scorecardresearch
Tuesday, 10 December, 2024
होममत-विमतएक तरीका है पता लगाने का कि कौन सा नेता भारत में बेरोजगारी की समस्या का समाधान करेगा

एक तरीका है पता लगाने का कि कौन सा नेता भारत में बेरोजगारी की समस्या का समाधान करेगा

भारत का जॉब मार्केट आगे नहीं बल्कि पीछे जा रहा है. वोट देने से पहले सही सवाल पूछें.

Text Size:

दुनिया भर में हर जगह राजनेता और राजनीतिक रणनीतिकार अब बिल क्लिंटन के एक वाक्य, “यह मूर्खतापूर्ण अर्थव्यवस्था है” का उपयोग उस सच का वर्णन करने के लिए करते हैं जिसे वे हमेशा से जानते हैं: लोग इस आधार पर वोट देते हैं कि वे जीवन में अपनी संभावनाओं के बारे में कैसा महसूस करते हैं. नई नौकरी पाने या उसमें आगे बढ़ने की क्षमता को ज्यादातर लोग इसी आधार पर मापते हैं. यही कारण है कि, दुनिया भर में राजनेता रोज़गार सृजन पर ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं. भले ही अक्सर उनका इस पर सीधा नियंत्रण बहुत कम होता है.

एक सामान्य नियम के रूप में, जिस सरकार के बारे में लोगों को लगता है कि वह नौकरी दे रही है तो वे उस सरकार को दोबार चुनते हैं और जिस सरकार के बारे में लगता है कि उसके शासन काल में नौकरियों कम हुई हैं तो लोग उस सरकार को उखाड़ फेंकते हैं. इसलिए, लोकसभा चुनावों से पहले, इस बात का जायजा लेना अच्छा होगा कि इस देश में रोजगार सृजन के मामले में पिछले कुछ वर्षों में क्या हुआ है.

शुरू करने के लिए, आइए कुछ बुनियादी सवाल पूछें. पहला कि पिछले वर्ष या पिछले कुछ वर्षों में कितनी नई नौकरियों का सृजन हुआ है? और उन नौकरियों का सेक्टर के हिसाब से ब्रेक-अप क्या है यानि कि किस क्षेत्र में कितनी नौकरियां पैदा हुई हैं? आदर्श रूप से, विनिर्माण क्षेत्र में ढेर सारी नौकरियां पैदा करने की ज़रूरत होती है. राजनेता और अर्थशास्त्री दोनों इस बात पर सहमत हैं कि लोगों को कृषि श्रम जैसे अनुत्पादक कम वेतन वाले काम से बाहर निकालने का यह एक स्थायी तरीका है. इसके अतिरिक्त, हम चाहते हैं कि अनौपचारिक क्षेत्र के विपरीत औपचारिक क्षेत्र में अधिक लोगों को नियमित नौकरियां मिलें.आइए इन सवालों पर भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें.

‘गलत’ क्षेत्र के कार्यबल को बढ़ावा

भारत के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों के आधार पर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 2022 में लगभग 9.9 मिलियन नई नौकरियां पैदा हुईं.

यह आंकड़ा देश में कामकाजी उम्र के सभी नागरिकों के लिए सभी क्षेत्रों में सृजित सभी नौकरियों को शामिल करता है. संदर्भ के लिए, भारत हर साल लगभग 10-12 मिलियन कॉलेज स्नातक पैदा करता है. और लगभग चार गुना लोग जो कभी कॉलेज नहीं गए, वे भी कामकाजी उम्र के हो गए. तो, सृजित कुल नौकरियां उस वर्ष काम करने के योग्य बनने वाले लोगों की कुल संख्या का एक तिहाई और एक चौथाई के बीच है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई कैसे गिनती करता है. कतार में बड़ी संख्या में पिछले वर्षों के बेरोजगार लोग भी शामिल हैं.

ग्राफिक: वासिफ खान | दिप्रिंट

अब, उसी ILO रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में श्रमिकों की संख्या में 12.9 मिलियन की वृद्धि हुई जो कि 9.9 मिलियन नई नौकरियों की शुद्ध वृद्धि से अधिक है. इससे अन्य क्षेत्रों में नुकसान का पता चलता है. यह एक ऐसे समाज के रूप में हम जो चाहते हैं उसके बिल्कुल विपरीत है जो लोगों को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से विनिर्माण अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना चाहता है. भारत ने 2022 में विनिर्माण क्षेत्र में केवल 1.7 मिलियन नौकरियां जोड़ीं, जो कि कृषि में जोड़ी गई नौकरियों के 10 प्रतिशत से भी कम है! ऐसा लगता है कि देश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से औद्योगिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के बजाय और भी अधिक कृषि प्रधान बनकर पीछे की ओर बढ़ रहा है.


यह भी पढ़ेंः विपक्ष भी नहीं सोचता कि वह BJP को हरा पाएगा, सिर्फ सीटें कम करने और अस्तित्व बचाए रखने की जद्दोजहद है


उत्पादकता पर प्रभाव

कृषि, जैसा कि मैंने पहले लिखा है, छिपी हुई बेरोजगारी है. इस क्षेत्र में अतिरिक्त रोजगार, अधिकांश भाग के लिए, अन्य क्षेत्रों में नौकरी के अवसरों की कमी को दर्शाता है. लेकिन इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि युवा लोग बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्र में नौकरियां ले रहे हैं. आमतौर पर, एक समूह के रूप में युवा कार्यकर्ता अधिक शिक्षित होते हैं. ये श्रमिक उद्योग के नए क्षेत्रों में नौकरियां लेते हैं जबकि पुराने श्रमिक कृषि कार्य जारी रखते हैं. सिवाय इसके कि, हाल के वर्षों में, युवा लोग जो नौकरियां ले रहे हैं उनमें से आधे से अधिक कृषि क्षेत्र में हैं! इससे भी बुरी बात यह है कि कृषि में नौकरियां लेने वाले युवाओं का यह आंकड़ा 2019 में लगभग 37 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 52 प्रतिशत हो गया. इसलिए, न केवल युवा लोग अभी भी इन अनुत्पादक नौकरियों की तरफ जा रहे हैं, बल्कि जिस दर से वे ऐसा कर रहे हैं, उसमें भी तेजी आ रही है!

यह डेटा में गिरती उत्पादकता के रूप में दिखाई देता है. यहां तक कि जब सृजित नौकरियों में वृद्धि हुई, तब भी कुल मूल्यवर्धन भी गति नहीं पकड़ रही है. यह कम गुणवत्ता वाली नौकरियों के निर्माण की ओर इशारा करता है, जो अनिवार्य रूप से छिपी हुई बेरोजगारी के समान है.

employment and gross value added
ग्राफिक: वासिफ खान | दिप्रिंट

रोजगार सृजन में ठहराव, साथ ही नौकरी की गुणवत्ता में गिरावट, कोई हालिया घटना नहीं है. वास्तव में, यह प्रवृत्ति सदी की शुरुआत से ही सामने आ रही है. उदाहरण के लिए, 2012-2019 के बीच, जिसमें मोदी प्रशासन का पहला कार्यकाल और पिछली सरकार का कार्यकाल दोनों शामिल हैं, देश में कुल नौकरियां सापेक्षिक रूप से स्थिर रहीं. 2012 में नौकरियों की कुल अनुमानित संख्या 466.3 मिलियन थी. 2019 में यह 466.5 मिलियन था. इन सात वर्षों में, संभावना है कि100-150 मिलियन युवा कामकाजी उम्र के हो गए, जबकि शायद ही कोई अतिरिक्त नौकरियां पैदा हुईं.

ग्राफिक: वासिफ खान | दिप्रिंट

रोज़गार सृजन का एक अन्य महत्वपूर्ण पैमाना यह है कि क्या ये औपचारिक क्षेत्र में नियमित नौकरियां हैं. जब कोई “नौकरी” शब्द का जिक्र करता है, तो जो छवि आम तौर पर दिमाग में आती है वह किसी वेतनभोगी ऑफिस या फैक्ट्री वाले कर्मचारी की होती है. लेकिन उस तरह का काम सभी नौकरियों के दसवें हिस्से से भी कम है.

2022 और 2023 के बीच, इस श्रेणी की नौकरियों – जिसे पीएलएफएस द्वारा “रेग्युलर” के रूप में वर्गीकृत किया गया है – का अनुपात वास्तव में कुल नौकरियों की तुलना में घटा है. नौकरियों की एकमात्र श्रेणी जिसमें वृद्धि देखी गई वह थी “स्व-रोज़गार” और “अवैतनिक पारिवारिक श्रम”. ये दोनों, फिर से, छिपी हुई बेरोजगारी के रूप हैं और सापेक्ष मिश्रण (Relative Mix) में उनकी वृद्धि केवल चिंता का विषय है.

ग्राफिक: वासिफ खान | दिप्रिंट

बड़े वादे इसमें कटौती नहीं करते

चौंकाने वाली बात यह है कि भारत के 71 प्रतिशत युवा एनईईटी श्रेणी में आते हैं – यानी रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इनमें से कुछ युवा केवल नौकरी खोजने के लिए काफी घातक कदम उठाते हैं, जैसे अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर निकारागुआ जाना या फिर संयुक्त राज्य अमेरिका जाना. कुछ लोग सिक्युरिटी का उल्लंघन करते हुए संसद भवन में कूद गए और गंभीर परिणाम भुगतने का जोखिम उठाया.

एक बड़ी बेरोज़गार युवा आबादी, विशेषकर युवा पुरुष, दुनिया भर में क्रांतियों के कारक रहे हैं. यह फ्रांसीसी क्रांति से लेकर अरब स्प्रिंग तक का सच रहा है. राजनेता इस जोखिम से अनभिज्ञ नहीं हैं कि बेरोजगार युवा अपने राजनीतिक करियर और सामान्य शांति दोनों के लिए खतरा पैदा करते हैं. इसीलिए, उदाहरण के लिए, नरेंद्र मोदी ने प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया. हालांकि, वह वादा पूरा नहीं हुआ है.

हालांकि, जब डेटा का विश्लेषण किया गया तो कुछ गंभीर बातें सामने आईं. कुछ दशक पहले तक जिसे भारत के लिए जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में प्रचारित किया गया था, अब उसकी मिठास कम होती हुई दिख रही है. अब हमारी उम्मीद यही है कि किसी भी तरह से बेरोज़गार जनसंख्या की संभावित उत्पादकता के नकारात्मक प्रभावों को कम करने की कोशिश की जाए बजाय इसके क्षमताओं का लाभ लेने की कोशिश करने के.

जैसा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को पता चला है, राजनेताओं और राजनीतिक दलों के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. हर कोई बड़े पैमाने पर नौकरी में वृद्धि देखना चाहता है. लेकिन वास्तविकता यह है कि नौकरी में वृद्धि अच्छे आर्थिक नीति निर्धारण का नकारात्मक प्रभाव है. नीतिगत मोर्चे पर खराब निर्णय के बावजूद नौकरियों को हकीकत में नहीं बदला जा सकता. लोगों को वैल्यू चेन में आगे बढ़ने और उत्पादक गैर-कृषि नौकरियों में बने रहने के लिए सबसे पहले शिक्षा प्राप्त करनी होगी, स्वस्थ रहना होगा और सुरक्षित महसूस करना होगा. एक आवश्यक शर्त के रूप में, मानव पूंजी का निर्माण किया जाना चाहिए. राज्य-स्तरीय विसंगतियों का डेटा बिल्कुल यही दर्शाता है. उच्च स्तर की शिक्षा और मानव पूंजी निर्माण वाले राज्यों में अपने नागरिकों के लिए और उच्च मजदूरी पर रोजगार के बेहतर अवसर हैं.

जब कोई राजनेता आपका वोट मांगता है, तो शायद सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह होता है: मानव पूंजी के निर्माण के लिए उनकी दीर्घकालिक रणनीति क्या है? और वे उस पूंजी को, एक बार बनने के बाद, उत्पादक श्रम शक्ति में बदलने का लक्ष्य कैसे रखते हैं? यदि उनका उत्तर केवल “बिजनेस फ्रैंडली” होने तक सीमित है, तो आप जानते हैं कि उन्होंने इसके बारे में नहीं सोचा है. यदि उनका उत्तर है कि, “यह काफी जटिल है और इसका कोई आसान उत्तर नहीं हैं”, तो शायद वह व्यक्ति जानता है कि नौकरी क्या है.

किसी काम के बारे में जानना उसे करने की दिशा में पहला कदम है.

(नीलकांतन आरएस एक डेटा वैज्ञानिक और साउथ वर्सेज़ नॉर्थ: इंडियाज़ ग्रेट डिवाइड के लेखक हैं. उनका एक्स हैंडल @@puram_politics हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः मुसलमानों को मुख्तार अंसारी जैसे नेताओं से मुंह मोड़ लेना चाहिए. वे कभी भी वास्तविक सुधार नहीं लाएंगे 


 

share & View comments