हरियाणा में पिछले हफ्ते सात आईएएस अफसरों की मुख्य सचिव के बराबर सर्वोच्च स्केल पर पदोन्नति की गई है और ऐसे अफसरों की संख्या 20 पहुंच गई. इस सूची में अशोक खेमका का भी नाम है, जिनके नाम अपने सेवा काल में 54 बार तबादले का अजीब रिकॉर्ड जुड़ा है. 205 अधिकृत काडर वाले अपेक्षाकृत छोटे राज्य के लिए आला अफसरों की अधिक संख्या से कई तरह की चीजें उभरती हैं, जिनमें 44 केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आरक्षित हैं और 28 पद पूर्व काडर की राज्य में प्रतिनियुक्ति के लिए आरक्षित है.
कुछ आईएएस अफसरों को ऐतराज है कि उन्हें ऊंचे वेतनमान के लिए 31 साल इंतजार करना पड़ा, जबकि वे 1 जनवरी 2021 को 30 साल पूरे होने के साथ इसके योग्य हो गए थे. लेकिन ऐसे अफसरों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या को आईएएस काडर में ठहराव का भी संकेत माना जाता है. हालांकि निष्पक्ष जानकारों का मानना है कि यह कुछ और नहीं, बस अपने स्वार्थ में अफसरों का खुद को ऊंचे वेतनमान का तोहफा देने की कार्रवाई है, जबकि इतने अधिकृत पद भी नहीं हैं.
गौरतलब यह है कि ऊंचे वेतनमान के नियमों के मुताबिक 30 साल की सेवा महज योग्य होने की शर्त है, मुख्य सचिव के रैंक को पद उपलब्ध होना भी जरूरी है. सबसे बढक़र यह कि हरियाणा में मुख्य सचिव स्तर के ऊंचे वेतनमान के तीन काडर पद हैं : मुख्य सचिव, वित्त आयुक्त-सह प्रमुख सचिव और मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव. और इतने ही पूर्व काडर पद हैं.
इस तरह नियमों पर अगर कड़ाई बरती जाए तो राज्य सरकार के अधीन हरियाणा काडर के छह अफसरों से अधिक को ऊंचा वेतनमान नहीं दिया जा सकता. बेशक, केंद्र में सचिव के स्तर पर प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे अफसर इसके अतिरिक्त होंगे, जो राज्य में मुख्य सचिव के बराबर होते हैं.
आइएएस अपवाद है
मैं पहले लिख चुका हूं कि राज्यों के मुख्यमंत्री कई अफसरों की वरियता लांघ कर जूनियर बैच से किसी को मुख्य सचिव चुन लेते हैं, जिससे अफसरों में शिकवे-शिकायतें और राज्य की प्रमुख प्रशासनिक सेवा में तनाव पैदा होता है. दरअसल, अखिल भारतीय सेवा कानून, 1951 के तहत बनाए नियमों का उल्लंघन करके अनेक अफसरों को सबसे ऊंचा/मुख्य सचिव का वेतनमान देना वह बड़ी वजह है, जिससे उपरोक्त विवादास्पद समस्या पैदा होती है.
इसके उलट, भारतीय राजस्व सेवा (आय कर) जैसी ग्रुप ‘ए’ की केंद्रीय सेवाओं में पर्याप्त पदों की उपलब्धता के बगैर अफसरों को ऊंचे वेतनमान पर प्रमोशन नहीं दिया जाता. मसलन, 1987 बैच के जुनियर आईआरएस अफसर हाल तक आय कर के प्रमुख आयुक्त पद पर काम करते रहे हैं. ऊंचा वेतनमान सिर्फ प्रीसिंपल चीफ कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स को ही मिलता है. एक बीच का पद चीफ कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स का है.
हालांकि, ग्रुप ‘ए’ केंद्रीय सेवाओं में ऐसे सभी प्रमोशन विभागीय प्रमोशन समिति (डीपीसी) की कड़ी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही होते हैं, जिसकी अगुआई अमूमन कोई यूपीएससी का सदस्य करता है. इसके उलट, राज्यों में ऊंचा वेतनमान देने के लिए तथाकथित जांच समिति अनिवार्य रूप से अंदरूनी समिति ही होती है, जिसकी अगुआई राज्य के मुख्य सचिव करते हैं. यूपीएससी तस्वीर में होती ही नहीं है. इसलिए औसत दर्जे और विवादास्पद सेवा रिकॉर्ड के अधिकारी भी ऊंचे वेतनमान के स्तर पर पहुंच जाते हैं. आईएएस के मामले में आखिरी मंजूरी सिर्फ मुख्यमंत्री से मिलती है, जबकि केंद्रीय सेवाओं के मामले में वरिष्ठ स्तर पर सभी प्रमोशन प्रधानमंत्री की अगुआई वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) करती है.
अखिल भारतीय प्रथा
आईएएस अफसरों को 30 साल की सेवा पूरी होने पर पर्याप्त पद संख्या देखे बगैर ऊंचे बेतनमान पर प्रमोशन देने का रिवाज पूरे देश में है. यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले AGMUT काडर भी इस रिवाज से अलग नहीं है.
यह प्रथा राज्यों में राजनैतिक आकाओं और अफसरशाही में हर किसी को मुफीद बैठती है और कोई विलियम शेक्सपियर कह देते कि,‘यह प्रथा तो पालन करने से तोडऩे में ही ज्यादा शोभा देती है.’ नरेंद्र मोदी सरकार ने आईएएस काडर के प्रबंधन में कई अहम सुधार किए, मगर यह उसकी नजर से ओझल है, चाहे यह जानबूझकर हो या संयोग से.
शायद सुप्रीम कोर्ट या नियंत्रक और महालेखाकार (सीएजी) की नजर इस त्रुटि पर पड़े.
केबीएस सिद्धू 1984 बैच के पंजाब काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और पिछले साल विशेष मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं
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