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Thursday, 21 November, 2024
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राम-राम से लेकर राम नाम सत्य है तक राम ही तो हैं!

राम का नाम भारत से बाहर जा बसे करोड़ों भारतवंशियों को एक-दूसरे से जोड़ता है. राम आस्था के साथ सांस्कृतिक चेतना के भी महान दूत हैं.

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जिस देश के कण-कण में राम बसे हों, वहां पर राम नाम बोलने पर ममता बनर्जी सीधे-सरल लोगों को जेल भेज रही हैं. क्या कभी किसी ने सोचा था कि भारत में राम नाम बोलने पर भी जेल हो सकती है या धमकियां मिल सकती हैं? यदि कोई शख्स जय श्रीराम कहता है तो ममता दीदी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. ‘आप लोग दूसरे राज्य से यहां आते और रहते हैं और फिर जय श्रीराम का नारा लगाते हैं. मैं सब कुछ बंद कर दूंगी.’ ज़रा गौर करें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की भाषा का स्तर.

ममता बनर्जी को आख़िर यह क्या हो गया है? अब उनको कौन बताए कि भारत की राम के बिना तो कल्पना करना भी असंभव है. सारा भारत राम को अपना अराध्य, आदर्श और पूजनीय मानता है. डॉ. राम मनोहर लोहिया जी कहते थे कि भारत के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम- राम, कृष्ण और शिव हैं. उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक को तो होगी ही. उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक 10 में से एक तो जानता ही होगा.

कभी सोचिए कि एक दिन में भारत में कितनी बार यहां की जनता राम का नाम लेती है. यह आंकड़ा तो अरबों में पहुंच जाएगा. पर ममता को तो एक अजीब सी जिद है कि वह अपने राज्य में राम का नाम लेने नहीं दे रही हैं. कैसे नहीं लेने देंगी? क्या भारतीय अब राम का नाम भी नहीं लेगा? यह बात ममता जी ने सोच भी कैसे ली? वह होती कौन हैं यह कहने वाली कि भारत राम का नाम न ले? राम का नाम भारत असंख्य वर्षों से ले रहा है और लेता ही रहेगा.


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किसे नहीं पता कि ममता बनर्जी राम का नाम लेने वालों को कोसकर मुसलमानों को प्रभावित करने की चेष्टा कर रही हैं. अब उन्हें कौन बताए कि भारत का मुसलमान भी राम का तहेदिल से आदर करता है. श्रीराम तो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं. उर्दू के चोटी के शायर इक़बाल ने श्रीराम की शान में 1908 में कविता लिखी थी. वे भगवान राम को राम-ए-हिंद कहते हैं. वे इस कविता में यह भी लिखते हैं.

‘है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज़

अहले नज़र समझते हैं उनको इमामे हिन्दयानी’

भारत को गर्व है कि श्री राम ने भारत में जन्म लिया और सभी मुसलमान ज्ञानी लोग भी राम को भारत का इमाम अथवा साक्षात भगवान मानते हैं.

अभी कुछ दिन पहले ही फ़ारुख अब्दुल्ला साहेब ने भी कहा था कि राम तो इस देश के आदर्श पुरुष हैं और जब कभी भी राम मंदिर बनेगा और उन्हें इजाज़त मिलेगी वे भी कार सेवा के लिए ज़रूर जाएंगें.

अभी तो ममता बनर्जी को श्रीराम कहने वालों से ही परहेज है, तब तो उन्हें राम राज्य के विचार से चिढ़ तो होने ही लगेगी? गांधी जी भारत में राम राज्य की कल्पना करते थे. एक आदर्श राष्ट्र जो न्याय और समानता के मूल्यों पर आधारित हो. बापू ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा जो पवित्रता और सत्यनिष्ठा पर आधारित हो. राम तो हर भारतीय के ईश्वर हैं. देखते जाइये कि ममता बनर्जी कब से राम राज्य के विचार को भी खारिज करने लगेंगी.

क्या राम नाम के अपमान पर सिर्फ भाजपा विरोध जताए? क्यों ममता बनर्जी के आचरण पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी भी अपना कड़ा विरोध दर्ज नहीं कराती? जो समाजवादी पार्टी अपने को लोहिया के विचार से प्रभावित और प्रेरित बताती है. उसकी इस सारे मसले पर चुप्पी चीख-चीख एक सवाल पूछ रही है. सवाल ये है कि क्या समाजवादी पार्टी को लोहिया के राम, कृष्ण और शिव पर लिखे महान निबंध की जानकारी नहीं है? क्या समाजवादी पार्टी कभी सत्तारूढ़ होने पर राम राज्य की कल्पना को अमलीजामा पहनाने की कोशिश नहीं करना चाहेगी? दरअसल देश को राम और गांधी के सपनों के ‘रामराज्य’ को फिर से समझने की कोशिश करनी चाहिए. राम के व्यक्तित्व को समझिए. राम कोई चमत्कार नहीं दिखाते. यहां तक कि भारत और लंका के बीच का पुल भी एक-एक पत्थर जोड़ कर बनाते हैं. इस उपक्रम में उनका साथ दिया जाता है. वे मेहनत करते हैं. वे हिन्दू धर्म के भगवान नहीं हैं बल्कि वे इस मुल्क की मिट्टी की सांस्कृतिक धरोहर हैं और इस साझा धरोहर को बांटना न मुमकिन है न समझदारी.

इक़बाल का यह शेर देखें-

‘लबरेज़ है शराब-ए हक़ीक़त से जाम-ए हिन्द

सब फ़लसफ़ी हैं खित्ता-ए मग़रिब के राम-ए हिन्द’

अर्थात भारतवर्ष का प्याला सत्य से भरा हुआ है और पश्चिम के सभी दार्शनिक विचार भारत के श्रीराम के विचारों का ही विस्तार हैं.

कहना न होगा कि ममता बनर्जी के रवैये से इस देश के हरेक धर्मनिरपेक्ष इंसान की आत्मा भी दुखी होगी.

राम का नाम भारत से बाहर जा बसे करोड़ों भारतवंशियों को एक-दूसरे से जोड़ता है. राम आस्था के साथ सांस्कृतिक चेतना के भी महान दूत हैं. कोई ममता बनर्जी को बता दे कि इस्लामिक देश इंडोनेशिया की संस्कृति पर रामायण की गहरी छाप है. इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था. इंडोनेशिया के जावा शहर की एक नदी का नाम सेरयू है. थाइलैंड के भी अराध्य हैं राम. थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक के पास है श्रीराम की राजधानी.


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थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम ‘रामायण हॉल’ है. म्यांमार में भी राम हैं. यहां का पोपा पर्वत औषधियों के लिए विख्यात है. माना जाता है कि लक्ष्मण के उपचार के लिए पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान जी उखाड़कर ले गये थे. वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे.

आप देखेंगे कि भारत के लोग देश से बाहर अपने साथ आस्था के संबल भी ले गये. उनके विश्वास का वृक्ष स्थानीय परिवेश में फलता-फूलता रहा. वे भारत से बाहर जहां भी गए तो अपने साथ राम कथा को भी ले गए. भारतीय और भारतवंशी राम से दूर तो जा ही नहीं सकते. राम उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं.

यकीन मानिए कि ममता बनर्जी ने राम का अनादर करके करोड़ों हिन्दुस्तानियों को ठेस पहुंचाई है. उन्हें अपने कृत्य के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए.

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

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