scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होममत-विमतसिचुएशनशिप, टेक्सटेशनशिप, कफिंग- Gen-Z अब नई शब्दावली के जाल में फंसा

सिचुएशनशिप, टेक्सटेशनशिप, कफिंग- Gen-Z अब नई शब्दावली के जाल में फंसा

एक ऐसी पीढ़ी जो अब किसी भी चीज़ के रूप में परिभाषित नहीं होना चाहती है, उसके लिए अपने नए रोमांटिक संबंधों को 'सिचुएशनशिप' कहना सिर्फ इस तरह के रिश्तों को लेकर और अधिक भ्रम की स्थिति को बनाए रखने जैसा है.

Text Size:

डेटिंग की दुनिया अब पहले से कहीं ज्यादा जटिल है. शायद इस भूलभुलैया वाली जगह से हमारा पहला परिचय तब हुआ जब 2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिला कुनिस की फिल्म ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ आई और इसे लोकप्रिय बना दिया. उसी साल एश्टन कचर और नताली पोर्टमैन ने भी युवा मिलेनियल्स को नॉन-कमिटल रिलेशनशिप का स्वाद दिया. यानी बिना पारंपरिक प्रेमालाप, रोमांस या प्यार के संबंधों में आगे बढ़ना. यह नया और रोमांचकारी अनुभव था. यह सादा सेक्स था और सीमाएं एकदम से साफ थीं. सार्वजनिक रूप से एक जोड़े की तरह न तो हाथ पकड़ना, न कोई रोमांटिक सेल्फी लेना और न हीं कुछ और लाग-लपेट… बस सीधे संबंध बनाना और मजे करना.

यह नॉन-कमिटल स्पेक्ट्रम हाल ही में और अधिक चौंकाने वाले रूप में सामने आया है. यहां आकर सभी डेटिंग स्टेज बेकार साबित हो जाती हैं, जो पीढ़ीगत रोमांटिक कयामत की ओर इशारा कर रही हैं. जहां, पारंपरिक रिश्तों की शुरुआत ‘बात करने’ से होती है. उसके बाद ‘एक-दूसरे को देखना’ और फिर आखिर में ‘डेटिंग’. कम से कम, हमें तो बड़े होने तक यही सिखाया गया था. लेकिन जेन-जेड और मिलेनियल्स ने अपने रोमांटिक संबंधों को परिभाषित करने के लिए अन्य कई भ्रामक शब्दों के एक समूह के बीच हमें एक और नया शब्द दिया है-‘सिचुएशनशिप’. और इसी के साथ डेटिंग स्टेज के सभी नियमों को खिड़की से बाहर फेंक दिया.

यह संभव है कि इस शब्द का पहले ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया था. दरअसल, यह सिर्फ 2019 में लोकप्रिय हुआ, जब रियलिटी टीवी शो लव आइलैंड की प्रतिभागी अलाना मॉरिसन ने अपने डेटिंग हिस्ट्री बताने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. सरल शब्दों में (जो कि इतना सरल नहीं है) कहें तो सिचुएशनशिप एक अपरिभाषित रिश्ता है जहां लोग अंतरंग होते हैं लेकिन एक व्यक्ति तक सीमित होने या उसके साथ रिश्ते में बंधना पसंद नहीं करते हैं.


यह भी पढ़ें: टी-शर्ट से लेकर स्कूल बैग तक, सिद्धू मूसेवाला इस लोहड़ी के मौसम में पंजाब की अधिकांश पतंगों का चेहरा हैं


कमिटमेंट फोबिया अपने चरम पर

पोलियामोरोउस (एक से ज्यादा लोगों के साथ संबंध रखने वाला) व्यक्ति इस बाद से असहमत हो सकते हैं, लेकिन कमिटमेंट बेहतर और मजबूत संबंधों की आधारशिला है. लेकिन ‘सिचुएशनशिप’ स्पष्टता और कमिटमेंट की गंभीर कमी तनाव और हताशा पैदा करने के जोखिम को बढ़ा सकती है.

लेकिन लोग अपने खुद के तरीकों से जीवन को फिर से परिभाषित करने की राह चुन रहे हैं. वो शादी और गंभीर रिश्तों को ठंडे बस्ते में डाल रहे हैं. सिर्फ रिश्तों में ही नहीं, हमने घरों, शहरों और एम्प्लॉयर्स के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभाना बंद कर दिया है. कितने लोग हैं जो अपनी नियमित नौकरियों के साथ-साथ फ्रीलांस गिग्स के पीछे भागते रहते हैं या साल के बीच में पहाड़ों पर जाने के लिए सब कुछ छोड़ने से पहले दो बार भी नहीं सोचते हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

और अब उबर और रेंटोमोजो की पसंद के साथ हमने कार और फर्नीचर जैसी बुनियादी सुविधाएं खरीदने के लिए भी अपनी जिम्मेदारियों को ताक पर रख दिया है. बस कुछ क्लिक और टैप कर जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं, बिना किसी तरह के रख-रखाव और देखभाल की चिंता किए बिना.

क्या हम और ज्यादा डिस्पोजेबल संबंधों की ओर बढ़ रहे हैं? हमारे रिश्तों में ‘घोस्टिंग’ (बिना बताए बातचीत बंद कर देना), ‘कफिंग सीज़न’ (‘कोल्ड और लोनली’ सर्दियों के महीनों में शॉर्ट टर्म रोमांटिक भागीदार के लिए ‘हथकड़ी’), और ‘टेक्स्टेशनशिप’ (टेक्स्ट-ओनली वर्चुअल रिलेशनसिप) पहले से कहीं अधिक सामान्य हो गए हैं. इसके साथ-साथ लोगों की जिम्मेदारी निभाने या मानने के तरीके में बहुत कुछ बदल रहा है.

निकलने का आसान तरीका

दुनिया की बढ़ती चुनौतियों के साथ-साथ बहुत से लोगों ने अपने जीवन और करिअर के प्रति अधिक रोबोटिक नजरिया अपनाना शुरू कर दिया है. लेकिन वे जो भूल जाते हैं वह यह है कि प्यार और साहचर्य अभी भी मूलभूत ज़रूरतें हैं- जो अपना रास्ता खोज ही लेते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उन्हें कितना दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि, स्नेह यानी अफेक्शन का आनंद लेने के लिए सिचुएशनशिप दो चरम सीमाओं के बीच मध्यस्थ की तरह महसूस करती हैं, लेकिन उस रोबोटिक, सेंट्रिक- ट्रेजेक्टरी पर चलने में सक्षम होने की प्रतिबद्धता से बचना होगा- इसका परिणाम अक्सर गड़बड़ होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अदृश्य तार आपको उस व्यक्ति की ओर खींच रहे हैं, जिन्हें आप उस बिंदु पर बायोलॉजिकल या इमोशनली अपने से दूर करने में असमर्थ हैं. मेरा मतलब है, कितने समय तक आप वास्तव में ऑक्सीटोसिन और डोपामिन से बच सकते हैं जो किसी भी व्यक्ति के साथ आत्मीय रूप से मिलने पर आसानी से शरीर से निकलने लगता है? एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से आकर्षित होता है और वे एक-दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं और अपने कमिटमेंट फोबिया के साथ समझौता कर लेते हैं. इस प्रक्रिया में वे सिर्फ खुद को चोट पहुंचाते हैं.

‘लेबल’ एक मुश्किल सवाल

रोमांटिक शब्दावली का एक दिलचस्प इतिहास है. सिचुएशनशिप दिल टूटने का एक बड़ा कारण हो सकती है. लेकिन साथ ही यह एक पीढ़ी की पारंपरिक शब्दों को परिभाषित करने की आदत और उनकी परेशानी की ओर भी इशारा करती है. आज की दुनिया में, जहां किसी को उनके सर्वनाम की पुष्टि किए बिना ‘ही’ या ‘शी’ कहना भी संदिग्ध या गलत आचरण के रूप में गिना जाता है– वहां ज्यादा से ज्यादा लोग बंद डिब्बों से बाहर निकलना चाहते हैं.

सिचुएशनशिप जैसे शब्द अपने स्वयं के कुछ मायने लेकर आते हैं. मगर इसके साथ ही यह भी इंगित करते हैं कि लोग जो करना चाहते थे, उसके ठीक विपरीत करने के लिए नए नामकरण करने की उनकी आदत है. ऐसे शब्द सिर्फ स्पष्टता की कमी का संकेत देते हैं. एक्ज़िबिट ए: उस समय जब किम कार्दशियन ने अपने रियलिटी शो द कार्दशियन के सीज़न 2 में खुद को ‘फ्लेक्सिटेरियन’ कहा. उनके द्वारा गढ़ा गया ये शब्द सप्ताह और उसके कार्यक्रम के आधार पर खुद को एक वीगन, नॉन-वेजिटेरियन और एक वेजिटेरियन व्यक्त करने के लिए था. नए शब्दों की यह लिस्ट ऐसे ही लंबी होती चली जाती है.

‘गोइंग स्टडी’, ‘फ्रैंड्स विद बेनिफिट’ से लेकर ‘एक्सक्लूसिविटी’ जैसे ये लेबल बताते हैं कि हम सालों से रिश्तों को कैसे अपनाते आ रहे हैं. लेकिन एक ऐसी पीढ़ी के लिए जो अब किसी भी चीज़ के रूप में परिभाषित नहीं होना चाहती है, उसके लिए अपने नए रोमांटिक संबंधों को ‘सिचुएशनशिप’ कहना सिर्फ इस तरह के रिश्तों को लेकर और अधिक भ्रम की स्थिति को बनाए रखने जैसा है.

परिभाषाएं शायद ही इन दिनों ज्यादा खास और पवित्र हों, जाहिर हैं रिश्ते भी नहीं हैं.

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

(अनुवाद : संघप्रिया मौर्या | संपादन : इन्द्रजीत)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मथुरा के मुसलमान कानूनी लड़ाई के लिए तैयार लेकिन हिंदुओं को चाहिए ऐतिहासिक न्याय


 

share & View comments