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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतबीते 50 सालों में भारत-बांग्लादेश ने कई मौके गंवा दिए, उसे 'पूर्वी पाकिस्तान' की तरह देखना हमें बंद करना होगा

बीते 50 सालों में भारत-बांग्लादेश ने कई मौके गंवा दिए, उसे ‘पूर्वी पाकिस्तान’ की तरह देखना हमें बंद करना होगा

बांग्लादेश विरोधी बयानबाजियां बंद कर और उनके लोगों को ‘घुसपैठिया’ करार देने से हमें बचना होगा. यह समय हमारे अपने लोगों की आर्थिक समृद्धि और भलाई के लिए उन्हें साथ लेकर चलने का है.

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भारत और बांग्लादेश के लिए पिछले 50 साल अच्छा अवसर गंवा देने वाले रहे हैं. दोनों देशों का नेतृत्व न केवल क्षेत्र की आर्थिक क्षमताएं पूरी तरह भुनाने में नाकाम रहा बल्कि सीमा के दोनों ओर लोगों के बीच नजदीकी भी नहीं बढ़ा पाया. अब जबकि बांग्लादेश पूरे गौरव के साथ अपनी आजादी की 50वीं जयंती मना रहा है, हमें सामने नज़र आने वाली संभावनाओं को टटोलने पर ध्यान देने की जरूरत है.

1971 में पंजाबी बहुल पश्चिमी पाकिस्तान के निरंकुश और अक्सर क्रूरता की हद तक पहुंचने वाले शासन से मुक्ति के बाद बांग्लादेश का उदय असाधारण रहा है. भारतीय सैन्य बलों ने बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई मुक्ति योद्धाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी थी लेकिन भारतीय मानस में आज भी इसकी छाप कहीं न कहीं पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर बनी हुई है. दोनों ही देशों ने कभी अपने अनूठे रिश्ते का पूरी तरह फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. इसलिए, हम कह सकते हैं कि 1971 की जीत अधूरी थी क्योंकि यह लोगों को उनकी साझा विरासत से जोड़ने में नाकाम रही.


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आर्थिक संभावनाएं कभी नहीं खंगालीं

बंगाल क्षेत्र उपमहाद्वीप में प्रचलित संकीर्ण धार्मिक दृष्टिकोण का शिकार बना. क्षेत्र के पारंपरिक व्यापारिक रास्तों के दोहन के प्रयास आधे-अधूरे मन से ही किए गए. तमाम संभावित आर्थिक लाभ भारत और बांग्लादेश के नेतृत्व के बीच ‘विश्वास की कमी’ का शिकार बन गए. बांग्लादेश में तमाम सरकारें आई-गईं लेकिन दीर्घकालिक आर्थिक संबंध स्थापित करने से कतराती रहीं, उन्हें लगा कि इसके राजनीतिक खतरे हो सकते हैं क्योंकि इनसे दक्षिणपंथी समूहों की भावनाएं भड़कती हैं.

इस दौरान, भारतीय नेतृत्व भी तमाम बातों के अलग-अलग मायने निकालने से आगे नहीं बढ़ पाया और अक्सर बांग्लादेश को भारत के पड़ोसी राज्यों में चरमपंथियों के समर्थन का दोषी ठहराता रहा. ऐसे में पेचीदा द्विपक्षीय मुद्दे राजनीतिक वार्ताओं का केंद्रबिंदु बन गए, बजाये इसके कि नेता उन व्यापक आर्थिक फैक्टर पर ध्यान देते जो सीमा के दोनों ओर गरीबी मिटाने में कारगर हो सकते थे. ये दोनों देशों के नेतृत्व की तरफ से कभी उपमहाद्वीप में सबसे समृद्ध रहे क्षेत्र की आर्थिक क्षमताएं सही ढंग से आंक नहीं पाने के दुखद पहलू को दर्शाता है. याद रहे, बंगाल (मौजूदा पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, बांग्लादेश और उत्तर प्रदेश) मुगल साम्राज्य की सबसे बेशकीमती संपत्तियों में से एक था.

यूरोप की तर्ज पर भारत को बांग्लादेश के साथ एक सॉफ्ट बॉर्डर पर विचार करना चाहिए जो मुक्त व्यापार और वाणिज्य की अनुमति देता हो. यह क्षेत्र फिर समृद्ध हो सकता है और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाल सकता है. भारत और बांग्लादेश की सफलता एक-दूसरे की समृद्धि में निहित है.

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आशातीत संभावनाएं मौजूद

हमें बांग्लादेश को त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर के साथ जोड़ने से शुरुआत करनी चाहिए. ये मुद्दा कई वर्षों से विचाराधीन है. इन राज्यों और बांग्लादेश के बीच पारगमन सुविधा सभी पक्षों के लिए जीत वाली स्थिति साबित हो सकती है. पारगमन शुल्क के जरिये हासिल होने वाला राजस्व बांग्लादेश तक बुनियादी सड़क ढांचा विकसित करने में मदद करेगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि मोटरमार्गों के विकास के साथ व्यापक आर्थिक विकास की राह खुलेगी. यही नहीं ‘चिकन्स नेक’ क्षेत्र को लेकर भारत की चिंताएं भी कम होंगी.

यह सब बांग्लादेश को अच्छा-खासा आर्थिक लाभ दिए बिना किसी अकेले समझौते के तहत संभव नहीं हो सकता है. भारत को इसके लिए बांग्लादेश को भारतीय मोटरमार्गों के जरिये नेपाल और भूटान के साथ स्वतंत्र व्यापार करने की सुविधा देनी होगी. इन देशों के बीच पर्यटक क्षमता भी बहुत बड़ी है, बशर्ते हम अविश्वास को दरकिनार करें और एक व्यापक तस्वीर देखें.

भारत के लिए एक सबसे बड़ा फायदा यह भी होगा कि सीमाओं की रक्षा के लिए बड़ी संख्या में तैनात हमारे बलों को वहां से हटाकर कहीं अन्य बेहतर जगह इस्तेमाल किया जा सकेगा.

क्षेत्र में नदियों की संख्या देखते हुए अंतर्देशीय जल परिवहन में भी काफी संभावनाएं छिपी हैं और इसके जरिये उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और त्रिपुरा को पारंपरिक तरह से बंगाल की खाड़ी से फिर जोड़ा जा सकता है, जिससे यूरोप और अमेरिका की तरह तरक्की की नई राह खुल सकती है. बंगाल की खाड़ी के पूरे तटवर्ती क्षेत्र को उसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए लाभकारी एक समान रेखा के तौर पर देखा जाना चाहिए, जैसा 1947 में विभाजन से पहले था.

भू-रणनीतिक मोर्चे पर लाभ के अथाह अवसर हैं. अगर यह पहल सफल होती है तो बांग्लादेश चीन के प्रभुत्व से बाहर आ जाएगा और शायद म्यांमार और कुछ हद तक नेपाल भी ऐसा ही करेंगे. यह भारत को एक बार फिर से दक्षिण एशिया की अगुआई की स्थिति में ला देगा- फिर, सभी छोटे राज्य सबकी साझा आर्थिक प्रगति के लिए इसमें स्वेच्छा से सहयोग करेंगे. जब चीन बड़ी संख्या में देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करके मध्य एशिया, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने की योजना बना सकता है, तो भारत अपने ही क्षेत्र में ऐसा क्यों नहीं कर सकता है?


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जय हिंद-जय बांग्ला

बंगाल मुगलों के सिर का ताज था. ब्रिटिश शासन का विकास 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद ही हुआ, जब उन्हें बंगाल से राजस्व की प्राप्ति होने लगी थी.

1947 का विभाजन राजनीतिक प्रकृति थी. हालांकि, 1971 ने इस क्षेत्र की पूरी दशा-दिशा को बदल दिया लेकिन भारत और बांग्लादेश दोनों मुक्ति संग्राम के फायदे पूरी तरह भुनाने में नाकाम रहे.

बांग्लादेश के विजय दिवस की 50वीं जयंती पर इस तरह का राजनीतिक पुनर्मिलन ऐसा कोई पहला मौका नहीं है. लेकिन सबके लिए फायदे की बात यही होगी कि आर्थिक और भावनात्मक स्तर पर नजदीकी बढ़े. इसलिए, बांग्लादेश विरोधी बयानबाजियां बंद करें और उनके लोगों को ‘घुसपैठिया’ करार देने से बचें. यह समय हमारे अपने लोगों की आर्थिक समृद्धि और भलाई के लिए उन्हें साथ लेकर चलने का है.

भूल जाइए कि बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान है, हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं. दक्षिण एशिया के एक नेता के तौर पर भारत तमाम जटिलताओं को दूर करने के साथ-साथ क्षेत्र की नियति भी बदल सकता है. अवसर टकटकी लगाए हमारी ओर देख रहे हैं, जरूरत है बस साहसिक नेतृत्व और दृढ़ इच्छाशक्ति की.

(मेजर जनरल यश मोर (सेवानिवृत्त) @YashMor5 ने दक्षिणी कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद निरोधक अभियानों में हिस्सा लिया है. वह पर्यावरण मुद्दों पर काम करने वाले गैरसरकारी संगठन, सेव द हिमालय फाउंडेशन के सीईओ हैं. मीरपुर, ढाका स्थित कमांड एंड स्टाफ कॉलेज से स्नातक हैं. उन्होंने बांग्लादेश के प्रतिष्ठित संस्थान में भारत का प्रतिनिधित्व किया. बांग्लादेश की एक यूनिवर्सिटी से डिफेंस स्ट्रेटजी में मास्टर डिग्री भी ली है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(प्रशांत दीक्षित द्वारा संपादित)


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