scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतवीर दास का कहना बिल्कुल सही है, हम दो भारत में रहते हैं जिसके बीच की खाई कम नहीं हो रही

वीर दास का कहना बिल्कुल सही है, हम दो भारत में रहते हैं जिसके बीच की खाई कम नहीं हो रही

एक भारत वह है जिसका प्रतिनिधित्व तमिलनाडु करता है, तो दूसरे का प्रतिनिधित्व बिहार करता है. मानव विकास के संकेतकों के मामले में उन दोनों के बीच बड़ी खाई है जबकि बिजली-पानी के मामले में दोनों एक भारत के हैं.

Text Size:

पांचवें राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) में मिली जानकारियों से एक बार फिर साफ हो गया है कि वास्तव में भारत दो हैं, जैसा कि कॉमेडियन वीर दास ने भी अपने अंदाज में कहा है. तमिलनाडु जिस भारत की मिसाल है उसमें डायरिया के जितने मामले दर्ज होते हैं वे बिहार द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले भारत में दर्ज होने वाले इन मामलों से एक तिहाई से भी कम हैं. शिशु मृत्यु दर के मामले में इन दो भारत में 40 प्रतिशत का और प्रजनन दर के मामले में 60 फीसदी का अंतर है. इसका उलटा यह है कि बिहार में साक्षर महिलाओं का अनुपात या प्रति 1000 आबादी पर डॉक्टर का अनुपात तमिलनाडु में इन अनुपातों का मात्र दो तिहाई है, लेकिन अविकसित और कृशकाय बच्चों का अनुपात 50 प्रतिशत ज्यादा है.

लेकिन मार्के की बात यह है कि जब घरों को बिजली और पेयजल की उपलब्धता की बात आती है तो दोनों राज्य (क्रमशः 95 और 100 प्रतिशत के अनुपात के साथ) एक ही भारत के नज़र आते हैं. और जब बैंक खाता रखने वाली महिलाओं के अनुपात की बात आती है तो उनके बीच अंतर (तमिलनाडु में 92 फीसदी और बिहार में 77 फीसदी) दूसरे पैमानों की तुलना में कम हो जाता है. हम उम्मीद कर सकते हैं कि धीरे-धीरे ज्यादा से ज्यादा भारत तमिलनाडु वाले भारत का प्रतिनिधित्व करने लगेगा. लेकिन प्रजनन दरों में अंतर के कारण बड़ी संख्या में भारतीयों को बिहार की वास्तविकता में जीना पड़ सकता है.

तमिलनाडु वाले भारत में अधिकतर दक्षिणी राज्य और पश्चिम के हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं. इस भारत की प्रति व्यक्ति कुल वार्षिक औसत आय करीब 3000 डॉलर के बराबर है. यह कुल आय के राष्ट्रीय औसत से 75 प्रतिशत ज्यादा है. पूरे भारत की प्रति व्यक्ति आय नाइजीरिया की इस आय से थोड़ी कम ही है. तमिलनाडु की यह आय फिलीपींस की आय के लगभग बराबर है. बिहार की प्रति व्यक्ति आय भारत की इस आय के बमुश्किल एक तिहाई के बराबर है. यह उसे नाइजीरिया वाले खांचे में डाल सकता है, जो प्रति व्यक्ति आय और दुनिया में न्यूनतम मानव विकास सूचकांक के मामले में 215 देशों और भूभागों में 204वें नंबर पर है. उत्तर प्रदेश को नाइजीरिया के पड़ोसी सहेल, माली के खांचे में डाला जा सकता है.


यह भी पढ़ें: क्रिप्टो या डिजिटल करेंसी से डरिए मत, युवाओं को ऑनलाइन सेवाओं के विस्तार का लाभ लेने दीजिए


यानी, निश्चित रूप से भारत दो हैं, जबकि अफ्रीका का सहेल और फिलीपींस अलग-अलग दुनिया में जी रहे हैं. आर्थिक वृद्धि दरों की तुलना करने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि राज्यों की वृद्धि दर के दावे भी उतने ही अविश्वसनीय हैं जितना इसका राष्ट्रीय आंकड़ा है. लेकिन यह साफ है कि निजी निवेश उस भारत की ओर जा रहा है जो फिलीपींस की बराबरी कर सकता है, न कि उस भारत की ओर जिसकी तुलना सहेल से की जा सकती है.

क्या सरकारी निवेश इन पलड़ों को बराबर कर सकता है? उत्तर प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर की जिन परियोजनाओं की खबरें हैं उन्हें देखकर आप सोच सकते हैं कि ऐसा हो सकता है लेकिन हकीकत यह है कि केंद्र तुलनात्मक रूप से अमीर राज्यों को प्रति व्यक्ति के हिसाब से जितना पैसा देता है उसके मुकाबले बिहार को कम ही देता है. और तुलनात्मक रूप से गरीब राज्य को करों के रूप में अपने जो संसाधन पैदा होते हैं वे बेहतर राज्यों के इस संसाधन के टुकड़े भर होते हैं.

ये दो भारत एक-दूसरे के करीब नहीं आ रहे, भले ही उनकी दुनिया एक-दूसरे में समाते हों. उत्तर प्रदेश ने प्रभावशाली एक्सप्रेस-वे बनाए हैं और दावा कर रहा है कि जेवर में वह एशिया का सबसे बड़ा हवाईअड्डा बना रहा है. लेकिन दिल्ली का मौजूदा हवाईअड्डा उतने यात्रियों को सुविधा पहुंचा रहा है जितने यात्रियों को जेवर का फेज-4 संभालेगा, जिसे बनने में अभी दशकों लग जाएंगे और एशिया में दिल्ली से बड़े पांच हवाईअड्डे पहले से मौजूद हैं. वैसे भी जेवर के यात्री पश्चिमी यूपी से उतने नहीं आएंगे जितने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से आएंगे.

पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए पलड़ा बराबर करने का तरीका अधिक समृद्ध राज्यों की ओर पलायन ही है. पूरब से पश्चिम की ओर इस विस्थापन के पैमाने का अंदाजा देश को तब लगा जब 2020 में कोविड के कारण लॉकडाउन के बाद लाखों लोग सैकड़ों मील दूर अपने घरों के लिए पैदल ही निकल पड़े थे. लेकिन आज हरियाणा जैसे राज्य ‘बाहरी’ लोगों को रोजगार देने पर रोक लगा रहे हैं और यह नहीं सोच रहे कि सहेल वाले भारत के लोग कम वेतन पर भी काम करने की बदतर स्थितियों में भी काम करने को तैयार हैं, जिन स्थितियों में हरियाणा के मनमौजी ‘माटी के लाल’ काम करने को तैयार नहीं होंगे. ये ‘लाल’ गुरुग्राम के ग्लास टावरों में काम करना चाहते हैं मगर इसके लिए उन्होंने उपयुक्त शिक्षा नहीं पाई है, क्योंकि हरियाणा के अंदर भी दो हरियाणा हैं.

जब आप दोनों भारत को एक साथ रखते हैं तब इतनी आर्थिक वृद्धि नहीं बनती कि पर्याप्त रोजगार पैदा कर सकें लेकिन बिहार जैसे स्थानों से कम स्वस्थ, कम शिक्षित भारतीयों को तब ज्यादा चोट पहुंचेगी जब विस्थापन की गुंजाइश भी कम हो जाएगी.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अजीत डोभाल मेरे बैचमेट थे. हालांकि, संविधान और सिविल सोसाइटी के बारे में उनकी समझ सही नहीं है


 

share & View comments