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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतमजबूत कानून से ही रुक सकेगी चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बाल मजदूरी- के सी त्यागी

मजबूत कानून से ही रुक सकेगी चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बाल मजदूरी- के सी त्यागी

कोरोना महामारी के दौरान अभिभावकों के बेरोजगार होने से परिवार का गुजारा चलाने के लिए बच्‍चों को जबरिया बाल मजदूरी, ट्रैफिकिंग, बाल वैश्‍यावृत्ति, डिजिटल पोर्नोग्राफी के दलदल में धकेला जा रहा है.

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झारखंड की 17 साल की मीना (बदला हुआ नाम) को एक दलाल ट्रैफिकिंग करके दिल्ली लाता हैं और एक प्लेसमेंट एजेंसी को महज 22,000 रुपये में बेच देता है. प्लेसमेंट एजेंसी ने मीना को आगे जिसके यहां बेचा, वह उसके घर में घरेलू नौकरानी के रूप में काम करने लगी. उससे गुलामों की तरह 15-16 घंटे की हाड़-तोड़ मेहनत करवाई जाती. कई बार उसका बलात्कार भी किया गया. कुछ बोलने और विरोध करने पर उसकी पिटाई होती और जान से मारने की धमकी भी मिलती. मीना की चाची ने बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली गैरसरकारी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) से संपर्क किया.

बीबीए ने दिल्ली के एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट में शिकायत दर्ज कराई. एक महीने की जांच-पड़ताल के बाद दिल्ली पुलिस ने हरियाणा पुलिस के सहयोग से सोनीपत में मीना को ढूंढ निकाला और उसे उसकी चाची को सौंप दिया. मीना के ट्रैफिकर्स और नियोक्ताओं को गिरफ्तार भी किया गया. मीना भाग्यशाली थी, जो नर्क से निकल गई. लेकिन अभी भी देश मीना जैसी हजारों लड़कियां नारकीय जीवन जी रही हैं. उन्हें इस नारकीय जीवन से निकालना है. इसके लिए एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग कानून की जरूरत है.

बाल श्रम और ट्रैफिकिंग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि जबरिया बाल मजदूरी, वेश्यावृत्ति, बाल विवाह, भीखमंगी आदि के लिए आधुनिक युग में भी मध्यकालीन दास प्रथा की तरह बच्चों की ट्रैफिकिंग यानी उनकी खरीद-फरोख्त की जाती है.

हाल ही में अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ ने मिलकर दुनिया में बाल श्रमिकों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में बाल श्रमिकों की संख्‍या बढ़ कर करीब 16 करोड़ हो गई है. पिछले चार वर्षों में इसमें 84 लाख की वृद्धि हुई है.


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कोरोना से बढ़ी बच्चों की ट्रैफिकिंग

संयुक्‍त राष्ट्र की इन एजेंसियों ने इस बात पर गंभीर चिंता व्‍यक्‍त की है कि पिछले दो दशकों में पहली बार बाल श्रम उन्‍मूलन की दिशा में जो वैश्विक प्रगति हुई थी, वह रुक गई है. बाल श्रम बढ़ा है तो जाहिर है कि बच्चों की ट्रैफिकिंग भी बढ़ी है.

तमाम मीडिया रिपोर्टों और गैरसरकारी संस्थाओं के अध्ययन से भी पता चलता है कि कोरोना महामारी और इससे उपजे आर्थिक संकट की वजह से बच्चों की ट्रैफिकिंग में भारी वृद्धि हुई. आने वाले समय में इसके और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. स्‍कूलों के बंद होने और दो सालों से महीनों तक लॉकडाउन के लागू रहने से घर के अभिभावकों की दिहाड़ी मारी जाती रही. अभिभावकों के बेरोजगार होने के बाद परिवार का गुजारा चलाने के लिए बच्‍चों को जबरिया बाल मजदूरी, ट्रैफिकिंग, बाल वैश्‍यावृत्ति, डिजिटल पोर्नोग्राफी के दलदल में धकेला जा रहा है.

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट भी बताती है कि ट्रैफिकिंग के शिकार लोगों की संख्‍या में लगातार वृद्धि हो रही है. 2018 में 2837 लोग ट्रैफिकिंग के शिकार हुए. वहीं यह संख्‍या 2019 में बढ़कर 2,914 हो गई. इस तरह एक साल में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. रिपोर्ट लापता बच्‍चों की संख्‍या में भी लगातार वृद्धि दिखा रही है. गौरतलब है कि ज्यादातर लापता बच्चे ट्रैफिकिंग के ही शिकार होते हैं. साल 2019 में 73,138 बच्चों के खोने की रिपोर्ट दर्ज की गई. ये केवल वो आंकड़े हैं जिनकी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की गई है. बहुत सारे मामले तो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते. लिहाजा शिकार बच्चों की तादात इससे कहीं ज्यादा है.

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी ट्रैफिकिंग पर सख्‍ती से रोक लगाने के लिए लंबे समय से एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. उनकी मांग जायज है और देश के बच्चों का भविष्य बचाने के लिए हम सबको उनकी मांग का समर्थन करना चाहिए. बच्चों की ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत कानून की मांग को लेकर वर्ष 2017 में श्री कैलाश सत्‍यार्थी के नेतृत्‍व में कन्‍याकुमारी से दिल्‍ली तक की देशव्‍यापी ‘भारत यात्रा‘ भी निकाली थी. तब मेरे जैसे कई सांसदो और लाखों लोगों ने इस यात्रा में पैदल मार्च कर सरकार से ट्रैफिकिंग बिल की मांग की थी. पैतीस दिन तक चली इस ऐतिहासिक भारत यात्रा का व्यापक प्रभाव हुआ. नतीजन साल 2018 में ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्‍स (प्रीवेंशन, प्रोटेक्‍शन एंड रीहैबिलिटेशन) बिल, 2018 संसद में पेश हुआ. हम लोगों ने इसका समर्थन किया. लोकसभा में तो यह पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो पाया. 2019 में नई लोकसभा बनने से इसका अस्तित्व समाप्‍त हो गया और अब इसे नए सिरे से संसद के दोनों सदनों से पारित कराना आवश्‍यक होगा. तभी यह बिल कानूनी रूप ले पाएगा.


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ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए नए बिल में है संरक्षण और पुनर्वास की बात

केंद्र सरकार ने नए सिरे से ट्रैफिकिंग इन पर्सन्‍स (प्रीवेंशन, केयर एंड रीहैबिलिटेशन) बिल- 2021 तैयार किया है. इसे संसद के मौजूदा सत्र में ही पेश होना है. यह ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत कानून है. इसकी विशेषता है कि इसमें ट्रैफिकिंग की परिभाषा का विस्‍तार किया गया है. इसमें विभिन्न अपराधों को शामिल किया गया है और यह ट्रैफिकिंग से संबंधित कई पहलुओं को समेटता है. यह ट्रैफिकिंग के गंभीर रूपों से लड़ने के लिए जिला, राज्‍य और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर एक तीन स्तरीय संस्थागत ढांचों के निर्माण की जरूरत पर बल देता है. यह कानून ट्रैफिकिंग की रोकथाम और पीडि़तों के संरक्षण और पुनर्वास को सुनिश्चित करता है. यह बिल समयबद्ध जांच, परीक्षण, ट्रैफिकर्स के लिए सजा और पीडि़तों के प्रत्‍यर्पण का मार्ग भी प्रशस्त करता है.

मौजूदा बिल में जबरिया या बंधुआ मजदूरी, ऋण बंधन, बाल दासता, गुलामी, यौन शोषण, जैव-चिकित्सा अनुसंधान या परीक्षण के उद्देश्‍य से ट्रैफिकिंग के बढ़ते नए रूपों पर भी विचार किया गया है. यह बिल स्‍पष्‍ट रूप से इस बात का प्रावधान करता है कि अगर प्लेसमेंट एजेंसियों, मसाज पार्लर, स्पा, ट्रैवल एजेंसियों, सर्कस आदि स्‍थानों पर गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है, तो उस पर रोक लगाई जाए और कठोर दंड दिया जाए. यौन परिपक्वता के उद्देश्य से किसी बच्‍ची पर रासायनिक पदार्थ या हार्मोन के इस्‍तेमाल को भी बिल में ट्रैफिकिंग के रूप में परिभाषित किया गया है. बिल में संस्थागत तरीके से यदि महिलाओं या बच्चों या ट्रांसजेंडरों की ट्रैफिकिंग की जाती है, तो ऐसे अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. प्रस्तावित बिल के तहत अदालत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीड़ित के बयान दर्ज करने का प्रावधान है. खासकर सीमा पार और अंतर-राज्यीय अपराधों के मामले में जहां पीड़ित को किसी अन्य राज्य में भेजा गया है या पीडि़त देश, सुरक्षा या गोपनीयता के कारणों से अदालत के सामने पेश होने में असमर्थ है.

इस तरह से मौजूदा एंटी ट्रैफिकिंग बिल अपनी प्रकृति में व्‍यापकता और समग्रता लिए हुए है. अगर यह संसद से पास हो जाता है, तो एक ओर जहां यह ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराध की कमर तोड़ेगा, वहीं दूसरी ओर इससे पीडि़तों का व्‍यापक एवं समग्र सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्वास भी सुनिश्चित हो पाएगा. सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर बच्‍चों के हितों को ध्‍यान में रखते हुए इसे बिना किसी देरी के संसद के मानसून सत्र में पारित करना चाहिए. यह जनता के चुने हुए प्रतिनि‍धियों, राजनेताओं और सरकार की नैतिक और संवैधानिक जिम्‍मेदारी है.

(पूर्व राज्यसभा सांसद रहे केसी त्यागी जनता दल (यू) के प्रधान महासचिव और पार्लियामेंटेरियन्स विदाउट बार्डर के साउथ एशिया कन्वेनर हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)


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