इनकार करते हुए कि राहुल गांधी की छवि एक समस्या है, उनके समर्थक हिंदुत्व से परे नहीं देख सकते हैं।
पास के ही कैराना में लोकसभा के उपचुनाव की पूर्व संध्या पर बागपत में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदुत्व जैसी कोई स्थिति नहीं बनाई।
उनका 50 मिनट लम्बा भाषण उन कार्यों की लम्बी सूची के बारे में था जिन्हें वह अपनी विकास की उपलब्धियों के रूप में देखते हैं जैसे – आवास से लेकर एलपीजी सिलिंडर और मुद्रा ऋण से लेकर सड़क निर्माण इत्यादि तक। उन्होंने विपक्ष पर हमला किया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्होंने ओबीसी के लिए उप-कोटा (अधिकांश पिछड़े ओबीसी या एमबीसी के लिए) का वादा किया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ 2014 में हिंदुत्व ध्रुवीकरण ने भाजपा के लिए करिश्मा किया था। कैराना के जाट मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए, वह हिंदुत्व का सहारा ले सकते थे। उन्होंने गन्ना किसानों, जो ज्यादातर जाट हैं, की विपत्तियों का जिक्र करने से खुद रोका।
उसी दिन, नमो ऐप के माध्यम से उन्होंने कहा कि उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी सिलेंडरों के वितरण ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन में सुधार किया है, जिन्हें रमजान के महीने में सेहरी बनाने के लिए जल्दी उठना पड़ता है।
नरेंद्र मोदी हिंदुत्व की घोषणा नहीं कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई संकेत नहीं मिले हैं कि 2019 में भी उनका रुख यही रहेगा।
कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी जो हिंदुत्व में यकीन रखती है वह है भाजपा। एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी, जो हिंदुत्व में यकीन रखती है वह है शिवसेना, लेकिन यह अपने दम पर अपने गृह राज्य का चुनाव भी नहीं जीत सकती। सरल रूप से हिंदुत्व वोट बैंक के लिए कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है। यदि भाजपा हिंदुत्व को अलग करती है तो हिंदुत्व वाले मुख्य निर्वाचन क्षेत्र कहीं और नहीं जा सकते।
लेकिन चुनाव जीतने के लिए भाजपा को हिंदुत्व ध्रुवीकरण या अतिराष्ट्रवाद से कहीं ज्यादा सोचने की आवश्यकता है। यह स्वयं को शासन की पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती है, यह जाति का इस्तेमाल करती है और यह नरेंद्र मोदी के पंथ पर खुद को खड़ा करती है।
यदि सिर्फ हिंदुत्व ध्रुवीकरण भाजपा को चुनावों में जीत दिला सकता तो एल.के.अडवाणी 2009 में प्रधानमंत्री बन गए होते। उस चुनाव में उन्होंने 26/11 के हमलों की हालिया यादों को मुख्य मुद्दा बनाया था और कांग्रेस को पाकिस्तान पर नर्म होने और ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के लिए अफज़ल गुरु को फांसी पर ना लटकाने का दोषी ठहराया था।
यदि सिर्फ हिंदुत्व चुनावों को जीतने में मोदी की मदद कर सकता तो वह अपनी 2002 की छवि की मरम्मत नहीं करते। हमें गुजरात का विकास मॉडल कभी भी सुनने को नहीं मिलता और 2014 में मोदी के अभियान में विकास केंद्र बिंदु नहीं होता।
राहुल गाँधी की डिफेन्स लीग
लेकिन पुराने ढर्रे पर चलने वाले भारत के उदारवादी इंकार करते रहते हैं। वे हिंदुत्व के अलावा कुछ और नहीं देख सकते हैं। वे अंदाजा लगाते हैं कि मोदी राम मंदिर का प्रयोग करेंगे या पाकिस्तान के साथ युद्ध करेंगे या पाकिस्तान से दाऊद इब्राहिम को वापस लाने जैसा कुछ प्रभावशाली काम करेंगे।
यदि ये चीजें इतनी ही आसान होतीं तो मोदी अब तक कर चुके होते। लेकिन अति चिंता दर्शाने वाले लिबरल लोग, कांग्रेस के सहायक और कट्टर वामपंथी हिंदुत्व से परे नहीं देख सकते हैं। पूरे दिन ‘हिंदुत्व, हिंदुत्व’ चिल्लाने पर कोई जीएसटी नहीं लगता, क्योंकि जीएसटी तो केवल कीमत, यदि हो तो, पर ही लागू किया जा सकता है। यहां तक कि कांग्रेस पार्टी भी समझती है कि हिंदुत्व की अब अति हो गयी है। राहुल गाँधी मंदिरों की अपनी यात्राओं से भाजपा को खिजाने में कामयाब रहे हैं क्योंकि यह कांग्रेस को हिन्दू-विरोधी कहे जाने के लिए मुश्किल बनाता है।
लिबरल बुद्धिजीवी राहुल गाँधी डिफेन्स लीग (आरजीएलडी) बनाने के लिए एक साथ आये हैं क्योंकि उनके पास अन्य विकल्प क्या है? आरजीएलडी की मुख्य गलती यह है कि यह लगातार यही सोचती है कि भारतीय चुनावों में हिंदुत्व ध्रुवीकरण समीकरण बनाने या बिगाड़ने वाला मुद्दा है। यह एक दुखद टिप्पणी है कि वे आम आदमी की वास्तविकता से कितने दूर हैं।
मतदाताओं को मनाना
भारतीय मतदाता उन राजनेताओं का चुनाव करते हैं जो उन्हें लगता है कि वे समृद्धि प्रदान कर सकते हैं। यदि मोदी अपने वादों पर खरे नहीं उतरते हैं तो वे देखेंगे कि वहां और कौन से विकल्प मौजूद हैं। यदि कोई बेहतर विकल्प मिलता है तो वे उसे ही चुनेंगे।
लोकसभा चुनावों में दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा को सभी 7 सीटें दी थीं लेकिन उन्होंने उसी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से सिर्फ 3 सीटें ही दीं। उन्होंने बाकी 67 सीटें आम आदमी पार्टी को दीं क्योंकि अरविंद केजरीवाल उन्हें समझाने में कामयाब रहे कि वह बिजली और पानी जैसी सुविधाओं के साथ उनके दैनिक जीवन में सुधार के लिए बेहतर काम करेंगे।
यदि राहुल गाँधी 2019 में मतदाताओं को यह समझा सकें कि वह देश चलाने और विकास व आर्थिक सम्रद्धि प्रदान करने के लिए बेहतर काम करेंगे तो वे उन्हें वोट देंगे।
कर्नाटक में कई लोगों ने उम्मीद की थी कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आयेगी। मोदी की रैलियां यानि कि मतदाताओं को मनाने का एक कृत्य, भाजपा को 100 सीटों के पार ले गया। राहुल गांधी के प्रचार के बावजूद मतदाताओं ने कांग्रेस को एक और मौका नहीं दिया।
मतदाताओं को राजी करने का काम आसान नहीं है। कुछ मतदाता वास्तव में शीर्ष नेताओं से मिलते हैं और बात करते हैं। नेताओं के लिए उनकी समझ मीडिया के माध्यम से बनती है, और यही वह जगह है जहां छवि महत्वपूर्ण हो जाती है। मोदी यह समझते हैं और यही कारण है कि वह लोगों के साथ बेहतर संपर्क के लिए असामान्य संचार रणनीति पर कठोर रूप से काम करते हैं।
राहुल गांधी इससे बेहतर के हकदार हैं
हो सकता है कि राहुल गांधी एक महान प्रधान मंत्री बनें, लेकिन प्रधान मंत्री बनने के लिए पहले उन्हें मतदाताओं को राजी करना होगा। राहुल गाँधी डिफेन्स लीग इस बात से इनकार करती है कि उनकी छवि की समस्या है। जब आप किसी समस्या को स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो आप इसे हल कैसे करेंगे?
सत्ता में वापसी के लिए राहुल गांधी की रैलियों द्वारा कर्नाटक कांग्रेस को वोट देने के लिए पर्याप्त रूप से क्यों नहीं प्रेरित हो पाया? इससे पहले कि आप पूछ सकें कि क्या मतदाताओं के बीच राहुल गांधी की छवि खराब है, आरजीडीएल हिंदुत्व! हिंदुत्व! चिल्लाने लगेगा। यह कांग्रेस पार्टी की पुरानी चाल है कि उसके समर्थक सभी आलोचनाओं को हिंदुत्व का रूप दे देते हैं। इसी कारणवश वे इतिहास के गलत पहलू पर हैं।
राहुल गांधी की डिफेन्स लीग एकल आयामी रूप से हिंदुत्व ध्रुवीकरण से इस हद तक ग्रस्त है कि यह इस ध्रुवीकरण में खुशी-खुशी दूसरे ध्रुव में होकर इस ध्रुवीकरण में मदद करती है।
मोदी ध्यान आकर्षित करने के लिए नमो ऐप का उपयोग करते हैं, लेकिन आरजीडीएल हिंदुत्व! हिंदुत्व! चिल्लाते हैं। मोदी जाति की गणित के मालिक हैं लेकिन आरजीडीएल हिंदुत्व! हिंदुत्व! चिल्लाते हैं। मोदी अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में अंतहीन बात करते हैं लेकिन आरजीडीएल हिंदुत्व! हिंदुत्व! चिल्लाते हैं। राहुल गांधी इन निर्वासित उदारवादियों की अपेक्षा बेहतर हकदार हैं।
Read in English :The Rahul Gandhi Defence League is obsessed with the wrong problem