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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतसंयुक्त राष्ट्र हो या कोरोना का मामला, नरेंद्र मोदी बार-बार बुद्ध का नाम क्यों लेते हैं

संयुक्त राष्ट्र हो या कोरोना का मामला, नरेंद्र मोदी बार-बार बुद्ध का नाम क्यों लेते हैं

विदेशों में हिंदुत्व की राजनीति खासकर उसके सांप्रदायिक चरित्र की कोई प्रतिष्ठा नहीं है. वहां तो बुद्ध का ही नाम चलता है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ को संबोधित करते हुए आष्टांगिक मार्ग का जिक्र किया.

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आषाढ़ पूर्णिमा के दिन यानि 4 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ द्वारा आयोजित समारोह को ऑनलाइन संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तथागत गौतम बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का उल्लेख किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ‘भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग समाज और राष्ट्र के कल्याण का रास्ता दिखाता है. यह करुणा और दया के महत्व पर प्रकाश डालता है.’ उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म लोगों को आदर करना सिखाता है.

इस आलेख में हम जानेंगे कि गौतम बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग क्या है और क्या प्रधानमंत्री खुद उस मार्ग पर चलते हैं या फिर ये वचन और कर्म के बीच दूरी का एक और मामला है. इसके लिए हम आष्टांगिक मार्ग के सभी आठ तत्वों को जानेंगे और साथ में प्रधानमंत्री द्वारा उसपर अमल करने या न करने की मीमांसा करेंगे. हम ये भी समझने की कोशिश करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र से लेकर कोरोना से लड़ने की बात करते समय मोदी बुद्ध का नाम क्यों लेते हैं.

बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग की नींव चार महान सत्य– दुख, समुदय, निरोध और मार्ग पर आधारित है. दुख, तृष्णा और दुख के निवारण व अंततः निर्वाण की प्राप्ति हेतु गौतम बुद्ध ने आठ मार्गों का उल्लेख किया था, जिसे आष्टांगिक मार्ग कहते हैं. सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, समय समाधि ये आष्टांगिक मार्ग के अंग हैं. दुर्भाग्यवश इस आध्यात्मिक व वैज्ञानिक आष्टांगिक मार्ग को दिग्भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है.


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आष्टांगिक मार्ग और वर्तमान शासन

सम्यक दृष्टि के अनुसार उपर्युक्त चार महान सत्य पर विश्वास रखने की बात की गई है. जिसमें स्पष्टता, ईमान सहित निष्पक्ष नज़रिए की आवश्यकता होती है. इसमें संतुलन का बहुत ज्यादा महत्व है. वर्तमान शासन और सरकारी ढांचे में आज निष्पक्षता और ईमानदारी दुर्लभ है. व्यापक स्तर पर घोटाले जारी हैं. आपदा को अवसर बनाने की मुहिम कई शक्ल में जारी है. कोरोना जैसी भयानक महामारी के दौर में प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष होने के बावजूद पीएम केयर्स फंड का गठन हुआ है. इसे एक निजी फंड के तौर पर बनाया गया. पीएम केअर्स फंड का सरकारी ऑडिट नहीं हो सकता. सूचना का अधिकार अधिनियम यानी आरटीआई के तहत भी इस कोष का हिसाब-किताब नहीं जाना जा सकता. यह भारत के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) के अधीन भी नहीं है. यह सब सम्यक दृष्टि तो कतई नहीं है.

सम्यक संकल्प के अंतर्गत मानसिक और नैतिक विकास की संकल्पना की जाती है. संकल्पना को यथार्थ में लाने हेतु तपस्या, कर्मठता, करुणा और साधना का सहारा लिया जाता है. गरीबी, भ्रष्टाचार को दूर कर विकास के वादे पर आई सरकार आज अपने संकल्प से मीलों दूर भटक चुकी है. लोकतंत्र में सवाल व आवाज़ उठाने वालों को जेल की चहारदीवारी में धकेला जा रहा है. कालाधन वापस लाने के नाम पर बनी सरकार आज इस बारे में मौन है. विदेशों में जमा देश के गरीबों का लूटा हुआ पैसा वापस लाने या पंद्रह लाख रुपया हर नागरिक के बैंक खाते में जमा करने के संकल्प की मर्यादा नहीं रखी गई. उल्टे बैंकों का धन लूटने वालों को देश से बाहर जाने दिया गया. साथ ही सरकारी बैंकों द्वारा 50 पूंजीपतियों के कुल 68 हज़ार करोड़ रुपये के ऋण को राइट ऑफ यानि खाते से हटा दिया गया है.

सरकार के वचन और कर्म के बीच दूरी

सम्यक वाक हानिकारक व झूठ बाते बोलने को मना करती है. इसके अनुसार मनुष्य को सदैव मधुर व सत्य बोलने को आगाह किया जाता है. जबकि सत्ताधारी दल लगातार अपने वादे तोड़ रहा है. वचन की महत्ता खत्म होती जा रही है. जून माह में गलवान घाटी के हिंसात्मक संघर्ष में कुल 20 जवान शहीद हुए हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री का ऐसा अनपेक्षित बयान कि ‘न कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है’ असंवेदनशीलता की पराकष्ठा है. यह बयान सैनिकों के बलिदान, पराक्रम और शौर्य के साथ खिलवाड़ है. सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद के नाम पर मां-बहन की गालियां बकी जा रही हैं. और ऐसे लोगों को शासक दलों द्वारा प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. हेट स्पीच इस समय सोशल मीडिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है और इसमें सबसे आगे वे लोग हैं जो बीजेपी की विचारधारा से जुड़े हैं.

सम्यक कर्म के अनुसार ऐसे कर्म करने की मनाही है, जिनसे दूसरों को कष्ट और क्षति पहुंचे. आज धर्म और जाति का सिक्का उछाल कर लोगों के बुनियादी सवालों की अनदेखी हो रही है. कोरोना काल में कामगार किसान-मजदूर वर्ग का आर्थिक व सामाजिक उत्पीड़न हुआ, वहीं अमीरों को कष्ट न हो, इसके इंतजाम किए गए. अस्पताल और विद्यालय को बहस के केंद्र बिंदु से साजिशन बाहर रखा गया है. कर्मठता होती तो सरकार का ध्यान इन बुनियादी संरचनाओं को मजबूत करने पर होता. इनकी अनदेखी की कीमत अब देश को चुकानी पड़ रही है. नतीजा ये है कि भारत अब कोरोना के सबसे अधिक मामले और मृत्यु की दौड़ में पहले स्थान पर पहुंचने के करीब है. सम्यक कर्म की एक अभिव्यक्ति ये भी होती है कि भारत अपने पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर रखता. लेकिन ज्यादातर पड़ोसी देशों से हमारा कोई न कोई विवाद चल रहा है. सम्यक कर्म बोलने की नहीं, करके दिखाने की चीज है. इस मामले में वर्तमान सरकार को अपने अंदर झांकना चाहिए.


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सम्यक जीविका के अनुसार हमें चोरी, हिंसा और दूसरों को कष्ट पहुंचा कर धन कमाने की जगह, परिश्रम के जरिए धन अर्जित कर आजीविका चलानी चाहिए. ऐसा सम्भव करने हेतु शासन की मदद अपेक्षित और महत्वपूर्ण होती है. महंगाई से गरीब-किसान परेशान हैं और सरकार उन्हें कोई राहत नहीं दे रही है. अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम होने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम में जबरन रिकार्ड तोड़ वृद्धि की गई है. ताजा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत की बेरोजगारी दर 6.1% दर्ज की गयी. यह बेरोजगारी दर 45 वर्ष के पुराने रिकार्ड को तोड़ चुकी है. सर्वाधिक युवाओं के देश में ऊर्जा अथाह है पर युवाओं के हाथों में काम नहीं है. बेरोजगारी अपने साथ कई तरह के अपराध और सामाजिक असंतोष लेकर आती है. लोग सम्यक जीविका को अपना सकें, इसमें सरकार से जो सहयोग अपेक्षित है, वह लोगों को नहीं मिल पा रहा है.

जनता की तकलीफ शासन के एजेंडे पर नहीं

सम्यक प्रयास से मनुष्य खुद-ब-खुद सुधरने की कोशिश करता है. अपनी पुरानी गलतियों से सीख-सबक लेकर आगे बढ़ता है, जिसके लिए अहंकार को नष्ट करना जरूरी होता है. यह विचार बेहद सामयिक है. नोटबंदी से भारी तबाही, जीएसटी के कारण छोटे व्यपारियों पर कहर, सामाजिक असमानता, द्वेष, चरमपंथ, मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं से लोग परेशान हैं लेकिन सत्तासीनों ने इसपर ध्यान देना गैरमुनासिब समझा. अंततः आर्थिक मंदी का दौर आया. लेकिन इससे सबक लेने की जगह सरकार ने रिजर्व बैंक की स्वायत्ता पर भी हमला कर उसके संचित धन के एक हिस्से, 1.76 लाख करोड़ रुपए पर कब्जा कर लिया है. दूसरी ओर, मॉब लिंचिंग के अभियुक्तों को सत्ताधारी लोग मालाएं पहना रहे हैं.

सम्यक स्मृति के अंतर्गत मन को भोग व विलास से दूर रख उसे शुभ विचारों से सुसज्जित करना चाहिए. तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के रास्ते देशवासियों को संज्ञान है कि प्रधानमंत्री अपने वस्त्रों और साज सज्जा पर कितना ध्यान देते हैं. प्रधानमंत्री और सरकार की छवि को निखारने के लिए करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से खर्च किए जाते हैं. सुख सुविधा की सत्ताधारियों की संस्कृति जस की तस जारी है, बल्कि उन पर अब पहले से कहीं ज्यादा जोर है.

सम्यक समाधि के अनुसार उपरोक्त सातों अंगों का ध्यान करने पर शीलता, एकाग्रता व निर्वाण की प्राप्ति होती है. यह समाधि धर्म की समुद्र में लगाई गई छलांग मानी जाती है. निर्वाण की प्राप्ति इसका मुख्य लक्ष्य होता है. सुख-दुख की अनुभूति व दुख की समाप्ति के बाद शून्य की प्राप्ति पूरे मार्ग का प्रमुख लक्ष्य है. हम एक राष्ट्र के तौर पर इस दिशा में बढ़ रहे हैं, ऐसा दावा करना भी आज मुमकिन नहीं है.


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बीजेपी के लिए बुद्ध विश्वास नहीं, राजनीति की वस्तु हैं

सवाल उठता है कि जब बीजेपी, आरएसएस और खुद प्रधानमंत्री बुद्ध के बताए आष्टांगिक मार्ग पर नहीं चल रहे हैं और बुद्ध के विचारों से उनका कोई लेना देना भी नहीं है, तो वे बार-बार बुद्ध का नाम क्यों लेते हैं? बुद्ध का जिक्र प्रधानमंत्री पहली बार नहीं कर रहे हैं. खासकर विदेश जाने पर या विदेशी श्रोताओं को संबोधित करते हुए वे बुद्ध को भारत की पहचान के तौर पर पेश करते हैं जबकि भारत के अंदर राजनीति करते समय वे सांप्रदायिकता की आंच तेज कर देते हैं. भारत में हिंदुत्व की राजनीति और विदेशों में छवि पेश करने के लिए बुद्ध का उल्लेख बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली में भी मोदी ने बुद्ध को ही भारत की पहचान के तौर पर पेश किया.

विदेशों में हिंदुत्व की राजनीति खासकर उसके सांप्रदायिक चरित्र की कोई प्रतिष्ठा नहीं है. वहां तो बुद्ध का ही नाम चलता है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने बौद्ध परिसंघ को संबोधित करते हुए आष्टांगिक मार्ग का जिक्र किया. इसे बुद्ध के प्रति उनकी आस्था या सम्मान की जगह एक राजनेता की रणनीति के तौर पर देखना चाहिए.

   सन्दर्भ-

  • गौतम बुद्ध व उनके विचार; आर्य आष्टांगिक मार्ग-आनंद श्रीकृष्ण
  • जर्नल ऑफ लॉ एंड कंफ्लिक्ट रेस्योलूशन रिव्यू, एशेंसल एलिमेंट्स ऑफ ह्यूमन राइट्स इन बुद्धिज्म- उत्तम कुमार, अकेडमिक जर्नल्स, बैज अप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेट्री, डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ साइंसेज़, युनिवर्सिटि ऑफ मुंबई
  • द प्रिंसिपल्स ऑफ बुद्धिस्ट साइकोलॉजी- डेविड जे. कल्पना, स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ न्यू प्रेस
  • धम्मपद में आष्टांगिक मार्ग का स्वरूप-आलोक भारद्वाज, रीडिंग्स इन इंडियन हिस्ट्री, ए. के. सिन्हा (2003)
  • बौद्धधर्म के पच्चीस सौ वर्ष; पीवी बापट

(लेखक डिपार्टमेंट ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज़, दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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