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मंगलवार, 13 मई, 2025
होममत-विमतIMF के कर्ज़ से पता चलता है पाकिस्तान का नारा है — भीख मांगो, उधार लो लेकिन आतंक का साथ देना मत छोड़ो

IMF के कर्ज़ से पता चलता है पाकिस्तान का नारा है — भीख मांगो, उधार लो लेकिन आतंक का साथ देना मत छोड़ो

आईएमएफ को इस बात पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि किस आधार पर एक ऐसे देश को लोन दिया गया जो अपने डिफॉल्ट और आतंकवादी नेटवर्क के लिए जाना जाता है?

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भारत-पाकिस्तान संघर्ष की दो परिभाषित तस्वीरें हैं. सीमा के हमारे हिस्से में पहलगाम में अपने पति के मृत शरीर के बगल में बैठी एक नवविवाहिता की तस्वीर और सीमा के दूसरी तरफ आतंकवादियों के अंतिम संस्कार की तस्वीर, जिसमें पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अधिकारी वर्दी में मौजूद हैं और ताबूत पर देश का झंडा लपेटा हुआ है. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि हर देश किसके लिए लड़ रहा है. इसके बाद पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा दिया गया 1 बिलियन डॉलर का कर्ज़ यह स्पष्ट करता है कि देश अपने नारे के प्रति प्रतिबद्ध है — भीख मांगो, उधार लो, चुराओ; लेकिन आतंकवाद का समर्थन करना मत छोड़ो.

पाकिस्तान राष्ट्र एक खूनी विभाजन से पैदा हुआ था, जो लाखों लोगों के सर्वोच्च बलिदान से कलंकित था. हिंदुओं के जातीय सफाए ने दो-राष्ट्र सिद्धांत को जन्म दिया — जब पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबियों और पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों को धर्म के नाम पर विभाजित किया गया. लाखों भारतीयों के खून से जन्मे राष्ट्र को कभी शांति नहीं मिल सकती.

पाकिस्तानी कवि फैज़ अहमद फैज़ ने अपनी कविता सुब्ह-ए-आज़ादी के ज़रिए से उपमहाद्वीप के इतिहास में इस खूनी अध्याय को दर्ज किया.

“ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं

ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू ले कर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं

फ़लक के दश्त में तारों की आख़िरी मंज़िल”

हम कितनी आसानी से भूल जाते हैं कि ओसामा बिन लादेन को उसके मूल सऊदी अरब ने नहीं, बल्कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सुरक्षित पनाह दी थी. आखिरकार उसे नेवी सील्स ने यहीं से खदेड़ दिया था.


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विकास में भारी अंतर

बजट 2024-25 में कश्मीर में विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए 42,277 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिसमें 624 मेगावाट की किरू जलविद्युत परियोजना के लिए 130 करोड़ रुपये, 800 मेगावाट की रतले जलविद्युत परियोजना के लिए 476.44 करोड़ रुपये शामिल हैं. जून 2024 में, पीएम मोदी ने जम्मू-कश्मीर में अब तक पिछड़े राज्य को बदलने के लिए 3,300 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की शुरुआत की. 2020 में, IIM ने श्रीनगर में एक कैंपस खोला.

इस अप्रैल में उम्मीद, आर्थिक खुशहाली और विकास का माहौल था. प्रदेश पर्यटकों की संख्या में अभूतपूर्व उछाल की उम्मीद कर रहा था, जब इस हिंदू नरसंहार ने आगामी पर्यटन सीज़न पर करारी चोट मार दी.

पाकिस्तान इस तथ्य का सामना नहीं कर सका कि कश्मीर में खुशहाली थी. यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की निराशाजनक और विनाशकारी स्थिति के बिल्कुल विपरीत है, जो पाकिस्तान के आतंकवाद के मुख्य उद्योग के लिए प्रशिक्षण मैदान से ज्यादा कुछ नहीं रह गया है. प्रधानमंत्री मोदी के पास कश्मीर के लिए बहुत बड़ी ढांचागत योजनाएं हैं, जिनमें सभी मौसमों के अनुकूल सड़कें, सुरंगें और बहुप्रतीक्षित रेल संपर्क शामिल हैं. पीओके के विकास के लिए शहबाज़ शरीफ के पास क्या योजनाएं हैं?

ऑडिट कहां हैं?

आईएमएफ ने पाकिस्तान के 7 बिलियन डॉलर के कार्यक्रम में 1.4 बिलियन डॉलर बांटे हैं. इसका इस्तेमाल एक बार फिर सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करने के लिए किया जाएगा, जैसा कि पहले भी किया गया है, लेकिन सांप छिपे नहीं रह सकते, जैसा कि ओसामा बिन लादेन के मामले में देखा जा सकता है, जो ट्विन टावर्स हमले का चेहरा था और अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल, जिनकी निर्मम हत्या का बदला भी भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किए गए हमलों से लिया गया.

बिलावल भुट्टो, जो एक तरह से पाकिस्तानी राजनीतिक राजघराने के सदस्य हैं, उन्होंने स्वीकार किया है कि “जहां तक ​​चरमपंथी समूहों का सवाल है, पाकिस्तान का यह इतिहास रहा है”. यहां तक ​​कि पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी माना कि देश ने “पहले भी आतंकवादी समूहों के साथ संबंध बनाए हैं”. आईएमएफ को इस बात पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि किस आधार पर एक ऐसे देश को कर्ज़ दिया जा रहा है जो अपने डिफॉल्ट और आतंकवादी नेटवर्क के लिए जाना जाता है? इस्लामाबाद ने 1950 से अब तक 25 बार IMF की उदारता का लाभ उठाया है और 31 मार्च 2025 तक, पाकिस्तान पर IMF का 6.2 बिलियन डॉलर बकाया है. ये आंकड़े IMF की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं. विश्व बैंक ने पाकिस्तान को अलग से 48 बिलियन डॉलर दिए हैं. हमने अभी तक चीन द्वारा दिए गए कर्ज़ों की तो गणना भी नहीं की है.

आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों के पास मजबूत लोन पॉलिसी हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सहायता का इस्तेमाल जलवायु अनुसंधान, सतत विकास, गरीबी उन्मूलन, निर्यात संवर्धन जैसी विकासात्मक गतिविधियों के लिए किया जाए और अपनी नीतिगत पहलों के अनुपालन की मांग करने के लिए एक निश्चित पद्धति हो, लेकिन पाकिस्तान ने भारत की तरह विभिन्न उपायों के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था का निर्माण करने के बजाय अपने मुख्य निर्यात, आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित करके “आर्थिक आत्महत्या” की है.

भारतीय रुपया और पाकिस्तानी रुपया 1947 में बराबरी पर शुरू हुआ, लेकिन पीकेआर में लगातार और मजबूत गिरावट देखी गई और इस हफ्ते दोनों देशों के युद्ध में जाने से पहले यह 1 INR=3.23 PKR पर था.

पाकिस्तान विनाशकारी दिवालियापन के कगार पर खड़ा है, जिसका बाहरी विदेशी ऋण 130 बिलियन डॉलर है. यह आईएमएफ और विश्व बैंक के साथ-साथ चीन, सऊदी अरब और कतर से मिलने वाली खैरात पर सांसे ले रहा है. पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के 2.7 प्रतिशत की अपेक्षित वृद्धि दर (भारत की अनुमानित दर 6.7 प्रतिशत है) के साथ “ठीक” होने की उम्मीद थी. आईएमएफ को इस बात पर बारीकी से विचार करना चाहिए कि इस खैरात का इस्तेमाल कहां हो रहा है. क्या वह वाकई विनय नरवाल जैसे बेगुनाहों के खून से अपने हाथ रंगना चाहते हैं?

IMF ने कर्ज़ को मंजूरी क्यों दी?

भारत ने आईएमएफ बैठक में मतदान से परहेज़ किया. भारत का मानना ​​है कि सीमा पार आतंकवाद को लगातार प्रायोजित करने को पुरस्कृत करना वैश्विक समुदाय को एक खतरनाक संदेश भेजता है, फंडिंग एजेंसियों और डोनर्स की प्रतिष्ठा को जोखिम में डालता है और वैश्विक मूल्यों का मजाक उड़ाता है. आईएमएफ जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से प्राप्त होने वाले फंजिबल इनफ्लो का सैन्य और राज्य प्रायोजित सीमा पार आतंकवादी उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है.

ऑडिट करना और फंडिंग में देरी करना उचित होता क्योंकि वितरण का समय बहुत ही गलत है. कम से कम, लोन की मंजूरी का उपयोग पाकिस्तान को आतंकवाद को प्रायोजित करने से दूर रहने के लिए मनाने के लिए एक ‘कैरट’ के रूप में किया जा सकता था. इस राज्य प्रायोजित आतंकवाद के कारण ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान को सैन्य सहायता निलंबित कर दी गई थी. यह इस आधार पर था कि पाकिस्तान अफगान तालिबान और ‘दुष्ट’ हक्कानी समूह को एक सुरक्षित पनाह दे रहा था जो अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को निशाना बना रहा था.

आईएमएफ के गवर्निंग बोर्ड में पाकिस्तान की निंदा करने या उसे फटकार लगाने की इच्छाशक्ति की कमी के बारे में सोचना पड़ता है.

आईएमएफ का सुझाव है कि पर्यटन को बढ़ावा देना देश को आत्मनिर्भर बनाने का एक आर्थिक मौका है. यह ध्यान देने योग्य बात होगी कि आईएमएफ ने खुद ही कश्मीर में 12,000 करोड़ रुपये के नवजात उद्योग का गला घोंट दिया है, जो क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7-8 प्रतिशत का योगदान देता है, पाकिस्तान को सहायता देने के लिए एक त्वरित दुर्बल करने वाला कदम है.

हम आशा करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि बुद्धि और सच्चाई की जीत होगी.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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