ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी वनडे में भारतीय टीम 35 रनों से हार गई. ऑस्ट्रेलिया ने लगातार तीन वनडे मैच जीतकर भारत को उसी के घर में 3-2 से हरा दिया. इस जीत के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में अपने घर में मिली हार का बदला भी ले लिया. इसके साथ ही वनडे रैंकिंग में अपने से कहीं बेहतर टीम इंडिया को उसी के घर में हराकर विश्वकप की अपनी तैयारियों की झलकी भी दिखा दी.
दिल्ली वनडे में टीम इंडिया को जीत के लिए 273 रनों की जरूरत थी लेकिन वो 237 रन पर ऑल आउट हो गई. इस मैच में हार के साथ ही 2019 विश्वकप से पहले टीम की तैयारियों को जांचने का मौका खत्म हो गया. अब भारतीय खिलाड़ी आईपीएल खेलेंगे. उसके बाद सीधा विश्वकप के लिए इंग्लैंड की उड़ान भरेंगे.
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बुद्धवार को फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत हासिल करने के लिए विकेट पर टिककर बल्लेबाजी करने की जरूरत थी. ये जिम्मेदारी किसी भी बल्लेबाज ने नहीं उठाई. रोहित शर्मा ने 56 रन जरूर बनाए लेकिन वो भी जल्दबाजी करने के चक्कर में ही आउट हुए. एडम जैंपा की गेंद पर जब वो स्टंप किए गए तो उनके हाथ से बल्ला तक छूट गया था. इससे पहले भी रोहित शर्मा को दो जीवनदान मिल चुका था. बावजूद इसके वो इसका फायदा उठाने में नाकाम रहे. इस हार के बाद एक बार फिर ये सवाल खड़ा होगा कि विराट कोहली क्या प्लेइंग 11 चुनते वक्त कई बार ‘अव्यवहारिक’ फैसले करते हैं. पांचवे वनडे में एक बल्लेबाज की कमी साफ महसूस हुई. वो कमी क्यों हुई ये समझते हैं.
केएल राहुल की जगह मोहम्मद शामी कैसे?
चौथे और पांचवे मैच की टीम में विराट कोहली ने दो बदलाव किए. चौथे मैच की टीम से यजुवेंद्र चहल और केएल राहुल को बाहर बिठाकर पांचवे मैच में रवींद्र जडेजा और मोहम्मद शामी को मैदान में उतारने का फैसला किया. यजुवेंद्र चहल को बाहर बिठाने की बात तो समझ आती है क्योंकि उन्होंने चौथे वनडे में 10 ओवर में 80 रन दिए थे. लेकिन केएल राहुल को बाहर बिठाने का फैसला बेतुका था.
मान लेते हैं कि पिछले मैच में उनके प्रदर्शन के आधार पर उन्हें बाहर किया गया तो फिर उनकी जगह एक बल्लेबाज को प्लेइंग 11 में जगह दी जानी चाहिए थी. आदर्श स्थिति में ऐसा ही होता है कि अगर एक बल्लेबाज को बाहर किया जा रहा है तो दूसरा बल्लेबाज जगह पाता है.
केएल राहुल ने पिछले वनडे में 26 रन ही बनाए थे. लेकिन विराट कोहली आदर्श स्थिति की बजाए अपने फैसलों से चौंकाने का काम करते हैं. सीरीज के सबसे महत्वपूर्ण मैच में उन्होंने एक बल्लेबाज कम खिलाने का फैसला किया. जिसका नतीजा क्या हुआ ये हर किसी ने देखा. कोई भी खेल किंतु-परंतु-अगर-मगर से नहीं खेला जाता है. लेकिन अगर केएल राहुल होते तो विराट और शिखर धवन के आउट होने के बाद मैच की स्थिति संभल सकती थी. अभी तो हालात ऐसे हो गए कि 29वें ओवर तक टीम इंडिया के 6 विकेट गिर चुके थे. जिसके बाद मैच जीतने का सवाल ही नहीं उठता था.
विराट के प्लेइंग 11 को लेकर पहले भी उठे हैं सवाल
विराट कोहली ये बात कह भी चुके हैं कि वो विरोधी टीम को टीम इंडिया के बारे में ‘प्रेडिक्टबल’ नहीं होने देना चाहते. यानि विराट नहीं चाहते कि सब कुछ सेट ढर्रे पर हो. टेस्ट क्रिकेट से लेकर टी-20 तक में वो अपने प्लेइंग 11 में लगातार प्रयोग करते रहते हैं. ये देखकर ही ताज्जुब होता है जब वो टी-20 में तीन तीन विकेटकीपर के साथ मैदान में उतरते हैं. धोनी, पंत और दिनेश कार्तिक तीनों को प्लेइंग 11 में शामिल कर लेते हैं.
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पिछले साल ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भी उन्होंने स्पिन गेंदबाजों के चयन में ये ‘सरप्राइज एलीमेंट’ रखा था. बतौर कप्तान विराट कोहली की ये रणनीति और इसके पीछे की सोच सकारात्मक हो सकती है कि वो विरोधी टीम को चौंकाते हैं. लेकिन चौंकाने का पक्ष ‘अव्यवहारिक’ नहीं होना चाहिए. अगर वो अव्यवहारिक हुआ तो उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे. जैसा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इस सीरीज में देखने को मिला.
(शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं. पिछले करीब दो दशक में उन्होंने विश्व कप से लेकर ओलंपिक तक कवर किया है. फिलहाल स्वतंत्र लेखन करते हैं.)