जाने-माने उद्योगपति राहुल बजाज ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है. सरकार की उद्योग नीति पर कुछ कहने से उद्योग जगत डर क्यों रहा है? मोदी के राज में दहशत का ऐसा माहौल क्यों है कि उद्योग जगत के अगुआ भी सरकार पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी करने से हिचकते हैं? जबकि मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तब यही उद्योग जगत सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने से घबराता नहीं था.
बजाज की इन टिप्पणियों को मोदी सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है. गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में कहा कि ऐसी कोई वजह नहीं है जो उद्योग जगत यह मान बैठे कि देश में भय का माहौल है, लेकिन जब ऐसी बातें उठाई गई हैं तो सरकार इसमें सुधार के उपायों पर विचार करेगी.
वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने कहा कि अपनी धारणाओं को फैलाने से, जो कि राष्ट्रहित को चोट पहुंचा सकता है, हमेशा बेहतर यही होता है कि अपने सवालों के जवाब ढूंढे जाएं. रेल और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस तरह के सवाल उठाना ही इस बात का सबूत है कि भय का कोई माहौल नहीं है. आवास, शहरी विकास और नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी का विचार था कि बजाज ने जिस तरह के बयान दिए हैं वे फर्जी धारणाएं हैं.
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लेकिन पिछले सप्ताह मुंबई में अग्रणी भारतीय उद्योगपतियों और वरिष्ठ मंत्रियों के बीच मंच से बजाज ने जो कुछ कहा उसके संदर्भ और प्रभावों की जांच करना महत्वपूर्ण है. ध्यान देने की बात यह है कि अस्सी पार कर चुके बजाज ने अपनी टिप्पणियों की शुरुआत यह कहकर की कि मोदी सरकार कुछ अच्छे काम कर रही है, लेकिन उन्हें तकलीफ इस बात की है कि अग्रणी उद्योगपतियों को संदेह इस बात है कि सरकार की उनकी आलोचना का स्वागत होगा या नहीं और उसे सही भावना से लिया जाएगा या नहीं.
भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों से निबटने के मोदी सरकार के तरीकों की जो आम आलोचना हो रही है उससे यह कुछ अलग है. बजाज ने चालू आर्थिक सुस्ती से उपजी चुनौतियों से निबटने के मोदी सरकार के तरीकों की आलोचना नहीं की है. वे उस बॉम्बे क्लब के संस्थापकों में हैं जिसने 1990 के दौरान घरेलू उद्योगों के लिए समान प्रतियोगिता की मांग की थी ताकि उसे भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से उभरी चुनौतियों का सामना करने में मदद मिले. तब आज बजाज इस बात से असुविधा नहीं महसूस करते कि मोदी सरकार ने शुल्कों में वृद्धि कर दी या वह व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक सहभागिता (आरसीईपी) से, जो दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार व्यवस्था बन सकती है, अलग हो गई.
यानी, आलोचना मोदी सरकार की अर्थनीति के रुझान के लिए नहीं थी बल्कि इस बात की थी कि उसने उद्योग जगत से, जो आज कोई आलोचना करने से डर रहा है, फीडबैक लेना बंद कर दिया है. बायोकॉन की अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार ने बजाज की टिप्पणियों का समर्थन किया और उम्मीद जताई कि सरकार अब आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने के उपायों पर विचार करने के लिए भारतीय उद्योग-व्यापार जगत को भी बुलाएगी. सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी में मजूमदार ने कहा कि अब तक तो सरकार उद्योग-व्यापार जगत के नेताओं को अछूत मानती रही है और अर्थव्यवस्था की आलोचना सुनना पसंद नहीं करती रही है.
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इसलिए, बजाज वास्तव में इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि मोदी सरकार उद्योग-व्यापार जगत के नेताओं और राजनीतिक सत्ता तंत्र के बीच संवाद के सूत्रों को जीवित करें. वे उद्योग जगत के नेताओं की इस इच्छा को जाहिर कर रहे थे कि उद्योग और सरकार के सम्बन्धों की शर्तें फिर से तय की जाएं. ये शर्तें मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के शुरू में पुनः परिभाषित की गई थीं. भारतीय उद्योग जगत ने भाजपा सरकार का स्वागत किया था क्योंकि उसका मानना था कि इसके मुखिया नरेंद्र मोदी ज्यादा आर्थिक सुधार लाएंगे.
इन अपेक्षाओं के अनुरूप मोदी ने भूमि अधिग्रहण कानून को संशोधित करने की कोशिश की मगर राजनीतिक प्रतिरोधों के कारण अंततः इन प्रयासों से तौबा कर ली. बाकी बचे कार्यकाल में मोदी ने जीएसटी लागू करने, रियल एस्टेट क्षेत्र को नियमित करने, और दिवालिया होने के कानूनी ढांचे को दुरुस्त करने जैसे कई सुधार किए. दूसरे कार्यकाल में भी मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती और निजीकरण के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम जैसे कुछ साहसी कदम उठाए हैं.
लेकिन यह साफ होता जा रहा था कि मोदी सरकार भारतीय उद्योग जगत के करीब नहीं दिखना चाहती है. इसमें राजनीतिक जोखिम है, जो भाजपा को और ज्यादा राजनीतिक और चुनावी बढ़त लेने के रास्ते में रुकावट डाल सकती है. ऐसी स्थिति में बजाज जब आलोचना करते हैं कि उद्योग जगत के नेताओं को सरकार की आलोचना करने से डर लगता है, तो इससे वास्तव में भाजपा को अपनी इस राजनीतिक छवि को मजबूत करने में मदद मिलती है कि वह उद्योगपतियों से करीबी रिश्ता नहीं रखती. 2019 में भारी बहुमत से सत्ता में लौटने के बाद भी भाजपा नेतृत्व पर देश में अपनी राजनीतिक पूंजी और अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का जुनून सवार है.
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इसकी बड़ी वजह यह है कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के चुनाव में उसे झटका लगा है. अब उसे आगामी विधानसभा चुनावों में जोरदार वापसी चाहिए. इन चुनावों में उसे इस बात से मदद मिलेगी कि उद्योगपतियों से उसकी सरकार के दोस्ताना रिश्ते नहीं है और इस वजह से उद्योग जगत के नेताओं को सरकारी नीतियों की आलोचना करने से डर लगता है.
बजाज की टिप्पणियों ने उसकी इस छवि को मजबूती देने में मदद ही की है. उद्योग जगत और सरकार के करीबी रिश्ते भाजपा को चुनाव जीतने में मदद नहीं कर सकते. इसके विपरीत, अगर यह धारणा बने कि उद्योग जगत भाजपा सरकार के साथ सहज महसूस करता है और उससे उसके खास या दोस्ताना संबंध हैं, तो यह पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर बुरा असर डाल सकता है. बजाज द्वारा मोदी सरकार की आलोचना विपक्ष नेताओं को अच्छी लग सकती है, लेकिन भाजपा इसे अपने लिए राजनीतिक वरदान मान सकती है.
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