बढ़ती रहती है. दूसरे चरण में वृद्धि की दर घटती है, मामलों की संख्या बढ़ती रहती है मगर चक्र सपाट हो जाता है. तीसरे चरण में रोज के नये मामलों में वृद्धि रुक जाती है और वे घटने लगते हैं. 10 में से सात बड़े देश, जिनके यहां के मामलों की कुल संख्या दुनिया भर के 10 लाख मामलों की 80 प्रतिशत है, अब वे दूसरे या तीसरे चरण में पहुंच गए हैं. अपवाद अमेरिका, ब्रिटेन और तुर्की हैं. पूरी दुनिया को देखें तो वह पहले चरण के अंत में पहुंच गई है.

भारत भी उसी स्थिति में है, या होता अगर तबलीगी जमात ने मामलों को बढ़ाया न होता. वैसे, देखें तो देश को 100 मामले (14 मार्च) से पांच गुना यानी 500 मामले तक पहुंचने में नौ दिन लगे. इसके बाद लॉकडाउन के पहले दस दिनों में मामले फिर पांच गुना होकर 2500 पर पहुंच गए. अगर हम मान लें कि लॉकडाउन के अगले 11 दिनों में मामले फिर पांच गुना हो जाते हैं तो यह संख्या अप्रैल के मध्य तक करीब 12,000 हो जाएगी. इसके बाद भी अगर हम लॉकडाउन के बावजूद दूसरे चरण में नहीं पहुंचते तो यह सचमुच बुरी खबर होगी. इसलिए आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन को धीरे-धीरे ही खत्म करने के संकेत दिए हैं.

किस्मत से हम पश्चिमी यूरोप की तरह, आबादी के अनुपात में मामलों की संख्या वाली स्थिति में नहीं आएंगे. यूरोप में जिस तरह 5-6 करोड़ की आबादी के अनुपात में 1 लाख मामले हुए, वैसा अगर भारत में हो जाए तो मामलों की संख्या 20 लाख को पार कर जाएगी, जबकि पूरी दुनिया में कुल मिलाकर 10 लाख मामलों का आंकड़ा अभी जाकर पहुंचा है. वैसे, भारत में स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की सीमाएं जल्द ही सामने आ सकती हैं.

सरकार के दो तरह के कदम सामने आए हैं— हमारे-आपके लिए अधिकतमवादी और अपने लिए (टेस्टिंग और राहत पैकेज की दृष्टि से) न्यूनतमवादी. होना तो यह चाहिए था कि अधिकतमवादी कदम लॉकडाउन (कारखानों की बंदी, आमदनी की बंदी, प्रवासी मजदूरों के संकट आदि) के साथ ही एक सप्ताह बाद नहीं बल्कि तुरंत व्यापक और ज्यादा उदार भुगतान के रूप में उठाए जाने चाहिए थे. लेकिन बिना सोचे-समझे कदम उठा लेना आदत बन गई है. हम देख चुके हैं कि 2016 में नोटबंदी के बाद नये नोटों की कितनी भारी किल्लत हुई थी, जो और भी गंभीर इसलिए हो गई कि ऐसे आकार के नोट जारी कर दिए गए जो एटीएम के लायक नहीं थे.


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अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा है? शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि पिछले महीने इसे गहरी चोट लगी है, और मंदी के लक्षण उभर रहे हैं. मोटर वाहनों की बिक्री 50 प्रतिशत घट गई है, जीएसटी के मद में राजस्व में 20 फीसदी की कमी आई है, पेट्रोल/डीजल का उपभोग 20 प्रतिशत घट गया है, बिजली के उपभोग में भी 30 फीसदी की गिरावट बताई जा रही है. पूरे साल में प्रत्यक्ष कर से राजस्व उस स्तर पर पहुंच गया है जिस पर दो साल पहले था, जब अर्थव्यवस्था का आकार ‘नोमिनल’ पहलू से 15 प्रतिशत छोटा था. कुछ आंकड़े तो 2008 के वित्तीय संकट के दौरान के आंकड़ों से भी बुरे हो सकते हैं. राजस्व में कमी और संकट के मद्देनजर खर्चों में वृद्धि के कारण वित्तीय दबाव और बढ़ेगा. यानी वित्तीय स्थिति के लिहाज से हम तीस साल पीछे चले गए हैं. उस समय वित्त मंत्री के पास एक कवच था, वे बजट में पूंजीगत खर्चों पर लगाम लगा सकते थे. आज वह जीडीपी का छोटा-सा हिस्सा रह गया है, इसलिए वह कवच भी नहीं रहा.

अब यही उम्मीद की जा सकती है कि एक-दो तिमाही तक अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रहेगी और उसके बाद धीरे-धीरे ही सुधरेगी. धीरे-धीरे क्योंकि बंद पड़ी फर्मों को शुरू होने में समय लगेगा, वित्तीय सीमाएं सख्त होंगी, व्यापार का माहौल अनुकूल नहीं होगा, छंटनी और वेतन कटौती के कारण प्रभावित घरेलू बजट के चलते उपभोग का स्तर नीचा होगा और इसलिए निवेश का अकाल रहेगा. दोहरे घाटे की समस्या और गहरी हो सकती है— मांग में गिरावट के चलते जिन्सों की कीमतों में 25-30 फीसदी की गिरावट पहले ही हो चुकी है, भारी कॉर्पोरेट कर्ज़ वित्तीय क्षेत्र के लिए बोझ बन सकता है.
नई सदी का पहला दशक संकट के साथ समाप्त हुआ था. दूसरा दशक आर्थिक वृद्धि में तेज मंदी के कारण उसी दिशा में जा चुका है. तीसरे दशक का पूर्वार्द्ध पिछले दो दशकों से भी बुरा बीत सकता है. इसलिए, अंधेरा होने से पहले अपने दीये जला लीजिए.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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