चुनाव और लोगों का मूड भांपने के लिए भारतीय विशेषज्ञ अमूमन जाति और धर्म के चश्मे से देखते हैं. हम राशन कोटा-सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कल्याणकारी योजनाओं की चुनावों में चमत्कारी ताकत को भुला बैठते हैं.
प्रधानमंत्री आवास योजना या पेंशन योजनाओं को देखें- कुछ लाभ पा चुके हैं, कुछ अभी इंतजार कर रहे हैं, कुछ को पता नहीं कि वे कितने योग्य हैं. लेकिन गांवों और कस्बों में ज्यादातर लोग उसकी इच्छा रखते हैं या केंद्र के राशन कोटा सिस्टम को लें. ज्यादातर राज्यों में राशन बांटने का तरीका डिजिटल हो गया है. उससे लाभार्थियों को किसी भी राशन दुकान से रियायती राशन लेने का मौका मिल गया है. वह पार्टी की कृपा के बिना लोगों को मिलता है.
उत्तर प्रदेश के करछना तहसील में मुंगारी गांव के ज्यादातर लोग सरकार की ओर से मुफ्त में चावल, चना, रिफाइंड तेल और नमक पाकर खुश हैं. वे इसलिए भी खुश हैं कि कोटेदार, प्रधान या अफसर उनका राशन नहीं रोक सकता क्योंकि अब बॉयोमैट्रिक मशीन से मुफ्त राशन वितरण तय होता है. इन कल्याणकारी योजनाओं के जरिए सरकार हाजिर और गैर-हाजिर दोनों है.
मैंने उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में फील्ड-वर्क के दौरान पाया कि लोगों के एक तबके को इन कल्याणकारी उपायों का लाभ मिला है. चाहे वे किसी जाति-धर्म के हों, जबकि दूसरे लाभ पाने की कतार में हैं. सरकार की भाषा में यह लाभार्थी समूह समाज के ज्यादातर गरीब, वंचित समुदायों का है. यह समूह सभी जातियों और धर्म से है और एक हद तक कुछ पार्टियों के ध्रुवीकरण की कोशिशों को भी खत्म कर देते हैं. सभी राजनैतिक दल चुनावी फायदों के लिए अपने लाभार्थी समूह बनाते हैं लेकिन कुछ पार्टियां अपने लाभार्थियों में इजाफा करती रहती हैं और आश्वस्त करती हैं कि वे उनके वोट बैंक बन जाएं. कल्याणकारी योजनाओं से वोटरों का एक आकांक्षी समूह भी तैयार हुआ है, जो घर, राशन और बिजली चाहता है.
इसी मायने में उत्तर प्रदेश चुनावों में बीजेपी सरकार आगे है.
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उम्मीद से वोट का सफर
दूसरी सरकारों की तरह नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने भी देश में तेजी से लाभार्थी वर्ग तैयार करने के लिए काम किया है. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, मुफ्त राशन वितरण कार्यक्रम और विभिन्न पेंशन तथा नकदी हस्तांतरण के जरिए सरकारी लोकप्रिय नीतियों और योजनाओं से गरीबों और ग्रामीण मध्य वर्ग लाभार्थियों का तबका तैयार हुआ है.
इस लाभार्थी तबके में सिर्फ प्रत्यक्ष लाभ पाने वाले ही नहीं हैं बल्कि उनके परिवार और संभावित लाभार्थियों का बड़ा वर्ग भी है. एनडीए सरकार ने एक आकांक्षी समूह भी तैयार किया है जो गांवों या कस्बों में लोगों को लाभ पाते देखता है. इस प्रक्रिया में यह समूह सिर्फ पारंपरिक आर्थिक वर्ग तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि एक चेतना भी तैयार करता है.
पीएम आवास योजना खास मिसाल है कि कैसे आकांक्षाएं लोगों को देने वाले यानी राजनैतिक तबके से जोड़ती हैं. जिन्हें आवास मिले हैं वो खुश हैं मगर अब मुफ्त बिजली चाहते हैं और जिन गरीब लोगों को घर नहीं मिला, वे इस साल उसे पाने की उम्मीद लगाए हैं. बजट में 2022-23 में 80 लाख घर बनाने की घोषणा उनकी उम्मीदें बढ़ा सकती हैं और उन्हें बीजेपी के पक्ष में वोट देने के लिए तैयार कर सकती हैं.
लाभार्थी चेतना समाज के वंचित वर्गों में प्रेरणा जगाती है. यह चेतना तो राजनैतिक रूप से मुखर नहीं है मगर वह प्रेरणा बन सकती है. हालांकि लाभार्थी की यह चेतना तात्कालिक और क्षणभंगूर होती है लेकिन लगातार राजनैतिक सक्रियता से यह स्थायी बन सकती है.
बीजेपी इस प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझती है और वह इस लाभार्थी वर्ग की एक पहचान बनाने की कोशिश कर रही है. इसीलिए वह खास इलाकों में सभाएं और रैलियां कर रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे पीएम आवास योजना के लाभार्थियों के घर जाएं और उनके साथ दिवाली मनाएं.
इस तरह काडर आधारित बीजेपी लाभार्थी चेतना को बड़े वोट बैंक में तब्दील करने की कोशिश कर रही है, चाहे वह बायोमैट्रिक राशन वितरण के जरिए हो या घर के जरिए.
(लेखक जी.बी. पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक और प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @poetbadri. व्यक्त विचार विचार निजी हैं)
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