फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी के 25 वर्षों के सफर में उनके सबसे ‘ग्रैंडेस्ट’ शो में जिन्हें विरोधाभास नजर आया वे असली मुद्दे को पकड़ नहीं पाए. ये ‘विरोधाभास’ दरअसल मुंबई के जियो वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में पिछले रविवार को आयोजित समारोह में जानबूझकर प्रस्तुत किया गया था. इस पर काफी गरमागरम चर्चा हो चुकी है और इसकी गूंज अभी भी ‘मेटा’ के अल्गोरिदम पर सुनी जा सकती है.
इस शो में लगाए गए कुछ सेट पुराने दौर के राजबाड़ियों की याद दिलाते थे. ये राजबाड़ी अब सामुदायिक रिहाइश में बदल गए हैं, जिनके आगे पुराने कपड़े सूख रहे होते हैं. दूसरी चीजें ऐसी थीं जो इस डिजाइनर के मध्यवर्गीय अतीत और आज के उनकी मध्यवर्गीय-से-इतर हैसियत के बीच की चौड़ी खाई को रेखांकित कर रही थीं. इनके साथ 1980 के दशक की बंगाली शास्त्रीय संगीत और हिंदी फिल्मों के हिट गाने भी. पतनोन्मुख अतीत से उभरते आभूषणों का मनमोहक प्रदर्शन भी था, जिसमें अतीत का पतन एक अलग रहस्यात्मकता लिए था.
जापान में बनी ‘लिमिटेड एडीशन’ वाली जींस (जाहिर है न्यूनतम माप वाली) से लेकर आडंबरपूर्ण आभूषणों की तरह डिजाइन किए गए आश्चर्यजनक परिधानों; और केवियर से लेकर वास्तुकला की प्रतीकात्मकता तक उस शाम का तामझाम कोलकाता के शोरशराबे भरे जनजीवन को साकार कर रहा था. बंगाल टाइगर तरह-तरह से पूरे माहौल पर छाया हुआ था (डिजानार का कहना है कि ‘टाइगर हम सबका है”), जबकि मेहमानों की लिस्ट ‘पावर प्ले’ का प्रदर्शन कर रही थी.
सब्यसाची की बातों पर गौर करने पर आप पाएंगे, वे आपको बता रहे हैं कि उनकी दो दादियां थीं. एक ने उन्हें अति-सूक्ष्मवाद की विजयी ताकत का पाठ पढ़ाया, दूसरी ने उन्हें अधिकतमवादी कल्पनाशीलता में रंग डाला. सब्यसाची हमें अपने जीवन का दर्शन करा रहे हैं, एक मुकाम से दूसरे मुकाम तक. ”हर एक परिवार के लिए सप्ताह में दो अंडों” से लेकर भारत के एकमात्र ऐसे लक्ज़री ब्रांड तक जिसने अपनी मौजूदगी दुनियाभर में दर्ज करा ली है. अब यह ब्रांड 2025 में 500 करोड़ तक की कमाई करने जा रहा है. 2021 में, आदित्य बिरला फैशन ऐंड रिटेल लिमिटेड ने ब्रांड सब्यसाची का 51 फीसदी हिस्सा खरीद लिया. अपनी कथा कहने के लिए सब्यसाची इतिहास, जीवनी, और बौद्धिक उर्वरता का इस्तेमाल करते हैं— सांस्कृतिक एवं बौद्धिक रूप से प्रचंड कलकत्ता के इतिहास का; अपने काम और जीवन के ‘विजुअल’ परिचय के रूप में अपनी जीवनी का; और उस बौद्धिक उर्वरता का, जो कि सांस्कृतिक रुझान के साथ फैशन एवं क्राफ्ट के सफल पुनर्जीवन को प्रस्तुत करने वाला एक भव्य शो है. इसे भारत में कर पाना संभव भी है. इसका मनमोहक पहलू यह है कि यह न तो औपनिवेशिकता की देन है और न ही सरल रूप से उत्तर-औपनिवेशिकता की. यह शो प्रबल रूप से आज़ादी के बाद का है— उदारीकरण, और व्यवसाय खड़ा करने की चुनौतियों के मद्देनजर उभरी स्वतंत्र इच्छाशक्ति की एक कहानी है.
सब्यसाची हमसे कह रहे हैं: कभी एक गरीब बंगाली लड़का रहा मैं, अगर यह कर सकता हूं तो भारत यह कर सकता है. केवल मेरे परिधान मत पहनो, केवल मेरी तारीफ मत करो, मेरी बात सुनो. मैं एक कारण हूं, कोई चूंकि-क्योंकि नहीं हूं. वे अपनी स्थिति को ‘आदर्शवाद’, ‘बौद्धिक बारीकी’, ‘विनम्रता’, या ‘संघर्ष तथा विमर्श’ जैसे शब्दों के मुलम्मे से मढ़ सकते हैं. लेकिन यहां कोई टकराव नहीं है.
जश्न
देश को एक समय दूल्हे-दुलहन के परिधान वाले चटख रंगों से नहला देने वाले इस डिजाइनर ने ‘सब्यसाची एनएमसीसी गाला’ नाम से जाने गए शो के लिए सिर्फ काले रंग का ड्रेस कोड रखने की अनुरोध किया था. यह संवाद करने का उनका अपना तरीका था कि 2023 में नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर (एनएमसीसी) के बेहद ग्लेमरस और दुनिया भर में प्रसारित उदघाटन समारोह का आयोजन करने वाले अंबानी परिवार के पास भारतीय डिजाइनरों की अपनी जमात भले हो लेकिन सब्यसाची तो एक योद्धा वाली सेना हैं जो लोगों की नजरें अपनी ओर फेर सकती है और दिलों में हलचल पैदा कर सकती है.
उन्होंने हलचल पैदा की.
महीनों की तैयारी के बाद हुआ ‘इवेंट’ भारतीय जनजीवन में वर्गगत विषमताओं और वर्ग भेद के विचार की ‘थीम’ से ओतप्रोत था. काले रंग का जादू बहुत खूबसूरती के साथ उभरा— कुछ स्टाइल काफी नफासत भरी थी, कुछ आभूषण इतने चमकदार और सम्मोहक थे कि उन्हें फैशन के लिए बड़े निजी प्रयास या स्टाइल पर कई दिनों की मेहनत के बिना वह रूप देना संभव नहीं लगता. सोनम कपूर, आलिया भट्ट, अनन्या पांडे, सब-की-सब काले रंग विभिन्न रूपों में दमक रही थीं. जैसा कि सब्यसाची ने बाद में कहा, ड्रेस कोड की समरूपता इसलिए राखी गई थी ताकि हर कोई एक सांचे में ढला दिखे. ताकि केवल उनके परिधान मेहमानों के प्रभाव और सामाजिक दंभ के बीच अलग दिखे.
सबसे अच्छी सजधज में कौन था? मैं बंगाल टाइगर को वोट दूंगी, जो सब्यसाची की कोडिंग के जरिए दर्शक के मन में एक महत्वाकांक्षी शेर की कल्पना जगा रहा था.
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कलेक्सन और सब्यसाची का इतिहास
कुछ लोगों ने कहा कि रैंप पर प्रदर्शित परिधानों से वे ‘बहुत प्रभावित’ नहीं हुए. कुछ लोगों को उम्मीद थी कि शो का उदघाटन और समापन बड़े सितारे करते, जिन्हें फैशन की दुनिया में मातृ प्रेम की जबान में ‘मदर’ कहा जाता है. कुछ लोगों को संदेह था कि सब्यसाची ने जो ब्राइडल डिजाइन पेश किए वे उनकी दूसरी विशाल उपलब्धियों से आगे निकल पाएंगे. लेकिन 158 नगों के कलेक्सन, जिसे तैयार करने में छह महीने लगे (हालांकि जो रूप और स्टाइल प्रस्तुत की गई उनकी संख्या कम होती तो बेहतर होता), के बारे में सब्यसाची का कहना था कि यह फैशन के क्षेत्र में उनके 25 वर्षों का सार है.
इन परिधानों में स्वरूप और उनके तत्वों के मामले में भारत को जिस तरह दरकिनार किया गया है और इसके बावजूद उनमें कढ़ाई, बुनाई, कपड़े के इस्तेमाल, और लक्ज़री के रूप में बड़ी कुशलता से तैयार किए गए इनर का जिस तरह प्रयोग किया गया है और ये परिधान ग्लोबल मार्केट की ओर जिस तरह नजर डाल रहे हैं उससे यही संकेत मिलता है कि सब्यसाची की नजर ‘अगले 25 वर्षों’ पर है. अतीत को भविष्य का ख्याल रखते हुए प्रस्तुत किया गया. और बोझिल वर्तमान को भी अहमियत दी गई. वस्त्रों पर उकेरे गए ‘सारा प्यार कहां खो गया’, ‘कैट लेडी’, ‘टेबल फॉर वन’ जैसे नारे सड़कछाप स्टाइल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और 2025 में युवाओं के जन्नत के लिए खतरा बन रहे थे.
सफ़ेद परिधान, काले ग्लव्स और बुद्धिजीवी मार्का चश्मे में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पहचानी नहीं जा रही थीं (फैशन में सेलिब्रिटी को इसी तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए, उनके व्यक्तित्व को हावी न होने देकर). सुपर मॉडल क्रिश्टी टर्लिंग्टन फैशन पत्रिकाओं के कवर पर या इससे पहले सब्यसाची के परिधान में जिस तरह दिखी हैं उससे बिलकुल अलग दिख रही थीं. वे इतने ऊंचे कद की दमदार महिला हैं कि उन्होंने जो बड़े-बड़े आभूषण पहने थे वे उन पर हावी नहीं दिख रहे थे.
इस शो में वह हर चीज थी जो पहले भी सब्यसाची के डिजाइन और परिधानों में मौजूद रही है. 2002 में लक्मे फैशन वीक में पहली बार उन्होंने जो ‘काशगर बाज़ार’ नामक कलेक्सन पेश किया था उससे लेकर नायर सिस्टर्स और पीली कोठी तक, जहां शुभा मुदगल ने सब्यसाची के लिए पहली बार लाइव गायन किया था, कई उपलब्धियों को प्रस्तुत किया गया था जिनमें उनका फिल्मी काम भी शामिल था. उनसे अपेक्षित उनके जाने-पहचाने संदर्भ भी मौजूद थे, मसलन मोटे चश्मे, रवींद्रनाथ ठाकुर, चार्ल्स डिकेन्स, फ्रीडा काहलो की पगड़ियां, और मडोना की रत्नजड़ित सलीब आदि. इनके साथ गायत्री देवी और कोको शेनेल भी. सब्यसाची की अधिकतमवादी प्रस्तुतियों में ये सब उसी तरह लुकाछिपी खेल रहे थे जैसे किसी साहित्यिक नायक के चरित्र को कई पेचीदा आख्यानों के जरिए बुना जाता है.
बौद्धिक उर्वरता हर चीज से उजागर हो रही थी— चाहे वह मखमली हो या सूती, उभयलैंगिकता हो या भेदभाव विरोध, कुछ साड़ियां, चाहे कोलकाता के मल्लिक घाट और कॉलेज स्ट्रीट. चीजें इतनी ज्यादा थीं की किसी खास चीज पर ध्यान देना एक चुनौती थी. वस्त्र इतनी भाषाओं में बोल रहे थे कि बंगला आवाज़ उनमें डूबने के कगार पर पहुंच गई थी, खासकर दर्शक के लिए. सब्यसाची के महती आभूषण निर्विवाद रूप से सबसे अलहदा दिख रहे थे.
तो विरोधाभास कहां था? यहां एक कलाकार और चिंतक हमें यह दिखा रहा था कि वह कितना अच्छा व्यवसायी दिमाग रखता है और कोलकाता से न्यूयॉर्क तक उसने जो ब्रांड स्थापित किया है केवल डिजाइन का मामला नहीं है और उसकी व्याख्या व्यक्तिगत ‘ब्रूटलिज्म’ (कला में अतिशयोक्ति और विकृति के प्रयोग का चलन) के बिना नहीं की जा सकती. इसलिए वे पहले तो खुद को एक मामूली बंगाली लड़के के रूप में प्रस्तुत करते हैं और तब उस आइडिया को आकार और अभिव्यक्ति देते हैं जिसे ‘सब्यसाची कल्चर’ के रूप में पहचाना जाता है.
(शेफाली वासुदेव ने पाउडर रूम: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियन फैशन किताब लिखी है और वे एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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