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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतमोदी ने 1 तीर से किया 'आत्मघाती पाक जनरल' और 'एटमी धमकी' का शिकार

मोदी ने 1 तीर से किया ‘आत्मघाती पाक जनरल’ और ‘एटमी धमकी’ का शिकार

पाकिस्तान मिलिट्री जिस इस्लामिक सिद्धांत की अकड़ दिखाती आई है, मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री मोदी के पास उसे लेकर व्यवहारिक बुद्धि और ज़रूरी समझ है.

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उत्तरी सेना के कमांडर ने बेहद आश्चर्यजनक बयान दिया. उन्होंने कहा कि पुलवामा के बाद हुआ टकराव गतिरोध के तौर पर समाप्त हुआ और इस वजह से ये भारत की हार है. इसके पहले भी मेरी कई सेना कमांडरों से बात हुई है. उनके पास सिर्फ भारत के रणनीतिक कम्पास की ही नहीं बल्कि दुनिया भर पर मंडरा रहे ख़तरों से जुड़ी बहुआयामी जानकारी होती है. लेकिन भारत-पाक के बीच हुए 90 घंटों के संघर्ष की समझ को लेकर भारी दिक्कत है और ये सामरिक-रणनीतिक के बीच उलझान पैदा करता है और फौज की रणनीति को राष्ट्रीय रणनीति के साथ भी.

आज के आधुनिक हाईब्रिड युद्ध में जहां पांचवें और छठे जनरेशन की युद्धकला में मिलिट्री एक पहलू है, हालांकि ये एक अहम पहलू है. आर्थिक, राजनयिक और जानकारी आधारित युद्ध भी उतना ही अहम है और यही हाल राष्ट्रीय इच्छाशक्ति का भी है. इसमें अगर कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा थोपे गए पांचवें जेनरेशन की युद्धकला को जोड़ दें तो ये चक्र पूरा हो जाता है. सैन्य रणनीतिकारों ने तीन दशक तक एक बात को लेकर निराशा जताई है. ये निराशा पाकिस्तान द्वारा भारत को अक्सर दिए जाने वाले न्यूक्लियर झांसे को उजागर नहीं कर सकने से जुड़ा रहा है. 1980 के दशक में ही ये बात उजागर हो गई थी कि पाकिस्तान वास्तव में एक परमाणु ताकत है, भारतीय बुद्धिमता के ऊपर अकर्मण्यता का एक सामुहिक पर्दा सा पड़ गया.


यह भी पढ़ें: 90-घंटे के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उठा सबसे बचकाना सवाल, कितने आदमी थे?


हमने एकमत से तय कर लिया कि पाकिस्तानी आर्मी एक ऐसी ताकत है जो ‘जिहाद फी सबीलिल्लाह’ (अल्लाह के नाम पर युद्ध) का महिमामंडन करती है और परमाणु हमला करने के मामले में ये ज़रा भी नहीं हिचकेगी. काश की हमने इस्लामिक सिद्धांत का सावधानी से अध्ययन किया होता और इसका मिलान दुनिया की उन जन्नत के साथ किया होता जिसे पाकिस्तानी जेनरलों ने अपने जीवन काल में हासिल करने के बजाए अपने लिया बनाया था तो हम जान जाते कि पाकिस्तानी जनरलों उस भव्य स्थिति और संपत्ति को कभी अपने हाथों से नहीं जाने देंगे जिसका उपभोग वो इन जन्म में कर रहे हैं. ऐसे में आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल का मिथक महज़ एक मिथक ही है.

कोई भी दृढ़ सैन्य रणनीतिकार कहेगा कि हम दुश्मन के सिद्धांत का आंकलन जिस हद तक जाकर हो सके करते हैं. हम बस उन अनुमानों, झांसों और धमकियों के हिसाब से चलते रहे जो बॉर्डर पार के जनरल हमारी ओर बढ़ाते रहे. हमने कारगिल युद्ध के समय एलओसी पार नहीं किया. इसकी वजह से हमने दुश्मन को ये ग़लत संदेश दिया कि हम इसे परमाणु बम भरे पागलपन से डरते हैं और हम इसकी आत्मघाती परिकथा को गंभीरता से लेते हैं.

हम इससे बच सकते थे अगर हमने इस सिद्धांत का आंकलन इसके इस्लामिक जड़ों के हिसाब से किया होता और ये पता किया होता कि पाकिस्तानी जनरल असल ज़िंदगी में कैसे बर्ताव करते हैं. इसे ‘आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल’ की परिकथा को समाप्त करने के लिए हमें बालाकोट पर हवाई हमला करना पड़ा. पाकिस्तान मिलिट्री जिस इस्लामिक सिद्धांत की अकड़ दिखाती आई है, मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री मोदी के पास उसे लेकर व्यावहारिक बुद्धि और ज़रूरी समझ है. इसी की वजह से वो पाकिस्तानी के परमाणु झांसे में नहीं आए और पाक के सिद्धांत की सीमा का पर्दाफाश कर दिया. यही हाल उन्होंने ‘आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल’ की परिकथा का भी किया.

इसमें भारतीय सशस्त्र बलों ने भी प्रधानमंत्री का साथ दिया. सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी फौज की उस सीढ़ी को तोड़ दिया जिसके सहारे वो तनाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे. ये ‘आत्मघाती’ सिद्धांत तभी सफल हो सकता है जब पाकिस्तान भारतीय एयरफोर्स द्वारा इतने गहरे में जाकर किए गए हमले के बाद तनाव को देखते ही देखते बढ़ाने में सफल हो जाता है. भारत ने पाकिस्तान में गहराई तक घुसकर मारने में सफलता हासिल की. इसके लिए वो एलओसी पार कर गए और खैबर पख्तूनख्वा को निशाना बनाया जिसकी वजह से पाकिस्तानी एयरफोर्स तनाव बढ़ाने में नाकाम रही. इससे भारत ने हवा में अपनी शानदार श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया.


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इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के ऊपर पूरी तरह से कूटनीतिक श्रेष्ठता दिखाते हुए आर्थिक और राजनयिक दबाव बनाय. इसकी वजह से पाकिस्तान के भविष्य के सभी विकल्पों पर लगाम लग गई. ऐसे में भारत ने पुलवामा के बाद काफी कुछ हासिल किया है. इसने लक्ष्मण रेखा फिर से खींचने का काम किया है और पाकिस्तान पर आर्थिक-कूटनीतिक दबाव बनाकर दीर्घकालिक रणनीतिक समाधान के लिए ज़मीन तैयार की है. पाकिस्तानी आर्मी के लिए शांति किसी अभिशाप की तरह है. इसकी वजह ख़ुद को मिले ताज़ा ज़ख्मों की वजह से ये पाकिस्तान के ख़जाने में और बड़ा हाथ मारने की कोशिश करेगी और ये इसके पतन की वजह बनेगा.

उत्तरी सेना के कमांडर ने बेहद आश्चर्यजनक बयान दिया. उन्होंने कहा कि पुलवामा के बाद हुआ टकराव गतिरोध के तौर पर समाप्त हुआ और इस वजह से ये भारत की हार है. इसके पहले भी मेरी कई सेना कमांडरों से बात हुई है. उनके पास सिर्फ भारत के रणनीतिक कम्पास की ही नहीं बल्कि दुनिया भर पर मंडरा रहे ख़तरों से जुड़ी बहुआयामी जानकारी होती है. लेकिन भारत-पाक के बीच हुए 90 घंटों के संघर्ष की समझ को लेकर भारी दिक्कत है और ये सामरिक-रणनीतिक के बीच उलझान पैदा करता है और फौज की रणनीति को राष्ट्रीय रणनीति के साथ भी.

आज के आधुनिक हाईब्रिड युद्ध में जहां पांचवें और छठे जनरेशन की युद्धकला में मिलिट्री एक पहलू है, हालांकि ये एक अहम पहलू है. आर्थिक, राजनयिक और जानकारी आधारित युद्ध भी उतना ही अहम है और यही हाल राष्ट्रीय इच्छाशक्ति का भी है. इसमें अगर कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा थोपे गए पांचवें जेनरेशन की युद्धकला को जोड़ दें तो ये चक्र पूरा हो जाता है. सैन्य रणनीतिकारों ने तीन दशक तक एक बात को लेकर निराशा जताई है. ये निराशा पाकिस्तान द्वारा भारत को अक्सर दिए जाने वाले न्यूक्लियर झांसे को उजागर नहीं कर सकने से जुड़ा रहा है. 1980 के दशक में ही ये बात उजागर हो गई थी कि पाकिस्तान वास्तव में एक परमाणु ताकत है, भारतीय बुद्धिमता के ऊपर अकर्मण्यता का एक सामुहिक पर्दा सा पड़ गया.

हमने एकमत से तय कर लिया कि पाकिस्तानी आर्मी एक ऐसी ताकत है जो ‘जिहाद फी सबीलिल्लाह’ (अल्लाह के नाम पर युद्ध) का महिमामंडन करती है और परमाणु हमला करने के मामले में ये ज़रा भी नहीं हिचकेगी. काश की हमने इस्लामिक सिद्धांत का सावधानी से अध्ययन किया होता और इसका मिलान दुनिया की उन जन्नत के साथ किया होता जिसे पाकिस्तानी जेनरलों ने अपने जीवन काल में हासिल करने के बजाए अपने लिया बनाया था तो हम जान जाते कि पाकिस्तानी जनरलों उस भव्य स्थिति और संपत्ति को कभी अपने हाथों से नहीं जाने देंगे जिसका उपभोग वो इन जन्म में कर रहे हैं. ऐसे में आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल का मिथक महज़ एक मिथक ही है.

कोई भी दृढ़ सैन्य रणनीतिकार कहेगा कि हम दुश्मन के सिद्धांत का आंकलन जिस हद तक जाकर हो सके करते हैं. हम बस उन अनुमानों, झांसों और धमकियों के हिसाब से चलते रहे जो बॉर्डर पार के जनरल हमारी ओर बढ़ाते रहे. हमने कारगिल युद्ध के समय एलओसी पार नहीं किया. इसकी वजह से हमने दुश्मन को ये ग़लत संदेश दिया कि हम इसे परमाणु बम भरे पागलपन से डरते हैं और हम इसकी आत्मघाती परिकथा को गंभीरता से लेते हैं.

हम इससे बच सकते थे अगर हमने इस सिद्धांत का आंकलन इसके इस्लामिक जड़ों के हिसाब से किया होता और ये पता किया होता कि पाकिस्तानी जनरल असल ज़िंदगी में कैसे बर्ताव करते हैं. इसे ‘आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल’ की परिकथा को समाप्त करने के लिए हमें बालाकोट पर हवाई हमला करना पड़ा. पाकिस्तान मिलिट्री जिस इस्लामिक सिद्धांत की अकड़ दिखाती आई है, मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री मोदी के पास उसे लेकर व्यावहारिक बुद्धि और ज़रूरी समझ है. इसी की वजह से वो पाकिस्तानी के परमाणु झांसे में नहीं आए और पाक के सिद्धांत की सीमा का पर्दाफाश कर दिया. यही हाल उन्होंने ‘आत्मघाती पाकिस्तानी जनरल’ की परिकथा का भी किया.

इसमें भारतीय सशस्त्र बलों ने भी प्रधानमंत्री का साथ दिया. सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी फौज की उस सीढ़ी को तोड़ दिया जिसके सहारे वो तनाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे. ये ‘आत्मघाती’ सिद्धांत तभी सफल हो सकता है जब पाकिस्तान भारतीय एयरफोर्स द्वारा इतने गहरे में जाकर किए गए हमले के बाद तनाव को देखते ही देखते बढ़ाने में सफल हो जाता है. भारत ने पाकिस्तान में गहराई तक घुसकर मारने में सफलता हासिल की. इसके लिए वो एलओसी पार कर गए और खैबर पख्तूनख्वा को निशाना बनाया जिसकी वजह से पाकिस्तानी एयरफोर्स तनाव बढ़ाने में नाकाम रही. इससे भारत ने हवा में अपनी शानदार श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया.

इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के ऊपर पूरी तरह से कूटनीतिक श्रेष्ठता दिखाते हुए आर्थिक और राजनयिक दबाव बनाय. इसकी वजह से पाकिस्तान के भविष्य के सभी विकल्पों पर लगाम लग गई. ऐसे में भारत ने पुलवामा के बाद काफी कुछ हासिल किया है. इसने लक्ष्मण रेखा फिर से खींचने का काम किया है और पाकिस्तान पर आर्थिक-कूटनीतिक दबाव बनाकर दीर्घकालिक रणनीतिक समाधान के लिए ज़मीन तैयार की है. पाकिस्तानी आर्मी के लिए शांति किसी अभिशाप की तरह है. इसकी वजह ख़ुद को मिले ताज़ा ज़ख्मों की वजह से ये पाकिस्तान के ख़जाने में और बड़ा हाथ मारने की कोशिश करेगी और ये इसके पतन की वजह बनेगा.

जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, पाकिस्तान एक स्थिर देश नहीं है. ये इस्लामिक धर्माशास्त्र में विधेय एक विचार है. पाकिस्तान आर्मी ने ख़ुद ही ख़ुद को इस विचार का रक्षक बनाया है. पंजाब प्रांत के बाहर की पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी इस विचार में विश्वास नहीं करती. इसकी वजह से भारत के पास अपने हाईब्रिड युद्ध को जारी रखने का मौका है. इसके लिए भारत अपनी सैन्य क्षमता और आर्थिक ताकत को मज़बूत कर सकता है. कूटनीतिक और जानकारी आधारित जंग पहले से जारी है लेकिन ये और दृढ़ हो जाएगा.

हमारी लंबे समय की रणनीति ये होनी चाहिए कि हम एक विचार के तौर पर मौजूदा पाकिस्तान को बर्बाद कर दें. पुलवामा के बाद भारत ने इस ओर मज़बूत बढ़त बनाई है. हमें आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. ऐसे में, पुलवामा के बाद के पहले राउंड में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जारी हाईब्रिड युद्ध में भारत को जबरदस्त जीत मिली है. ऐसे में ये कहना कि ये एक गतिरोध में समाप्त हुआ ग़लत होगा. हमें इस दिशा में और आगे बढ़ने की ज़रूरत है.

(लेखक एक आईएएस अधिकारी हैं और राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व-अध्यक्ष हैं.)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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