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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतPM शहबाज शरीफ का बयान यही दिखाता है कि पाकिस्तान के दिलो-दिमाग पर अभी भी हावी है भारत

PM शहबाज शरीफ का बयान यही दिखाता है कि पाकिस्तान के दिलो-दिमाग पर अभी भी हावी है भारत

भले ही हम पाकिस्तान को लेकर विशेष रूप से गर्मजोशी महसूस न करें, लेकिन यह शायद ही हमारे विचारों पर हावी हो.

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उनकी भाषा असामान्य थी. एक अरब न्यूज चैनल से बात करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा, ‘पाकिस्तान ने अपना सबक सीख लिया है. भारत के साथ हमारे तीन युद्ध हुए और उन युद्धों के परिणाम काफी दुखद होने के साथ बेरोजगारी और गरीबी बढ़ाने वाले थे. लाखों लोग निराशा की गर्त में चले गए.’

बयान का दिलचस्प पहलू यह था कि शरीफ एक आक्रामक की भाषा बोल रहे थे, जिसने अपने तरीके की गलती को देखा. एक भारतीय प्रधानमंत्री जो पाकिस्तान के साथ शांति चाहता था, वह इस स्वर या ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करेगा.

हमारा हमेशा से यह रुख रहा है कि हमने कभी पाकिस्तान पर हमला नहीं किया या युद्ध के लिए नहीं उकसाया. हम पर हमला किया गया और पाकिस्तानी आक्रमण के खिलाफ खुद का बचाव करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. इसलिए, हमारे लिए सीखने के लिए कोई सबक नहीं है.

आक्रामकता का शिकार कोई भी व्यक्ति कभी नहीं कहता, ‘मैंने अपना सबक सीख लिया है, मैं अपने बचाव के लिए नहीं लड़ूंगा.’ केवल हमलावर ही कहता है कि उसने सबक सीख लिया है. युद्ध भड़काने की उनकी नीति ने उनके लोगों को सिर्फ गरीबी की ओर ही धकेला है.

शरीफ के बयान पर कई प्रतिक्रियाएं आईं. पाकिस्तान के भीतर, सैन्य-सरकार की तरफ से हमेशा की तरह कश्मीर के बारे में प्रतिक्रिया आई. वहीं भारत ने कहा: वह ईमानदार नहीं है. यह सिर्फ वैश्विक समुदाय से अपील करने की कोशिश है. इसे गंभीरता से लेनी की जरूरत नहीं है.

दूसरों ने भी काफी स्पष्ट बात कही. पाकिस्तान आज गहरे संकट में है. इसकी अर्थव्यवस्था चरमराने की स्थिति में है. व्यापक असंतोष है और यह एहसास बढ़ रहा है कि कुछ बहुत गलत हो गया है.

इसलिए यह शरीफ की समझौतावादी बयानबाजी है.

लेकिन कल्पना कीजिए कि भूमिकाओं को उलट दिया जाए. कल्पना कीजिए कि भारत इस तरह का आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. क्या कोई भारतीय नेता पाकिस्तान या युद्ध की निरर्थकता के बारे में बात करके संकट का जवाब देगा? हम 1990 में पाकिस्तान जैसे संकट के थोड़ा करीब जरूर आए थे. हालांकि हमें आईएमएफ से मदद की भीख मांगनी पड़ी और अपना सोना गिरवी रखना पड़ा, लेकिन पाकिस्तान को लेकर हमारे मन में कोई विचार नहीं आया. हमारे मन में कभी नहीं आया कि हम अपनी आर्थिक समस्याओं को पाकिस्तान के साथ जोड़ें.

तो, शरीफ का बयान हमें दो बातें बताता है. एक: पाकिस्तान खुद को भारतीय आक्रमण के शिकार के तौर पर नहीं देखता है. यह खुद को एक आक्रामक के रूप में देखता है, जिसने इसका सबक सीख लिया है. और दूसरा, भारत हमेशा पाकिस्तान के नेताओं के दिलो-दिमाग में बना रहता है. यहां तक कि जब उनकी अर्थव्यवस्था डूब रही है, तब भी वे संकट को भारत के साथ युद्ध से जोड़ रहे हैं.


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पाकिस्तान के दिलो-दिमाग पर क्यों चढ़ा है भारत

शरीफ का बयान जितना पेचीदा (या खुलासा करने वाला) है, मैं भारतीय प्रतिक्रियाओं से भी उतना ही प्रभावित था. पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को हवा देने की कोशिश करने वाले अजीबोगरीब समाचार चैनलों के अलावा, ज्यादातर भारतीय मीडिया ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साक्षात्कार को कवर किया, लेकिन इसे दिन की बड़ी खबर नहीं माना.

अगर नरेंद्र मोदी ने शरीफ की तरह इंटरव्यू दिया होता तो क्या ऐसा ही होता? मान लीजिए कि भारतीय प्रधानमंत्री ने घोषणा की होती कि भारत ने अपना सबक सीख लिया है और पाकिस्तान के साथ आगे के संघर्ष से बचना चाहता है क्योंकि इसने हमारे लोगों को गरीब बना दिया है. तो यह पाकिस्तान में साल की सबसे बड़ी खबर होती.

भारत की संयत प्रतिक्रिया भी राहत भरी ही है. कई बार भारत पाकिस्तान के बारे में चिंतित रहा है. उदाहरण के लिए, बांग्लादेश नरसंहार के दौरान और आतंकी हमलों के बाद. लेकिन ज्यादातर समय, भले ही हमारे पाकिस्तान से गर्मजोशी भरे रिश्ते न रहे हों फिर भी शायद ही यह हमारे विचारों पर हावी रहा. न ही, चीन जो कि एक दुर्जेय प्रतिद्वंदी है.

हम अपनी दोनों सीमाओं पर शत्रुता से वाकिफ हैं लेकिन यह हमारी सोच पर हावी नहीं है. भारत में बहुत कुछ चल रहा है – इसमें से ज्यादातर सकारात्मक और उत्साहजनक है और हम अपने पड़ोसियों की तुलना में उस ओर आगे बढ़ रहे हैं.

कुछ साल पहले, मुझे चिंता होने लगी कि यह बदल रहा है. अचानक सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर पाकिस्तान का जुनून सवार हो गया. पाकिस्तानी खतरे के बारे में अंतहीन बहस होगी. पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के संबंध रखने वाले (यहां तक कि बार-बार आने वाले) को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था और हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर उदारवादी विचार अपनाने वाले किसी भी व्यक्ति पर ‘पाकिस्तान जाओ’ हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा लगाया गया अपशब्द बन गया.

सोशल मीडिया के कम पढ़े-लिखे ट्रोल अगर मुझे पाकिस्तान जाने के लिए कहे तो मुझे इसकी चिंता नहीं होगी (मैं वहां कभी नहीं गया और स्पष्ट रूप से जाने की कोई इच्छा भी नहीं है) लेकिन मैं कल्पना करता हूं कि कई मुस्लिम, जिन्हें इस तरह से निशाना बनाया जाता है, इसे उनकी देशभक्ति पर कलंक के तौर पर देखा जाता है.

और शायद इसका इरादा भी यही है. पाकिस्तान पर कई तथाकथित बहसें और इससे भारत की आत्मा को जो खतरा पैदा हो गया है, वह मुस्लिमों को कोसने से ज्यादा कुछ नहीं था, जो कि सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और अल्पसंख्यकों को अलग करने का एक तरीका था.

सांप्रदायिक पूर्वाग्रह किसी भी रूप में विद्रोहकारी ही होता है और हमेशा मूर्खों का अंतिम सहारा होता है. लेकिन मुझे इस बात की चिंता थी कि क्या पाकिस्तान हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है कि हम उससे जुड़े मुद्दों पर बहस करने में इतना समय बर्बाद कर दें? कभी-कभी मुझे डर लगता था कि कहीं हम पाकिस्तान की तरह तो नहीं होते जा रहे, एक ऐसा देश जिसके दिलो-दिमाग पर पड़ोसी हावी है.

सौभाग्य से, इस तरह का समय बीत चुका है. यहां तक कि हिंदुत्व ट्रोल्स ने पाकिस्तान पर्यटन बोर्ड के लिए अवैतनिक प्रचारक के रूप में काम करना बंद कर दिया है और अब लोगों से पाकिस्तान जाओ कहना भी छोड़ दिया है. हर रात टीवी पर अभी भी अप्रासंगिक फालतू की बहसें हो रही हैं लेकिन पाकिस्तान के बारे में बहस बहुत कम हुई है. हमारी प्राथमिकताओं पर फिर से ध्यान जा रहा है.

क्योंकि स्पष्ट रूप से, भारत जैसे बड़े देश के लिए पाकिस्तान से ग्रस्त होना मूर्खतापूर्ण है, एक ऐसा देश जिसकी आबादी यूपी से थोड़ी ही ज्यादा है और जिसकी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और राजनीति अस्थिर है जो सेना से टकराती रहती है.

इसी संदर्भ में हमें भारत के साथ शांति चाहने और सबक सीखने के बारे में शरीफ की टिप्पणी को देखना चाहिए. हां, पाकिस्तान के लिए भारत बहुत मायने रखता है. क्योंकि उनकी सेना ने पाकिस्तान की व्यवस्था में अपनी स्थिति को सुरक्षित करने के लिए भारत से खतरे को भुनाया है. यह इसलिए है क्योंकि पाकिस्तानी राजनेताओं ने वोटों की चाह में भारत के खिलाफ भावनाओं को दशकों तक भड़काया है.

लेकिन पाकिस्तान वास्तव में भारत के लिए बहुत मायने नहीं रखता है. हम एक मध्यम आकार वाले देश के डर में नहीं रहते हैं, जिसे अपने ही लोगों को खिलाने में परेशानी हो रही है और एक ऐसी सेना के गुलाम हैं जिसने कभी युद्ध नहीं जीता है. जो कोई भी यह कहता है कि पाकिस्तान हमारे लिए एक घातक खतरा है, वह आधुनिक भारत की ताकत और उपलब्धियों को कम आंक रहा है.

(वीर सांघवी प्रिंट और टीवी पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @virsanghvi. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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