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Friday, 31 October, 2025
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TTP पाकिस्तान की नीतियों का नतीजा है, अफगानिस्तान पर हमलों से उसका घरेलू संकट नहीं मिटेगा

पाकिस्तान पश्चिमी देशों को भरोसा दिलाना चाहता है कि वह आतंकवाद से लड़ने की कोशिश कर रहा है और चीन को यह संकेत देना चाहता है कि ‘सीपीईसी’ वाले मार्गों पर उसका पूरा नियंत्रण है, लेकिन ये दोनों संकेत नाकाम रहे हैं.

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इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर कई जगह हवाई हमले किए और दावा किया कि वह कथित रूप से डूरंड लाइन के पार छिपे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकवादियों को निशाना बना रहा था. पकटिका, खोस्त, कुनर और राजधानी काबुल तक पर मिसाइलों से हमले किए गए, लेकिन पाकिस्तान जिसे ‘आतंकवाद रोधी कार्रवाई’ बता रहा था वह जल्दी ही एक त्रासदी में बदल गई.

‘यूएनएएमए’, रायटर्स, अल जज़ीरा की रिपोर्टों ने पुष्टि की है कि इन हमलों में मारे गए लोगों में टीटीपी का कोई लड़ाका नहीं है. हताहतों में अफगानिस्तान के युवा क्रिकेट खिलाड़ियों और उनके परिवारों समेत आम अफगानी नागरिक थे.

अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात ने जवाबी हमला न करके संयम बरता, कतर और तुर्किये की पहल से युद्धविराम के लिए राज़ी हो गया. इस अमन से यह गहरी सच्चाई सामने आई कि पाकिस्तान के हवाई हमले आतंकवाद से लड़ने से ज्यादा, अपने घरेलू सियासी मसलों से ध्यान भटकाने के मकसद से किए गए थे.

हवाई हमलों का मूल मकसद है: पाकिस्तान का गंभीर घरेलू संकट. यह मुल्क आर्थिक पतन, राजनीतिक उथल-पुथल और असुरक्षा के एहसास से जूझ रहा है.

पाकिस्तान के सुरक्षा बल भारी दबाव में हैं. पिछले नौ महीनों में ही 2,400 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं. इस्लामाबाद से काम कर रहा संस्थान ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऐंड सिक्यूरिटी स्टडीज़’ के मुताबिक, एक दशक में यह सबसे बड़ी तादाद है. ऐसे गंभीर हालात में बाहरी खतरों का शोर मचाकर आसानी से ध्यान भटकाया जा सकता है.

अपनी कार्रवाइयों को उचित ठहराने के लिए पाकिस्तान ने अपना पुराना राग फिर से छेड़ा है, कि भारत पाकिस्तान में अस्थिरता पैदा करने के लिए तालिबान की डोर खींच रहा है, लेकिन ‘मिडल ईस्ट पॉलिटिकल ऐंड इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट’ समेत क्षेत्रीय विश्लेषकों को इस दावे की पुष्टि के पक्ष में कोई सबूत नहीं मिला. तालिबान सरकार की नीतियों की जड़ें अफगान राष्ट्रीयता में हैं, न कि भारतीय प्रभाव में.

यहां तक कि भारतीय अधिकारियों ने भी इस सिद्धांत को एक राजनीतिक नाटक बताकर खारिज कर दिया है. असली मसला यह है कि पाकिस्तान अपने ही झूठ को कबूलता रहा है. इस प्रोपेगेंडा को पकड़कर अपनी धारणा और नीति को भी तोड़ता-मरोड़ता रहा है. ‘भारत-तालिबान’ मेल का भ्रम उसे घरेलू समर्थन दिला सकता है, लेकिन यह वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की कूटनीतिक साख को कमज़ोर करता है.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान में फर्क

पाकिस्तानी हवाई हमलों ने गहरे कानूनी तथा नैतिक दुविधाओं को उबार दिया है. अपनी एक रिपोर्ट में ‘यूएनएएमए’ ने कई सूबों में नागरिकों की मौतों की पुष्टि की है, जहां एक भी आतंकवादी नहीं मारा गया. अल जज़ीरा की रिपोर्ट में तबाह हुए घरों, बेजान बच्चों, और हताश अभिभावकों की तस्वीरें जारी की गई हैं.

संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 2(4) कहता है कि दूसरे देश की भौगोलिक अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले किसी भी बल प्रयोग को अवैध माना जाएगा. इन हमलों ने लड़ाकों और नागरिकों के बीच फर्क करने के सिद्धांत का उल्लंघन किया है. डर के बूते राज करने वाली पाकिस्तानी फौजी हुकूमत ने अपने यहां आंतरिक अस्थिरता को अपनी सीमा के पार भेजने का ही काम किया है.

इस्तांबुल में जबकि तमाम प्रतिनिधि बातचीत के लिए इकट्ठा हुए थे, पाकिस्तान के युद्धोन्माद ने कूटनीतिक कोशिशों को कमज़ोर किया. शांति की कोशिशें और धमकियां साथ-साथ नहीं चल सकतीं. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने वार्ता नाकाम होने पर अफगानिस्तान से ‘खुली जंग’ की जो धमकी दी है वह इसी विरोधाभास को उजागर करती है. पाकिस्तान बातचीत और खौफ पैदा करने के जो संकेत देता रहा है वह सुसंगत रणनीति का अभाव बताता है और घरेलू तथा विदेशी समाज में असंतोष पैदा करता है.

पाकिस्तान अपने हमलों से कई मोर्चों पर संदेश देना चाहता है— पश्चिमी देशों को वह आतंकवाद रोधी अपनी कोशिशों पर भरोसा दिलाना चाहता है और चीन को यह संकेत देना चाहता है कि ‘सीपीईसी’ वाले मार्गों पर उसका पूरा नियंत्रण है.

लेकिन ये संदेश नाकाम रहे. आतंकवाद का खुला विरोध और भाड़े के लड़ाकों को गुप्त समर्थन देने के पाकिस्तान के वर्षों पुराने दोरंगे खेल के चलते उस पर अमेरिका का संदेह बना हुआ है. चीन भी अब पाकिस्तान की अस्थिरता को एक रणनीतिक जोखिम के रूप में देख रहा है.

क्षेत्र के मुल्कों—ईरान, रूस, और मध्य एशियाई देशों ने इन हवाई हमलों को मनमाना बताकर उसकी निंदा की है.

पाकिस्तान सीमा पर निगरानी की व्यवस्था पर जो ज़ोर दे रहा है, जिसे पारदर्शिता बहाल करने का एक कदम बताया गाय, उसे डूरंड लाइन के मसले का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की एक चाल के रूप देखा जा रहा है. यह संयुक्त राष्ट्र के अनुछेद 2(7) के खिलाफ है, जो किसी देश के आंतरिक मामलों हस्तक्षेप को वर्जित करता है.

दूसरी ओर, अफगानिस्तान ने उल्लेखनीय अनुशासन और कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया है. ‘आइईए’ ने रक्षा पर ज़ोर दिया, कतर और तुर्किये से संवाद किया और संयुक्त राष्ट्र तथा ‘ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक को-ओपरेशन’ (ओआइसी) के प्रयासों का स्वागत किया. इस स्तर की समझदारी को अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला और इसने घरेलू समर्थन को मजबूती दी. इस संकट ने अफगानिस्तान की छवि एक अलग-थलग देश की जगह एक जिम्मेदार मुल्क वाली बना दी, जबकि पाकिस्तान एक उतावला और दिशाहीन देश के रूप में उभरा.

अफगानिस्तान को मजबूती, पाकिस्तान की खुली पोल

पाकिस्तान ने 2025 में जो गलतियां की उन्होंने वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव परिवर्तन को रेखांकित किया. इस शीतयुद्ध वाले दौर के ‘अग्रिम मोर्चे वाले देश’ वाला विचार पुराना साबित हो गया है. अमेरिका और चीन के बीच डोलने से कोई लाभ नहीं हासिल हो रहा है. ये दोनों देश पाकिस्तान को मूल्यवान साथी नहीं बल्कि एक बोझ के रूप में देख रहे हैं.

जो देश अपनी पुरानी भूमिका से बंधे रहते हैं वे अपनी साख और असर को जोखिम में डालते हैं.

पाकिस्तान खुद को जिस तरह एक ‘भू-राजनीतिक धुरी’ के रूप में देखता है वह एक फरेब है, जो गहरे संस्थागत मसलों पर मुलम्मा चढ़ाता है. हवाई हमलों ने पाकिस्तान की इस धारणा को तोड़ दिया कि टीटीपी के उग्रवादी अफगानिस्तान में सुरक्षित होकर अपनी कार्रवाई कर रहे थे. सरकारी दावों के बावजूद इस धारणा की पुष्टि के कोई ठोस सबूत नहीं मिले. यह राग केवल सियासी मकसद के लिए अलापा जा रहा था, यह पाकिस्तान की आंतरिक खामियों से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा था.

टीटीपी के खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर इसलिए पेश किया जा रहा था ताकि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के नाम पर अपने हमलों को जायज़ ठहरा सके, लेकिन इसका उलटा ही नतीजा निकला: अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन हुआ, नागरिकों की मौत हुई और क्षेत्रीय आक्रोश फूटा. अफगानिस्तान के कूटनीतिक संयम ने संकट को अवसर में बदल दिया और पाकिस्तान के विरोधाभासों को उजागर करते हुए अफगानिस्तान की साख को मजबूती दी.

कड़वी सच्चाई यह है कि टीटीपी पाकिस्तान की नीतियों का एक नतीजा है, इसका जन्म अफगानिस्तान में नहीं हुआ. अफगानिस्तान की ओर उंगली उठाने से न तो पाकिस्तान मजबूत होगा और न उसकी साख बढ़ेगी. पाकिस्तान इस सच्चाई से इनकार करता रहेगा तो खतरा यह है वह रणनीतिक अनिश्चितता की अपनी स्थिति से हमेशा के लिए खुद को बेमानी बनाने की ओर बढ़ता जाएगा.

(शुक्रुल्ला आतिफ मशाल अफगानिस्तान के एक राजनयिक व स्कॉलर हैं. वे काबुल के ‘अफगानिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक एंड रीज़नल स्टडीज़’ के महानिदेशक हैं. वे पाकिस्तान में अफगानिस्तान के राजदूत, अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष और राष्ट्रपति के प्रशासनिक कार्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों से संबंधित विभाग के निदेशक के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं. उनका एक्स हैंडल @MashalAtif है. ये उनके निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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