सर्दियों का मौसम आ रहा है, लेकिन पाकिस्तान में ‘मोदी का जो यार है, वो गद्दार है’ वाली फिज़ा है. जी हां, पाकिस्तान में जो भी नरेंद्र मोदी का मित्र है वो गद्दार है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी (पीटीआई) की सरकार विपक्ष के नेताओं को आगाह कर रही है कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनकी नीतियों की आलोचना कर वे दरअसल भारत को खुशी देते हैं. और जब आप भारत को खुशी देते हैं, तो आप दरअसल भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को भी खुश कर रहे होते हैं. इतना भर ही नहीं, इस नए सिद्धांत के अनुसार सीमा के इस पार जो कोई भी खुश है वो मोदी को खुश कर रहा है. बेतुकी लग रही होगी ये बात?
हालांकि, खुशियों के इस चक्कर में, पाकिस्तानी कश्मीर के ‘प्रधानमंत्री’ को नाखुश कर दिया गया है. राजा फारूक़ हैदर हर विपक्षी नेताओं को भारत का एजेंट और इस प्रकार गद्दार घोषित करने की सरकार की आदत का नवीनतम शिकार बने हैं. हैदर का नाम पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के 40 नेताओं के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों वाली रहस्यमय एफआईआर में शामिल है. उन्हें दो पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों नवाज़ शरीफ़ और शाहिद खाक़ान अब्बासी, तीन सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों, सिंध के पूर्व गवर्नर, और पूर्व रक्षा, गृह और कानून मंत्रियों जैसी प्रतिष्ठित शख्सियतों वाली इस सूची में रखा गया है.
एफआईआर के अनुसार नवाज़ शरीफ़ के भाषण का उद्देश्य परोक्ष रूप से ‘उनके मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को फायदा पहुंचाना था.’ शिकायतकर्ता का मानना है कि शरीफ़ भारत की नीतियों का समर्धन करते हैं और उनके भाषण कश्मीर में भारत की ज़्यादतियों से दुनिया का ध्यान हटाते हैं. ये भी कहा गया है कि शरीफ़ पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग करना और पाकिस्तानी सेना को ‘लोकतंत्र विरोधी संस्था’ के रूप में बदनाम करना चाहते हैं.
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कश्मीर की बात पक्षपात के साथ
तो ‘प्रधानमंत्री’ हैदर ने ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें ‘राजा हिंदुस्तानी’ करार दिया गया है? उन्होंने ज़ूम पर नवाज़ शरीफ़ का आक्रामक तेवर वाला भाषण सुना, और उसके बाद अपने हाथ उठाकर उनसे एकजुटता का प्रदर्शन किया— और बाकी, जैसा कि कहा जाता है, इतिहास बन चुका है. ‘कश्मीर के मकसद’ का इतना ही महत्व रह गया है कि एक निर्वाचित प्रधानमंत्री पर सिर्फ इसलिए मुक़दमा कर दिया जाता है कि एक ऑनलाइन भाषण सुनते हुए उन्होंने अपने हाथ उठा दिए. निश्चय ही ये उस सरकार का एक आत्मघाती गोल है जो कि भारत के कश्मीरियों का सबसे बड़ा झंडाबरदार होने का दावा करती है, लेकिन अपने यहां के कश्मीरियों की बात आने पर यू-टर्न ले लेती है. लेकिन हम यहां मोदी को खुशी देने के बड़े मुद्दे पर ध्यान देते हैं.
Indian PM NarendraModi must b feeling elated coz almost entire Pakistan has become his "agent"-thanks to the small-minded bigots who've least realisation of the repercussions of their parish-pump & hate-filled politics.
As an anti-India Kashmiri, I’m worried about my future now.
— Raja Muhammad Farooq Haider Khan (@farooq_pm) October 4, 2020
कश्मीरियों के स्वघोषित प्रतिनिधि प्रधानमंत्री ख़ान के इस व्यवहार को देखकर शरीफ़ को भी रहा नहीं गया और उन्होंने उन पर तंज कसा कि ‘इसके सिर में भूसा भरा हुआ है.’
राजद्रोह के निंदनीय मामले और दूसरों को गद्दार करार देने की आदत की तीखी आलोचना के बाद, इमरान ख़ान सरकार ने पहले तो शिकायत से और फिर शिकायतकर्ता से भी अपनी दूरी बना ली, जो कि उऩकी पार्टी पीटीआई की मज़दूर शाखा का आपराधिक रिकॉर्ड वाला एक पदाधिकारी है. वैसे तो सरकार की सहमति के बगैर राजद्रोह का केस रजिस्टर नहीं किया जाता, लेकिन ये कहा गया कि इमरान ख़ान इस मामले को लेकर नाखुश हैं. ये भी कहा गया कि सरकार इस बात से वाकिफ नहीं है कि आखिर दायर मामले के पीछे किसका हाथ है. हालांकि ऐसी दलीलों को सुनकर अब किसी को हैरत नहीं होती है क्योंकि पीटीआई सरकार को ये भी नहीं पता कि उसे चला कौन रहा है. जैसा कि किसी महान नेता ने कभी कहा था, ‘अपने मकसद को हासिल करने के लिए यू-टर्न लेना महान नेतृत्व की निशानी है.’ राजद्रोह संबंधी एफआईआर से सोशल डिस्टेंसिंग का यू-टर्न लिया जा चुका है. आखिर, ये पीटीआई सरकार की पहचान जो है.
हालांकि, ये समझना मुश्किल है कि ऐसे यू-टर्न की नौबत ही क्यों आई. प्रधानमंत्री ख़ान कहते हैं कि वह नवाज़ के भारत के इशारे पर काम करने को लेकर ‘100 प्रतिशत आश्वस्त’ हैं और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का मानना है कि भारत और उसका मीडिया शरीफ़ के खुलासों से खुश है. तो फिर भला सरकार को राजद्रोह के मामले को आगे बढ़ाने से किसने रोका? या फिर क्या भारतीय खुशियों को मापना आसान नहीं है?
पीएमएल-एन की नेता मरियम नवाज़ ने पीटीआई के नेताओं की भाषा में जवाब दिया है कि भारत तीन दफे निर्वाचित पूर्व प्रधानमंत्री पर राजद्रोह का मामला दायर किए जाने और कश्मीर के मुद्दे को नज़रअंदाज़ किए जाने पर खुश हो रहा होगा. भारत को तब खुशी होती है जब आप अपने हाथों से उसे कश्मीर सौंप देते हैं या जब पाकिस्तान में चुनावी धांधली होती है. यानि जब एक चयनित सरकार देश को कमज़ोर करती है, तो भारत खुश होता है.
بھارت کب خوش ہوتا ہے ؟
مریم نواز شریف نے نشئی اعظم کو آئینہ دکھاتے ہوئے، ?@MaryamNSharif @RehamKhan1 pic.twitter.com/kvQ2EvMQYo— S̶HaHiD Ak (@ShahidAk_1) October 7, 2020
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हर किसी के लिए तमगा
ये ऐसा नाजुक दौर है कि लोगों में ये साबित करने की आपाधापी मची हुई है कि वे बाकियों से बड़े देशभक्त हैं. अब कश्मीर कमेटी के अध्यक्ष शहरयार अफ़रीदी को ही लें जिन्होंने नवाज़ की तुलना सलमान रुश्दी से कर डाली है: ‘जब आप विदेशों में रहकर राष्ट्र और इसकी संस्थाओं की बात करते हैं, भले ही आप सलमान रुश्दी हों या शरिया को खुलेआम चुनौती देने वाला कोई और, आपको पता होना चाहिए कि हम कोई टटपूंजिया देश नहीं हैं.’ नवाज़ शरीफ़ यदि वास्तव में ‘ए मिडसमर ऩाइट्स कू’ नहीं लिख रहे हों, तो किसी टटपूंजिए देश में भी इस बयान का कोई मतलब नहीं.
रेलमंत्री शेख़ रशीद अपने पास पाकिस्तान के बाहर से शरीफ़ द्वारा मोदी को किए गए फोन कॉल का रिकॉर्ड मौजूद होने का दावा करते हैं. क्या मोदी को कॉल करने के लिए सज़ा-ए-मौत मुकर्रर है? कितनी हैरत की बात है कि हर कोई मोदी को इमरान ख़ान के मिस्ड कॉल को भूल जाता है.
ऐतिहासिक रूप से देखें तो पाकिस्तान में जिसने भी संरक्षण प्राप्त संस्थाओं और व्यक्तियों पर अंगुली उठाई उसे राष्ट्रविरोधी और देश की सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया गया है. लेकिन हमारे इतिहास से कोई सबक नहीं लेना चाहता. सिर्फ संरक्षण पाए लोग ही ऐसी तोहमत से बच पाते हैं और महज इस बात की ओर इशारा करने को भी दुश्मन की साजिश करार दिया जाता है, जैसा कि नवाज़ शरीफ़ के मामले में देखा जा सकता है.
जब प्रधानमंत्री ख़ान स्वयं लोगों को ‘हिंदुस्तानी एजेंट’ का तमगा बांट रहे हों तो ज़ाहिर है उनकी पार्टी के प्रवक्ता उनसे प्रेरणा पाएंगे. असल रणनीति विपक्ष को गद्दार साबित करने की है, और शरीफ़ परिवार के साथ तो ऐसा नियमित रूप से किया जाता रहा है. नवाज़ शरीफ़ आज ऐसा कुछ भी नया नहीं कह रहे जो कि अतीत में इमरान ख़ान ने नहीं कहा हो.
वास्तव में, भारतीय टीवी शो आप की अदालत में भाग लेते हुए इमरान ख़ान ने राजनीति में सेना की भूमिका पर कहा था कि सैन्य प्रतिष्ठान के समर्थन के बिना पाकिस्तान में किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए चुनाव जीतना संभव नहीं है. अपनी बात के समर्थन में उन्होंने 2002 के चुनावों का उल्लेख किया था कि कैसे सेना के खिलाफ जाने पर पीएमएल-एन का सफाया हो गया था. और कैसे वह प्रधानमंत्री पद के लिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ का उम्मीदवार होते. बस आज एकमात्र अंतर ये है कि किरदार बदल गए हैं.
यदि ‘गद्दार’ और ‘भारतीय एजेंट’ के सर्टिफिकेट इसी उत्साह से बंटते रहे, तो वो दिन दूर नहीं जब भारतीयों की आबादी में करीब 22 करोड़ का इजाफा हो जाएगा. क्या मोदी और भारत को तब भी खुशी मिलेगी? या फिर ये 2015 की अमित शाह की कल्पना जैसी स्थिति होगी जब उन्होंने कहा था कि ‘यदि बिहार में भाजपा नहीं जीती तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे’?
वैसे सच कहें तो पाकिस्तान को इस बात की परवाह नहीं है कि उसके राष्ट्रीय विमर्श से भारत खुश है, दुखी है, संतुष्ट है या झुंझलाया हुआ है. असल महत्व हमारी सामरिक बढ़त का है, क्योंकि भारत की खुशी अब उसके पाकिस्तानी ‘एजेंटों’ के हाथों में है. यदि भविष्य में खुशी को लेकर कोई जंग होती है, तो आश्वस्त रहें कि पाकिस्तान स्थित भारतीय एजेंट उसे पहले ही जीत चुके होंगे.
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(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. ये उनके निजी विचार हैं.)
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