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शुक्रवार, 18 अप्रैल, 2025
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आप क्रोनोलॉजी समझिए, मोदी ने कोविड-19 की दवा के निर्यात को लेकर ट्रंप के सामने घुटने नहीं टेके

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल लंबे समय से पेटेंट-मुक्त और सस्ती जेनेरिक दवाएं हैं. भारत के पास दुनिया के लिए इनके उत्पादन की विशिष्ट क्षमता है. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, इसे बेकार नहीं जाने देना चाहिए.

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डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी दोनों का बचाव करता दिखने के लिए आपके काफी दुस्साहसी होने की दरकार होती है. भले ही मामला दो-तीन रुपये या तीन सेंट में मिलने वाली दवा की गोली का हो, जो मेरे पैदा होने से दो साल पहले से बाज़ार में है, और जो मेरे 32 का होते-होते पेटेंट से मुक्त हो चुकी थी. मैं हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की बात कर रहा हूं.

और आप बिल्कुल सनकी माने जाएंगे यदि उपरोक्त के साथ आप अमेरिका विरोधवाद को भी चुनौती दे रहे हों, जो हमारे सर्वाधिक टिकाऊ वैचारिक पाखंडों में से है. टाइटेनियम में ढला.

लेकिन चार दशक पत्रकारिता में बिताने और तमाम पक्षों का खतरा—और गालियां—मोल लेने के बाद, मैं बिल्कुल खरी बात कहना चाहूंगा.

सबसे पहले तो, जैसाकि इन दिनों लोकप्रिय जुमला है: आप क्रोनोलॉजी समझिए. व्हाइट हाउस के दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पहली बार ट्रंप ने 19 मार्च को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, या इसके अमेरिका में लोकप्रिय नाम एचसीक्यू का ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था कि कोरोनावायरस के मरीज़ों में एचसीक्यू और ज़ेड-पैक (एंटीबायोटिक एज़िथ्रोमाइसिन का अमेरिकी ब्रांड नाम) के इस्तेमाल के उत्साहजनक परिणाम दिखे हैं.

ट्रंप की चाहे जिस बात के लिए भी आलोचना की जाए, उनसे कम-बयानी या सतर्क टिप्पणी की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. तो उन्होंने इसे एक गेम-चेंजर करार दिया. उन्होंने 21 मार्च को अपने ट्वीट के ज़रिए दोबारा अपनी बात पर ज़ोर दिया.
अगले दिन 22 मार्च को, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक अधिसूचना जारी कर एचसीक्यू को स्वास्थ्यकर्मियों और कोविड-19 मरीज़ की देखभाल करने वाले परिजनों के लिए एक केमोप्रोफिलैक्टिक (निवारक) दवा घोषित कर दिया. इसी के साथ इसकी खरीदारी की होड़ शुरू हो गई.

अमेरिकी मीडिया ने जहां, हमेशा की तरह, प्रिसक्रिप्शन दवाओं को बढ़ावा देने में अपने पद का ‘दुरुपयोग’ करने के लिए ट्रंप पर निशाना साधा और उनका मज़ाक उड़ाया, वहीं अमेरिका ने भारत की बड़ी जेनेरिक दवा कंपनियों को बड़े ऑर्डर दे डाले. इस बात का सर्वप्रथम खुलासा दिप्रिंट की बेहतरीन स्वास्थ्य एवं फार्मा रिपोर्टर हिमानी चांदना ने 22 मार्च को प्रकाशित अपनी खबर में किया. उसी दिन भारत ने एचसीक्यू के निर्यात पर पाबंदी की अधिसूचना निकाल दी.
इसकी जमाखोरी किए जाने और घबराए लोगों द्वारा बिना चिकित्सकीय सलाह के इसका सेवन किए जाने के खतर के मद्देनज़र, केंद्र सरकार ने 26 मार्च को एक अधिसूचना के ज़रिए इसे अनुसूची एच1 में डाल दिया, जिससे इसकी खुदरा बिक्री पर रोक लग गई.

याद रहे कि ये रोक अमेरिका द्वारा, और शायद ब्राज़ील द्वारा भी, दवा का ऑर्डर किए जाने के बाद लगाई गई. एक सामान्य, लंबे समय से पेटेंट-मुक्त और सस्ती दवा के इस ऑर्डर के एवज़ में भारत की निजी क्षेत्र की कतिपय दवा कंपनियों को कुछ अग्रिम भुगतान भी किया गया. ब्राज़ील को पैरासिटामोल की भी ज़रूरत थी.

डेमोक्रेट नेताओं और मीडिया द्वारा ‘डॉ. ट्रंप’ का मज़ाक उड़ाए जाने के बाद, 20 मार्च को, न्यूयॉर्क के गवर्नर और इस समय उदारवादियों के चहेते एंड्रयू कोमो ने एंकर शॉन हैनिटी को बताया कि वे एचसीक्यू और एज़िथ्रोमाइसिन की 10,000 खुराकें मंगाकर अपने राज्य के 1,100 मरीज़ों पर परीक्षण के लिए जारी करने जा रहे हैं. उल्लेखनीय है कि न्यूयॉर्क राज्य इस वक़्त कोविड-19 महामारी का वैश्विक केंद्र बना हुआ है.

गत शनिवार (4 अप्रैल) की सुबह ट्रंप ने मोदी को कॉल किया. शाम को अपने संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि मोदी से उन्होंने ‘हमारे ऑर्डर किए’ गए एचसीक्यू की आपूर्ति सुनिश्चित कराने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि भारत बड़ी मात्रा में इस दवाई का निर्माण करता है, जोकि सच है. साथ ही, ट्रंप ने ये भी कहा कि भारत को भी इस दवा की बहुत ज़रूरत है (सच) क्योंकि उसकी खुद की 1.5 अरब की आबादी है (सही नहीं).

रविवार, 5 मार्च की सुबह, ट्रंप ने एक बार फिर मोदी से बात की. सोमवार शाम (वाशिंगटन के समयानुसार, यानि भारतीय समयानुसार मंगलवार के तड़के 4 बजे) की प्रेस ब्रीफिंग में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि रविवार की सुबह (वाशिंगटन के समयानुसार) उन्होंने एक बार फिर मोदी से बात की और संभावना है कि वह अमेरिका द्वारा पहले से ही ऑर्डर की गई दवा एचसीक्यू की आपूर्ति की अनुमति देंगे. इस पर पत्रकार ने पूछा कि भारत यदि इनकार कर देता है तो वह क्या करेंगे, क्या प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करेंगे? ट्रंप ने कहा कि उन्हें नहीं लगता भारत ऐसा करने की सोच रहा है, क्योंकि भारत और अमेरिका की परस्पर अच्छी निभ रही है. और ये सब कहने के बाद उन्होंने जोड़ा, बाद में कौंधे विचार के तौर पर, कि यदि भारत इनकार करेगा तो बेशक प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की जा सकती है, क्यों नहीं?

इसके बाद सुबह हम नींद से आक्रोश के माहौल में जगते हैं. ट्रंप ने मोदी की बांह मरोड़ी और उन्हें मानना पड़ा. भारत ने एक बार फिर अमेरिकियों के सामने घुटने टेके. मोदी ने ट्रंप से भारत की संप्रभुता और कोविड-19 मरीजों की जान का सौदा किया.

और अब वो छोटी-सी बात जिसे सस्पेंस के लिए मैंने अपनी क्रोनोलॉजी से जानबूझकर बाहर रखा था. तीन प्रतिष्ठित मीडिया संगठन एचटी ग्रुप के मिंट, द हिंदू, और (इस नाम को जोड़ने की अनुमति चाहूंगा) दिप्रिंट सोमवार 6 अप्रैल को, ट्रंप के सोमवार शाम के संवाददाता सम्मेलन से 12 से 18 घंटे पहले, खबर दे चुके थे कि भारत पहले ही प्रतिबंध हटाने का फैसला कर चुका है.

वास्तव में, द हिंदू और मिंट ने तो इस बात का भी ज़िक्र किया था कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेएर बोल्सोनारो का भी फोन आया था, और उनके देश के लिए भी प्रतिबंध हटा लिया गया.

इस तरह ट्रंप की आज सुबह की ‘धमकी’ से पहले ही फैसला किया जा चुका था. कृपया वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच समय के अंतर पर गौर करें.

लेकिन तथ्य तो उबाऊ होते हैं. तथ्यों को अपने ‘ट्यूबलाइट’ आक्रोश में बाधक क्यों बनने दिया जाए.

एचसीक्यू और पैरासिटामोल बहुत पहले पेटेंट के दायरे से मुक्त हो चुकीं सस्ती, जेनेरिक और बड़ी मात्रा में निर्मित दवाएं हैं. इस समय भारत के पास दुनिया के लिए इनके उत्पादन की विशिष्ट क्षमता है. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, इसे बेकार नहीं जाने देना चाहिए. कोविड-19 ने अक्सर थोक में बेची जानेवाली इन दवाइयों को दुनिया के लिए मूल्यवान वस्तु बना दिया है. यदि राष्ट्राध्यक्ष इसके लिए फोन कर रहे हैं, तो ये भारत के लिए बेहतरीन अवसर है. वैसे पैरासिटामोल के लिए कच्चा माल या एपीआई (सक्रिय औषध रसायन) चीन से आता है. वास्तव में, वुहान से.

और अमेरिका के सामने समर्पण? 1960 के दशक की स्थिति क्या थी, जब हम भोजन के लिए जहाज़ों में भरकर आने वाली सहायता पर निर्भर थे? वो हमारा सर्वाधिक अमेरिका-विरोधी दशक भी था. आज अमेरिकियों को एक साधारण दवा की आवश्यकता है, और हमें उन्हें मना कर देना चाहिए? यही कारण है कि हम विचारशून्य अमेरिका-विरोध को हमारा सबसे टिकाऊ और ठोस पाखंड मानते हैं.

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