संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपने अदालत की तीसरी आधिकारिक भाषा बना लिया है. लगभग नब्बे लाख की आबादी के इस देश में दो तिहाई प्रवासी हैं. पूरी आबादी का लगभग एक तिहाई भारतीय हैं. कहा गया है कि कानूनी प्रक्रिया को भारतीयों के लिए सुगम बनाने के मद्देनजर ये फैसला लिया गया है.
पर प्रवासी भारतीयों में ज्यादातर केरल, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश के हैं. हिंदी भाषी राज्यों में उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा लगभग डेढ़ लाख लोग हैं. ऐसे में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाना कानूनी प्रक्रिया को सुगम्य बनाने से ज्यादा भारत के नाते हिंदी को सम्मान देने जैसा है. क्योंकि जिन राज्यों के लोग वहां पर तादाद में हैं, उन राज्यों में ही हिंदी उतनी प्रसिद्ध नहीं है. पर ध्यान देना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरब से कई दफे बातचीत की और इनमें व्यापार को बढ़ाने को लेकर कई महत्त्वपूर्ण फैसले लिए गए. तो ये संयुक्त अरब अमीरात का भारत को रिटर्न गिफ्ट जैसा है.
वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी भाषा के मूर्धन्य योद्धा पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने भी अपना चैनल रिपब्लिक भारत के नाम से हिंदी में लॉन्च कर दिया. लॉन्चिंग के मौके पर अर्नब ने स्वीकार किया कि उनकी हिंदी में लिंगदोष आएगा पर वो हिंदी ‘बोलेंगे. पत्रकार होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अर्नब गोस्वामी के हृदय में सॉफ्ट कॉर्नर किसी से छुपा नहीं है. ये भी गोस्वामी का रिटर्न गिफ्ट जैसा ही है.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंदी का प्रयोग बढ़ा है
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को लेकर हमारी सबसे बड़ी याद श्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में दी हुई स्पीच ही है. इसे सामान्य ज्ञान के प्रश्न के तौर पर याद करते हुए समझ नहीं आता था कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में नहीं बोलेंगे तो किसमें बोलेंगे- हरियाणवी में?
भारत ने दुनिया को जीरो के अलावा बहुत सारी चीजें दी हैं जिनमें से एक है हिंदी भाषा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश को एकजुट करने का भार हिंदी पर आ पड़ा था. उत्तर भारत में स्वच्छंद विचरण करने वाली हिंदी ने उस वक्त अपना काम बखूबी निभाया, पर आजादी के बाद वही हिंदी गैर-हिंदी भाषी राज्यों के लिए चिढ़ का कारण बनती गई.
जैसे बटुकेश्वर दत्त को हम आजादी के पहले के योगदान के लिए बार-बार याद करते हैं पर ये भूल जाते हैं कि आजादी के बाद दत्त ने इसी भारत में गरीबी में जीवन काटा था और सरकारी संस्थानों में उनसे स्वतंत्रता सेनानी कार्ड प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता था. हिंदी का भी वैसा ही हाल होता अगर सरकार ने इसे सुरक्षा देते हुए राज्यभाषा ना बना दिया होता.
पर सितंबर के महीने में हिंदी पखवाड़ा जैसे सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हिंदी पिछड़ती गई थी और सूचना क्रांति के बाद अंग्रेजी ने इसे लील ही लिया था. सन् 2000 के बाद तो ऐसा लगता था कि शीर्ष पदों पर हिंदी सिर्फ श्री अटलबिहारी वाजपेयी और श्री राजनाथ सिंह ही बोलते हैं.
मध्यवर्गीय परिवारों में ये फैशन चल पड़ा था कि मेरा बेटा/बेटी तो हिंदी बोलता/बोलती ही नहीं. क्रिकेटर हों या फिल्म कलाकार, सब अंग्रेजी बोलते थे. हां, कथित बाबा हिंदी में प्रवचन करते थे पर हाल-फिलहाल में सद्गुरू जग्गी वासुदेव अंग्रेजी में बोलते नजर आए तो हिंदी बोलनेवाले उनकी तुलना में कम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नजर आए.
लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद हिंदी अचानक से सर्वमान्य भाषा बनने लगी. इस बात को लेकर मतभेद हो सकते हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भारत देश की तकरीबन हर अच्छी चीज की शुरुआत का साल 2014 ही रख दिया है. पर अगर सोशल मीडिया और पॉपुलर ट्रेंड्स की बात करें तो वाकई मोदी जी के आने के बाद हिंदी का प्रयोग बढ़ा है.
फिल्म स्टार्स समेत राजनेता और व्यापारी भी हिंदी में ट्वीट करने लगे हैं
आलिया भट्ट, परिणीति चोपड़ा, प्रियंका चोपड़ा और बाकी कई फिल्म स्टार्स अपनी पिक्चर्स के कैप्शन अब हिंदी में लगाने लगे हैं. वेब सीरीज में काफी जाना-पहचाना नाम अमोल पराशर तो अक्सर अपनी इंस्टास्टोरीज पर पिक्चर्स के साथ लिखते हैं – काफी कूल. वह ‘काफी’ शब्द से काफी इम्प्रेस नज़र आते हैं.
अगर गौर फरमाएं तो ये ‘काफी’ शब्द हिंदी वेबसाइट्स की एंटरटेनमेंट बीट से फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों के सामाजिक जीवन में आया.
फ़िल्मी सितारों ने भले अपने नाम हिंदी फिल्मों से ही चमकाए हों लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्हें अंग्रेजी बोलते ही देखा जाता था. सलमान खान, कपिल शर्मा इत्यादि के शो में कलाकारों से हिंदी बुलवाकर उनका परीक्षण किया जाता था. आलम ये था कि उनके सही हिंदी बोलने पर भी लोग हंसते थे और गलत बोलने पर भी हंसते थे.
हिंदी भाषा की एक लहर
लेकिन एक दम से सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा की एक लहर सी आ गई है. नई हिंदी का साहित्य, हिंदी की वेब सीरीज, हिंदी के कैप्शन, स्नॉबिश समझे जाने वाले राजनेताओं के हिंदी में बयान और अब पत्रकारिता से जुड़ी बड़ी-बड़ी शख्सियतें भी हिंदी बोलने लगे हैं. अपनी कठिन अंग्रेजी के लिए जाने गये शशि थरूर ने बाकायदा एक शो किया जिसमें उन्होंने अपनी परिष्कृत हिंदी का बेहतरीन नजारा पेश किया. शशि थरूर तो सोशल मीडिया पर अब राजस्थान दिवस की शुभकामनाएं भी देने लगे हैं.
परिष्कृत हिंदी से परेशान रहनेवाले हिंदी साहित्य के पाठकों के लिए अचानक ‘नई हिंदी’ के कूल लेखक आ गये. सत्या व्यास, नीलोत्पल मृणाल, दिव्य प्रकाश जैसे नाम सोशल मीडिया पर जाने पहचाने बन गये और अब इनके उपन्यासों पर फिल्में बनने की भी बातें चल पड़ी हैं. बहुत पहले हिंदी उपन्यासों पर फिल्में बनती थीं पर एक लंबे समय से ये परंपरा विलुप्त हो गई थी. हाल-फिलहाल में हिंदी फिल्में चेतन भगत के अंग्रेजी उपन्यासों पर जरूर बनीं पर हिंदी उपन्यास उपेक्षित ही रहे थे. आलम ये था कि जब मनोज वाजपेयी ने ये कहना शुरू किया कि मैं तो हिंदी में ही स्क्रिप्ट पढ़ता हूं तो लोग ये सुनकर भावुक होने लगे थे. पर अब स्थिति बदल गई है.
लॉन्चिंग के दिन अंग्रेज़ी में चिल्लाने वाले अर्णब के मुंह से हिंदी भाषा के बारे में सुनना काफी रोमांचक रहा. उससे भी ज़्यादा अर्णब का ये बोलना कि मैं हिंदी अच्छे से नहीं बोल पाता हूं. मैं जेंडर को इधर उधर जार देता हूं लेकिन मैं हिंदी में कोशिश कर रहा हूं. लड़खड़ाती हिंदी बोलने के बाद अर्णब ने हिंदी के पत्रकारों को माइक देते हुए कहा कि ये लोग हिंदी के अच्छे जानकार हैं और मेरी हिंदी ठीक कर देंगे.
ट्विटर पर इंग्लिश के एक और पत्रकार ने एक दिन बड़ी ही हास्यास्पद बात लिखी- यार, जब तक मैं हिंदी में ट्वीट नहीं करता आप लोग रिट्वीट ही नहीं करते हैं. इसी तरह जाने-माने फिल्ममेकर अनुराग कश्यप ने ट्वीट किया कि ये मेरा पहला हिंदी ट्वीट है. आलिया भट्ट इंस्टाग्राम पर लगातार हिंदी में लिख रही हैं. हालांकि कई बार संभवतः गूगल ट्रांसलेशन की वजह से उनकी हिंदी गलत भी हो जाती है. पर ये किसी शर्म या तकलीफ का विषय नहीं है.
अगर व्यापार की बात करें चीन की शी-इन जैसी वेबसाइट्स ने तो हिंदी में पूरी वेबसाइट ही लॉन्च कर डाली है. अमेजन समेत कई वेबसाइट्स हिंदी में अपना कॉन्टेंट रख रही हैं. कभी कभी लगता है कि विदेशी व्यापार के लोगों ने हिंदी की मार्केटिंग को हमसे पहले समझ लिया है.
इस प्रभाव की एक वजह स्मार्टफोन में हिंदी फॉन्ट्स की बेहतरीन उपलब्धता भी है. अब स्मार्टफोन लगभग हर हाथ में पहुंच गये हैं और हिंदी में टाइप करना आसान हो गया है.