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Thursday, 25 April, 2024
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युवाओं को प्रेरणा देगी जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा

बाबा साहब का स्वामी विवेकानंद को सबसे महान बताना उनके स्वामीजी के प्रति सकारात्मक भाव को बताता है.

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देश की राजधानी दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अब विवेकानन्दमय होने जा रहा है. 12 नवंबर 2020 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जेएनयू परिसर में बनी स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. स्वामी विवेकानंद भारत की ही नहीं विश्व भर के युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहे है. उनको युवा पीढ़ी की क्षमता और परिवर्तनकारी शक्ति में बहुत विश्वास था. उन्होंने कहा था कि ‘मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी में है. उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएंगे. वे शेरों की तरह पूरी समस्या का समाधान करेंगे.’

स्वामजी के शिक्षा पर रखे हुए विचार भी आज के दौर में उतने ही प्रासंगिक है जितने तब थे. वह कहते थे ‘वह शिक्षा जो आम लोगों को जीवन के संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने में मदद नहीं करती है, जो चरित्र की ताकत, परोपकार की भावना और एक शेर की हिम्मत को बाहर नहीं लाती है– क्या वह लायक है? वास्तविक शिक्षा वह है जो किसी को अपने दम पर खड़ा करने में सक्षम बनाती है.’ अपने चिंतन में स्वामीजी युवाओं और शिक्षा को हमेशा स्थान देते थे और अब उन्हीं उन्नीसवीं शताब्दी के कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में हो रहा है.

जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित होने की खबर सुनते ही विचार शून्य विचारधारा की लड़ाई करने वाले लोग कई कयास लगा रहे है. लेकिन, अगर हम राजनैतिक दृष्टि वाले चश्मे को निकल पर देखे तो हमे प्रतिमा के अनावरण में सकारात्मकता, हर्ष और उत्साह ही दिखेगा. संयोग से स्वामी जी की प्रतिमा पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा के लग भाग 100 मीटर सामने ही बनाई गयी है. पंडित जवाहरलाल नेहरू जिनके नाम से यह विश्वविद्यालय बना है. वह स्वयं
स्वामी विवेकानंद के बड़े प्रसंशक थे और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे.

पंडित नेहरू द्वारा लिखी गई पुस्तके ‘दि डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ और ‘ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में अनेकों बार स्वामीजी का सन्दर्भ देते है. ‘दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में पंडित नेहरू लिखते है ‘अतीत में निहित और भारत की विरासत में गर्व से भरा हुआ, विवेकानंद जीवन की समस्याओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में अभी तक आधुनिक थे और भारत के अतीत और उनके वर्तमान के बीच एक तरह का पुल थे. वह बंगाली और अंग्रेजी में एक शक्तिशाली वक्ता और बंगाली गद्य और कविता के एक सुंदर लेखक थे. वह एक बेहतरीन शख्सियत थे, कशमकश और गरिमा से भरे, अपने और अपने मिशन के प्रति निश्चिंत और एक ही समय में एक गतिशील और ज्वलंत ऊर्जा से भरपूर और भारत को आगे बढ़ाने के जुनून के साथ थे. वह उदास और हिंदू मन को हतोत्साहित करने के लिए एक टॉनिक के रूप में आए और उन्होंने आत्मनिर्भरता को अतीत से जोड़ा.’ ‘विवेकानंद ने बहुत सी बातें कीं, लेकिन उनके भाषण और लेखन में एक निरंतरता थी जो थी ‘अभय’- निडर रहो, मजबूत बनो. उनके लिए मनुष्य कोई दुखी, पापी नहीं था, बल्कि देवत्व का एक हिस्सा था. उसे किसी भी चीज से क्यों डरना चाहिए? ‘अगर दुनिया में कोई पाप है तो वह कमजोरी है; सभी कमजोरी से बचें, कमजोरी पाप है, कमजोरी मृत्यु है. यही महान सबक उपनिषद में भी है. अपनी पुस्तक में पंडित नेहरू स्वामीजी के भारत में दिए हुए व्याख्यानो पर आधारित पुस्तक ‘कोलंबो से अल्मोड़ा’ का सन्दर्भ भी देते है.


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पिछले साल इस प्रतिमा को कुछ असामाजिक तत्वों ने नुकसान पहुंचाया था स्वाभाविक है वह छात्र और युवा तो हो ही नहीं सकते क्योंकि कोई छात्र, कोई युवा उन स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को क्यों नुकसान पहुंचाएगा. जिन्होंने अपना पूरा जीवन मनुष्य निर्माण के कार्य में -भारत के पुनरुथान के कार्य में लगा दिया हो, जो उत्कृष्ट चरित्र, निर्भीकता , निडरता, साहस के पर्यायवाची है, जिन्होंने भारत को पैर-पैर चलकर जाना, कभी घोड़ा गाड़ी में सफर किया तो कभी कोई ट्रेन की टिकट करवा देता तो उसमे दिनों-दिनों तक भूखे रहे , कभी पेड़ के निचे सोये तो कभी बक्से में. भूख ,प्यास , सर्दी , गर्मी का सामना तो किया ही साथ ही साथ जब विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने गए तो रंग भेद का सामना भी करना पड़ा था. लेकिन भारत माता के लिए स्वामीजी ने यह सब कुछ हसते-हसते सह लिया और 11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शहर शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सभा में भारत को विश्व विजयी बना दिया था. यह उन्हीं स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया था, जिनके बारे में बाबा साहब आम्बेडकर ने कहा था की ‘हाल की शताब्दियों में भारत में जन्में सबसे महान आदमी, गांधी नहीं, बल्कि विवेकानंद है.

बाबा साहब का स्वामी विवेकानंद को सबसे महान बताना उनके स्वामीजी के प्रति सकारात्मक भाव को बताता है. यह वही स्वामी विवेकानंद है, जिनके बारे में महात्मा गांधी ने कहा था की ‘उनके हृदय में दिवंगत स्वामी विवेकानंद के लिए बहुत सम्मान है. उन्होंने उनकी कई पुस्तकें पढ़ी हैं. स्वामजी को पढ़कर उनका भारत के प्रति और प्रेम बढ़ गया. यह वही स्वामी विवेकानंद है जिनसे बाल गंगाधर तिलक , नेताजी सुभाषचंद्र बोस, बिपिन चंद्र, योगी अरविन्द और पता नहीं कितने ना स्वतंत्रता सेनानी प्रभावित थे. यह वही स्वामी विवेकानंद है जिनके प्रसंशक विनोबा भावे, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सर्वेपल्ली राधाकृष्णन रहे है.

यह वही स्वामी विवेकानंद है जिनसे प्रेरणा पाकर जमशेतजी टाटा ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की स्थापना की. यह वही स्वामी विवेकानंद है जिनके कन्याकुमारी में बने स्मारक के निर्माण के लिए समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया , साम्यवादी नेता श्रीमती रेणु चक्रवर्ती द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक या डीएमके) के संस्थापक और तमिलनाडु के प्रथम मुख्यमंत्री अन्नादुराई ने सहयोग भी दिया और स्वामीजी की प्रशंसा भी की थी. इस स्मारक के निर्माण के लिए मात्र 3 दिन में उस समय दिल्ली में उपस्थित सभी 323 सांसदों ने एक मत के साथ हस्ताक्षर करके समर्थन किया था.


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यह वही स्वामी विवेकानंद है जिनसे महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला प्रभावित थे, जिनसे मिलने के लिए उस समय के दुनिया के सबसे अमीर आदमी रॉकफेलर मिलना चाहते थे. पता नहीं कितने लेख स्वामी विवेकानंद के मात्र प्रभाव पर ही लिखे जा सकते है और जब ऐसे महान त्यागी, कर्म योगी संन्यासी की प्रतिमा को कोई नुकसान पहुंचते है तो स्वाभाविक है खून तो खोलता ही है हर भारतीय का लेकिन फिर स्वामीजी का जीवन याद आ जाता है जिन्होंने अपने पूरे जीवन भर हज़ारों परेशानियों का सामना किया. लेकिन लाख परेशानियों का सामना करने के बाद भी स्वामीजी ने किसी को घृणा का शब्द तो दूर की बात कभी किसीकी शिकायत तक नहीं की. उन्होंने तो पूरा जीवन महुष्य निर्माण के कार्य में लगा दिया निस्वार्थ भाव से.

स्वामी विवेकानंद की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रतिमा के होने का मतलब है. हर छात्र का भारतीयता के रंग में रंग जाना, भारत के प्रति, भारतीय संस्कृति के प्रति स्नेह, सम्मान, प्रेम, लगाव का प्रतिबिंबित होना, नि:स्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा स्वामी जी से लेना, संघर्ष से ना डरना, सकारात्मक, रचनात्मक कार्य में लगे रहना ,अपने दायित्व
के प्रति जवाबदेह होना, अनीति से लड़ना , दुर्गुणों से दुर रहना , होश के साथ जोश भी रहना, राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था रखना सबसे ऊपर भारत माता जिसने हमे सबकुछ दिया है. उसको पुनः विश्व गुरु बनाए के कार्य में लगना क्योकि इस कार्य में शिक्षकों और युवाओं की, विद्यार्थियों की सबसे बड़ी भूमिका रहेगी.

(लेखक निखिल यादव -विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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1 टिप्पणी

  1. स्वामी विवेकानंद प्रेरणा स्त्रोत हैं. एक स्मारक काम करने के लिये प्रेरित करेगा इस महान देश प्रेमी की.

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