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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतमहाराष्ट्र में अमित शाह के जाल में फंस रही हैं शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस

महाराष्ट्र में अमित शाह के जाल में फंस रही हैं शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस

यह अप्राकृतिक, अपवित्र, अविभाजित गठबंधन भाजपा को महाराष्ट्र के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी मज़बूत करेगा.

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महाराष्ट्र सरकार के गठन पर अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कई बाते कहीं जिनमें ये कथन भी शामिल था ‘अगर सेना समझती है कि वो विद्रोह करके जनता की संवेदना हासिल कर सकती है तो फिर वो वाकई जनता को नहीं जानते.’

महाराष्ट्र के चार मुख्य राजनीतिक पार्टियों में, भाजपा ही इकलौती ऐसी पार्टी है जो शायद इस बात की फिक्र कर रही है कि लोग क्या सोचेंगे. राजनीति सारा खेल ही जनता की समझ का है.

24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे के बाद शिवसेना ने जैसा अक्सर किसी भी मोलभाव में होता है. अपनी सबसे ज़्यादा मांग की बात आगे रखी. उसने सत्ता में बराबर की भागेदारी मांगी, जिसमें आधे शासनकाल के लिए शिवसेना के मुख्यमंत्री की शर्त शामिल थी.

कई दिनों तक अटकलों का बाज़ार गर्म रहा कि आखिर में शिवसेना कम पर ही संतुष्टि कर लेगी और उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी और कुछ मलाईदार विभागों पर राज़ी हो जायेगी, पर सभी विशेषज्ञ गलत साबित हुए क्योंकि शिवसेना के शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बातचीत गंभीर हो गई.

अब ये स्पष्ट है कि भाजपा प्रमुख और गृहमंत्री अमित शाह ने खुद को बातचीत में शामिल नहीं किया और देवेन्द्र फडणवीस को आगे किया. ज़रूरत बस इस बात की थी कि अमित शाह मातोश्री जाते जो कि बांद्रा में शिवसेना नेता का घर है और ठाकरे परिवार के अहम को थोड़ा मरहम लगाते. ऐसे ही तो इस परेशान करने वाले सहयोगी से लोकसभा के पहले गठबंधन हुआ था.

24 अक्टूबर के नतीजो के बहुत दिनों बाद तक मीडिया में अटकलें गर्म रहीं कि क्या अमित शाह मातोश्री जायेंगे. एक सुर्खी थी, ‘शांति का हाथ बढ़ाते हुए, अमित शाह शायद मातोश्री जायें, ‘एक दूसरी सुर्खी थी ‘बात तभी जब अमित शाह मातोश्री पहुंचेंगे: सेना.’


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पर अमित शाह दिल्ली में बने रहे और सेना के पास कोई और चारा नहीं था सिवाय एनसीपी से बात करने के. दूसरे शब्दों में, अमित शाह ने शिवसेना के लिए दो रास्ते छोड़े, मेरी शर्तों पर रहो या चले जाओ.

अमित शाह का जोड़-घटाव

जनता की धारणा में शिवसेना सत्ता की लालची है और एक लोकप्रिय देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का सीएम नहीं बनने दे रही है. लोगों द्वारा दिया गया जनादेश स्पष्ट रूप से भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए था जो गठजोड़ चुनाव से पहले हो चुका था. और जनता को इसके बारे में जानकारी नहीं थी कि कोई छोटका और बड़का ठाकरे आधे कार्यकाल के लिए राज्य का मुख्यमंत्री होने वाला है.

जनता के बीच धारणा ऐसी है कि विचारधारा के विपरीत तीनों पार्टियां (शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस) सिर्फ सत्ता के लिए एक साथ आ रही हैं न कि जनता की भलाई के लिए. इस बारे में सभी के बीच चर्चा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में पैसा कैसे एक बड़ा कारक है और यह सबसे अमीर राज्यों में से एक कैसे है और इसे खोना भाजपा के लिए एक झटका है. लेकिन ये इस बात को मजबूत करता है कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस भ्रष्टाचार के लिए एक साथ आ रहे हैं.

शिवसेना को समर्थन देना जिसका सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास रहा है, कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है. कांग्रेस की वैसी भी स्थिति खराब ही है.

यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के विधायक बाहर से समर्थन देने की बजाए इस सरकार में शामिल होना चाहते हैं. उन्हें लूट का हिस्सा क्यों नहीं होना चाहिए?

अगर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी भाजपा दो एआईएमआईएम के विधायकों के साथ विपक्ष में बैठती है तो ये पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा. लेकिन याद रहे कि अमित शाह के पास पर्याप्त समय है कि वो इसे रोक सकें.

अगर ये सरकार बन जाती है जैसा कि अभी लग रहा है, तो सवाल ये उठता है कि ये कितने समय तक चल पाएगी.

इसमें लगातार उकसावा और नोक-झोंक होती रहेगी. संजय राउत मसालेदार सामना संपादकीय के साथ हमारा मनोरंजन करना जारी रखेंगे. शरद पवार एक साज़िश वाले आदमी बने रहेंगे. हताश कांग्रेस पार्टी मुंबई की बाढ़ में अपनी धोती को बचाने के लिए जो भी करेगी, जब तक वह मैनहोल में नहीं गिरती.

यह संभवतः कर्नाटक रेडक्स होगा. जब कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) ने कर्नाटक में सभी बाधाओं के खिलाफ सरकार बनाने में कामयाबी पायी थी, तो इसे भाजपा के खिलाफ एक बड़ी रणनीति के रूप में देखा गया. और अमित शाह के लिए एक हार. इससे क्या निकला? भाजपा ने कर्नाटक में लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की.

एंटी भाजपावाद

कर्नाटक में दो पार्टियों का गठजोड़ ज्यादा दिन नहीं चल सका. यहां महाराष्ट्र में तो तीन की खिचड़ी है.

मान लेते हैं कि ये अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब होते हैं. ऐसे में विपक्ष की भूमिका में भाजपा को अच्छे से पूरे पांच साल मिल जाएंगे. जिसमें वो तीनों पार्टियों पर सीबीआई, ईडी और सीबीडीटी की मदद से भ्रष्टाचार का आरोप लगा सकती है.

भाजपा इस समय का इस्तेमाल 2024 के चुनावों के लिए और पार्टी को विस्तार देने में कर सकती है.

अगर सरकार गिरती है – या कोई सरकार नहीं बनती है और राष्ट्रपति शासन चुनावों के लिए रास्ता देता है – तो यह भाजपा के लिए और भी बेहतर है. यह जनता को बताने में सक्षम होगा, देखो, ये राजनीतिक अस्थिरता के लिए जिम्मेदार लोग हैं. भाजपा के जनादेश को नकारने वाले इन लालची लोगों को देखें.

इंदिरा गांधी के समय में, विपक्षी राजनीति को कांग्रेस-विरोधी के रूप में जाना जाता था. यह तब तक सफल नहीं हुआ, जब तक इंदिरा गांधी के शासन ने बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान नहीं चलाया.


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कांग्रेस-विरोधी की तरह, ड्रॉइंग-रूम विपक्षी नेताओं के भाजपा-विरोधवाद को सफलता नहीं मिली क्योंकि उन्हें लगता है कि राजनीति सत्ता के गलियारों में मोलभाल करने के बारे में है जहां किसको क्या पोर्टफोलियो मिलता है ये निर्धारित होता है.

यह अप्राकृतिक, अपवित्र, अविभाजित गठबंधन भाजपा को महाराष्ट्र के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी मदद करेगा क्योंकि राजनीति केवल सार्वजनिक धारणा और सिर्फ सार्वजनिक धारणा के बारे में ही होती है.

इस तरह भाजपा कुछ ही वर्षों में शिवसेना को खत्म करने में सक्षम हो सकती है. (कुछ कहते हैं, यह देवेंद्र फडणवीस को कमजोर करने की अमित शाह की रणनीति भी है).

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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4 टिप्पणी

  1. सर जी, आपके जैसे सारे एक्सपर्ट यही बता रहे थे कि शिव सेना की औकात नहीं है और उन्हें भाजपा का बगलबच्चा बनना ही पड़ेगा… आप बुरी तरह गलत साबित हुए. अब भविष्य में झांकते हुए आप नए बन रहे गठबंधन को भ्रष्टाचार के लिए बदनाम होना तय बता रहे हैं… और इसके पक्ष में अपने तर्क को एक बार फिर से पढ़िए- “विपक्ष की भूमिका में भाजपा को अच्छे से पूरे पांच साल मिल जाएंगे. जिसमें वो तीनों पार्टियों पर ‘सीबीआई, ईडी और सीबीडीटी की मदद से’ भ्रष्टाचार का आरोप लगा सकती है.” वाह, क्या सदाचार बताया है. हा हा हा!
    पुनश्च- शिवसेना के साथ आने से कांग्रेस का सेक्युलर वाला दाग शायद मिट जाए जो जनेऊ धारण करने पर भी ना मिट पाया था.
    और, एनडीए से बाहर आने के बाद सेना खुलकर मोदी-शाह की बदजुबानी का जवाब उनको समझ आने वाली भाषा में दे सकेगी.

  2. 1 वर्ष में इस दगाबाज पार्टी का अंत सुनिश्चित है। जनता ने 161 सीट नरेंद्र मोदी के पक्ष में व कांग्रेस एनसीपी के विपक्ष में दी थी।

  3. आर्टिकल के तर्को मै ज़्यादा दम नहीं है। लेखक ने यूटोपिया के आधार पर स्टोरी क्रिएट की लग रही है। हिंदुस्तान की राजनीति की तवारीख़ मै पहले भी कई गठबन्धन बन गए। कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबन्धन बना तब भी ऐसा कोई ऎसा आर्टिकल लिखा गया था क्या।

  4. कभी बीजेपी पीडीपी के साथ सरकार बनाकर भी देशभक्त बनी रह सकती है तो ये क्यों नहीं ? पुराने लेख पढ़िए आपने क्या क्या लिखा और हुआ क्या क्या ?

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