scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतजो लोग कहते थे कि लोकतंत्र मर गया है, ज़रा रुकिए! एक दशक बाद भारतीय राजनीतिक लीग में ‘खेल’ जारी है

जो लोग कहते थे कि लोकतंत्र मर गया है, ज़रा रुकिए! एक दशक बाद भारतीय राजनीतिक लीग में ‘खेल’ जारी है

नतीजों से तीन निष्कर्ष निकलते हैं: भारतीय राजनीति गठबंधन के अपने ढर्रे पर लौट आई है, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है और कांग्रेस पुनर्जीवित हो गई है.

Text Size:

सच कहूं तो चुनाव परिणाम 2024 की सबसे बड़ी हेडलाइन हमें तब मिली जब 4 जून की दोपहर बाद वोटो की गिनती से रुझान स्पष्ट हो गया और खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू से फोन पर बात की है.

ज़ाहिर है, हम इस बात को और आगे ले जाएंगे और इन सबके बाद तीन बातें क्या हो सकती हैं. और इसके बाद, इन घटनाओं और दूसरी उपलब्धियों के गहरे विश्लेषण में जुट जाने से पहले हम चार शेखियों की भी गिनती करेंगे, लेकिन पहले, तीन निष्कर्षों की बात करते हैं.

पहला निष्कर्ष तो यह है कि भारतीय राजनीति एक दशक के अंतराल के बाद गफलत से 1989 के बाद के गठबंधन वाले दौर में फिर लौट गई है. दूसरा निष्कर्ष यह है कि मोदी की भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है और तीसरा यह कि करीब 100 सीटों के साथ कांग्रेस को पुनर्जीवन मिल गया है. यहां पर आकर मैं अपनी शेखियों को थोड़ा विराम दे रहा हूं.

  • जिन लोगों ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र मर चुका है और दफन भी हो चुका, खत्म हो चुका है, कि हम लोग एक फांसीवादी शासन के तले नाउम्मीद हो चुके लोग हैं, उनसे अनुरोध है कि जरा सुस्ता लीजिए और कुछ ठंडा पीजिए. अगर आपको ज़रूरी लगे तो इसके साथ दिल की धड़कने शांत करने वाली गोली भी गटक सकते हैं, लेकिन इससे पहले डॉक्टर से सलाह ज़रूर ले लीजिए.
  • जिन लोगों ने कहा था कि भारत के मतदाताओं का इतना ध्रुवीकरण हो गया है, कि वे हिंदुत्व वाले देसी घी में इतने भुने जा चुके हैं कि वे मुसलमानों के विरोध में हैं और इसलिए मोदी को वोट देते रहेंगे, ऐसे लोग कृपया उन 64 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं से माफी मांगें जो जला डालने वाली प्रचंड गर्मी में भी वोट डालने गए. इस बात पर भी गौर कीजिए कि अयोध्या (फैज़ाबाद) में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ रहा है.
  • और तीसरी बात सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे मुझे पहले नंबर पर रखना चाहिए था. यह कसम खाइए कि भारतीय चुनाव व्यवस्था की साख पर आप कभी सवाल नहीं उठाएंगे — चाहे यह ईवीएम हो या निर्वाचन आयोग हो या चुनाव आयुक्त हों, या इस विशाल प्रक्रिया को शांतिपूर्ण, हिंसा मुक्त औए विश्वसनीय तरीके से संपन्न कराने में जुटे लाखों कर्मचारी हों. भारतीय चुनाव व्यवस्था एक ग्लोबल, सर्वजन हिताय वाली व्यवस्था है. इस पर कभी हमला मत कीजिए. देखना हो तो मेक्सिको में हुए चुनाव को देखिए, जो भारत में हुए चुनाव के साथ-साथ कराए गए और जिसमें 37 उम्मीदवारों की हत्या की गई. भारत में किसी को चोट तक नहीं पहुंचाई गई. मेक्सिको की प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भारतीय आंकड़े से चार गुना ज्यादा बड़ा है.
  • निश्चित रूप से, चुनाव आयोग के काम करने के तरीके के बारे में कई शिकायतें और आलोचनाएं थीं और संस्था को बहुत से जवाब देने हैं. मीडिया में हुई बहसों में इन मुद्दों को उठाया गया, जिसमें दिप्रिंट पर भी खूब चर्चा हुई. इसे संस्थागत कब्जे या चुनावों की संभावित चोरी के साथ जोड़ना एक बेकार फैंटेसी है.
  • और अंत में बैंकरों, निवेशकों और फंड मैनेजरों से एक अनुरोध, क्योंकि यह लेख ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ अखबार में भी प्रकाशित हो रहा है. शेयर बाज़ारों में उथल-पुथल पर ज़रा नज़र डालिए. आप सब महानुभाव उन लाखों लोगों से वादा कीजिए, जो अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई के साथ आप सब पर भरोसा करते हैं, कि आप अपना वोट जिस दृष्टि से देते हैं उस दृष्टि से बाज़ार में अपनी पहल नहीं करेंगे. मैं मानता हूं कि राजनीतिक विश्लेषण का बड़ा आकर्षण होता है, लेकिन इसके साथ आपकी साख और आपके निवेशकों के पैसे जोखिम में रहते हैं. इसलिए इसे हम जैसों के लिए छोड़ दीजिए. हम आपकी तरह स्मार्ट नहीं हैं, लेकिन हममें वह खासियत है जो बाज़ार पर नज़र रखने वाले किसी मासूम और भावुक शख्स में नहीं होती है. वह खासियत है स्वस्थ राजनीतिक संशय वाली दृष्टि. इस चुनाव अभियान के दौरान मैंने फंड हाउसों और दलालों में सबसे भयानक और डरावनी बात देखी. वे चुनाव यात्राओं पर निकले और ऐसे कई रिपोर्टें लिखीं जिनमें भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिलने के दावे किए गए. एक मतदाता के रूप में वह आपकी ख्वाहिश थी. आपमें निवेश करने वाले अब उसकी कीमत चुका रहे हैं.

शेखियां खत्म हुई, अब सियासत की ओर लौटते हैं. यह चुनाव परिणाम सामान्य राजनीति में वापसी के संकेत दे रहा है. अब अगली लड़ाई के लिए मैदान तैयार हो गया है. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव होने वाले हैं. इनके ठीक बाद जम्मू-कश्मीर के चुनाव के लिए सांसें रोक कर तैयार रहिएगा, जहां की छह लोकसभा सीटों में से भाजपा केवल दो जीत पाई है. उपरोक्त हर चुनाव के लिए इस लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए एक खतरनाक चेतावनी हैं.

महाराष्ट्र में भाजपा को 2019 में मिली सीटों से आधी सीटें मिली हैं. गौर कीजिएगा, इस बार उसके पास एक सहयोगी भी ज्यादा था — अजित पवार वाली एनसीपी. ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके दोनों सहयोगी — या मूल पार्टी से तोड़े गए घटक — आज गोता खा चुके हैं. महाराष्ट्र के मतदाताओं ने साफ कर दिया है कि वे मूल दलों को ही असली शिवसेना और एनसीपी मानते है. भाजपा अब खुद को अपरिचित स्थिति में पा रही है जिसमें उसे अपनी सुरक्षा मजबूत करनी है क्योंकि एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी घर वापसी के बारे में विचार कर सकती हैं.

अगर नये उत्साह से भरा विपक्ष महाराष्ट्र को सबसे बड़े उपहार के रूप में जीतना चाहेगा, तो हरियाणा भाजपा के लिए सीधा खतरा बन रहा है. 2019 में उसने उसकी सभी 10 सीटें 58.2 फीसदी वोट के साथ जीती थी, लेकिन अब वह उसकी पांच सीटें कांग्रेस के हाथों गंवा चुकी है. अंतिम समय में मुख्यमंत्री बदलना कोई काम न आया. दिल्ली से सटे राज्य को खोना भाजपा को चिंता में डाल सकता है.

तीसरा प्रमुख राज्य, जहां चुनाव होने वाला है, वह झारखंड है. वहां भी समीकरण अब बदल चुका है. वहां भी 2019 में भाजपा ने 14 में से 11 सीटें जीती थी, लेकिन आज वह चार सीटें कांग्रेस-झामुमो गठबंधन के हाथों गंवा चुकी है. अगर यही गति बनी रही तो यह गठबंधन सरकार विरोधी लहर को पलट सकता है. मुमकिन है, भाजपा हेमंत सोरेन को जेल में बंद रखने पर पुनर्विचार करे.

उक्त तीन राज्यों के चुनाव फेफड़ों में ताज़ा हवा भरेंगे जबकि संसद के गठन के बाद नया इंडियन पोलिटिकल लीग शुरू हो जाएगा. इसकी रफ्तार तेज़ रहेगी और केवल जनवरी में राजधानी में होने वाले चुनाव में नहीं. अरविंद केजरीवाल और मनीष सीसोदिया को भी जेल में बंद रखने की बुद्धिमानी की भी समीक्षा की जाएगी. इसके साथ ही, नई सरकार जेल में बंद दो ‘उग्रवादियों’, इंजीनियर राशिद और अमृतपाल सिंह के मामले का क्या करेगी, जो क्रमशः बारामूला और खडूर साहिब से बड़े बहुमत से चुनाव जीते हैं?

अब हम राजनीति से शासन पर आते हैं. सबसे पहली बात यह है कि जबकि इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता के रूप में नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन यह भाजपा की नहीं बल्कि एनडीए की सरकार और उसका मंत्रिमंडल होगा.

ऐसा एक दशक से नहीं हुआ था. वास्तव में, मोदी की दोनों सरकारों में ज्यादातर समय एनडीए का कैबिनेट में कोई मंत्री नहीं था, सिवाए रामविलास पासवान के. ज़रूरत और वजूद की मांग का सिद्धांत भाजपा को अपने सहयोगियों, खासकर चंद्रबाबू नायडू जैसे सहयोगियों के लिए जगह छोड़ने पर मजबूर करेगा और उसे नायडू और नीतीश कुमार की ओर से अपने-अपने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग के लिए तैयार रहना होगा. आज उनका पलड़ा भारी है.

ओड़िशा भाजपा के लिए सांत्वना पुरस्कार से ज्यादा ही है. उसने पहली बार इस राज्य को जीता है और वहां स्पष्ट बहुमत हासिल किया है. ज़्यादातर ‘हार्टलैंड’ की पार्टी के रूप में मशहूर पार्टी ने एक और तटवर्ती, पूरब के पहले राज्य को अपने कब्ज़े में किया है, लेकिन दक्षिण में उसके महत्वाकांक्षी अभियान को रोक दिया गया है, उसके निशाने पर रहने वाली ममता बनर्जी और मजबूत होकर उभरी हैं और मणिपुर, नागालैंड, मेघालय में उसकी हार के कारण वहां कांग्रेस के उभार की संभावना उसके लिए खतरे की घंटी है.

वास्तव में इस चुनाव के नतीजे को महज़ दो शब्दों में कहा जा सकता है — खेलते रहो!

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: Lok Sabha elections 2024 results : NDA सरकार बनाने को तैयार, INDIA ने कहा — मिलकर करेंगे मंथन


 

share & View comments