scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतयूपी-बिहार की बाउंस लेती पिच पर क्यों खेल रही है कांग्रेस

यूपी-बिहार की बाउंस लेती पिच पर क्यों खेल रही है कांग्रेस

यूपी में कांग्रेस के दलित मतदाता बसपा में शिफ्ट हो गए, मुसलमानों की पहली प्राथमिकता सपा और दूसरी बसपा हो गई. बचे सवर्ण, तो वो अब पूरी तरह से भाजपा में हैं.

Text Size:

वैसे तो कांग्रेस पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में जीतकर केंद्र में सत्ता पाने, बल्कि प्रधानमंत्री पद भी पाने के लिए पूरी जोर-आजमाइश करती दिख रही है, लेकिन इस क्रम में वो अंधेरी गलियों में भटकती हुई कुछ बड़ी गलतियां करती दिख रही है.

कांग्रेस की सबसे ज्यादा बेचैनी उत्तर प्रदेश में बड़ी कामयाबी पाने को लेकर दिख रही है. वह उस कहावत से नुकसानदायक हद तक प्रभावित दिख रही है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. कांग्रेस ये भूल गई है कि 2004 और 2009 में यूपी में सीमित सफलता के बावजूद केंद्र में उसकी सरकार बनी और लगातार 10 साल तक चली. यूपी में उसे कामयाबी नहीं मिली, लेकिन वहां जीतकर सपा और बसपा ने केंद्र में कांग्रेस का ही साथ दिया.


यह भी पढ़ेंः यूपी में कांग्रेस को साथ लेना सपा-बसपा के लिए आत्मघाती होगा


मुश्किल पिच पर खेलने में जुटी कांग्रेस

यह सही है कि यूपी 80 सीटों वाला सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन कांग्रेस की पिछले 25 सालों में इस प्रांत में हालत लगातार कमजोर होती गई है. एक समय नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्वकाल में कांग्रेस ने जब बसपा से विधानसभा चुनावों में तालमेल किया था, तो उसे केवल 125 सीटें लड़ने को मिली थीं. तब से ही कांग्रेस का बड़ा हिस्सा दूसरे दलों में शिफ्ट हो गया था.

बाद में तो कांग्रेस के दलित मतदाता बसपा में शिफ्ट हो गए, मुसलमानों की पहली प्राथमिकता सपा और दूसरी बसपा हो गई. बचे सवर्ण, तो वो अब पूरी तरह से भाजपा में जा चुके हैं. पूरे यूपी में कांग्रेस 10 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर इस हालत में नहीं है कि उसका जिक्र भी किया जाए, लेकिन राहुल गांधी और उनके सलाहकार यूपी में बड़ी जीत को इस कदर जरूरी मान रहे हैं कि वो सबसे ज्यादा जोर लगाते दिख रहे हैं. यूपी में ज्यादा प्रयास करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन वास्तव में यूपी उसके लिए मुश्किल पिच हो चुकी है.

यूपी-बिहार से आगे जहां और भी है

यूपी-बिहार के बजाय कांग्रेस को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, गुजरात और उत्तराखंड तथा दक्षिण भारतीय राज्यों में ध्यान देना चाहिए जहां वह बड़ा फायदा ले सकती है, और सीधे भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है.

यूपी-बिहार में तो कांग्रेस नहीं भी बढ़ी तो सपा-बसपा और राजद बढ़ेंगे जो आखिरकार, केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनाने में ही काम आएंगे. कांग्रेस को समझना चाहिए कि किसी भी दल के लिए सीटों की कुल संख्या ही मायने रखती है, और ये सीटें किस प्रांत से हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता.

इन राज्यों में पिछले विधानसभा चुनावों के हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेस भाजपा की टक्कर में बराबर पर खड़ी है. भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में तकरीबन संतृप्ति यानी अधिकतम की स्थिति में थी और इस बार इन सभी प्रांतों में उसकी सीटें कम ही हो सकती हैं.

कांग्रेस गुजरात में मामूली अंतर से विधानसभा चुनाव जीतने से चूक गई थी, छत्तीसगढ़ में भाजपा को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने में कामयाब रही. मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही लेकिन जनाधार के हिसाब से भाजपा भी उसके तकरीबन बराबर ही रही.

अभी तक ऐसा नहीं माना जा सकता कि 2014 में जिस तरह से भाजपा ने इन राज्यों में लोकसभा चुनावों में स्वीप किया था, उस तरह से इस बार कांग्रेस स्वीप कर लेगी. इसकी संभावना जरूर बन सकती है क्योंकि कांग्रेस इन राज्यों में अब उत्साह में है.

अन्य राज्यों का गणित

यूपी और बिहार की अंधेरी गलियों में भटकने के बजाय, कांग्रेस को प्रयास ये करना चाहिए कि वह अन्य राज्यों में स्वीप करने की कोशिश करे. अभी वह छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में जरूर इस समय भी बड़ी सफलता पाती दिख रही है, लेकिन उसकी कोशिश होनी चाहिए कि वह मध्य प्रदेश की 29, राजस्थान की 25, गुजरात की 26, असम की 14 और महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीते, बल्कि 2014 के परिणामों को एकदम उलट दे.


यह भी पढ़ेंः महिला आरक्षण से क्या हासिल करना चाहते हैं राहुल गांधी


अभी की स्थिति यह है कि इन सभी राज्यों में कांग्रेस बहुत अच्छा करने पर भी अकेले या यूपीए के घटक दलों के साथ मिलकर तकरीबन आधी-आधी सीटें ही जीत सकती है. पिछले चुनावों की तुलना में इसे कांग्रेस का फायदा तो माना जाएगा, लेकिन यह फायदा इतना बड़ा नहीं होगा कि केंद्र में उसकी ताकत प्रधानमंत्री पद पर दावा करने लायक हो जाए.

यूपी-बिहार से कोई बहुत बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं

कहने का मतलब ये है कि यूपी और बिहार में ज्यादा बड़ी कामयाबी के बिना भी कांग्रेस अपनी ताकत बढ़ा सकती है और अगर इन राज्यों में उसने ये ताकत न बढ़ाई तो यूपी-बिहार में कुछ बेहतर करने पर भी उसकी संख्या ज्यादा नहीं बढ़ पाएगी. कांग्रेस का यूपी और बिहार जैसे राज्यों में ज्यादा दम लगाने से एक तो उसकी ऊर्जा भी व्यर्थ होगी, दूसरा इन राज्यों में उसकी सपा, बसपा और आरजेडी से दूरी भी बढ़ेगी जो कि उसके लिए इस मायने में नुकसानदेह हो सकती है कि लोकसभा चुनावों के बाद आखिर उसे इन्हीं दलों का साथ चाहिए होगा.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

share & View comments