इसमें जो असंवैधानिक है वह यह कि मीडिया को ‘दलित’ शब्द का उपयोग करने से मना किया जा रहा है।
दलित शब्द का अर्थ ‘विघटित अथवा टूटा हुआ ‘ होता है । संविधान उन्हें अनुसूचित जाति कहता है । महाराष्ट्र के अमरावती जिले के पंकज मेश्राम, जो महाराष्ट्र में महार दलित / अनुसूचित जाति के सदस्य हैं,उन्होंने महसूस किया कि यह शब्द अपमानजनक है। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट से अपील की और कोर्ट भी उनके साथ सहमत है ।
इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ चाहती थी सरकार को दलित शब्द का उपयोग बंद कर देना चाहिए । 2008 में अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग ने भी यही विचार रखा था। ये दोनों निर्देश आधिकारिक सरकारी कार्य तक ही सीमित थे। वे लोग अपने विचार को मीडिया के ऊपर नहीं थोपना चाह रहे थे ।
हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक कदम आगे बढ़ कर सूचना और प्रसारण मंत्रालय को दलित शब्द का उपयोग रोकने के लिए मीडिया को सलाह देने पर विचार करने के लिए सलाह दी। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बिना सोचे समझे इसका पालन किया और अब कुछ लोगों को राजनीतिक आलोचना का सामना करना पड़ेगा।
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दलित शब्द का उपयोग न करने के लिए मीडिया को कहने के बारे में हास्यास्पद बात यह है कि दलित समुदाय के लोगों को कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता है। यह शब्द इसी समुदाय से आया है। यह एक ऐसा शब्द है जो दबा कुचला होने का एहसास दिलाता है और एक प्रकार से सशक्त भी बना रहा है । यह समुदाय हर किसी को याद दिलाता है वह टूटा हुआ है और उन्हीं लोगों ने तोड़ दिया है – एक जातिवादी समाज के खिलाफ एक मजबूत टिप्पणी है। यह एक शब्द है जिसका यह समुदाय निरंतर उत्पीड़न, अस्पृश्यता, अपमान, गरीबी, हिंसा और भेदभाव के मुकाबले खुद को पुनर्निर्माण करने के लिए उपयोग करता है।
दलित शब्द का उपयोग पहले होने के बावजूद इस शब्द को अपमानजनक कैसे माना जा सकता है
जबकि यह समुदाय दलित शब्द को अन्य सभी मामलों से ऊपर पसंद करता है? समुदाय के भीतर एक मामूली बहस का विषय रहा है, खासतौर से जब अम्बेडकर ने अपने लेखन में ज्यादातर ‘अछूत’ शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसे संविधान द्वारा गैरकानूनी घोषित किया गया था ।
दलित समुदाय बनाम पंकज मेश्राम
अगर श्री मेश्राम को दलित शब्द पसंद नहीं है तो उन्हें समुदाय के भीतर बहस में शामिल होना चाहिए। समुदाय को इस शब्द का उपयोग न करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। मीडिया दलित को दलित इसलिए कहता है क्योंकि समुदाय भी यही कहता है।
व्यापक रूप से भारत में दलित शब्द की स्वीकृति है मीडिया को इसका उपयोग न करने के लिए कहना असंवैधानिक है। यह भी निराशाजनक है कि समुदाय के गंभीर मुद्दों को छोड़कर से एक अनावश्यक मुद्दे पर बेवजह बहस करके लोगों के महत्वपूर्ण समय को बर्बाद किया जाये।
‘अनुसूचित जाति’ शब्द ब्रिटिश शासन से आया था। यह राजनीतिक रूप से निष्पक्ष शब्द है। वास्तव में, इसका कोई मतलब नहीं है। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1936 में पेश किया गया, यह अनुसूची या एक सूची को संदर्भित करता है।
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मोदी सरकार अब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को असामान्य ठहराने के लिए एक संशोधन ला रही है। दलितों के बीच सत्तारूढ़ बीजेपी की धारणा इतनी खराब है कि बीजेपी के दलित सहयोगी रामदास अठावले को दलित अत्याचार के मुद्दे पर बीजेपी का बचाव करने के लिए मजबूर होना पड़ गया है। संयोग से अठावले ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुरात दलित पैंथर्स के साथ कार्यकर्ता के रूप में किया, जिसने मुख्य रूप से दलित शब्द को मुख्यधारा में लाया ।
मीडिया के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय का सर्कुलर दलित समुदाय के साथ मोदी सरकार की समस्याओं को बढ़ाएगा । मीडिया के लिए यह ‘सलाह ‘ दलित समुदाय की आवाज़ को दबाने की तरह देखा जायेगा इसमें कोई संदेह नहीं है कि दलित समुदाय को अपनी आवाज, अपनी पहचान, खुद को परिभाषित करने और खुद के लिए बोलने का अधिकार है।
महाराष्ट्र में एक दलित कार्यकर्ता उठकर अदालतों में गया, यह एक अच्छा बहाना नहीं है। मोदी सरकार से भी इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर अपने विवेक का इस्तेमाल करने की जरुरत है।
इसके पीछे भी कुछ तर्क हो सकते हैं कि सरकार संवैधानिक शब्द से जुड़ी रहे । फिर भी अदालतों या सरकार को किसी को यह बताने का कोई अधिकार नहीं है कि खुद को क्या कहना है। यदि दलित खुद दलित कहते हैं, तो मीडिया भी कह सकती है ।
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