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Saturday, 16 November, 2024
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Google मैप की जरूरत किसे है? नया पाकिस्तान नया मैपिस्तान है

एक नक्शा, एक हाइवे, एक गाना, और एक मिनट का मौन— ये सामान जुटाया पाकिस्तानियों ने, और कश्मीर बन गया पाकिस्तान.

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पाकिस्तान के लिए फिर यह शाहरुख खान की तरह ‘क…क…क… कश्मीर’ बोलने का मौका है. भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का खास दर्जा खत्म किए जाने, और पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का नारा लगाए जाने के एक साल बाद ‘ज़मीन’ पर काफी कुछ हो रहा है. पाकिस्तानियों के लिए यह एक साल पुराना नारा एक हकीकत बन गया है.

आप पूछेंगे, यह भला कैसे? इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ा— बस एक हाइवे, एक नक्शा, एक म्यूजिक वीडियो, एक मिनट का मौन, एक एकता मार्च, एक टिकट, कई ट्वीट, एलओसी तक का एक दौरा, और कुछ जोशीली लफ्फाजियां…. और लीजिए, कश्मीर बन गया पाकिस्तान! कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे को लेकर अगर किसी को शक हो, तो वक़्त आ गया है कि वह खामोश हो जाए, जोरदार म्यूजिक का सामना करने के लिए तैयार हो जाए. 2019 में, पाकिस्तानियों के लिए अगर यह ‘आइओजेके’ (इंडियन ओकुपाएड जम्मू-कश्मीर— भारत के कब्जे वाला कश्मीर) था, तो 2020 में यह ‘आइआइओजेके’ (इंडियन इल्लीगली ओकुपाएड जम्मू-कश्मीर— भारत के अवैध कब्जे वाला कश्मीर) हो गया. 2021 में इसमें शायद एक और ‘आइ’ जुड़ जाए तो हैरान मत होइएगा.


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नया पाकिस्तान से नया ‘मैपिस्तान’

जो मुल्क दुश्मन मुल्क की जमीन पर कब्जा करना चाहता है, वह पैसे खर्च करके हथियार और फौज बढ़ाता है, और लड़ाई की तैयारी करता है. लेकिन नया पाकिस्तान ऐसा नहीं करता. यहां सब कुछ अलग ढंग से किया जाता है. फिर आप पूछेंगे, यह भला कैसे? बहुत सीधी-सी बात है. पाकिस्तान का नक्शा लीजिए, रंगीन कलम से उस पर निशान लगाइए, और भारत की जमीन को अपना बता दीजिए. बिना खूनखराबे के इंकलाब ऐसे ही तो आता है.

अगर पाकिस्तान कश्मीर को अभी भी विवादित क्षेत्र मानता है (जिसका मतलब यह होगा कि उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है), तो उसे नये नक्शे की क्या जरूरत आ पड़ी? अगर नक़्शों से सीमाओं के झगड़े सुलझ जाते, तो फिर फौजों की क्या जरूरत पड़ती?

कुछ लोग कह रहे हैं की प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘नक्शे वाला आइडिया’ नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली से चुराया है, जिनकी सरकार ने अपने यहां के संविधान में संशोधन करके एक नया नक्शा मंजूर किया है जिसमें भारत के कुछ क्षेत्रों अपना बता दिया गया है. जो लोग यह मानते हैं कि इमरान नकलची हैं वे यह नहीं समझते कि पाकिस्तान कोई नेपाल नहीं है. जब आप मनमर्जी फैसले कर सकते हैं तब संविधान या संसद की क्या जरूरत है? पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 1(3) में साफ कहा गया है कि किन सूबों और इलाकों को मुल्क में शामिल किया जा सकता है.

नये नक्शे के मुताबिक गुजरात का जूनागढ़ अब पाकिस्तान में है, हालांकि उसकी सरहदें पाकिस्तान की सरहदों से कहीं भी जुड़ती नहीं हैं. ऐसा लगता है, हमारे पीएम साहब के मुताबिक भूगोल जर्मनी और जापान को अपनी सरहदें साझा करने से रोक नहीं सकता. तो जूनागढ़ तक ही क्यों रुके? दिल्ली को भी अपनी बता देते. दिल्ली के लाल किले पर पाकिस्तान का झण्डा फहरा देते! कागज पर तो यह सब हासिल कर लेना बहुत आसान है. हैरत की बात तो यह है कि बांग्लादेश को वापस पाकिस्तान में क्यों नहीं शामिल कर लिया गया. ओह, माफ कीजिएगा !

जब ‘नया नक्शा’ हाथ में है जो आपके ख़्वाहिश पर किसी भी जगह को आपका बता सकता है, तो गूगल के नक्शे का क्या काम? अगर संयुक्त राष्ट्र हमारे नये नक्शे को मंजूर कर ले तो फिर तो कश्मीर मसला हल हो गया समझो. लेकिन मुश्किल यह है कि इस तरह के किसी प्रस्ताव का वही हश्र होगा, जो पाकिस्तान के अब तक के ऐसे 99 प्रस्तावों का हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का क्या इतिहास रहा है, यह हम सब जानते हैं. वैसे, कश्मीर मामलों के मंत्री अली अमीन गंडापुर कश्मीर में रायशुमारी करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ‘अल्टिमेटम’ देने के बारे में काफी गंभीर दिख रहे हैं. अगर सुरक्षा परिषद नहीं मानता तो वे आवाम, फौज और सियासी दलों की मदद लेने की धमकी दे रहे हैं.


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जन्नत का हाइवे

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा ‘विकास’ के दावे करते रहते हैं. उन्हें पाकिस्तान से कुछ सीखना चाहिए. इस्लामाबाद में एक ‘कश्मीर हाइवे’ हुआ करता था, जिसका नाम अब ‘श्रीनगर हाइवे’ कर दिया गया है. पाकिस्तानियों को लगता है कि हाइवे अपना नया नाम मिलने के बाद उन्हें कश्मीर नाम के जन्नत तक पहुंचा देगा.

इस्लामाबाद से इस हाइवे से कश्मीर पहुंचने के ‘ईटीए’ को लेकर अभी बातचीत चल ही रही है लेकिन हुकूमत के किसी बंदे ने यह बताने की जहमत नहीं की है कि ‘श्रीनगर हाइवे’ ‘कश्मीर हाइवे’ के मुक़ाबले ज्यादा काम का कैसे हो जाएगा. परेशान मत होइए. यह हाइवे कहीं पहुंचाने वाला नहीं है. और जब नया नक्शा कश्मीर को पाकिस्तान में बता ही रहा है, तो हाइवे का नाम बदलने की क्या जरूरत थी? मैं तो भारी उलझन में हूं.

विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी का मानना है कि भारत को हिला देने के लिए एक मिनट का मौन ही काफी है. पिछले साल भारत ने जब जम्मू-कश्मीर का खास दर्जा खत्म कर दिया था तब शुक्रवार को 30 मिनट का धरना जितना सफल हुआ था उसके मद्देनजर मेरा दावा है कि यह तो हद ही हो गई.

एलओसी पर वीवीआइपी के सैर-सपाटे हमेशा मौज-मस्ती के दौरे ही रहे हैं. अब नया कुछ भी नहीं है और किसी को कुछ नया होने की उम्मीद भी नहीं है. क्या पाकिस्तान के लोग यह उम्मीद करेंगे कि विदेश मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरहद पर करके भारतीय इलाके में चले जाएंगे? ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ के नारे के साथ अपनी छाती पीटने वालों के लिए यह महज फोटो खिंचवाने का मौका है.

लड़ाई की धमकी मत दो, हम गाना रिलीज़ कर देंगे

बिना किसी गाने के आप कश्मीर को लेकर भारत विरोधी भावना कैस भड़का सकते हैं? पिछले साल अगर ‘इंडिया जा, जा कश्मीर से निकल जा, मेरी जन्नत, मेरे घर से निकाल जा’ गाना दिया गया था, तो 2020 में ‘जा छोड़ दे मेरी वादी’ पेश किया गया है, जो पाकिस्तानी फौज की ‘पीआर विंग’ ‘आइएसपीआर’ का प्रोडक्शन है. इस नये गाने को आवाज़ दी है प्लेबैक सिंगर शफ़क़त अमानत अली ने, जो बॉलीवुड के लिए भी कई गाने गा चुके हैं, और महात्मा गांधी के लिए श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने उनका प्रिय भजन भी गाया है. अली भारत के खिलाफ नफरत भड़काने में भले सफल रहे हों लेकिन पाकिस्तान से उनकी मुहब्बत तब खुल कर सामने आ गई थी जब 2016 में कोलकाता में भारत बनाम पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के राष्ट्रगान की लाइनें वे भूल गए थे. हमने उन्हें इसके लिए माफ कर दिया था.

‘वादी’ वाले दूसरे गाने में राहत फतेह अली खान को यह बताते हुए देखा जा सकता है— ‘कश्मीरी हूं, जा छोड़ दे मेरी वादी’. राहत साहब जब ‘सिंह इज़ किंग’ फिल्म के लिए ‘तेरी ओर…’ गाना गा रहे थे तब उस समय ‘वादी’ के जो हालात थे उनके बारे में पता नहीं वे क्या सोच रहे होंगे.

नया गाना सुनकर कश्मीर में तैनात ‘नौ लाख भारतीय फौजी’ जरूर डर से कांप रहे होंगे. या अगर हम नये नक्शे को मानें तो वे 9 लाख फौजी क्या अब पाकिस्तानी नहीं बन गए होंगे?


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बहरहाल, गाना तो गैर नुकसानदेह चीज़ है. अगली बार सरहद पर तनाव पैदा हो, तो एलओसी पर अंताक्षरी का आयोजन किया जाना चाहिए. लड़ाई और हथियारों आदि पर बहुत समय जाया किया जा चुका है. अब नाच-गाने से फैसले करने का वक़्त आ गया है. अगर वह भी कारगर न हो तो भारत-पाकिस्तान लड़ाई का फैसला हाथों से ‘रॉक, पेपर, सीज़र’ बनाने का खेल खेलकर कर सकते हैं. तब तक के लिए, अगला बड़ा आयोजन 9 अगस्त को ‘कोरोना टाइगर फोर्स डे’ मनाने का है. इसके मद्देनजर याद आया कि ‘टाइगर फोर्स’ भी तो कश्मीर को आज़ाद करा सकता है !

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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