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Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमतइस साल कम वृद्धि का आधार ही आर्थिक सूखे की समाप्ति को सुनिश्चित करेगा

इस साल कम वृद्धि का आधार ही आर्थिक सूखे की समाप्ति को सुनिश्चित करेगा

अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक राय रखने वाले सही हो सकते हैं, जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि दूसरी तिमाही में विकास दर 5.8 प्रतिशत की रफ्तार पकड़ सकता हैं. विकास दर तीसरी तिमाही में 6.4 प्रतिशत और चौथे तिमाही में 7.2 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. कम वृद्धि का आधार इसे बल देगा.

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भारतीय रिज़र्व बैंक, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विभिन्न रेटिंग एजेंसियां, निवेश बैंक और कई अन्य संस्थान आर्थिक वृद्धि के अपने पूर्वानुमानों में दनादन संशोधन कर रहे हैं. इनमें से लगभग सभी को इस वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर छह प्रतिशत या इससे दशमलव एक या दो प्रतिशत कम-ज़्यादा रहने का भरोसा है. अधिकांश प्रेक्षक इस दर को निराशाजनक मानते हैं क्योंकि अभी कुछ ही दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण में, रिज़र्व बैंक की रिपोर्टों में और अन्य जगहों पर घोषित पूर्वानुमानों में जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत के आसपास रहने की भविष्यवाणी की गई थी. निश्चय ही छह प्रतिशत पिछले साल के 6.8 प्रतिशत, -जो कि अपेक्षित से कम था– के मुकाबले काफी कम है. हम 2012-13 के बाद सबसे धीमे आर्थिक विकास के दौर से गुजर रहे हैं.

वैसे, इस साल के लिए विकास दर के मामूली छह प्रतिशत रहने की भविष्यवाणी को भी आशावाद ही माना जाएगा, क्योंकि पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर महज पांच प्रतिशत रही थी और दूसरी तिमाही में भी आशाजनक ख़बरें कम ही आई हैं. जबकि पूरे साल के लिए छह प्रतिशत की दर होने के वास्ते अक्टूबर-मार्च अवधि में विकास दर सात प्रतिशत होनी चाहिए. इस संख्या पर भला कौन दांव लगाएगा, जब वास्तविक आंकड़ों के अनुसार निर्यात और आयात लगातार कम हो रहे हैं, कारों की बिक्री में गिरावट जारी है और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ने एक बार फिर उत्पादन में कमी दर्ज की है. साथ ही, कर राजस्व का स्तर (खास कर वस्तु और सेवा कर से) बजट अनुमानों के मुकाबले कम चल रहा है, टैक्स ब्रेक को छोड़ दें तो कॉरपोरेट जगत से निराशाजनक परिणाम ही आ रहे हैं, ऋण की उपलब्धता कम है, ईंधन की खपत के रुझानों से विकास की गति टूटने के संकेत मिलते हैं, रिहाइशी ज़मीन-जायदाद की बिक्री में भारी गिरावट का दौर जारी है, पूंजीगत वस्तुओं के ऑर्डर नहीं के बराबर आ रहे हैं और रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीज़ों की बिक्री धीमी पड़ी है.

यहां तक कि हाल तक तेजी से बढ़ रहे विमानन और सीमेंट जैसे सेक्टरों में भी वृद्धि नाम मात्र की हो रही है या थम चुकी है. इन सबका पूर्वानुमान लगाने वालों के अनुसार हो रही मामूली वृद्धि से भी तालमेल बिठाना कठिन है.


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हालांकि, रिज़र्व बैंक को अपनी राय बताने वाले आर्थिक भविष्यवक्ताओं की ये बात शायद सही निकले कि जुलाई-सितंबर की तिमाही में वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत से ऊपर रहेगी और मौजूदा तिमाही (6.4 प्रतिशत) और अगली तिमाही (7.2 प्रतिशत) के लिए स्थितियां और भी बेहतर रहेंगी. तीन तिमाहियों के भीतर उनके 5 प्रतिशत से 7.2 प्रतिशत तक की आशावादी छलांग लगाने की वजह एक जानी-पहचानी सांख्यिकी विचित्रता है- विकास दर मापने के लिए निचले स्तर का या कम आधार. इसी वजह से, 2020-21 में वार्षिक विकास दर 7 प्रतिशत या अधिक रहने की भविष्यवाणी को वास्तविकता से परे नहीं माना जाना चाहिए.

इन संख्याओं को ठीक से समझने के लिए विकास दर में नोटबंदी के बाद आई गिरावट के दौर से बात शुरू करनी चाहिए जो कि अप्रैल-जून 2017 में 5.7 प्रतिशत रह गई थी. आकलन के लिए उस कम आधार दर की मदद से अगले साल 2018 की उसी तिमाही के लिए वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत दर्ज हो पाई. जाहिर है ये आगे के तुलनात्मक आकलन के लिए बहुत ऊंचा आधार बन गया जिसने 2019 के अप्रैल-जून के आंकड़े को नीचे धकेल कर 5 प्रतिशत पर ला दिया. यदि आंकड़ों की इस उठापटक में से तीन वर्षों की समान तिमाही के लिए औसत वृद्धि दर निकाली जाए तो वो 6.3 प्रतिशत आएगी – ज़ोरदार आंकड़ा नहीं है, पर इतना भी कम नहीं है कि दुनिया में जारी आर्थिक सुस्ती के इस माहौल में इस पर मातम मनाया जाए!

यही कवायद पिछले तीन वर्षों की दूसरी तिमाही के लिए करें (2017-18-19 के जुलाई-सितंबर की अवधि के लिए, जिसमें इस साल का 5.8 फीसदी का पूर्वानुमान शामिल है) तो औसत आंकड़ा 6.4 प्रतिशत का निकलेगा – यानी किसी बड़े बदलाव के संकेत नहीं दिखते हैं. तुलनात्मक दृष्टि से तीसरी और चौथी तिमाही में हल्की वृद्धि होती दिखती है– तीसरी और चौथी तिमाही की वृद्धि दर का औसत क्रमश: 6.7 प्रतिशत और 6.9 प्रतिशत निकलता है. दूसरे शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था के बारे में पूर्वानुमान लगाने वालों को इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में विकास दर में हल्की-सी तेजी आने की उम्मीद है.


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क्या इस मामूली आशावाद को भी जायज़ ठहराया जा सकता है? अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों से मिल रहे पहले से बुरे आंकड़ों को देखते हुए, शायद अभी नहीं. स्थिति में सुधार की संभावनाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से अलग करके भी नहीं देखा जा सकता जिसे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चौतरफा मंदी की स्थिति करार दिया है. पर आर्थिक गिरावट का हर दौर खत्म होता है, और स्थिति अंतत: सुधरने लगती है. इसलिए अगले वित्तीय वर्ष की पहली छमाही का इंतजार करें, जब इस साल के सचमुच के निम्न सांख्यिकी आधार की वजह से वृद्धि दर के शानदार आंकड़े सामने आएंगे. और तब सरकार का प्रचार तंत्र अतिसक्रिय हो जाएगा!

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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