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Friday, 22 November, 2024
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क्या शिवसेना नए ‘सेक्युलर’ साथियों को छोड़ पुराने साथी भाजपा के साथ आयेगी

शिवसेना के पास फिर से एनडीए का हिस्सा और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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सावरकर को अपना आदर्श पुरुष, सच्चा देशभक्त और सावरकर को भारत रत्न देने की मांग करने वाली शिवसेना सावरकर पर राहुल गांधी के ताजा हमले से असहज हैं. शिवसेना को समझ नही आ रहा है कि सावरकर और सरकार के बीच कैसे संतुलन साधा जाए. कट्टर हिंदुत्व को अपना प्राणवायु मानने वाली शिवसेना, कांग्रेस को सावरकर के मुद्दे पर कई बार खरी-खोटी सुना चुकी है, तीन माह पूर्व ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे ने सावरकर मुद्दे पर कहा था कि जो सावरकर की विचारधारा को नहीं मानते उन्हें पीटा जाना चाहिए. ठाकरे ने मणिशंकर अय्यर को तो जूते से मारने का बयान दिया था.

अब कांग्रेस के सहारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे ने फिलहाल यह कहकर पल्ला झाड़ा कि सरकार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर बनी है, विचारधारा पर नही. अभी महाराष्ट्र मे शिवसेना कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के गठबंधन सरकार को बने एक महीना भी नहीं हुआ है, लेकिन वैचारिक मतभेद सामने आने शुरू हो गए हैं.

संसद में नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर कांग्रेस की चेतावनी के बाद भी राज्यसभा में मोदी सरकार को शिवसेना द्वारा राहत देने पर दोनों दलों के मतभेद खुल कर सामने आ गए थे. वैचारिक स्तर पर बंटे हुए दोनों दलों के सामने अब सावरकर विवाद से छुटकारा पाने की बड़ी चुनौती है.


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वीर सावरकर पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का दिया गया बयान शिवसेना और कांग्रेस के बीच संकट का नया कारण बन गया है. एक सप्ताह के भीतर यह दूसरा मौका है, जब दोनों दलो के वैचारिक मतभेद के कारण महाराष्ट्र सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया है. सावरकर मामले को लेकर शिवसेना पर भाजपा ने तीखा हमला बोला है.

भाजपा को मालूम है कि हिन्दुत्व पर शिवसेना जीतना लचीला रुख अपनाएगी उतना उसका वोटबैंक भाजपा के पास सरक जाएगा. कट्टर हिन्दुत्व के साथ आक्रामक राजनीति करना शिवसेना की पहचान रहा है. ऐसे मे झुक कर और अपने कोर विचारधारा से समझौता करके सत्ता मे बनें रहना शिवसेना के आत्मघाती कदम होगा.

भाजपा और शिवसेना

शिवसेना और भाजपा का गठबंधन 35 साल पुराना रहा है. महाराष्ट्र में खासकर मुम्बई, थाणे, कल्याण और कोंकण जैसे क्षेत्रों में भाजपा और शिवसेना एक दूसरे में संगठन के स्तर पर घुले हुए हैं. दो अलग राजनीतिक दल होने के बाद भी दोनों के बीच के वैचारिक समानता ने दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को आपस में बांध कर रखा है. संगठन के स्तर पर कार्यकर्ताओं के साथ-साथ महाराष्ट्र के मतदाता भी दोनों दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की मानसिक तैयारी रही है. गौरतलब है कि 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग लड़ा था. चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा सबसे बड़ा दल था और शिवसेना के साथ न जाने पर महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंन्द्र फडनवीस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के समर्थन से सदन में बहुमत साबित किया था.

2014 में भी महाराष्ट्र सरकार में भाजपा के साथ गठबंधन में शिवसेना एक महीने विपक्ष में रहने के बाद शामिल हुई थी. 2014 में भाजपा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ कदम नहीं बढाए और शिवसेना को मंत्रीमडल में लेकर सरकार पांच साल चलाई.

शिवसेना ने भले ही जिद और मुख्यमंत्री पद की लालसा में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर फिलहाल सरकार बना ली हो और भले ही उद्धव ठाकरे इस बात की घोषणा करें कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ गठबंधन पांच साल के लिए नहीं आने वाले पच्चीस साल के लिए है, जमीनी हकीकत उद्धव ठाकरे भी जानते हैं कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ पांच साल सरकार भले ही खींचतान कर चला लें, आने वाले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में शिवसेना किसी भी स्थिति में कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ नहीं लड़ सकती और नाही कांग्रेस और राष्ट्रवादी का गठबंधन शिवसेना को अपने नैसर्गिक गठबंधन में शामिल करेंगा और पहले से बटी हुई सीटों में शिवसेना को हिस्सा देगा.

शिवसेना को असलियत पता है

भाजपा और शिवसेना के जो विधायक जीत कर आए हैं उसमें दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का योगदान है, लेकिन शिवसेना को इस बात का अहसास है कि उसके सांसदों और विधायकों की जीत में संघ के स्वयसेवकों और भाजपा के मजबूत संगठन के साथ मोदी के लोकप्रियता की बड़ी भूमिका है. शिवसेना महाराष्ट्र में आगामी किसी भी चुनाव में संघ के स्वयसेवकों, भाजपा के कार्यकर्ताओं और मोदी की लोकप्रियता से किनारा कर अपने दम पर कोई भी चुनाव नहीं जीत सकती.

महाराष्ट्र में दोहराया जाएगा बिहार

आने वाले समय में महाराष्ट्र में बिहार की पुनरावृत्ती देखने को मिल सकती है. बिहार में जिस तरह नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ सरकार बनाकर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था, लेकिन कुछ महीनों बाद ही नीतिश कुमार ने फिर भाजपा के साथ बिहार में सरकार बना ली. वही ऐपिसोड आने वाले महीनों में महाराष्ट्र में देखने को मिलना तय है. शिवसेना के पास फिर से एनडीए का हिस्सा और महाराष्ट्र में भाजपा के साथ सरकार बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.


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विचारधारा मामले पर दो छोरों पर खड़ी शिवसेना और कांग्रेस के लिए साथ-साथ कदमताल करना बेहद मुश्किल है और महाराष्ट्र में सरकार चलाना उससे भी मुश्किल है. अभी तो महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच सरकार बने एक माह भी नही हुआ है, सिर्फ भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए अपने आधारभूत मतदाताओं से दूर होना दोनों दलों के लिए संभव नहीं होगा.

यह बेमेल गठबंधन जितना ज्यादा चलेगा सरकार में शामिल तीनों दलों को नुकसान उठाना पड़ेगा. सत्ता के लिए बने इस बेमेल गठबंधन में शिवसेना को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना होगा.

तीनों दलों का नेतृत्व इससे वाफिक है. सरकार के सालभर के जश्न के पहले महाराष्ट्र में सरकार गिर जाए और फिर भाजपा शिवसेना गठबंधन की सरकार बन जाए तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.यह लेख उनके निजी विचार हैं.)

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