scorecardresearch
Tuesday, 19 November, 2024
होममत-विमतमोदी की सबसे बड़ी गलतियां, और जानें क्यों एक डाटा विश्लेषक ने छोड़ी भाजपा

मोदी की सबसे बड़ी गलतियां, और जानें क्यों एक डाटा विश्लेषक ने छोड़ी भाजपा

Text Size:

यहाँ कुछ उदाहरण हैं कि कैसे भाजपा राष्ट्रीय संवाद को एक अँधेरे कोने में धकेल रही है। यह वह नहीं है जिसके लिए मैं जुड़ा था।

देश में राजनीतिक संवाद अपने निम्नतम स्तर पर है, कम से कम मेरे समय में तो है ही है। भेदभाव अविश्वसनीय है और लोगों द्वारा अपने पक्षों का समर्थन करना जारी है फर्क नहीं पड़ता कि साक्ष्य क्या है; साबित होने के बाद भी कि वे नकली खबरें फैलाते रहे हैं, उन्हें कोई पछतावा नहीं है। इसके लिए सभी, पार्टियों और मतदाताओं / समर्थकों, को दोषी ठहराया जाना चाहिए ।

भाजपा ने अविश्वसनीय रूप से प्रभावी प्रोपेगंडा के साथ कुछ विशिष्ट संदेशों को फ़ैलाने में बहुत गजब का काम किया है और ये सन्देश प्राथमिक कारण हैं कि मैं अब और पार्टी का समर्थन नहीं कर सकता।

लेकिन इससे पहले कि हम इनमें से किसी तक जाएँ, मैं चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति इस बात को समझे कि कोई भी दल पूरी तरह बुरा नहीं है और न ही कोई दल पूरी तरह से अच्छा है।

सभी सरकारों ने कुछ-कुछ मोर्चों पर कुछ अच्छा कुछ बुरा काम किया है। यह सरकार अलग नहीं है।

अच्छे कार्य

  1. सड़क निर्माण पहले की तुलना में तेज है। सड़क लम्बाई की गणना पद्धति में बदलाव आया है लेकिन इसके बावजूद भी इसमें तेजी दिखाई देती है।
  2. बिजली कनेक्शन में वृद्धि – सभी गाँव विद्युतीकृत हो चुके हैं और लोगों को अधिक घंटों तक बिजली मिल रही है। (कांग्रेस ने पांच लाख से अधिक गांवों में बिजली पहुंचाई थी और मोदी जी ने आखिरी 18000 गांवों में बिजली पहुंचाकर कार्य समाप्त किया है, आप अपनी पसंद के अनुसार उपलब्धि का अनुमान लगा सकते हैं। इसी तरह आजादी के बाद से लोगों को मिलने वाली बिजली में वृद्धि हुई है लेकिन यह वृद्धि भाजपा के कार्यकाल में शायद ज्यादा है।)
  3. ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार कम हुआ है – अब तक मंत्री स्तर पर कोई बड़ा मामला नहीं है (लेकिन यूपीए प्रथम में भी ऐसा ही था)। निचला स्तर वही लगता है…. कोई भी थानेदारों, पटवारियों और अन्य को नियंत्रित करने में सक्षम प्रतीत नहीं होता है।
  4. स्वच्छ भारत मिशन निश्चित रूप से एक सफलता है – पहले की तुलना में अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ है और अब लोग स्वच्छता पर ध्यान दे रहे हैं।
  5. उज्ज्वला योजना एक बहुत अच्छी पहल है। यह देखना बाकी है कि कितने लोग दूसरा सिलिंडर खरीदते हैं। पहला सिलिंडर और एक चूल्हा मुफ्त था लेकिन अब लोगों को इसके लिए भुगतान करना है। सरकार के सत्ता में आने के बाद सिलिंडरों के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं और अब एक सिलिंडर की कीमत है 800 रुपये।
  6. निस्संदेह पूर्वोत्तर से कनेक्टिविटी बढ़ी है। अधिक ट्रेनें, सड़कें, उड़ानें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मुख्यधारा मीडिया में भी अब इस क्षेत्र के बारे में चर्चा हुई है।
  7. कानून व्यवस्था कथित तौर पर क्षेत्रीय दलों की तुलना में बेहतर हुई है।

नीचे कमेंट में अन्य उपलब्धियों, जो आप सोचते हैं, को निःसंकोच दर्ज करें, उपलब्धियों में अनिवार्य रूप से प्रतिवाद भी होता है, असफलताएं असंदिग्ध होती हैं।

प्रणालियों और राष्ट्रों के निर्माण में दशकों और सदियों का समय लगता है, भाजपा की सबसे बड़ी असफलता जो मैं देखता हूँ, यह है कि इसने बहुत ही कमजोर आधार पर कुछ अच्छी चीजों को नष्ट कर दिया है।

बुरे कार्य

प्रणालियों और राष्ट्रों के निर्माण में दशकों और सदियों का समय लगता है, भाजपा की सबसे बड़ी असफलता जो मैं देखता हूँ, यह है कि इसने बहुत ही कमजोर आधार पर कुछ अच्छी चीजों को नष्ट कर दिया है।

  1. चुनावी बांड्स – यह मूल रूप से भ्रष्टाचार को वैध बनाती है और कॉर्पोरेट्स और विदेशी शक्तियों को सिर्फ हमारे राजनीतिक दलों को खरीदने की अनुमति देती है। अनुबंध नामरहित हैं इसलिए यदि एक कॉर्पोरेट कहता है, मैं आपको 1000 करोड़ रुपये का एक चुनावी अनुबंध दूंगा, तो वहां कोई अभियोग नहीं होगा, कोई भी तरीक़ा नहीं है जहाँ क्विड-प्रो-क्यूयो एक अज्ञात साधन के साथ निर्धारित किया जा सके। यह इसकी भी व्याख्या करता है कि मंत्री स्तर पर भ्रष्टाचार कैसे कम हुआ है – यह प्रति फाइल/आदेश के स्तर पर नहीं है, यह अब अमेरिका की तरह नीति स्तर पर है।
  2. योजना आयोग की रिपोर्ट्स – यह डेटा के लिए एक प्रमुख स्रोत हुआ करता था। वे सरकारी योजनाओं की ऑडिट करते थे और बताते थे कि चीजें कैसे चल रही हैं। इसके जाने के बाद, सरकार आपको जो भी देती है, उस पर विश्वास करने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचता है (सीएजी ऑडिट लंबे समय बाद बाहर आती है!)। नीति आयोग के पास यह अधिकार नहीं है और मूल रूप से यह एक थिंक टैंक और पीआर एजेंसी है। योजना/गैर-योजना के अंतर को इसे हटाये बिना हटाया जा सकता था!
  3. सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग – जहां तक मैं देख सकता हूं, इनका इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है लेकिन यदि ऐसा नहीं भी हो रहा है तो भी डर वास्तविक है कि यदि लोग मोदी/शाह के खिलाफ कोई आवाज उठाते हैं तो इन संस्थानों को उनके पीछे लगा दिया जायेगा। यह लोकतंत्र के एक अभिन्न अंग ‘असहमति’ को ख़त्म करने के लिए पर्याप्त है।
  4. कालिखो पुल के सुसाइड नोट, न्यायाधीश लोया की मौत, सोहराबुद्दीन की हत्या इत्यादि की जांचों में विफलता और बलात्कार के आरोपी विधायक का बचाव जिसके रिश्तेदार पर लड़की के पिता की हत्या का आरोप है, उस पर एक वर्ष से भी अधिक समय के बाद भी मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी।
  5. विमुद्रीकरण – यह असफल रहा, लेकिन और भी बुरा यह है कि भाजपा यह स्वीकार करने में असमर्थ है कि यह असफल रहा। टेरर फंडिंग रोकने, काले धन को कम करने और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का सारा प्रोपेगंडा बेतुका है। इसने व्यवसायों को भी ख़त्म किया है।
  6. जीएसटी कार्यान्वयन – यह कर व्यवस्था जल्दबाजी में लागू की गयी थी और इसने व्यवसायों को नुकसान पहुँचाया है। जटिल संरचना, अलग-अलग वस्तुओं पर कई दरें, पेचीदा फाइलिंग… उम्मीद है कि यह समय के साथ स्थिर हो जायेगा, लेकिन इससे नुकसान हुआ है। अपनी असफलता को स्वीकारने के मामले में भाजपा बेहद अक्खड़ है।
  7. ख़राब विदेशनीति – चीन के पास श्रीलंका में एक बंदरगाह है, बांग्लादेश और पाकिस्तान में इसकी भारी रूचि है (हम घिरे हुए हैं); मालदीव में विफलता (भारतीय श्रमिकों को अब भारत की विदेश नीति की असफलता के कारण वीजा नहीं मिल रहा है) जबकि मोदी जी विदेशों में जाते हैं और कहते रहते हैं कि 2014 से पहले दुनिया में भारतीयों का कोई सम्मान नहीं था और अब उनका सर्वोच्चतापूर्वक सम्मान किया जाता है (यह अनर्गल है। विदेशों में भारतीयों का सम्मान हमारी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और आईटी क्षेत्र का सीधा परिणाम था, इसमें मोदी की वजह से रत्ती भर भी सुधार नहीं हुआ है। हालाँकि, बीफ के कारण हत्याओं और पत्रकारों को धमकियों इत्यादि से शायद सम्मान कम हुआ है)।

विमुद्रीकरण – यह असफल रहा, लेकिन और भी बुरा यह है कि भाजपा यह स्वीकार करने में असमर्थ है कि यह असफल रहा। टेरर फंडिंग रोकने, काले धन को कम करने और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का सारा प्रोपगंडा बेतुका है। इसने व्यवसायों को भी ख़त्म किया है।

  1. योजनाओं की असफलता और स्वीकार्यता/मध्यावधि संशोधन की असफलता – सांसद आदर्श ग्राम योजना, मेक इन इंडिया, स्किल डेवलपमेंट, फसल बीमा (भरपाई पर गौर कीजिए – सरकार बीमा कंपनियों की जेबें भर रही है)। बेरोजगारी और किसानों के संकट को स्वीकार करने में विफलता – प्रत्येक वास्तविक मुद्दे को विपक्ष की चाल बताना।
  2. पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतें – मोदी जी ने, भाजपा के सभी मंत्रियों ने और समर्थकों ने इसके लिए कांग्रेस की भारी आलोचना की थी और अब वे सब ऊंची कीमतों को न्यायसंगत साबित करते हैं भले ही कच्चे तेल की कीमत अब उस समय की कीमतों से कम हो! यह बिल्कुल अस्वीकार्य है।
  3. सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी मुद्दों पर काम करने में विफलता – शिक्षा और हेल्थकेयर। शिक्षा पर कोई भी कार्य न किया जाना देश की सबसे बड़ी असफलता है। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता दशकों से ख़राब होती आई है (एएसईआर रिपोर्ट्स) और कोई कार्यवाही नहीं हुई है। उन्होंने 4 साल हेल्थकेयर पर कोई काम नही किया फिर आयुष्मान भारत की घोषणा की गयी – यह योजना कुछ न किये जाने की अपेक्षा से ज़्यादा मुझे डराती है। बीमा योजनाओं का एक भयानक ट्रैक रिकॉर्ड है और यह यूएस के नक्शेकदम पर जा रहा है, जो कि हेल्थकेयर के लिए एक भयानक गंतव्य है (माइकल मूर की सिको देखें)!

चुनावी बांड्स एक बहुत बड़ी चीज है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करेगा!

आप मुद्दे की अपनी समझ के आधार पर कुछ जोड़ सकते हैं कुछ घटा सकते हैं लेकिन यह मेरा आकलन है। चुनावी बांड्स एक बहुत बड़ी चीज है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करेगा! हालाँकि हर सरकार में कुछ असफलताएं और कुछ बुरे निर्णय होते हैं लेकिन मेरे लिए जो बड़ा मुद्दा है वह यह है कि यह सरकार किसी भी चीज से ज्यादा अपने आचार-विचारों पर आधारित है।

बहुत भद्दा:

इस सरकार की वास्तविक नकारात्मकता यह है कि कैसे इसने एक सोची समझी रणनीति के साथ राष्ट्रीय चर्चाओं को प्रभावित किया है। यह एक विफलता नहीं है, यह योजना है।

  1. इसने मीडिया को बदनाम किया है, इसलिए अब हर एक पत्रकार की आलोचना को यह कहकर नकार दिया जाता है कि या तो इसे भाजपा से पैसा नहीं मिलता या यह कांग्रेस के पेरोल पर है। मैं कई पत्रकारों को जानता हूँ जिनके लिए आरोप सही नहीं हो सकते हैं लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी कभी भी आरोप या शिकायत पर चर्चा नहीं करता – वे मुद्दे को उठाने वाले व्यक्ति पर हमला करते हैं और खुद ही मुद्दे को अनदेखा करते हैं।
  2. इसने एक नजरिये को हवा दी है कि 70 वर्षों में भारत में कुछ भी काम नहीं हुआ। यह स्पष्ट तौर पर झूठ है और यह मानसिकता देश के लिए हानिकारक है। इस सरकार ने हमारे करदाताओं के 4000 करोड़ रुपये विज्ञापनों में खर्च कर दिए और अब यह प्रवृत्ति बन जाएगी। काम छोटा, ढिंढोरा बड़ा। वह सड़कों के निर्माण करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं – कुछ सबसे बेहतरीन सड़कें जिनपे मैंने यात्रा की, मायावती और अखिलेश यादव की प्रिय परियोजनाएं थीं। भारत 90 के दशक से आईटी पावरहाउस बन गया। आज की परिस्थितियों के आधार पर पिछले प्रदर्शन को मापना और पिछले नेताओं को गाली देना आसान है, इसका एक उदाहरण:

70 सालों में कांग्रेस ने शौचालयों का निर्माण क्यों नहीं करवाया? वे कुछ इतनी बुनियादी चीजें भी नहीं कर सके। यह तर्क तार्किक लगता है और मैंने भी इसे माना, जब तक कि मैंने भारत के इतिहास को पढ़ना शुरू नहीं किया था।

70 सालों में कांग्रेस ने शौचालयों का निर्माण क्यों नहीं करवाया? वे कुछ इतनी बुनियादी चीजें भी नहीं कर सके। यह तर्क तार्किक लगता है और मैंने भी इसे माना, जब तक कि मैंने भारत के इतिहास को पढ़ना शुरू नहीं किया था। 1947 में जब हमें आजादी मिली, तो हम बेहद गरीब देश थे। हमारे पास सामान्य बुनियादी ढाँचे के लिए संसाधन और पूँजी नहीं थी। इसके प्रभाव को कम करने के लिए नेहरु समाजवादी मार्ग पर चले और पीएसयू का निर्माण किया। हमारे पास इस्पात बनाने के लिए कोई सामर्थ्य नहीं था इसलिए रूसियों की मदद से हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन की स्थापना रांची में की गई जिसने भारत में इस्पात निर्माण के लिए मशीनें बनायीं। इसके बिना हमारे पास इस्पात नहीं होता और परिणामस्वरूप कोई बुनियादी ढांचा भी नहीं। यही एजेंडा था – आधारभूत उद्योग और बुनियादी ढांचा। हमने बार-बार सूखे का सामना किया था, हर दो-तीन साल में, और भूख के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई थीं। लोगों को भोजन उपलब्ध कराना प्राथमिकता थी, शौचालय एक विलासिता थी जिसकी किसी को चिंता नहीं थी। हरित क्रांति हुई और 1990 के दशक तक खाद्य कमियां गायब हो गयीं – अब हमारे पास अधिशेष की समस्या है। शौचालय स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे अब से 25 साल बाद लोग पूछें कि मोदी भारत में सभी घरों को वातानुकूलित क्यों नहीं कर सके। यह आज एक लक्जरी जैसा लगता है, किसी समय पर शौचालय भी एक लक्जरी थे। शायद चीजें और जल्दी हो सकती थीं, शायद 10-15 साल पहले, लेकिन 70 साल में कुछ भी नहीं हुआ, यह एक भयंकर झूठ है।

  1. फर्जी ख़बरों का प्रचार और विश्वास। कुछ भाजपा विरोधी ख़बरें भी हैं लेकिन भाजपा समर्थक और विपक्ष-विरोधी फर्जी खबरों ने उन्हें संख्या और पहुँच में मीलों पीछे छोड़ दिया है। कुछ इनके समर्थकों से आती हैं लेकिन इनमें से बहुत सारी ख़बरें पार्टी से आती हैं। यह अक्सर घृणास्पद और ध्रुवीकरण करने वाली होती हैं जो इसे और भी बदतर बनाती है। इस सरकार द्वारा समर्थित ऑनलाइन समाचार पोर्टल हमारी जानकारी से कहीं ज्यादा समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  2. हिन्दू खतरे में है – उन्होंने लोगों के दिमाग में भर दिया है कि हिन्दू और हिंदुत्व खतरे में हैं और खुद को बचाने का एकमात्र विकल्प हैं मोदी। वास्तव में, इस सरकार से बहुत पहले से हिन्दू एकसमान जिंदगी जीते रहे हैं और लोगों की मानसिकता को छोड़कर कुछ भी नहीं बदला है। क्या हम हिन्दू 2007 में ख़तरे में थे? कम से कम मैंने रोजाना इसके बारे में नहीं सुना था और मैं हिन्दुओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं देखता हूँ, बस अब और अधिक डर और घृणा है।
  3. यदि आप सरकार के खिलाफ बोलते हैं तो आप राष्ट्र विरोधी हैं और हाल ही की स्थितियों के हिसाब से हिन्दू विरोधी हैं। इस लेबलिंग के साथ सरकार की न्यायसंगत आलोचना बंद हो गयी है। अपने राष्ट्रवाद को साबित कीजिए, हर जगह वन्देमातरम गाइए (भले ही भाजपा नेता खुद शब्दों को न जानते हों लेकिन वे आपको इसे गाने के लिए मजबूर करेंगे!)। मैं एक गर्वित राष्ट्रवादी हूँ और मेरा राष्ट्रवाद मुझे इस चीज की अनुमति नहीं देता कि कोई मुझे इसे प्रदर्शित करने के लिए मजबूर करे। मैं राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत गर्व के साथ गाऊंगा जब इसके लिए अवसर होगा या मुझे ऐसे किसी अवसर का अहसास होगा लेकिन मैं किसी को उसकी सनक के आधार पर अपने आप पर जोर-जबरदस्ती नहीं करने दूंगा कि मैं इसे गाऊं!
  4. भाजपा नेताओं के स्वामित्व में चलने वाले समाचार चैनलों का एकमात्र काम है हिन्दू-मुस्लिम, राष्ट्रवादी-राष्ट्रविरोधी, भारत-पाकिस्तान पर बहस करना और मुद्दों और तर्कों पर सार्वजनिक चर्चाओं को लीक से हटाकर ध्रुवीकरण करने वाली भावनाओं में ले जाना।

आप सभी जानते हैं कि ये कौन से चैनल हैं और आप सब बहस में बैठने वाले उन लोगों को भी जानते हैं, जिन्हें घिनौना प्रोपगंडा फ़ैलाने के लिए पुरुस्कृत किया जा रहा है।

अगले चुनाव के लिए भाजपा की रणनीति है ध्रुवीकरण और छद्म राष्ट्रवाद को उकसाना। मोदी जी ने यह स्वयं भी मूल रूप से अपने भाषणों में कहा है।

  1. ध्रुवीकरण – अब विकास का सन्देश गायब है। अगले चुनाव के लिए भाजपा की रणनीति है ध्रुवीकरण और छद्म राष्ट्रवाद को उकसाना। मोदी जी ने यह स्वयं भी मूल रूप से अपने भाषणों में कहा है – जिन्ना; नेहरु; कांग्रेस नेता भगत सिंह से जेल जाकर नहीं मिले थे (स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा एक झूठी खबर); आईएनसी मोदी को गुजरात में हराने के लिए पाकिस्तानी नेताओं से मिली थी; योगी जी का भाषण कि कैसे महाराणा प्रताप अकबर से महान थे; जेएनयू छात्र राष्ट्र विरोधी हैं, वे भारत को #टुकड़ेटुकड़ेचूरचूर कर देंगे – इस पूरे प्रोपेगंडा को एक बहुत खास मकसद के लिए तैयार किया गया था कि ध्रुवीकरण करो और चुनाव जीतो। यह वह सब नहीं था जो मैं अपने नेताओं से सुनना चाहता हूँ और मैं ऐसे किसी भी व्यक्ति का अनुसरण करने से इंकार करता हूँ जो राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्र को दंगो में जलने देने की इच्छा रखता हो।

कुछ उदाहरण हैं कि कैसे भाजपा राष्ट्रीय संवाद को एक अँधेरे कोने में धकेल रही है। यह वह नहीं है जिसके लिए मैं इनसे जुड़ा था और पूर्णतयः यह वह नहीं है जिसका मैं समर्थन कर सकूं। इसीलिए मैं भाजपा से इस्तीफ़ा दे रहा हूँ।

उपसंहार: मैंने 2013 से भाजपा का समर्थन किया है क्योंकि नरेन्द्र मोदी जी भारत के लिए आशा की एक किरण की तरह प्रतीत हुए थे और मैं उनके विकास के सन्देश में यकीन रखता था – वह सन्देश और आशा दोनों अब गायब हो गए हैं। इस नरेन्द्र मोदी और अमित शाह सरकार की नकारात्मकता मेरे सकारात्मकता के पलड़े को भारी करती है लेकिन यह एक निर्णय है जिसे हर एक मतदाता को व्यक्तिगत रूप से लेने की आवश्यकता है। बस यह जानिए कि इतिहास और वास्तविकता जटिल हैं। साधारण प्रोपगंडा से सहमत होना और अंधविश्वासी रूप से किसी पंथ का समर्थन करना सबसे बुरा है। यह इस देश के और लोकतंत्र के हितों के खिलाफ है।

चुनावों के दृष्टिकोण के रूप में आपके पास सभी के अपने निर्णय हैं। उस के साथ मेरी शुभकामनाएँ। मेरी एकमात्र आशा यह है कि हम सभी प्रेमपूर्वक एकसाथ रह सकें और काम कर सकें एवं एक बेहतर, मजबूत, गरीबी रहित और विकसित भारत बनाने में योगदान दें, भले ही हम किसी भी दल या विचारधारा का समर्थन करते हों। हमेशा याद रखें कि दोनों तरफ अच्छे लोग हैं, मतदाताओं को उनका समर्थन करने की आवश्यकता है और उन्हें भी एक दूसरे का समर्थन करने की आवश्यकता है, भले ही वह अलग-अलग पार्टियों में हों।

लेखक द्वारा यह लेख मूलतः मीडियम पर प्रकाशित किया गया था।

शिवम शंकर सिंह पूर्वोत्तर में भाजपा के चुनाव अभियानों के लिए डाटा एनालिटिक्स संभाल चुके हैं, 2015-16 संसद के सदस्यों के लिए विधान सहायक (एलएएमपी) सदस्य हैं और मिशिगन विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी।

Read in English : These are Modi’s biggest failures: A data analyst on why he is quitting BJP

share & View comments