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Saturday, 20 April, 2024
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आरक्षण खत्म किया जा रहा है और सरकार कह रही है आरक्षण जिंदाबाद!

केंद्रीय नौकरशाही के उच्च पदों पर एससी-एसटी-ओबीसी के अफसर पहले से ही कम हैं. ऐसे में बिना आरक्षण के हो रही लैटरल एंट्री से उनका प्रतिनिधित्व और घट जाएगा.

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करीब दो साल पर पहले जोधपुर में एक अखबार के कार्यक्रम में बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी ने कहा था कि ‘हमारी सरकार आरक्षण को पूरी तरह खत्म नहीं करेगी. ऐसा करना पागलपन होगा. लेकिन हमारी सरकार आरक्षण को उस स्तर पर पहुंचा देगी, जहां उसका होना या नहीं होना बराबर होगा. यानी आरक्षण निरर्थक हो जाएगा.’

आज आप चाहें तो सुब्रह्मण्यन स्वामी को बधाई दे सकते हैं कि आने वाले वक्त को उन्होंने बिल्कुल सही पढ़ लिया था और सही भविष्यवाणी की थी.

भर्तियों में लागू हो गई है लैटरल एंट्री

केंद्र सरकार ने नौकरशाही में बाहर के क्षेत्रों से जानकारों को लाने की एक नई प्रणाली लागू की है. जिसमें कैंडिडेट से कोई परीक्षा नहीं ली जाएगी और उनकी निय़ुक्तियों में कोई आरक्षण भी लागू नहीं होगा. यानी जिस तरह से अभी यूपीएसससी की सिविल सर्विस परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अफसर एससी-एसटी-ओबीसी कटेगरी से आते हैं, वैसा इन नियुक्तियों में नहीं होगा. इसे लैटरल एंट्री नाम दिया गया है. इस तरीके से 9 अफसर आ चुके हैं, जिन्हें ज्वायंट सेक्रेटरी के स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों में ज्वाइन करना है. ज्वायंट सेक्रेटरी लेवल के अफसर सरकार के लिए नीतियां बनाते हैं. इसके अलावा 40 और अफसर भी डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी स्तर पर लिए जाएंगे.

वादों में आरक्षण का समर्थन, हकीकत में आरक्षण की विरोध

बीजेपी और आरएसएस की घोषित नीति आरक्षण को बनाए रखने की है. नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि ‘जब तक वह जिंदा हैं तब तक बाबा साहब के आरक्षण पर कोई आंच नहीं आएगी.’ जबकि आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि ‘सामाजिक कलंक को मिटाने के लिए संविधान में प्रदत्त आरक्षण का आरएसएस पूरी तरह समर्थन करता है. आरक्षण कब तक दिया जाना चाहिए, यह निर्णय वही लोग करें, जिनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. जब उन्हें लगे कि यह जरूरी नहीं है, तो वे इसका निर्णय लें.’

1. नौकरशाही में लैटरल एंट्री: भारत में नौकरशाही के लिए अफसरों के चयन की एक संविधान प्रदत्त प्रणाली है. इसके लिए यूपीएससी और राज्यों के पब्लिक सर्विस कमीशन का संविधान में प्रावधान है. संविधान में अनुच्छेद 315 से लेकर 323 तक में इस बात का जिक्र है कि नौकरशाही के लिए चयन का पूरा सिस्टम कैसा होगा. पब्लिक सर्विस कमीशन से बाहर से इक्के-दुक्के लोगों को पहले भी सरकारें नौकरशाही में लाती रही हैं. लेकिन ये कभी उस स्तर पर नहीं हुआ, जो मोदी सरकार के समय में हो रहा है. जब केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के मतदान के बीच में ही नौ ज्वायंट सेक्रेटरी की नियुक्ति की घोषणा की तो मीडिया ने उसे अब तक की सबसे बड़ी ऐसी नियुक्ति करार दिया.

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लेकिन इन बयानों से परे नरेंद्र मोदी शासन में तीन ऐसी चीजें हो रही है, जिससे आरक्षण का प्रावधान काफी कमजोर हो जाएगा और सुब्रह्मण्यन स्वामी के शब्दों में ‘निरर्थक’ हो जाएगा.

लैटरल एंट्री में रिजर्वेशन के संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने की व्यवस्था नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस के श्यामलाल  यादव ने जब कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत ये पूछा कि लैटरल एंट्री में रिजर्वेशन है या नहीं, तो मंत्रालय ने जवाब में कहा कि ‘इस योजना के तहत जो पद भरे जाने हैं, वे एकल पद हैं और चूंकि एकल पद में रिजर्वेशन लागू नहीं होता, इसलिए इन नियुक्तियों में रिजर्वेशन नहीं दिया गया है.’


यह भी पढ़ें : हर कटेगरी के लिए सिविल सर्विस में हो एक एज लिमिट


लैटरल एंट्री के तहत पहली खेप में चुने गए नौ कैंडिडेट के नाम हैं – अम्बर दुबे, राजीव सक्सेना, सुजीत कुमार वाजपेयी, सौरभ मिश्रा, दयानंद जगदले, काकोली घोष, भूषण कुमार, अरुण गोयल और सुमन प्रसाद सिंह. श्यामलाल यादव को आरटीआई के जवाब में बताया गया कि चूंकि इन कैंडिडेट का चयन रिजर्वेशन के आधार पर नहीं हुआ है, इसलिए इनकी कटेगरी नहीं बताई जा सकती. इनमें से कोई भी कैंडिडेट एससी, एसटी, ओबीसी का नहीं है, जिसके आधार पर दलित आइएएस अफसर इस स्कीम को गैर-कानूनी करार दे रहे हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि बगैर आरक्षण दिए जिस तरह से नौ नियुक्तियां हुई हैं, उसी तरह आगे भी और नियुक्तियां होंगी. नीति आयोग ने ऐसे 54 पदों की पहचान कर ली है, जिन्हें लैटरल एंट्री से भरा जा सकता है. अगर आगे ये चलन जारी रहा, तो कहने को तो संविधान में रिजर्वेशन के प्रावधान बने रहेंगे, लेकिन वास्तविक अर्थों में रिजर्वेशन काफी हद तक खत्म हो जाएगा.

सरकारी नौकरियों में कटौती यूपीएससी से सेंट्रल सिविल सर्विस के लिए हो रहे सलेक्शन की संख्या लगातर गिरती जा रही है. दिप्रिंट की सान्या ढींगरा ने खबर दी थी कि ‘2014 में यूपीएससी ने 1,236 अफसरों के नाम नियुक्तियों के लिए सरकार के पास भेजे थे. 2018 में ये संख्या घटकर 759 रह गई.’  कम नियुक्तियों का मतलब है कोटा से कम कैंडिडेट का आना. चूंकि आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरियों में है, इसलिए सरकारी नौकरियों में कटौती का मतलब आरक्षण का कमजोर होना भी है.

सरकारी कंपनियों का निजीकरण और सिंकुड़ता आरक्षणसेना को छोड़ दें तो देश में लगभग डेढ़ करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं. इनमें से 11.30 लाख कर्मचारी और अफसर केंद्र सरकार के उपक्रमों यानी सेंट्रल पीएसयू में हैं. केंद्र सरकार नीति आयोग की सलाह पर 42 पीएसयू को बेचने या उन्हें बंद करने पर विचार कर रही है. हालांकि पीएसयू की खासकर वित्तीय बदइंतजामी और उनका घाटे में होना एक वाजिब समस्या है और इसका समाधान खोजा जाना चाहिए. लेकिन साथ में इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि वे देश में नौकरियों के प्रमुख स्रोत भी हैं.

पीएसयू की नौकरियों में आरक्षण लागू है. लेकिन, निजी हाथ में बिकते ही पीएसयू का मालिकाना चरित्र बदल जाता है और वहां आरक्षण बंद हो जाता है. क्या सरकार ऐसा कोई बंदोबस्त कर रही है कि किसी कंपनी के बिक जाने पर भी वहां नियुक्तियों में रिजर्वेशन लागू रहे? इस बारे में कभी कोई चर्चा भी नहीं हुई है. और फिर भारत न अमेरिका है और न ही फ्रांस, ब्रिटेन या कनाडा कि निजी क्षेत्र खुद ही डायवर्सिटी का ख्याल रिक्रूटमेंट के दौरान रखे.

प्रोफेसर सुखदेव थोराट और पॉल अटवेल ने भारत में निजी क्षेत्र की नौकरियों में भेदभाव के चरित्र को समझने के लिए एक अध्ययन किया था. इसके तहत अखबारों में निजी कंपनियों के जो विज्ञापन आए थे, उनके जवाब में एक ही जैसे बायोडाटा अलग-अलग जातिसूचक, धर्मसूचक नाम के साथ कंपनियों को भेजे गए. ये पाया गया कि अगर आवेदक का नाम/सरनेम हिंदू सवर्णों वाला है तो उसे इंटरव्यू के लिए बुलाए जाने के चांस ज्यादा हैं. एक जैसे बायोडाटा भेजने पर, 100 सवर्ण हिंदुओं के मुकाबले सिर्फ 60 दलितों और 30 मुसलमानों को ही इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. इससे पता चलता है कि नौकरियां देने के मामले में सामाजिक पृष्ठभूमि की भूमिका होती है. बेशक कॉरपोरेट सेक्टर कहता रहे कि वे तो सिर्फ मेरिट देख कर नौकरियां देते हैं.

इसे देखते हुए यूपीए सरकार के समय में निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रस्ताव आया था. लेकिन उद्योग और कारोबार संगठनों ने इसका विरोध किया और सरकार को प्रस्ताव दिया कि वंचित तबकों को हुनर सिखाने और शिक्षित करने में वे भी सहयोग करेंगे. कहना मुश्किल है कि निजी कंपनियों ने इस दिशा में कितना काम किया है. निजी क्षेत्र में आरक्षण के बारे में पिछली एनडीए सरकार का ये कहना था कि इस बारे में संबंधित पक्षों की आम सहमति नहीं बन पाई है.

संविधान में आरक्षण का प्रावधान

आने वाले समय में ऐसा हो सकता है कि चौतरफा हमलों के बीच आरक्षण खत्म हो जाए या कमजोर पड़ जाए. ऐसे में ये जानना उपयोगी होगा कि संविधान आरक्षण को लेकर क्या कहता है.

  1. अनुच्छेद15 (4) – इस अनुच्छेद (15) की या अनुच्छेद 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने से नहीं रोकेगी.
  2. अनुच्छेद16 (4) – इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से नहीं रोकेगी.
  3. अनुच्छेद 46– राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, खासकर, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से आगे बढ़ाएगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी रक्षा करेगा.
  4. अनुच्छेद 335 – संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियाँ करने में, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा.

इनमें से अनुच्छेद 15 और 16 को संशोधित करके अब तक अनारक्षित रहे गए सामाजिक समूह के गरीबों यानी सवर्ण ईडबल्यूएस को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. इसके लिए गरीबी की एक परिभाषा बनाई गई है. इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला वहां लंबित है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो भारतीय संविधान समानता के सिद्धांत को स्वीकार करते हुए भी यह मानता है कि जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर हर व्यक्ति समान नहीं है और इस भेदभाव को स्वीकार करते हुए वंचित समूहों को लिए अलग से प्रावधान किए गए हैं. आरक्षण का अधार यही सिद्धांत है कि समूहों के सदस्य के तौर पर हर व्यक्ति समान नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज पी.बी. सावंत इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ‘अगर समाज के हर तबके के पास समानता की स्थिति का फायदा उठाने की क्षमता और संसाधन न हो तो समानता का अधिकार वंचित तबकों के लिए क्रूर मजाक बन जाएगा. संविधान में जो विशेष प्रावधान है, उनका मकसद राज्य को इस बात के लिए सक्षम बनाना है कि वह वंचितों को इन फायदों का लाभ उठाने के काबिल बनाए, जो अन्यथा इनका लाभ नहीं उठा पाते.’

मौजूदा स्थितियों में आरक्षण

अगर हम नौकरियों की घटती संख्या, सरकारी क्षेत्र के निजीकरण और नौकरशाही में हो रही लैटरल एंट्री में आरक्षण की अनदेखी को मिलाकर देखें तो ये कहा जा सकता है कि वास्तव में आरक्षण ऐसी स्थिति में पहुंच रहा है, जहां इसके होने या नहीं होने में खास अंतर नहीं रह जाएगा. ये इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक है. क्योंकि सरकार खुद भी मानती है कि नौकरशाही के उच्च पदों पर वंचित समूहों के लोग काफी कम हैं. मिसाल के तौर पर पिछली सरकार में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2017 में सूचना दी थी कि केंद्र सरकार में डायरेक्टर से और उससे ऊपर के कुल 747 पदों में से एससी अफसर सिर्फ 60 और एसटी अफसर सिर्फ 24 हैं.


यह भी पढ़ें : न्यायपालिका में क्यों होना चाहिए आरक्षण?


ऐसे में सरकार ने वंचित तबकों को सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के अपने संवैधानिक दायित्व (अनुच्छेद 16-4) को पूरा करने की जगह एक ऐसी नीति पर चलने का फैसला किया है, जिससे उनका प्रतिनिधित्व और कम हो जाएगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लेख उनके निजी विचार हैं)

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20 टिप्पणी

  1. हम जनरल के पास एक समय में था पर पर उससे भी सरकार ने ले लिया अमीर अमीर नहीं रहता गरीब गरीब नहीं रहता है संविधान के रचीयताआे आज आतंकवादी कौन है वही जिसे आरक्षण का घमंड हो गया आतंकवादी कौन बन रहा है जनरल या एसटी एससी आरक्षण दे के सर पर बैठा रखे हैं कब तक हम जनरल वालों के पास धन दौलत रहेगा
    सब जगह देखो जाति पर बांट दिया सब भारतीय संविधान को
    एक छोटा सा नौकरी के लिए आवेदन करो। दिया जाता है
    ऑनलाइन खर्चे अधिक लगते हैं कम से कम आपलाइ करने में तो आरक्षण दे दो
    सबके साथ समान व्यवहार करो अन्यथाsanvidhan ke maulik adhikar में से samanta Ka adhikar संविधान से हटा दिया जाए जब तक कि पूरे भारत में सभी जाति को समान दृष्टि से ना देखा जाए अगर संविधान देश के सभी वर्गों के साथ असमानता का ब्यवाहर करती है तो प्लीज़ फिलहाल के लिए समानता के अधिकार को हटा दिया जाए हम GEN ko सिर्फ़ नाम के लिए समानता नहीं चाहिए संविधान के इस बर्ताव से हम GEN वालों का दम घुटने की कगार पर पहुंच गया है। हम GEN walo se मताधिकार को भी ले ले संविधान
    वोट करके ST or SC को हम अमिर नहीं बनाना चाहते प्लीज़ आरक्षण हटाने की कृपा करें

  2. प्रतिनिधित्व का अधिकार गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है सामाजिक न्याय का तरीका है लोकतंत्र में यदि हजारों सालों से वंचित धार्मिक गुलामों को न्याय नहीं प्राप्त होगा जो वैदिक वर्ण व्यवस्था के तहत हर तरीके का अन्याय अत्याचार किया गया तो ऐसे लोगों का लोकतंत्र में क्या होगा क्या वह गुनाह धार्मिक गुलामी में बस जाएंगे उनके लिए लोकतंत्र एक दिवास्वप्न बन के रह जाएगा क्या आज के वैज्ञानिक युग में उनको मानवता का कोई अधिकार मिल पाएगा मैं समझता हूं आज ऐसा ही है इसके लिए धार्मिक गुलामों को संघर्ष को आवाज देनी चाहिए और संघर्ष के लिए क्रांति और कत्लेआम का होना आवश्यक है इसी कत्लेआम को डॉक्टर अंबेडकर ने रोका था संविधान निर्माताओं ने रोका था आजादी की लड़ाई में सभी लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई इसके अंदर जाति और धर्म के नाम पर मानवता के साथ अन्याय और संविधान का उल्लंघन क्यों किया जा रहा है नौकरिया बहुत हैं प्राइवेट में नौकरी करिए क्योंकि प्राइवेट की आधारशिला आपने रखी है हमने नहीं महापुरुषों की संकल्पना थी कि देश की जनता का पैसा जनता के पास रहे इसी नाते महापुरुषों ने सहकारी और सरकारी कंपनियों का विकास का अन्याय अत्याचार पूजी पतियों के का प्रयास किया और मैं समझता हूं महापुरुष फुल रहे लेकिन वैदिक व्यवस्था के लोगों ने देश में पुनः वर्ग संघर्ष को हवा दी है मैं ऐसे वर्ग संघर्ष का स्वागत करता हूं जय विज्ञान जय संविधान डॉ अमित पटेल प्रचारक सहयोग संघ नई दिल्ली

  3. जिन सामाजिक बुराइयों को दूर करने में हजारों समाज सुधारकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी आज वही सामाजिक बुराइयां फिर से हमारे समाज को जकड़ने लगी हैं जैसे- जातिवाद, गरीबी, भुखमरी,अक्षिक्षा, शोषण, दमनकारी नीतियां …… इत्यादि

  4. हम नहीं कहते कि आरक्षण खत्म करो क्या कुछ समय के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता इससे सामान्य वर्ग के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा और जो st,SC के कुछ लोग जो सक्षम होते हुए भी आरक्षण का मुफ्त लाभ उठा रहे है उन्हें भी कुछ कार्य लेने का मौका मिले आरक्षण के कारण वे भी मुफ्त खोर बन चुके
    आरक्षण की इस जंजीर के कारण कई प्रतिभाएं नीचे रह जाती है इससे देश को भी नुकसान है ,आज 40% अक वाला डॉक्टर बनता है और 80% वाला आरक्षण के कारण घर ही रह जाता है किन्तु आरक्षण के कारण बना डॉक्टर उसकी प्रतिभा और 40% जैसा ही इलाज कर पाता है क्या हमे नहीं लगता कि जो लोग 70 सालो के आरक्षण के बाद अब तक गरीब है वे लोग यातो मुफ्त खोर हो चुके है या अपनी गरीब का नाटक कर रहे हैं ,क्या गरीबी जाति क्या वर्ग देख के आती है अगर नहीं तो क्यों आरक्षण जातिगत आधार पर है क्यों ना आर्थिक आधार पर कर दिया जाय

  5. हम नहीं कहते कि आरक्षण खत्म करो क्या कुछ समय के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता इससे सामान्य वर्ग के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा और जो st,SC के कुछ लोग जो सक्षम होते हुए भी आरक्षण का मुफ्त लाभ उठा रहे है उन्हें भी कुछ कार्य लेने का मौका मिले आरक्षण के कारण वे भी मुफ्त खोर बन चुके
    आरक्षण की इस जंजीर के कारण कई प्रतिभाएं नीचे रह जाती है इससे देश को भी नुकसान है ,आज 40% अक वाला डॉक्टर बनता है और 80% वाला आरक्षण के कारण घर ही रह जाता है किन्तु आरक्षण के कारण बना डॉक्टर उसकी प्रतिभा और 40% जैसा ही इलाज कर पाता है क्या हमे नहीं लगता कि जो लोग 70 सालो के आरक्षण के बाद अब तक गरीब है वे लोग यातो मुफ्त खोर हो चुके है या अपनी गरीब का नाटक कर रहे हैं ,क्या गरीबी जाति क्या वर्ग देख के आती है अगर नहीं तो क्यों आरक्षण जातिगत आधार पर है क्यों ना आर्थिक आधार पर कर दिया जाय।

  6. Kya aarakshan se savarn apni beti beto ki shadi sc/st ke yahaa karegaa….aarakshan ki wakalt karane wale aise logo ki aakh me dhool jhokte hai jo sarakari aur private naukari se bahar we ya to production se jude hai yaa marcketing se…ya swayam ka vyalaar se jude hai aise logo ki sankhyaa bharat me 85% hai…keval 15%hi log sarakari aur private naukari kr rahe hai…. Esase kaun si samajik samanataa aa jayegi… Aakhir sc/st,obc ke bharat me 63%jateeyaa hai savarn 20%hai ….muslim 17%hai …yadi sarakari naukari pane wale sc/st, obc ke yuwa varg savarn kebeti se shadi jr hi le to kitne %sc,/st,obc samajik samanataa mil jayegi….yadi sabhi jaatiyo ke jatee soochk shabd hataana hi hai to sabhi nichee jaati ke log apne ko aarya ghoshit kr de aarya sarvshreshth shabd hotaa hi hai…government ese manyataa de…. Naukariyo me kahi bhi jaati soochak shabd ka ullekh hi n ho…. Aisaa karne se 50years me samajik samanata ayegi….aarakshan se 1000 years me bhi samajik samantaa nahi aa sakti….

  7. जातिवाद खत्म करना है तो दलित शुरुआत करें,क्या पासी चमार से शादी करेगा,सामान्य वर्ग में कुछ मुस्लिम भी आते है उनसे दलित करेंगे शादी ??

  8. जातिवाद खत्म करना है तो दलित शुरुआत करें,क्या पासी चमार से शादी करेगा,सामान्य वर्ग में कुछ मुस्लिम भी आते है उनसे दलित करेंगे शादी ??

  9. आरक्षण खत्म कर देना चाहिए इस से ये साबित हो जाएगा पड़ने वाले व्यक्ति को की नोकरी मिलेगी ना कि 15%वाले को 80 % वाला घर बेठा है 60 %वाला नोकरी कर रहा है सरम आनी चाहिए

  10. जिस दलित परिवार में एक सदस्य की सरकारी नौकरी हो उस परिवार का आरक्षण खत्म कर देना चाहिए

  11. बिल्कुल आरक्षण खत्म होना चाहिए,क्या मतलब ऐसी पढ़ाई का जिसमे 100/100 लाने पर भी बाहर बैठना पड़े और 50-60 नंबर पाने से नौकरी करे

  12. आरक्षण वहां लगाओ जहां उसकी जरूरत हो, जैसे उनको कपड़े दो घर दे दो खाना दे दो इससे कोई दिक्कत नहीं है। पर हर जगह सरकारी जॉब में है ही उसमे जो फॉर्म भरा जाता है उसमे भी ज्यादा पैसा लिया जाता है , general वाले से सभी general वाले लखपति नहीं होता है, नहीं तो सरकार एक काम करे सभी general वाले को बोल दे कि सरकारी जॉब general वाले के लिए नहीं है। इसमें भी गरीब होता है ये भी इसी देश के है ।
    आरक्षण महिला को दो विकलांग को दो जितना आरक्षण देना है

  13. भारत मे आरक्षण की व्यवस्था है,इससे हमें कोई परेशानी नही है,लेकिन सरकार से मेरी एक ही प्रार्थना है कि आप कम से कम आरक्षण में से उम्र का बंधन तो हटा दीजिये.एक सामान्य वर्ग का विद्यार्थियों को अधिकतर परीक्षाओ में 30 साल का हो जाने पर उसको परीक्षा देने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है इस बात का प्रभाव उन गरीब वर्ग के विद्यार्थियों पर पड़ता है जिन्हें किसी का सही मार्गदर्शन नही मिल पाता है और वह अपनी समझ के अनुसार आगे बढ़ता है ,मेहनत करता है,लिकेन जब तक उसकी उम्र निकल जाती है

  14. भारत देश के अंदर जब तक आरक्षण खत्म नहीं होगा तब तक भारत देश का विकास नहीं होगा क्योंकि इसका मुख्य कारण है कि 80 नंबर वाले घर पर बैठे हैं और 36 नंबर वाले पास होकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं।एक स्तर से देखा जाए कि अगर आरक्षण देना भी चाहिए तो इस गरीब को दो जो आर्थिक स्थिति से कमजोर है।जो जनरल केटेगरी के अंदर आते हैं उनको एक परसेंट भी आरक्षण नहीं मिलता ऐसा नहीं है कि जनरल केटेगरी में भी गरीब लोग नही होते हैं। गरीबी जाति देख कर नहीं आती। 80 90 नंबर लाने वाला टैलेंट बंदा घर पर बैठेगा और 36 नंबर लाने वाला नौकरी करेगा तो वह क्या देश का विकास करेगा। हम यह नहीं कहते कि आरक्षण को खत्म कर दो लेकिन यह हम जरूर चाहते हैं कि आरक्षण जातिगत नहीं आर्थिक रूप से देना चाहिए भले वह कोई सी भी जाति का हो।

  15. भारत देश के अंदर जब तक आरक्षण खत्म नहीं होगा तब तक भारत देश का विकास नहीं होगा क्योंकि इसका मुख्य कारण है कि 80 नंबर वाले घर पर बैठे हैं और 36 नंबर वाले पास होकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं।एक स्तर से देखा जाए कि अगर आरक्षण देना भी चाहिए तो इस गरीब को दो जो आर्थिक स्थिति से कमजोर है।जो जनरल केटेगरी के अंदर आते हैं उनको एक परसेंट भी आरक्षण नहीं मिलता ऐसा नहीं है कि जनरल केटेगरी में भी गरीब लोग नही होते हैं। गरीबी जाति देख कर नहीं आती। 80-90 नंबर लाने वाला टैलेंट बंदा घर पर बैठेगा और 36 नंबर लाने वाला नौकरी करेगा तो वह क्या देश का विकास करेगा। हम यह नहीं कहते कि आरक्षण को खत्म कर दो लेकिन यह हम जरूर चाहते हैं कि आरक्षण जातिगत नहीं आर्थिक रूप से देना चाहिए भले वह कोई सी भी जाति का हो।

  16. जिस दलित परिवार में एक सदस्य की सरकारी नौकरी हो उस परिवार का आरक्षण खत्म कर देना चाहिए

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