साल 2024 के लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में दांव पर सिर्फ 49 सीटें लगी हैं. सीटों की तादाद के लिहाज से यह सबसे छोटा चरण है लेकिन चुनाव के अंतिम नतीजों पर इसका असर कहीं ज्यादा रहने वाला है. पांचवें चरण के चुनाव को लेकर बढ़ी हुई सरगर्मी की वजह सिर्फ यही नहीं कि इसमें कुछ सीटों पर भारतीय राजनीति की सबसे कद्दावर हस्तियां चुनावी मुकाबले में हैं बल्कि इस वजह से भी है कि जिन छह राज्यों और दो संघशासित प्रदेशों में इस चरण में मतदान है वहां बीजेपी को पिछली बार के उलट इस बार तेज झटका लग सकता है.
इस चरण में उत्तर प्रदेश में रायबरेली, अमेठी और फैज़ाबाद (अयोध्या) जैसी राजनीतिक रूप से प्रतिष्ठित सीटों पर मतदान हो रहा है तो बिहार में सारण (छपरा) और हाजीपुर में तथा मायानगरी कहलाने वाली मुंबई की सभी छह सीटों पर उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला किया जाना है.
तीसरे चरण की तरह इस पांचवें चरण के चुनाव में भी एनडीए को कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती हैं, क्योंकि पिछली बार उसने इस चरण की सीटें बड़ी तादाद में जीती थीं. पांचवें चरण की 49 सीटों में से एनडीए ने पिछली बार 39 सीटें जीती थीं और इसमें अकेले बीजेपी की झोली में 32 सीटें गई थीं. इंडिया गठबंधन के खाते में साल 2019 में पांचवें चरण की सिर्फ 8 सीटें गई थीं. अगर साल 2019 के बाद के वक्त में हुए विधानसभा चुनाव में हासिल बढ़त को ध्यान में रखें तो माना जा सकता है कि इंडिया गठबंधन की सीटों की तादाद इस बार बढ़कर दोगुनी हो सकती है. ज़मीनी संकेत तो इस बात के हैं कि इंडिया गठबंधन के सीटों की तादाद इससे भी आगे जा सकती है और इस चरण की एक चौथाई सीटें उसकी झोली में आ सकती हैं.
दोनों प्रतिस्पर्धी गठबंधनों के बीच जो 31 सीटों का अन्तर है वह इस पांचवें चरण के चुनाव में लगभग 50 फीसदी घटकर 17 सीटों पर आ सकता है या घटती का यह आंकड़ा और भी आगे बढ़ सकता है. इंडिया गठबंधन के हिस्से में सीटों की सबसे ज्यादा बढ़त उत्तर प्रदेश से होने जा रही है.
इस चरण में उत्तर प्रदेश के चार इलाकों—अवध, पूर्वांचल, दोआब तथा बुंदेलखंड से कुल मिलाकर 14 सीटों पर मतदान है. उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन को शायद इस चरण में सबसे ज्यादा सीटें मिलें. साल 2019 में बीजेपी ने इनमें से 13 सीटों पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस को एक सीट रायबरेली की मिली थी. बहरहाल, अगर वोटशेयर इस चरण के चुनाव में 2022 के विधानसभा चुनाव जितना ही रहता है तो कांग्रेस न सिर्फ रायबरेली की सीट जीत लेगी, जहां से राहुल गांधी मुकाबले के मैदान में है, बल्कि अमेठी और बाराबंकी की भी सीट कांग्रेस की झोली में जायेंगी.
सूबे में कांग्रेस की कद्दावर सहयोगी समाजवादी पार्टी को भी इस चरण के चुनाव में अच्छा-खासा फायदा हो सकता है. अखिलेश यादव की पार्टी ने इस चरण के चुनाव की एक भी सीट 2019 में नहीं जीती थी लेकिन मतदाताओं का रुझान उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव वाला ही रहा तो समाजवादी पार्टी पूर्वांचल की कौशाम्बी सीट, दोआब की फतेहपुर सीट और बुंदेलखंड की बांदा सीट यानी इस चरण के चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है.
पांचवें चरण के चुनाव में यूपी में फैजाबाद की सीट पर भी मतदान है और अयोध्या का क्षेत्र इसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. देखने लायक बात यह होगी कि यहां और आस-पास के इलाके में मतदाता किस तादाद में वोट डालने आते हैं क्योंकि अभी तक यूपी में जिन सीटों पर वोटिंग हुई है वहां मतदान का प्रतिशत 2019 के मुकाबले कम रहा है.
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महाराष्ट्रः असली-नकली की जंग
महाराष्ट्र में 20 मई के दिन चुनाव खत्म हो जायेगा लेकिन पूरे पखवाड़े भर का इंतजार लगा रहेगा कि चुनाव के अंतिम नतीजे आ जायें तो पता चले कि उद्धव सेना और शिंदे सेना तथा एनसीपी (शरदचंद्र पवार) और एनसीपी(अजित पवार) के बीच असली और नकली की जंग में मतदाताओं ने किसका साथ दिया. महाराष्ट्र में इस बार चुनावी जंग का मैदान वृहत्तर मुंबई क्षेत्र, भारत में प्याज की राजधानी कहलाने वाला नासिक क्षेत्र तथा कभी हथकरघा उद्योग के लिहाज खूब फला-फूला लेकिन फिलहाल परेशानियों से घिरा मालेगांव-धूले क्षेत्र है.
मुंबई सिटी और थाणे का चुनावी मुकाबला उद्धव सेना और शिंदे सेना के लिए अपना वजूद बचाने की लड़ाई है. इसी तरह भिवंडी और डंडोरी सीट पर हुए चुनावी मुकाबले से पता चलेगा कि एनसीपी (शरदचंद्र पवार) पश्चिमी महाराष्ट्र के अपने मजबूत गढ़ से आगे के इलाकों में अपना विस्तार कर पायी या नहीं.
उद्धव की शिवसेना ने पहली बार डबल एम (मराठी मानुष और मुस्लिम) का एक अजीब सा जान पड़ता जोड़ बनाया है. अपने प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी यानी मौजूदा बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ इस बार उद्धव सेना ने बीते जमाने की एक विभाजक-रेखा-गुजराती बनाम मराठी को उभारने की कोशिश की है. यह विभाजन संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के जमाने से चला आ रहा है.
डबल एम (मराठी मानुष और मुस्लिम) का जोड़ इस बार जमीनी तौर पर सुंसगत जान पड़ रहा है और मुंबई की छह सीटों में पांच पर इस जोड़ को बहुतायत हासिल है. इस जोड़ को कायम करने में उद्धव ठाकरे की ईमानदार तथा उदार नेता की छवि किसी गोंद की तरह काम कर रही है. साल 2019 से 2022 के बीच जिन 2.5 सालों में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के पद पर रहे उसे अल्पसंख्यक समुदाय कथनी और करनी दोनों ही मायनो में इंसाफ-पसंद और भेदभाव-रहित मानता है. मुंबई में अधिकतर विधायक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता उद्धव-सेना की तरफ हैं और इस नाते उद्धव की पार्टी को सीटों पर जीत दिला सकते हैं जो जाहिर है इंडिया गठबंधन की जीत कहलायेगी.
पांचवें चरण के चुनाव में पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में इंडिया गठबंधन को थोड़ा फायदा हो सकता है. बिहार में आरजेडी अपने पुराने गढ़ छपरा (सारण) में फिर से झंडा बुलंद करने की कोशिश में है. लेकिन मिथिलांचल की दो सीटों पर एनडीए की स्थिति अच्छी है और स्वर्गीय रामविलास पासवान का संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर के बारे में भी कही जा सकती है जहां से एनडीए गठबंधन में शामिल उनके पुत्र चुनाव लड़ रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में उत्तरी परगना इलाके की सात सीटों में हुगली और हावड़ा में मतदान है. अगर 2021 के विधानसभा चुनाव में पड़े वोटों से झांकते रुझान पर गौर करें तो बीजेपी बैरकपुर तथा हुगली में खतरे में जान पड़ती है लेकिन वह आलमबाग की सीट तृणमूल कांग्रेस से छिन सकती है.
झारखंड में इंडिया गठबंधन कोडरमा में बढ़त बनाने की उम्मीद बांध सकता है जहां से सीपीआई (एमएल) के विधायक को उम्मीदवार बनाया गया है. जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी कोडरमा निर्वाचन क्षेत्र की एक विधानसभा सीट पर हो रहे उप-चुनाव में चुनावी मुकाबले के मैदान में हैं.
ओडिशा में बीजेपी साल 2019 की अपनी बढ़त को कायम रखने की उम्मीद बांधे हुए है. ओडिशा में पांचवें चरण के मतदान में लोकसभा की पांच तथा विधानसभा की 35 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं और उनमें से दो सीटों पर पांच बार से मुख्यमंत्री बने चले आ रहे नवीन पटनायक स्वयं उम्मीदवार हैं. लोकसभा की पांच सीटों में बरगढ़, सुन्दरगढ़ तथा बोलांगीर सूबे के पश्चिमी इलाके में हैं जहां साल 2019 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी और मध्यवर्ती ओडिशा की अस्का तथा कंधमाल सीट पर सत्ताधारी बीजू जनता दल (बीजेडी) की जीत मिली थी. संभावना यही है कि इस बार भी नतीजे समान ही रहेंगे.
पांचवें चरण में जम्मू-कश्मीर की बारामूला तथा लद्दाख की सीट पर भी वोट डाले जा रहे हैं. बारामूला में जेल से चुनाव लड़ रहे इंजीनियर रशीद के मुकाबले में होने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है और नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के लिए मुकाबले का मैदान कठिन हो चला है. लद्दाख में हाल तक लग यही रहा था कि सीट इंडिया गठबंधन के खाते में जा सकती है लेकिन नेशनल कांफ्रेस और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करगिल के कार्यकर्ता एक उम्मीदवार को लेह से चुनाव लड़ाने के सवाल पर बागी हो गये. इसका मतलब ये निकलता है कि करगिल से चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे स्वतंत्र उम्मीदवार की स्थिति मजबूत है क्योंकि लेह में वोट इंडिया गठबंधन तथा एनडीए के उम्मीदवारों के बीच बंट जायेंगे.
कुल मिलाकर देखें तो पांचवें चरण का मतदान बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति वाला है. हमारा आकलन कहता है कि बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन पिछले चार चरण के चुनाव में 40 सीटें गंवा चुका है और बाकी के चरण में होने वाले चुनाव में भी उसे इतनी ही सीट गंवानी पड़ सकती हैं. सीटों को गंवाने का सिलसिला बीजेपी अगर पांचवें चरण के चुनाव से न थाम सकी तो निश्चित जानिए कि 4 जून को वह कम से कम अपने दम पर तो बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पायेगी.
(योगेन्द्र यादव भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @_YogendraYadav है. श्रेयस सरदेसाई भारत जोड़ो अभियान से जुड़े एक सर्वेक्षण शोधकर्ता हैं. राहुल शास्त्री एक शोधकर्ता हैं. ये मेरे निजी विचार हैं.)
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