करीमा मेहराब बलोच इंसाफ की एक जानी-मानी मुजाहिद थीं, जो पश्चिम पाकिस्तान के बलोचिस्तान में सताए जा रहे बाशिंदों के लिए लगातार बराबरी की मांग कर रहीं थीं. इस हफ्ते कनाडा में उनकी मौत ने एक कोहराम मचा दिया, हालांकि कनाडा पुलिस ने कहा कि ये वाक़या ग़ैर-आपराधिक नेचर का लगता है, जिसमें कुछ ग़ैर-क़ानूनी नहीं था. लेकिन बलोचिस्तान और दूसरी जगहों पर करीमा के समर्थक उसकी इस राय से आश्वस्त नहीं हैं.
करीमा मेहराब, जो कनाडा में निर्वासित जीवन बिता रहीं थीं, पहली पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता नहीं हैं, जिन्हें मौत की धमकियों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और आख़िरकार मुल्क छोड़ना पड़ा- निर्वासन में भी हमले के डर में जीने के लिए. करीमा टोरंटो में अपने घर के पास सेंटर आईलैण्ड में टहलने के लिए निकलीं थीं, जहां से वो ग़ायब हो गईं. अगले दिन उनका शव पानी के पास बरामद हुआ.
करीमा के पति हम्माल हैदर ने अपनी पत्नी की मौत के हालात की जांच की मांग की है: ‘मेरा मानना है कि ये हमारा अधिकार है कि हम कनाडाई अधिकारियों से अनुरोध करें कि उनकी मौत की परिस्थितियों और कनाडा में आने के बाद से उन्हें मिल रही धमकियों की जांच में, कोई कसर न छोड़ें’.
निरंतर धमकियां
बलोचिस्तान के अशांत सूबे की रहने वालीं और ज़बर्दस्ती ग़ायब कर दिए जाने की घटनाओं पर पाकिस्तान हुकूमत की मुखर आलोचक, करीमा मेहराब को बहुत समय से पाकिस्तान में धमकियां मिल रहीं थीं और डराया धमकाता जाता था. उन्हें पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर किया गया लेकिन कनाडा में भी उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहीं. उनके चाचा को मार दिया गया, दो से ज़्यादा बार उनके घर पर छापे पड़े और पाकिस्तान में उनके परिवार को बार बार धमकाया गया कि करीमा को अपनी सक्रियता छोड़ने के लिए राज़ी करें.
उनके पति का कहना है कि बलोचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों की घटनाओं पर रोशनी डालने के लिए पिछले कुछ महीनों में उन्हें सोशल मीडिया पर कई बार धमकियां मिलीं थीं. ऐसी ही एक धमकी में उन्हें चेतावनी दी गई थी कि कोई उन्हें एक ‘क्रिसमस गिफ्ट’ भेजेगा और ‘उन्हें सबक़ सिखाएगा’.
परिवार, दोस्तों और करीमा बलोच के सहकर्मियों के क़रीबी समुदाय के अलावा, कनाडा के पूर्व आप्रवास मंत्री क्रिस एलेग्ज़ेंडर ने भी ट्वीट करके कहा कि उन्हें ‘उसकी मौत की परिस्थितियां बहुत संदेहास्पद लगती हैं’.
We mourn with larger Canadian, Baloch & international families, who have obvious questions. All of us who knew Karima see the circumstances of her death as deeply suspicious. We must leave no stone unturned in uncovering & confronting the reality of what happened to her. 2/3
— Chris Alexander (@calxandr) December 23, 2020
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हमलों की बाढ़
कनाडा ऐसे बहुत से पाकिस्तानी समूहों का आवास है, जिन्हें अपने यहां अपनी सियासत, बोलने के अधिकार के इस्तेमाल, मानवाधिकार से जुटी गतिविधियों, या सिर्फ मज़हब की वजह से प्रताड़ित किया जाता है. ईसाई ईश निंदा केस की सबसे प्रमुख पीड़िता आसिया बीबी- एक ईसाई महिला जिसे ईश निंदा के आरोप में, गलत तरीके से 9 साल तक क़ैद में रखा गया- आख़िरकार अपने परिवार समेत कनाडा में पनाह लेनी पड़ी.
लेकिन निर्वासन में जीने का मतलब, शांतिपूर्ण जीवन नहीं होता. और करीमा बलोच की जैसी रहस्यमयी मौतें, इन कमज़ोर समुदायों की तकलीफें और बढ़ा देती हैं.
2020 में, बलोचिस्तान टाइम्स के एडिटर साजिद हुसैन, स्वीडन में स्टॉकहोम के पास, एक नदी में मरे हुए पाए गए. हुसैन मार्च में ग़ायब हो गए थे और उन्हें आख़िरी बार स्टॉकहोम से उपसला के लिए ट्रेन लेते देखा गया था. उनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए पुलिस ने कहा कि उससे ‘कुछ संदेह दूर हो गया था कि वो किसी अपराध का शिकार हुए थे’. साजिद हुसैन बलोचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और ज़बर्दस्ती ग़ायब कर दिए जाने की घटनाओं की ख़बरें दिया करते थे.
इस साल के शुरू में एक पाकिस्तानी असंतुष्ट वक़ास गोराया पर, जो ख़ुद से ही नीडरलैंड्स में निष्कासित जीवन बिता रहे थे, रॉटरडैम में उनके घऱ के बाहर हमला करके धमकाया गया. 2017 में गोराया उन चार प्रगतिशील ब्लॉगर्स में थे, जिन्हें पाकिस्तान में कई हफ्ते तक अग़वा करके रखा गया था. रिहा होने के बाद, वो नीडरलैण्ड्स चले गए लेकिन पाकिस्तान में उनके परिवार को अभी भी धमकियां मिलती हैं.
पत्रकार और समीक्षक तहा सिद्दीक़ी ने 2018 में उन्हें अग़वा करने की कोशिश किए जाने के बाद पाकिस्तान छोड़ दिया. पेरिस में आत्म निर्वासन में रहते हुए, वो ख़ुद को असुरक्षित महसूस करते हैं. उनका कहना है कि उन्हें फ्रांसीसी और अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसियों से कई बार चेतावनियां मिली हैं कि उनकी जान को ख़तरा है.
If u think Pakistan Army cannot kill dissidents abroad, listen to this interview of General Musharraf, country's last military dictator. He hints at it, justifying assassinations of "traitors" abroad.
Was #SajidHussain, the dead exiled Baloch journalist victim of such a plan? pic.twitter.com/bgXahi1skx
— Taha Siddiqui (@TahaSSiddiqui) May 1, 2020
चीज़ें अलग हो सकती हैं
जब इमरान ख़ान विपक्ष में ही थे और बड़े बड़े वादे कर रहे थे तो एक बात जो वो कहा करते थे वे ये कि अगर वो पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म होते और अगर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां किसी को भी ग़ैर-क़ानूनी ढंग से पकड़तीं तो या तो एजेंसी को उसकी क़ीमत चुकानी पड़ती या फिर वो पीएम न रहते.
क़रीब दो साल और कई गुमशुदगियों के बाद और कार्यकर्ताओं की जान को ख़तरे और पीएम इमरान ख़ान के वादों की लंबी फेहरिस्त के बाद अब हम यहां हैं. ज़बर्दस्ती ग़ायब किए जाने का मुद्दा आज भी बना हुआ है, सरकार की तरफ से उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया है.
मिसिंग परसंस कमीशन के मुताबिक़ ऐसे कुल मामलों की तादात 6,854 पहुंच गई है, जबकि पाकिस्तान में मानवाधिकार समूहों का कहना है कि ये संख्या कहीं ज़्यादा है. इस साल न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग की एक तीखी रिपोर्ट में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि किस तरह मिसिंग परसंस कमीशन ज़बर्दस्ती ग़ायब करने के लिए किसी एक अपराधी को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सका है: ‘एक ऐसा कमीशन जो न तो दंडमुक्ति की समस्या को देखता है और न ही पीड़ितों और उनके परिवारों को इंसाफ दिला सकता है, निश्चित रूप से कारगर नहीं समझा जा सकता’. इस बीच लोग लगातार ग़ायब हो रहे हैं और इसका कोई जवाब नहीं कि उन्हें कौन और क्यों ले गया.
बलोचिस्तान और पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में, करीमा मेहराब बलोच को इंसाफ दिलाने के लिए मुज़ाहिरे हो रहे हैं, लेकिन एक बड़ा सवाल अभी बरक़रार है: पाकिस्तान के अंदर और उसके बाहर, बलोच लोगों के लिए समान अधिकारों की मांग करना, कितना सुरक्षित है?
(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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