चंडीगढ़: अकाल तख्त जज, जूरी और नैतिकता लागू करने वाला बन गया है, जबकि इस हफ्ते एक बंदूकधारी लगभग जल्लाद बन गया.
इसकी शुरुआत सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था से हुई, जिसने शिरोमणि अकाली दल के शीर्ष नेतृत्व पार्टी अध्यक्ष और पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को उन ‘पापों’ के लिए तनखैया घोषित किया जो उन्होंने अपनी सरकार के सत्ता में रहने के दौरान किए थे. इनमें “धार्मिक दुराचार” और 2015 के बेअदबी मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम का “पक्ष लेना” शामिल था.
सुखबीर को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने और स्वर्ण मंदिर में सेवा करने का “आदेश” दिया गया, जिसमें शौचालय साफ करना, बर्तन धोना और जूते पॉलिश करना शामिल था. उन्हें गले में एक तख्ती भी लटकानी थी जिस पर लिखा था कि “वे पापी हैं”. हालांकि, बाद में उनकी सज़ी में संशोधन करके उन्हें शौचालय साफ करने से बख्श दिया गया और उनकी जगह सेवादार की ड्यूटी लगा दी गई. अकाल तख्त ने उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से भी फख्र-ए-कौम की उपाधि छीन ली, जो उन्हें 2009 में दी गई थी.
बुधवार को यह अपमान नाटकीय रूप में बदल गया, जब स्वर्ण मंदिर के द्वार के पास सेवादार बनकर बैठे सुखबीर की हत्या की कोशिश की गई, जिसमें वे बाल-बाल बच गए. कथित हमलावर पूर्व उग्रवादी नारायण सिंह चौरा को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया. घटना ने 1980 और 1990 के दशक में पंजाब के उग्रवाद के उस दौर की यादें ताज़ा कर दीं. इस घटना की सभी राजनीतिक नेताओं ने निंदा की और पूरे पंजाब में सनसनी फैल गई.
लेकिन असली झटका अकाल तख्त से ही लगा. हमले के बाद भी सेवादार की ड्यूटी पर लौटने वाले सुखबीर को सार्वजनिक रूप से दंडित करके और प्रकाश सिंह बादल के सम्मान को रद्द करके अकाल तख्त ने अकाली दल की साख पर सीधा प्रहार किया और यह यहीं नहीं रुका. सोमवार को इसने वस्तुतः अकाली दल के कामकाज को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी के नेतृत्व में छह सदस्यीय समिति को सौंप दिया. समिति को पार्टी के सदस्यता अभियान को फिर से शुरू करने और नए अध्यक्ष और कार्यकारी समिति के चुनावों की देखरेख करने का काम सौंपा गया था.
पंजाब में, जहां धर्म और राजनीति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, इस हफ्ते अकाल तख्त की कार्रवाइयां इस बात को अच्छे से समझाती है कि आखिरकार सत्ता किसके पास है.
यही कारण है कि अकाल तख्त इस हफ्ते दिप्रिंट का न्यूज़मेकर है.
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मध्यकालीन दंड, आधुनिक राजनीति
सोमवार को स्वर्ण मंदिर परिसर में अकाल तख्त की प्राचीर से, इसके प्रमुख जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने ‘पंज साहेबानों’ के जत्थेदारों की एक संयुक्त बैठक के बाद शिरोमणि अकाली दल के नेताओं के लिए मध्ययुगीन शैली की सज़ाएं सुनाईं.
सुखबीर सिंह बादल और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर नीचे खड़े थे, अपने भाग्य की घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे थे.
तनखा सुनाने की पूरी प्रक्रिया ऐतिहासिक अनुष्ठानिक परंपरा के अनुसार आयोजित की गई थी.
6वें सिख गुरु, हरगोबिंद सिंह द्वारा 17वीं शताब्दी की शुरुआत में स्थापित, अकाल तख्त या “अमर का सिंहासन” सिख धर्म के आध्यात्मिक और लौकिक अधिकार के संगम का प्रतिनिधित्व करता है. इतिहासकारों का कहना है कि गुरु हरगोबिंद ने मुगलों के हाथों अपने पिता गुरु अर्जुन देव की शहादत के बाद “न्याय के लिए लड़ने” के लिए इस तरह के अधिकार की ज़रूरत महसूस की.
सिख समुदाय से संबंधित सभी बड़े फैसले अकाल तख्त द्वारा सभाओं के दौरान लिए जाते हैं. यह सिख धर्म की “धार्मिक अदालत” के रूप में कार्य करता है, जो बाध्यकारी आदेश (हुकमनामा) जारी करता है, याचिकाओं को संबोधित करता है और तनखैया को नामित करता है — सिखों को धर्म की आचार संहिता (रहत मर्यादा) का उल्लंघन करने का दोषी माना जाता है.
अकाल तख्त जत्थेदार के साथ-साथ चार अन्य तख्तों के प्रमुख — केशगढ़ साहिब (आनंदपुर साहिब), दमदमा साहिब (तलवंडी साबो), पटना साहिब (बिहार), और हजूर साहिब (नांदेड़, महाराष्ट्र) — के पास स्थापित प्रक्रिया का पालन करने के बाद एक सिख को तनखैया घोषित करने का अधिकार है.
30 अगस्त को अकाल तख्त ने सुखबीर सिंह बादल को तनखैया घोषित कर दिया. यह तब हुआ जब अकाली दल के एक विद्रोही गुट ने उन पर अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान पंथ के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया. इन आरोपों में 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ने में विफल रहना और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम द्वारा बेअदबी के एक पुराने कृत्य को माफ करने के लिए अकाल तख्त को प्रभावित करना शामिल था. 2015 में लिए गए उस फैसले को बाद में सिख समुदाय की तीखी प्रतिक्रिया के बाद वापस ले लिया गया था.
लेकिन शिकायत का समय उल्लेखनीय था — यह लोकसभा चुनावों में अकाली दल की अपमानजनक हार के मद्देनज़र आया था. विद्रोहियों ने अकालियों के रूप में जत्थेदार से माफी मांगते हुए पंजाब के लोगों द्वारा पार्टी को बार-बार नकारे जाने को उजागर किया. सुखबीर ने 15 जुलाई को अपनी गलतियों को स्वीकार करने और माफी मांगने के लिए अकाल तख्त का दौरा किया, लेकिन उन्हें और अन्य वरिष्ठ नेताओं को बख्शा नहीं गया.
एक तनखैया के रूप में सुखबीर उन प्रमुख सिखों की सूची में शामिल हो गए, जिन्हें इसी तरह के परिणामों का सामना करना पड़ा है. इनमें सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला, पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह और अकाली दल के पूर्व अध्यक्ष जगदेव सिंह तलवंडी शामिल हैं.
सिख सुधारक, लेखक, पत्रकार, एसजीपीसी सदस्य और यहां तक कि तख्तों के जत्थेदार भी अकाल तख्त के निर्णयों और दंडों से अछूते नहीं रहे हैं.
निर्धारित तनखा (दंड) से इनकार करने पर हुक्मनामा के माध्यम से बहिष्कार किया जा सकता है. इसमें तनखैया का पूर्ण सामाजिक बहिष्कार शामिल है. अकाल तख्त के आदेश की अनदेखी करना — विशेष रूप से एक राजनेता के लिए — तख्त का गंभीर अपमान माना जाता है, जिसे समुदाय का नैतिक और धार्मिक अधिकार माना जाता है.
लेकिन राजनीति अक्सर समीकरण का हिस्सा होती है और यह पहली बार नहीं है कि अकाल तख्त ने राजनीतिक विवादों में हस्तक्षेप किया हो या अकाली दल की गुटबाजी से निपटा हो.
सत्ता और शांति स्थापना
अकाल तख्त ने पंजाब के अशांत राजनीतिक इतिहास में लंबे समय तक मध्यस्थ की भूमिका निभाई है, जब विभाजन ने सिख एकता को पटरी से उतारने की धमकी दी थी.
1960 के दशक की शुरुआत में पंजाबी सूबा आंदोलन के दौरान पंजाबी भाषी राज्य बनाने के लिए, अकाल तख्त ने मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह — दो प्रमुख लेकिन युद्धरत अकाली नेताओं — को एकजुट करने की कोशिश की ताकि वह इस मुद्दे के लिए एकजुट होकर काम कर सकें.
1970 के दशक के अंत में इसने तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल और एसजीपीसी अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहरा के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए हस्तक्षेप किया. बाद में बादल के खिलाफ अकाली दल के अध्यक्ष जगदेव सिंह तलवंडी के साथ हाथ मिला लिया था. इस स्थिति में 1982 में ही एक समाधान आया जब उन्होंने धर्म युद्ध मोर्चा के लिए हाथ मिलाया. इसी तरह, 1987 में, अकाल तख्त ने यूनाइटेड अकाली दल के बैनर तले अलग-अलग गुटों को एकजुट किया.
इस सप्ताह अकाल तख्त ने एक बार फिर न केवल दंड देने वाला बल्कि शांति निर्माता की भूमिका निभाते हुए शिरोमणि अकाली दल के गुटों से भविष्य के लिए हाथ मिलाने का आग्रह किया.
फिर भी, जैसा कि एक टिप्पणीकार ने कहा, पंजाब की “पंथिक राजनीति” अब पूरी तरह से अकाल तख्त के हाथों में है.
हालांकि, बादल परिवार को अधिक अनिश्चित स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. 2007 से सत्ता में 10 साल के बाद भी कथित भ्रष्टाचार और कुशासन के लिए उनके खिलाफ जनता का गुस्सा मजबूत बना हुआ है.
सिख विद्वान जगरूप सिंह सेखों ने दिप्रिंट से बात करते हुए स्थिति का सारांश दिया, “भले ही अकाल तख्त उन्हें सज़ा के बाद माफ कर दे, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि पंजाब के लोग उन्हें माफ करेंगे या नहीं.”
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