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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
होममत-विमतसुशांत सिंह की मौत भाजपा के लिए ब्रांड आदित्य ठाकरे को राहुल गांधी की छवि की तरह खत्म करने का मौका लेकर आई है

सुशांत सिंह की मौत भाजपा के लिए ब्रांड आदित्य ठाकरे को राहुल गांधी की छवि की तरह खत्म करने का मौका लेकर आई है

भाजपा को पता है कि शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे के रूप में महाराष्ट्र की राजनीति में एक युवा, हर-दिल-अज़ीज़ चेहरा उभर रहा है.

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बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुखद मृत्यु ने भाजपा को वह मौका दे दिया है जिसकी उसे तलाश थी— ब्रांड आदित्य ठाकरे को धूमिल करने का मौका.

शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे के लिए भी भाजपा वही तरीका अपना रही है जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए अपनाया था. उन्हें भी एक ऐसे वंशज के रूप में प्रस्तुत करो, जो राजनीतिक मामलों से ज्यादा मौज-मस्ती वाली पार्टियों में दिलचस्पी रखता है. यह और बात है कि राहुल को अपनी छवि खराब करवाने के लिए किसी बाहरी मदद की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ी.

भाजपा को पता है कि आदित्य के रूप में महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा युवा और सबका चहेता चेहरा उभर रहा है जो शिवसेना की उग्र कट्टरपंथी राजनीति और खुद अपनी नरम छवि के मेल के कारण घातक साबित हो सकता है. इसलिए इस ब्रांड की चमक को तुरंत और अच्छी तरह धूमिल करना जरूरी है.

इसलिए, यह जाहिर किया गया कि महाराष्ट्र के पर्यटन एवं पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे अभिनेता राजपूत की मौत से पहले की रात दी गई पार्टी में शरीक हुए थे. आदित्य ने इस दावे का जोरदार खंडन किया है.

हालांकि युवा, प्रतिभावान अभिनेता राजपूत की मौत को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक रंग देने पर ज़ोर दिया जा रहा है लेकिन इससे भी बड़ी और अनकही कहानी यह होने वाली है कि इसका आदित्य के राजनीतिक कैरियर पर क्या असर पड़ेगा जो अभी वास्तव में शुरू भी नहीं हुआ है.


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ब्रांड आदित्य

आदित्य ठाकरे ने प्रायः दूसरों की तरह अपना राजनीतिक कैरियर अपनी साफ छवि के साथ शुरू किया. ठाकरे उपनाम एक अमानत भी है और एक बोझ भी, यह इस पर निर्भर है कि आप उसे किस चश्मे से देखते हैं. अधिक रूढ़िवादी, कट्टरपंथी लोगों का मानना है कि शिवसेना सबसे पहले क्षेत्रीयतावादी (मराठी अस्मिता) नारे और फिर धुर हिंदुत्ववादी तेवर के बूते एक ताकत बनी. लेकिन ज्यादा प्रगतिशील और सर्वसमावेशी वोटर के लिए वह एक भारी नकारात्मक ताकत है.

लेकिन युवा ठाकरे ने बड़े जतन से अपनी नरमपंथी छवि बनाने और खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की है जो उन सब चीज़ों का साथ लेकर चलना चाहता है जिनका वे खुद प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं और उन चीजों का भी जिनका उनकी अपनी पार्टी तथा परिवार प्रतिनिधित्व करता रहा है.

आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई के खिलाफ उनका विरोध और मुंबई में पर्यावरण की रक्षा के पक्षधर ‘उदारपंथी’ जमात के साथ उनका खड़े होना काफी हद तक इसी योजना का अंग था. इसने उन्हें शिवसेना के गैर-पारंपरिक आधार में भी स्वीकार्य और लोकप्रिय बनाया.

2019 के लोकसभा चुनाव के पहले आदित्य ने ठेठ सियासतदां वाली भूमिका निभाई, पूरे राज्य में दौरे करके चुनावी सभाओं को संबोधित किया और फिर पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान भी इसी भूमिका में नज़र आए. वे युवाओं की भाषा बोलते हैं— मुंबई की ‘नाइट लाइफ’ को शुरू करने, उच्च शिक्षा में सुधार, कलाकारों के लिए सुविधाओं की मांग जैसे मुद्दे उठाते हैं.

हाल के वर्षों में शिवसेना की चुनावी तकदीर बहुत शानदार नहीं रही है, भाजपा ने महाराष्ट्र में बड़ी चतुराई से उसे पीछे धकेल दिया है. इस बार वह सत्ता में तो आ गई मगर इसके लिए उसे कांग्रेस और एनसीपी के साथ असहज गठजोड़ करना पड़ा. मुख्यमंत्री (उद्धव ठाकरे) के पुत्र होने के कारण और इतनी कम उम्र में मंत्री बन जाने के कारण उन्हें खुद को एक ब्रांड के रूप में चमकाने और शिवसेना में एक नई लहर पैदा करने का मौका मिला है. आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी एक मिशाल हैं कि ‘जेनरेशन नेक्स्ट’ अगर अपने पत्ते सही तरह से खेले तो कितना फर्क ला सकती है.

इसलिए, भाजपा के लिए आदित्य के गुब्बारे को ऊपर उड़ने से पहले उसकी हवा निकालना बहुत जरूरी है. ऐसे में सुशांत सिंह राजपूत की कथित खुदकुशी ने उसे इसका एक मौका उपलब्ध करा दिया है.


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भाजपा की योजना

पूर्व शिवसैनिक और वरिष्ठ भाजपा नेता नारायण राणे ने राजपूत मामले की जांच में ‘किसी को बचाने’ की कोशिश करने का खुला आरोप महाराष्ट्र सरकार पर लगाया, तो उनके बेटे नीलेश राणे ने आदित्य पर उंगली उठाई है.

बिहार भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद ने आदित्य की ‘चुप्पी’ पर सवाल उठाते हुए सवाल किया कि वे राजपूत को न्याय दिलाएंगे या ‘साजिश करने वालों’ को.

इसके अलावा, कानाफूसी वाली मुहिम भी चलाई जा चुकी है जो किसी भी नेता की छवि के लिए खुला आरोप के मुकाबले कहीं ज्यादा हानिकारक होती है.

इस सबका नतीजा? आदित्य को आरोपों का जवाब देने को मजबूर होना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार की सफलता और लोकप्रियता से जिनको परेशानी हो रही है वे राजपूत की मौत को लेकर गंदी राजनीति करने में जुट गए हैं. मेरे ऊपर और ठाकरे परिवार पर बेवजह कीचड़ उछाला जा रहा है. यह और कुछ नहीं बल्कि हताशा में की जा रही गंदी राजनीति है.’

उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी फिल्म उद्योग के लोगों से दोस्ती कोई अपराध नहीं है. युवा नेता को बयान देना पड़ा, यह बताता है कि भाजपा उन्हें कठघरे में खड़ा करने और उन्हें सवालों के घेरे में लाने में कामयाब हुई है.

ग्लेमर की दुनिया में दोस्तों का होना न कोई अपराध है और न इस पर कोई सवाल खड़ा किया जा सकता है लेकिन आदित्य को यह कबूल करने पर मजबूर करके उनके विरोधियों ने यह संदेश फैला दिया है कि वे आम जनता से कम और ज्यादा चमकदमक वाली दुनिया से ज्यादा जुड़े हुए हैं.


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जानी-पहचानी चाल

भाजपा के लिए युवा वंशजों को निशाना बनाना ज्यादा आसान है क्योंकि उन लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त, अंग्रेजीदां और हवा-हवाई बताने में उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. खासकर इसलिए कि उसके पास नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे अपने दम पर उभरे मेहनती नेता मौजूद हैं.

यह अहम बात है, क्योंकि इन तेज तर्रार युवा नेताओं में क्षमता है और अगर उन्होंने मेहनत की तथा अपने हाथ काले नहीं किए तो वे मोदी-शाह जोड़ी के निरंतर जारी उत्कर्ष के लिए चुनौती बन सकते हैं.

राहुल गांधी इसकी मिसाल हैं. उनका छुट्टियों पर चले जाने, लंबे अंतरालों के लिए गायब हो जाने और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को भाजपा का शीर्ष नेतृत्व निरंतर निशाना बनाता रहा है और मतदाताओं के दिमाग में यह धारणा बिठाता रहा है कि वे जननेता बनने के लायक नहीं हैं. बेशक, इस कोशिश को ताकत देने के लिए राहुल ने खुद भी बहुत कुछ किया है. लेकिन मोदी के दौर में भाजपा ने राहुल को जिस तरह चोट पहुंचाई है वैसा किसी दूसरे नेता के ब्रांड को ध्वस्त नहीं किया गया. मोदी उन्हें ‘नामदार’ कहकर उन पर कटाक्ष करते रहे हैं.


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आदित्य का इम्तहान

मोदी और शाह को ब्रांड की अहमियत अच्छी तरह मालूम है. और उनकी पार्टी को अपने विरोधियों के ब्रांडों को धूल में मिलाने से ज्यादा राजनीतिक सुकून किसी बात में नहीं मिलता. अब उभरते ब्रांड आदित्य ठाकरे हैं और वे भाजपा के निशाने पर हैं.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर जो राजनीति चल रही है वह एक बार फिर यही याद दिलाती है कि भारत की अबूझ, गंदी और बदबूदार राजनीतिक दुनिया कुछ भी करने से बाज नहीं आती और किसी को नहीं छोड़ती, चाहे वह किसी प्रतिभाशाली ज़िंदगी के दुखद अंत का मामला ही क्यों न हो.

ठाकरे वंशज के लिए यह अपने ऊपर अचानक बिजली गिरने जैसा है. अब उनका भविष्य इस पर निर्भर होगा कि वे कितनी कुशलता से अपनी छवि को धूमिल होने से बचा ले जाते हैं जिसके लिए जाल उनके चारों ओर बिछा दिया गया है या फिर वे दूसरे मशहूर वंशज की तरह हर चुनाव के बाद इसमें और उलझते जाएंगे.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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8 टिप्पणी

  1. आदित्य ठाकरे कोई दूध का धुला नहीं है। उसका फिल्मी सितारों से मेलजोल की तस्वीरे जाहीर हैं। ये आर्टिकल पूरी तरह लीपा-पोती के उद्देश से लिखा गया है।

  2. Gadbad to hai.. Duniya ne dekh liya… Aditya thakare ko khud CBI jaach bolna tha… Agar galat nhi to darr kyu…???
    Naam to kharaab hua hi… Ladki k kaaran badnaam ho gya… Rajneeti aur lok kalyan me dhyaan dena chahiye… Papa achhi ladki se shaadi karwa denge…

  3. आदित्य ठाकरे तो खुद ही शिवसेना का पप्पू है। इसकी इमेज भी है क्या?? मराठियों का टेस्ट इतना खराब नहीं हो सकता। कौन मूर्ख ये लेख लिखा है?? ऐसे लेख को छापने के जुर्म में तुमलोगों को पागलखाने भेज देना चाहिए?

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