जब देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा था तब बिहार से कुछ ऐसी तस्वीरें आईं जिन्हें देखकर गुस्सा भी आया और तरस भी. गुस्सा इस बात का कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. सरकारी रेल की कई बोगियों को आग के हवाले कर दिया गया. तरस इस बात पर कि देश के युवा क्यों बार-बार इस तरह के आंदोलन करने को मजबूर हो जाते हैं? आखिर इस देश का युवा सरकारी नौकरियों के लिए इतना बेकरार क्यों है?
बिहार के कई शहरों में और पड़ोसी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रेलवे भर्ती में हुई गड़बड़ियों को लेकर जिस प्रकार की हिंसा हुई उसे कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता. हिंसा की सदैव निंदा होनी चाहिए. हुई भी, लेकिन ये समय यह समझने का भी है कि आखिर ये नौबत क्यों आई?
हिंदीभाषी राज्यों में, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में, लगभग हर मध्यमवर्गीय परिवार के युवाओं का स्वप्न सरकारी नौकरी प्राप्त करना होता है. इसके कई कारण हैं. इन इलाकों में सरकारी नौकरी से सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है. सरकारी नौकरी होने पर दहेज की मांग आसानी से पूरी कर दी जाती है. भारतीय रेल देश में सरकारी नौकरी का सबसे बड़ा केन्द्र है.
भर्ती में होने वाली देरी
मार्च 2020 तक रेलवे में लगभग 13 लाख कर्मचारी थे. इनमें से ज्यादातर तृतीय और चतुर्थ क्षेणी कर्मचारी हैं, जिनकी भर्ती रेलवे भर्ती बोर्ड करता है. देश में 21 रेलवे भर्ती बोर्ड हैं. ताजा मामला भी रेलवे की भर्ती के जुड़ा हुआ है. रेलवे ने फरवरी 2019 में लगभग 35 हजार चतुर्थ क्षेणी पदों के लिए भर्ती को घोषणा की. इसकी परीक्षा उसी वर्ष जून में प्रस्तावित थी लेकिन हुई दो साल बाद अगस्त 2021 में. परिणाम इस साल 15 जनवरी को घोषित किया गया. यानी भर्ती निकलने और परीक्षा का परिणाम आने में लगभग तीन वर्ष निकल गए.
परिणाम आने के बाद युवा आक्रोशित हो गए. कहा गया था कि पदों के 20 गुना अभ्यर्थी दूसरे लेवल की परीक्षा के लिए चुने जाएंगे. यानी 35 हजार पदों के लिए लगभग 7 लाख का चुनाव होना चाहिए था. हुआ लगभग 3 लाख का. मतलब लगभग 3 लाख युवाओं को इस दौड़ से बाहर कर दिया गया. नौकरी की आस लगाए युवाओं के लिए ये बड़ा झटका था. पहले ट्विटर के माध्यम से डिजिटल आंदोलन किया गया.
आंदोलन ने हिंसक रूप लिया
फिर 24 जनवरी को लगभग 500 युवा पटना के राजेन्द्र नगर टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर एकत्रित हुए और रेल रोककर अपना विरोध दर्ज कराया. इसी बीच आग में घी का काम किया रेलवे भर्ती बोर्ड की उस घोषणा ने जिसमें कहा गया कि ग्रुप डी की भर्तियों के लिए भी दूसरे लेवल की परीक्षा होगी. इस फैसले से एक करोड़ से ज्यादा युवा प्रभावित हो रहे थे. वे भी आंदोलन में कूद पड़े. देखते ही देखते आंदोलन हिंसक हो गया.
अगले दिन यानी 25 जनवरी को आंदोलन की लपटें पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के प्रयागराज पहुंच गईं. जमकर हंगामा हुआ. हिंसा और आगजनी हुई. इसके बाद पुलिस ने हॉस्टल और लॉज में घुसकर युवाओं को बाहर निकालना शुरू किया. दरवाजों को बंदूकों के कुंदों से और लातों से पीटा गया. नौकरी के लिए बेचैन युवा कब पुलिस के लिए दुश्मन बन गया, पता ही नहीं चला. हालांकि बाद में छः पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया लेकिन प्रयागराज से निकली तस्वीरों ने देश को शर्मसार किया.
परिवारों से दूर रहकर नौकरी का सपना पूरा करने की जद्दोजहद में लगे युवाओं के साथ ऐसा व्यवहार कतई उचित नहीं है. जाहिर सी बात है सभी युवा हिंसा में नहीं शामिल रहे होंगे. उपद्रवियों को पहचान के उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. बिहार में ये आंदोलन दूसरे शहरों में भी फैल गया और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा जांच आयोग बना देने की घोषणा के बावजूद गया में एक खड़ी रेलगाड़ी के कुछ डिब्बों को आग लगा दी गई. बाद में प्रयागराज जैसा तस्वीरें पटना से भी आईं.
बेरोजगारी की समस्या
रेलवे भर्ती पहली ऐसी परीक्षा नहीं हैं जिसमें होने वाले विलंब और धांधली की वजह से युवा आंदोलन की राह पकड़ लेते हैं. देश में होने वाली लगभग हर भर्ती की यही हाल हो गया है. पहले परीक्षा नहीं होती, हो जाए तो परिणाम नहीं आता, आ जाए तो नियुक्ति नहीं मिलती. इसके अलावा अदालतों में भर्तियों का अटकना आम बात है. पग—पग पर युवा निराश होता है. हाल की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले पांच सालों में देश के सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों की वार्षिक आय में 53 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है जबकि इसी दौरान देश के 20 फीसदी अमीरों का आय में 39 प्रतिशत की बढोतरी हुई. कोविड महामारी ने देश में बेरोजगारी की समस्या को और विकराल बना दिया.
ऐसे में युवा जिनके साामने आयु बढ़ जाने के कारण अयोग्य हो जाने का संकट है, बेचैन और हताश नहीं होगा तो क्या होगा? लेकिन दुर्भाग्य ये है कि जब जब युवा नौकरियों के लिए सड़क पर आता है उसे मिलती सिर्फ पुलिस की लाठियां ही है.
(लेखक जम्मू के भारतीय जनसंचार संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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