scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होममत-विमतब्लॉगटिकटॉक ने लाखों गरीब भारतीयों के जीवन को बदल दिया, वे न्यू इंडिया के एकलव्य बन गए थे

टिकटॉक ने लाखों गरीब भारतीयों के जीवन को बदल दिया, वे न्यू इंडिया के एकलव्य बन गए थे

टिकटॉक ने भारतीयों के लिए आंकक्षाओं से भरे आसमान में एक छोटी सी खिड़की का काम किया.

Text Size:

भारत में टिकटॉक क्रांति के बारे में बात करना कोई एंटी नेशनल काम नहीं है, ना ही ये चाइनीज ऐप्स को समर्थन देने की बात है. ये कहानी है उन लाखों गरीब भारतीयों की जिन्होंने एक यूजर फ्रेंडली ऐप अपने हाथ में आते ही अपने जीवन और अपार संभावनाओं की कल्पना करनी शुरू कर दी. टिकटॉक ने भारतीयों के लिए आंकक्षाओं से भरे आसमान में एक छोटी सी खिड़की का काम किया.

1981 में एक अमिताभ बच्चन की एक फिल्म आई थी- कालिया. इस फिल्म का एक प्रसिद्ध डायलॉग था- हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती. एक तरह से देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों के रियल स्टार्स टिकटॉक, वीगो, हेलो और लाइकी ऐप्स पर एक नई लाइन ही खींच रहे थे. ये लाइन धीरे-धीरे शहरी या फिर मुख्याधारा कहे जाने वाले भारतीय लोग भी फॉलो कर रहे थे.

इन ऐप्स के सहारे वे न्यू इंडिया के एकलव्य बन गए. पहले घरों की चार दीवारों के भीतर कैद उनका टैलेंट एकदम से खुलकर बाहर आ गया और इस बात के लिए उनके अगूंठे मांगने वाला द्रोणाचार्य भी नहीं था. भारत के पिरामिड का विशाल तल – जो कि उपभोक्ता के रूप में जाना जाता रहा है. अब कंटेंट क्रिएटर बन गया था और वो ये बात भी नियंत्रित कर रहा था कि देश के संभ्रांत लोग उन्हें किस नजरिए से देखेंगे.

‘बराबर करने वाला’

इन ऐप्स के दर्शकों के लिए जाति, रंग, धर्म, बैकग्राउंड या अन्य कोई भी पहचान जो आमतौर पर शोषण का कारण बन सकती है, खास मायने नहीं रखती. विशेषाधिकार और सोशल कैपिटल की कई धारणाएं भी यहां पर टूटी हैं. जैसे उदाहरण के लिए टिकटॉक पर गुजरात के अरमान राठौड़ के फैन ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर डेविड वॉर्नर फैन थे, वो ना सिर्फ अरमान के डांस स्टेर कॉपी कर रहे थे बल्कि उसके साथ एक वीडियो भी बनाया. यहां दोनों ‘बराबर’ स्टार हो गए.


यह भी पढ़ें : मोदी सरकार द्वारा ‘टिकटोक’ पर बैन की खबर सुनते ही ‘मेरी पत्नियां रोने लगीं’ – टिकटोक स्टार ने सुनाई दास्तां


देश को आज़ाद हुए सात दशकों से ज्यादा समय हो गया है जब हम कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से कई स्तरों पर भेदभाव झेलने वाले नागरिकों के लिए बराबरी लाने के प्रयास करते हैं. सभी सरकारी ग्रांट्स और योजनाओं के बाद भी हम एक गरीब व्यक्ति की ‘सामाजिक’ स्थिति को कितना बदल पाते हैं? विशेषाधिकार प्राप्त कई सारी उच्च जातियां के लोग उत्पीड़ित जातियों के लोगों को ‘भिखारी’ या ‘मुफ्त का खाने वाले’ कहने में कितना हिचकते हैं? अभी भी बहुत सारे भारतीय वंचितों को नीचा दिखाते हैं और अक्सर ‘आरक्षण’ के लिए कोसते हैं.

लेकिन टेक्नोलॉजी में असमान समाज को समान बनाने और समान शर्तों पर काम करने की पावर है. ये वचिंत समाज के हजारों लोगों को ‘फ्री स्टेज’ मुहैया करा सकती है और विशेषाधिकारों द्वारा कब्जाए गए या फिर बनाए गए समाज में पहली बार कदम रखने वालों में आत्मविश्वास पैदा करती है.

एक बार आप इस बारे में सोच कर देखिए. मीडिया या एंटरटेन की दुनिया में वे कौनसे मंच हैं जहां एक ईंट भट्टे पर काम करने वाल मजदूर स्टार बन सकता है और अपनी फैन फॉलोइंग रख सकता है? टैलेंट शोज में भी अंडरप्रिव्लेज्ड बैकग्राउंड से आने वाले बहुत कम लोग लाइमलाइट में आ पाते हैं. लेकिन टिकटॉक ने लाखों लोगों के लिए अपने तरीकों से स्टार बनने की संभावना को दिखाया. यहां पर उनके लिए लोगों मीलों चलकर आते हैं ताकि टिकटोक स्टार्स के साथ सेल्फी खिंचवा सकें.

एक सच्ची क्रांति?

जिस समाज में आज के डू इट योरसेल्फ एकलव्यों ने कई तरह की धारणाओं को तोड़ा है. ये सिर्फ युवा लड़के लड़कियों के बारे में नहीं है ,जिन्होंने अपने आत्मविश्वास से लोगों के दिल जीते. युवा विवाहित महिलाओं और मध्यम आयु वर्ग की होममेकर्स ने भी सामाजिक प्रतिबंधों को खारिज किया है. उन्होंने घर के काम तक सीमित रहने वाले अपने जीवन को एक नया आयाम दिया है. इन वीडियो ऐप्स पर घरेलू कामकाजी महिलाएं भी स्टार हैं. टिकटॉक जैसी ऐप्स ने कस्बाई भारत के जीवन में एक अलग तहक का रोमांच और स्टारडम जोड़ दिया है. कोई इसे सच्चे आईटी क्रांति भी कह सकता है.

भारत के अनेकों टिकटॉक स्टार्स के साथ मेरी बातचीत में मैंने ये जाना है कि ये लोग इन ऐप्स पर अचानक मिले स्टारडम की वजह से एक अलग तरह की आजादी महसूस करते हैं. एक लड़की जिसे उसके निकले हुए दांतों के लिए बुली किया जाता हो, वो टिकटॉक पर डांसिंग स्टार बन सकती है. एक काले रंग का लड़का जिसे असली जीवन में कई तरह के नामों से बुलाकर तंग किया जाता हो, उसे भी टिकटो पर हजारों लोग चीयर करेंगे.

इंदौर की 26 वर्षीय ममता वर्मा की जिंदगी पिछले साल तब बदली जब वो टिकटॉक पर आईं. इससे पहले उनकी पहचान एक होम गार्ड की पत्नी के तौर पर थी, जो कभी-कभी शादियों और पार्टियों में खाना बनाकर परिवार को पालने में मदद करती थी. टिकटॉक बैन होने से पहले उनके 16 लाख फॉलोअर्स थे. उनकी उत्साही फैन उनकी पेंटिंग बनाया करते थे.

ममता ने बताया, ‘ये सब थ्रिलिंग है. जब मैंने पहला वीडियो लगाया था तब मुझे पांच लाइक्स मिले थे. लेकिन जैसे-जैसे लाइक्स और कमेंट्स बढ़ते गए वैसे-वैसे मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता गया. मैं अपने आस-पास के लोगों में अपने रोबोटिक डांस फॉर्म के लिए सराहना देखती हूं. पहले मैं बहुत शर्मीली किस्म की महिला थी, जिसके बहुत बड़े सपने नहीं थे. फिर मैंने टिकटॉक पर ग्रामीण महिलाओं को माधुरी दीक्षित के गानों पर डांस करते हुए देखा. मेरा भी दुनिया देखने का नजरिया बदला. ये महिलाएं अपने लुक्स या गरीब पृष्ठभूमि को लेकर जरा भी नहीं सोचती थीं.’

22 वर्षीय आदिवासी महिला लखानी कहती हैं कि उनका सांवला रंग उनके फॉलोअर्स के लिए कुछ मायने नहीं रखता था. वो कहती हैं, ‘मेरे वीडियो पर आने वाले अच्छे कमेंट्स ने मुझे महसूस कराया कि मैं भी ऐश्वर्या राय से कोई कम तो नहीं हूं. मेरे पति ने पहला वीडियो शूट करने के लिए महीनों तक आग्रह किया था तब जाकर मैं कैमरे के सामने आने के लिए राजी हुई थी. मैं बहुत ज्यादा झिझकती थी. लेकिन अब मजा आता है. इसमें क्या शर्म है. मैं भी एलबम में फीचर होना चाहती हूं.’


यह भी पढ़ें : जनता टिकटॉक का बहिष्कार कर रही लेकिन लॉकडाउन में नेता और सरकारों ने इसी पर बनाए आधिकारिक अकाउंट


इन सोशल ऐप्स पर कंटेंट क्रिएटर्स द्वारा लाए गए सबसे बड़ा परिवर्तन ये रहा कि इससे स्त्रैण-पुरुषों के प्रति समाज की चिढ़ कम हुई. इन लोगों के ‘क्वीरनैस’ का जश्न मनाया. जो लोग असल में महिलाओं की ड्रेस पहने पुरुषों को देखकर नाक-भौं चढ़ाते थे, वो टिकटोक पर सकारात्मक कमेंट करने लगे. बस एक मंत्र- थोड़ी देर के लिए ट्रोल्स को इग्नोर करो.

एक विराम, अभी अंत नहीं

चाइनीज ऐप्स द्वारा बदली कई भारतीयों की जिंदगी अब एक बार फिर तितर-बितर हुई है, क्योंकि मोदी सरकार ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चल रहे विवाद के बीच टिकटोक समेत 58 चाइनीज ऐप्स को बैन कर दिया है. भारत सरकार को दिए अपने जवाब में ,टिकटॉक इंडिया ने भले ही लिखा है कि उन्होंने फर्स्ट टाइम इंटरनेट यूजर्स को प्लैटफॉर्म देकर इंटरनेट को लोकतांत्रिक बनाया है, ये फिर भी कम है. तो अब आगे क्या होगा?

टेक्नोलॉजी एक वैक्यूम नहीं रहने देती. एक मिनट में अगर कोई प्लैटफॉर्म हटता है, तो दूसरे कई प्लैटफॉर्म इसकी जगह ले लेते हैं. टिकटॉक ऐप के बैन के एक दिन बाद चिंगारी नाम ऐप का यूजर बैस एक लाख से एक करोड़ पहुंच गया. हम आगे ,टिकटॉक ऐप का इंडियन वर्जन भी देख सकेंगे.

लेकिन सवाल ये है कि क्या वे स्मार्टफोन हाथ में लिए हर व्यक्ति के लिए यूजर फ्रेंडली होंगी और उन्हें स्पेस देंगी? या फिर वो ऐप्स मेनस्ट्रीम कहे जाने वाले शहरी भारत के लिए जगह देंगी और ‘क्रिंज’ कहकर खारिज किए जाने वाले क्रिएटर्स को छोड़ देंगी. ,टिकटॉक वर्सेज यूट्यूब डिबेट ने हमारे समाज में गहरी जड़ें जमा चुके जातिवादी को उजागर किया. सोशल मीडिया ने टिकटोकर्स को इंटरनेट के शूद्र बताया.

नब्बे के दशक में कौन बनेगा करोड़पति शो ने छोटे कस्बाई भारत के टैलेंट को बड़े शहरों की लाइमलाइट में ला दिया था. साल 2000 में इंडियाज गोट टैलेंट ने लोगों की स्किल्स को राष्ट्रीय मैप पर ला दिया था. अब ,टिकटॉक, वीगो, हेलो और अन्य वीडियो ऐप्स ने कुछ ऐसा ही किया था. इन ऐप्स के लाखों यूजर्स का एक बड़ा तबका अचानक से आए इस व्यवधान के बारे में सोच रहा है, इनमें से कुछ लोग इधर-उधर बैठ रहे होंगे तो कुछ लोग अचानक मिली अभिव्यक्ति की इस आजादी को छोड़ देंगे. भारत के इन डीआईवाई एकलव्यों को एक मंच की जरूरत है, और मंच कौनसा होगा, हमें जल्दी ही पता चल जाएगा.

(यह लेखिका के निजी विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. You cross all limits in Anti India narrative.do you want to provok people against government.

Comments are closed.